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धारा 370 के हटने से कश्मीर की उत्पीड़ित महिलाओं की आवाज़ कौन सुनेगा?

राज्य के भीतर उत्पीड़ित महिलाओं की आवाज़ सुनने के लिए कोई आयोग नहीं है, इसलिए उनके ख़िलाफ़ बेरोकटोक हिंसा बढ़ रही है।
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फ़ोटो साभार : The Leaflet

नादिया जब भी देर से उठती है तो उसका पति उसे बेल्ट से पीटता है, तो कभी थप्पड़ मारता है। नादिया की शादी 2017 में हुई थी और उन्हें हर रोज़ घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ता है। नादिया बड़ी तकलीफ के साथ कहती है कि, "मेरे दो बच्चे हैं; मेरे पिता की एक साल पहले मृत्यु हो गई है। हमारी दो बहनें हैं और एक दिव्यांग भाई है। मैं कहाँ जाऊँ?”  

नादिया के पति श्रीनगर जिले में एक किराने की दुकान चलाते हैं। वे कहती है कि उनके पति कई वर्षों से कर्ज़दार है और वे मांग करते हैं कि वह अपने माता-पिता या जान पहचान वालों से उसके सभी कर्ज़ों को चुकाने के लिए पैसे लाए।

कभी महिलाओं के लिए स्वर्ग माने जाने वाली कश्मीर घाटी में पिछले कुछ वर्षों में महिलाओं के खिलाफ हिंसा में भारी वृद्धि हुई है। पीड़ित महिलाएं अपनी शिकायतें लेकर किसी के पास नहीं जा सकतीं हैं क्योंकि महिलाओं की शिकायतें सुनने के लिए अब कोई मंच नहीं बचा है।

2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद, भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने महिला और बाल अधिकार संरक्षण आयोग और छह अन्य आयोगों को समाप्त कर दिया था। 

जैसे-जैसे महीने बीतते गए, नादिया के दोस्तों ने उसे उसके पति की ज्यादती और दुर्व्यवहार के बारे में शिकायत करने के लिए मना लिया। आख़िरकार, उन्होंने श्रीनगर में राज्य महिला आयोग में मामला दायर करने का मन बना लिया - लेकिन वे ऐसा करते उससे पहली ही यह आयोग भंग हो गया था।

कश्मीर की कई महिलाओं की तरह, नादिया ने भी कभी पुलिस से शिकायत नहीं की, क्योंकि उसे लगता है कि इससे उनका नाम खराब हो सकता है और बदनामी की दाग लग सकता है।

राज्य महिला आयोग के ख़त्म होने के साथ, नादिया की न्याय की उम्मीदें भी ख़त्म हो गईं। नादिया ने इस संवाददाता को बताया कि, "मैं अपने पति के खिलाफ पुलिस स्टेशन में शिकायत करना चाहती हूं, लेकिन कोई पुलिस महिला अधिकारी न होने या उनकी कमी के कारण शिकायत करने से झिझक रही हूं।"

कश्मीर घाटी में हाल के वर्षों में महिलाओं के खिलाफ भयानक अपराध दर्ज़ हुए हैं। मार्च में, एक बढ़ई शब्बीर अहमद वानी ने बडगाम जिले के ओमपोरा इलाके में एक 30 वर्षीय महिला की हत्या कर दी थी। आरोपियों ने मृतक की पहचान न हो इसलिए उसके शरीर को टुकड़ों-टुकड़ों में काट दिया था और अलग-अलग जगहों पर फेंक दिया था।

2021 में, महिलाओं के स्वास्थ्य और कल्याण के लिए समर्पित पत्रिका, बीएमसी विमेन हेल्थ के एक अध्ययन ने 2001 और 2018 के बीच भारत में बढ़ती घरेलू हिंसा का विश्लेषण किया था। इसमें जम्मू और कश्मीर को उन पांच राज्यों में से एक पाया गया, जिसमें 'पतियों और रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता' में 160 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई थी।

रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि 18 वर्षों में अपराध की इस श्रेणी में 53 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जो दर्शाता है कि ऐसे अपराधों की उच्च रिपोर्टिंग कोई मामूली बात नहीं है बल्कि एक स्थापित प्रवृत्ति है।

2021 की रिपोर्ट से पता चलता है कि पूर्ववर्ती राज्य में 11 प्रतिशत विवाहित महिलाओं ने शारीरिक या यौन हिंसा का अनुभव किया, और इस अपराध में आमतौर पर अपराधी पति था। 2015-16 और 2005-06 की रिपोर्टों से पता चला कि इस अपराध का प्रतिशत क्रमशः 12 प्रतिशत और 13 प्रतिशत था।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण रिपोर्ट 2015-16 में, जम्मू-कश्मीर में 15-19 आयु वर्ग की 57.5 प्रतिशत महिलाओं ने बताया कि पति अपनी पत्नी को इसलिए लिए मारने का हक़ जताता है क्योंकि पत्नी ने अपने ससुराल वालों का अनादर किया (और ऐसे मामले 44 प्रतिशत थे) पति के साथ बहस करना में हाथ उठाने के (38 प्रतिशत) मामले थे, घर और बच्चों की उपेक्षा करने पर हाथ उठाने के (37 प्रतिशत) या बेवफा होने के संदेह में पिटाई के (25 प्रतिशत) मामले थे।

नवंबर 2021 में जारी एक नई रपट से पता चलता है कि पत्नी जो अपराध को सहना उचित ठहराती है उन महिलाओं का प्रतिशत काफी कम होकर 47.6 प्रतिशत हो गया है, लेकिन वह अभी काफी ऊंचा बना हुआ है।

पुरुष प्रधान पुलिस थाने

श्रीनगर की उभरती पत्रकार मेहर जरगर का कहना है कि कश्मीर में महिलाएं आपराधिक न्याय प्रणाली या पुलिस पर भरोसा नहीं करती हैं और इसलिए, उत्पीड़न या हिंसा की रिपोर्ट करने में झिझकती हैं। “उन्हें डर है कि उनकी शिकायतों को गंभीरता से नहीं लिया जाएगा या उन्हें पीