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मणिपुर में बढ़ती हिंसा का ज़िम्मेदार कौन?

कई लोगों का मानना है कि उत्तर-पूर्वी राज्य मणिपुर में जो अधिक परेशानी खड़ी हुई है वह भाजपा की 'डबल इंजन' सरकार की देन है।
manipur violence
फ़ोटो साभार: PTI

यह वाक्यांश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बायोपिक से "मेरा गुजरात जल रहा है (मेरा गुजरात जल रहा है)" की याद दिला सकता है। जबकि मणिपुर में हाल की हिंसा की पृष्ठभूमि काफी हद तक अलग है, जहां गहरी खामियां मौजूद रही हैं, भाजपा, फिर से, एक और "जलते हुए राज्य" की सत्ता में मौजूद है, वह भी बहुप्रचारित 'डबल इंजन' सरकार के बावजूद ऐसा है।

गुरुवार को जब हिंसा बेकाबू हो गई तो मुख्यमंत्री एन॰ बीरेन सिंह ने लोगों से शांति और सद्भाव बनाए रखने की अपील की। मणिपुर में अभी कर्फ्यू लगा हुआ है, इंटरनेट पर पूरी तरह से रोक है और सामान्य जनजीवन अस्त-व्यस्त है। बड़ी संख्या में सुरक्षा बलों को तैनात किया गया है और स्थिति को नियंत्रण में लाने लिए सेना को लाया गया है, जबकि अभी भी गोलीबारी की खबरें आ रही हैं।

गुरुवार को एक ताजा घटी घटना में, भाजपा के कुकी विधायक वुंजागिन वाल्टे पर इंफाल में भीड़ ने हमला कर दिया था और उनकी हालत गंभीर बताई जा रही है। बीरेन सिंह सरकार से नाखुश भाजपा के चार कुकी विधायकों ने पिछले महीने विभिन्न पदों से इस्तीफा दे दिया था।

घटनाओं की एक समयरेखा

जिन घटनाओं के कारण राज्य में हिंसा हुई, वे नीति निर्माण में सदियों पुरानी खामियों को फिर से उज़ागर करती नज़र आती है। उच्च न्यायालय द्वारा मैतेई को अनुसूचित जनजाति (एसटी) श्रेणी में शामिल करने से संबंधित आदेश से राज्य में पहाड़ी जनजातियां आंदोलित हो गईं। मैतेई कुछ समय से एसटी दर्जे की मांग कर रहे हैं।

इसके अलावा, पिछले कुछ महीनों में, मणिपुर राज्य सरकार आरक्षित वनों या संरक्षित वनों का सर्वेक्षण कर रही थी और गांवों में बेदखली का डर बढ़ रहा था। ये वन ज्यादातर पहाड़ियों में हैं, जहां अधिकतर आदिवासियों का निवास है। 

मुख्यमंत्री बीरेन सिंह 27 अप्रैल को जिस ओपन जिम का उद्घाटन करने वाले थे, एक दिन पहले उसमें आग लगा दी गई थी। इसके बाद, प्रभावित इलाकों में धारा 144 लागू कर दी गई और 28 अप्रैल से पांच दिनों के लिए इंटरनेट सेवाओं को निलंबित कर दिया गया था। कथित तौर पर, देशज जनजातीय नेताओं के फोरम (आईटीएलएफ) द्वारा विरोध प्रदर्शन वापस लिए जाने के बावजूद भी जिले से पुलिस बल वापस नहीं बुलाया गया।

आदिवासी श्रेणी में मेतई को शामिल करने की मांग के विरोध में, 3 मई को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर (एटीएसयूएम) ने 'आदिवासी एकजुटता मार्च' का आह्वान किया था। इस एकजुटता मार्च में बड़ी संख्या में भागीदारी हुई (कुछ रिपोर्टों के अनुसार यह लगभग 60,000 थी) और इसके बाद पूर्ण रूप से बंद कर दिया गया। चुराचांदपुर जिले के तोरबंग इलाके में कुछ घटनाओं के साथ हिंसा भी हुई। कई गांवों में आगजनी हुई, नागरिक समूहों द्वारा हथियार छीनने की खबर आई और 4 मई को 'शूट एट साइट' आदेश के बाद हालात और खराब हो गए। 

समस्या की जड़ क्या है 

मैतेई मणिपुर का एक जातीय समुदाय है और यह कुल आबादी का 53 प्रतिशत है। मैतेई ज्यादातर हिंदू हैं, जबकि आदिवासी बहुसंख्यक ईसाई हैं। मैतेई ज्यादातर घाटी इलाके में केंद्रित हैं, जिनमें राजधानी इम्फाल भी शामिल है। पहाड़ियों में आदिवासियों की संख्या अधिक है। चूड़ाचंदपुर जिले में कुकी जनजाति का प्रभुत्व है। यह सर्वविदित है कि अधिकांश मैतेई राज्य के आदिवासियों की तुलना में काफी समृद्ध हैं।

आदिवासी/जनजातीय समूहों का मानना है कि मैतेई के पास जनसांख्यिकी के साथ-साथ राजनीतिक लाभ भी है क्योंकि राज्य में कुल 60 विधायकों में से 40 विधायक इस समुदाय के हैं। मैतेई को आदिवासी समुदायों की तुलना में कई पहलुओं में अधिक उन्नत माना जाता है। अगर मैतेई को एसटी का दर्जा दिया जाता है तो आदिवासी समुदायों को नुकसान होगा। एटीएसयूएम के नेता बताते हैं कि चूंकि मैतेई लोगों की भाषा संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल है, उनमें से कई को एससी, ओबीसी, या ईडब्ल्यूएस स्थिति का लाभ हासिल है। इसलिए, इस मांग को "राज्य के पहाड़ी इलाकाओं में घुसपैठ का प्रमुख कारण बताया जा रहा है जिसे वे एक “मौन रणनीति" के रूप में देखते हैं। 

एन बीरेन सिंह सरकार की कुछ हालिया गतिविधियों - जिसमें पहाड़ियों के जंगलों से बेदखली शामिल है - को आदिवासियों और मैतेई लोगों के बीच ऐतिहासिक दरारों को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार माना गया है।

मणिपुर के एक वरिष्ठ पत्रकार और वर्तमान में इंफाल रिव्यू ऑफ आर्ट्स एंड पॉलिटिक्स के संपादक प्रदीप फांगजौबम ने फोन पर न्यूज़क्लिक से बात करते हुए बताया कि पहाड़ियों में बेदखली का डर शायद कलह की ओर ले जाने वाला प्रमुख बिंदु था। “सरकार कह रही थी कि अफीम की खेती पहाड़ियों में बड़े पैमाने पर होती है। अफीम की खेती को रोकने की आड़ में सरकार ने चुराचांदपुर जिले में कुकी लोगों को बड़े पैमाने पर बेदखल किया है। इसके अलावा, सरकार ने यह भी कहा कि पहाड़ियों में बड़ी संख्या में ड्रग पेडलर्स हैं।” हालांकि, उनका मानना है कि स्थिति थोड़े समय के भीतर नियंत्रण में आ जाएगी। 

मणिपुर के एक रिसर्च एसोसिएट जो वर्तमान में ग्रिफ़िथ विश्वविद्यालय, क्वींसलैंड में काम कर रहे हैं, ने नाम न छापने की शर्त पर न्यूज़क्लिक को बताया कि मणिपुर के प्रशासन में  मेतेई लोगों का दबदबा है। उन्होंने कहा कि, ''मणिपुर विधानसभा के कुल 60 विधायकों में से 40 मेतेई हैं। आप इससे मणिपुर की राजनीति और प्रशासन पर समुदाय के प्रभुत्व का अंदाजा लगा सकते हैं।”

हिंसा के बारे में बात करते हुए, उन्होंने अपने घर के सूत्रों का हवाला देते हुए कहा कि 4 मई को नागरिकों, मुख्य रूप से मैतेई, ने पंगेई में मणिपुर पुलिस प्रशिक्षण कॉलेज पर धावा बोल दिया था और वहां से हथियार कब्ज़ा लिए थे। “तो, नागरिकों के हाथों में हथियार हैं और लोगों ने परिणामस्वरूप  हिंसा देखी और उन्होंने आदिवासियों पर गोलियां चलाईं।” 

उन्होने सवाल दगा कि "क्या पुलिस या प्रशासन की गुप्त सहमति के बिना उच्च सुरक्षा वाले परिसर में तोड़फोड़ करना इतना आसान था?"  

उनका दावा था कि उन्होंने ऐसी खबरें भी सुनी हैं कि इंफाल में कुछ चर्चों को गिराया गया, वह भी कड़ी सुरक्षा वाले इलाके में – जो डीजीपी के आवास और राज्य विधानसभा क्षेत्र के पास स्थित हैं। न्यूज़क्लिक स्वतंत्र रूप से इसकी पुष्टि नहीं कर सका है।

न्यूज़क्लिक ने चूरनचंदपुर जिले के सिंगसित (नाम बदला हुआ) से भी बात की। गुरुवार देर रात को ही उनसे संपर्क हो सका (राज्य में मोबाइल इंटरनेट पूरी तरह से बंद है) और उन्होंने एक दिल दहला देने वाली घटना सुनाई। सिंगसित ने कहा कि, “कल (3 मई) जब एकजुटता मार्च में हिंसा की खबर फैली तो मैतेई और कुकी सहित अन्य आदिवासी भड़क गए। हमें अपने सूत्रों से पता चला है कि 3 मई की रात चूड़ाचंदपुर जिले में ही करीब 20 कुकी गांवों को जला दिया गया था। लोगों ने हमें बताया कि उस रात और भयानक झड़पें हुईं हैं। मैतेई समुदाय के लोग, मणिपुर पुलिस और कमांडो खुद गांवों में आग लगाने गए थे।”

सिंगसित ने आरोप लगाया कि कांगपोकपी पुलिस थाने में तोड़फोड़ कुकियों द्वारा की गई थी जहां कुछ नागरिकों ने हथियार छीन लिए गए थे। हालांकि, सिंगसित के दावों की पुष्टि नहीं की जा सकी है।

उन्होंने कहा कि, “तो, अब मैतेई और कुकी दोनों के पास हथियार हैं। आप मणिपुर में स्थिति की गंभीरता की कल्पना कर सकते हैं। यह सब सरकार द्वारा किए गए दोषपूर्ण उपायों के कारण है। ” 

यहां यह बात उल्लेखनीय है कि केंद्र, मणिपुर सरकार और तीन कुकी उग्रवादी संगठनों ने 2008 में एक त्रिपक्षीय समझौते और एक एसओओ (ऑपरेशन का निलंबन) पर हस्ताक्षर किए थे। तीन कुकी उग्रवादी समूह में कुकी नेशनल आर्मी (केएनए), कुकी रिवोल्यूशनरी आर्मी (केआरए) थे और ज़ोमी रिवोल्यूशनरी आर्मी (ZRA) थे। बीरेन सिंह सरकार इस साल 10 मार्च को चुराचंदपुर, कांगपोकपी और टेंग्नौपाल जिलों में वन भूमि की रक्षा के नाम पर अफीम की खेती करने वालों पर सरकारी कार्रवाई की गई जो सरकार का त्रिपक्षीय समझौते और एसओओ से पीछे हटने का कारण बनी।

हालांकि, कई राजनीतिक ओबजरवर्स का मानना है कि मार्च 2008 के एसओओ समझौते से पीछे हटकर संकट शुरूआत भाजपा की अगुआई वाली राज्य सरकार ने की, जिसने कुकी उग्रवादियों के खिलाफ सशस्त्र अभियान बंद कर दिया था। उसके बाद, आदिवासियों की बेदखली वाले अभियान ने समुदायों के बीच तनाव और असुरक्षा को जन्म दिया।

कुकी और अन्य पहाड़ी कबीलों का डर यह है कि उनकी भूमि और वन अधिकार छीन लिए जा सकते हैं। नवीनतम टकराव का कारण चुराचंदपुर जिले में आरक्षित वन इलाके से ग्रामीणों को बेदख़ल करना है।

हक़ीक़त यह है कि जनता से दबाव इतना ज्यादा है कि भाजपा के चार कुकी विधायकों ने पिछले महीने विभिन्न पदों से इस्तीफा दे दिया था और सरकार से बीरेन सिंह को हटाने की मांग को लेकर पार्टी के शीर्ष नेताओं से मिलने दिल्ली भी गए थे।

इस बीच, संगमुआन हैंगिंग बताते हैं कि अशांत चुराचांदपुर जिले सहित मणिपुर के कुछ इलाकों में बहुत कुछ पक रहा है। एक लेख में, उन्होंने कहा कि 15 फरवरी को, चुराचांदपुर के उपायुक्त ने चुराचांदपुर और मुलनुआम अनुमंडल के कई गांवों में "अवैध प्रवासियों" की पहचान करने के लिए सत्यापन अभियान चलाने का आदेश दिया है। सत्यापन अभियान 27 फरवरी से 17 मार्च तक चलना था, जहां ग्राम प्रधानों को आदेश दिया गया था कि वे सबके  बायोमेट्रिक्स जमा करने के लिए प्रत्येक ग्रामीण की उपस्थिति सुनिश्चित करें। आदिवासी समूहों ने इन अभियानों का विरोध किया और 10 मार्च को शांतिपूर्ण रैली का आह्वान किया था। प्रशासन ने दावा करते हुए कि हिंसा न हो इसलिए रैली के दिन धारा 144 लगा दी थी। 

'2001 के बाद इस तरह की पहली हिंसा'

इंफाल की रहने वाली और वामपंथ से संबद्ध अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति (एआईडीडब्ल्यूए) की सदस्य कमला देवी (नाम बदला हुआ) जिन्होने खुद हिंसा देखी है, ने टकराव बढ़ाने के लिए भाजपा सरकार को जिम्मेदार ठहराया क्योंकि वह 2008 कुकी नेशनल आर्मी (केएनए) और ज़ोमी रिवोल्यूशनरी आर्मी (जेडआरए) के साथ हुए शांति समझौता से  पीछे हट गई थी।

उन्होंने न्यूज़क्लिक को बताया कि, "मैतेई लोग केवल घाटी में रहते हैं, जिनका राज्य के कुल  20 प्रतिशत हिस्से पर कब्जा है। म्यांमार से आने वाले प्रवासियों के कारण वे अल्पसंख्यक बनते जा रहे हैं, यही वजह है कि समुदाय अनुसूचित जनजाति का दर्जा चाहता है।" मौजूदा कानून के अनुसार, मैतेई लोगों को राज्य के पहाड़ी इलाकों में बसने की अनुमति नहीं है।

'आदिवासी एकजुटता मार्च' का जिक्र करते हुए कहा कि "ऑल मणिपुर स्टूडेंट यूनियन, कुकी छात्र संघ और अन्य संगठनों ने मेतेई की मांग के खिलाफ एक रैली का आह्वान किया था। शुरुआत में रैली शांतिपूर्ण थी। लेकिन रैली के घाटी में घुसने के बाद, उन्हें इलाके प्रवेश नहीं करने को कहा गया, जिससे टकराव हुआ।" 

“हम सुन रहे हैं कि मैतेई गांवों को जला दिया गया और लोग मारे गए हैं। लेकिन हमारे पास अभी तक कोई ऐसा आधिकारिक आंकड़ा नहीं है.'' उन्होंने कहा कि, ''इंटरनेट बंद कर दिया गया है और कर्फ्यू लगा दिया गया है. हमें नहीं पता कि क्या हो रहा है.''

उन्होंने दावा किया कि पूर्वी इंफाल के मैतेई इलाके के इकौ गांव को जला दिया गया है लेकिन अभी तक मरने वालों की संख्या की घोषणा नहीं की गई है। देवी ने कहा कि गुरुवार सुबह जब वह इंफाल के पश्चिम में थीं तो उन्होंने एक जली हुई एंबुलेंस भी देखी। स्थानीय लोगों से पूछताछ करने पर, पता चला कि कार को लगभग 3 बजे जला दिया गया था और एम्बुलेंस में सवार तीन लोगों की मौत हो गई थी; एंबुलेंस में कोई मरीज नहीं था।

“इम्फाल में कुकी लोगों के घरों और इमारतों को भी जलाया जा रहा है। एडवांसड अस्पताल, जिसके मालिक कुकी हैं, भी जल गया है। अस्पताल मेरे घर से लगभग 2 किमी दूर है। मैंने 2001 में हुए संघर्षविराम के बाद से ऐसी हिंसा नहीं देखी थी।" 

“मैं अपने परिवार के साथ रहती हूँ और मेरे दो बेटे हैं। मुझे इस तनावपूर्ण स्थिति से डर लग रहा है। शहर में आग से धुंआ उठता है, और हम इसे सूंघ सकते हैं।”

देवी कहती हैं कि यहां “कई युवा मैतेई लोगों की मानसिकता है कि उन्हें कुकी को मार देना चाहिए। लेकिन मैं उनसे पूछती हूं कि आप उन्हें देखकर कैसे बता सकते हैं कि कोई व्यक्ति मैतेई है या कुकी? वे इसे नहीं समझ रहे हैं। ” 

(अरित्री दास के इनपुट्स के साथ)

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिये गए लिंक पर क्लिक करें।

Violence Escalates in Manipur: Who is Responsible?

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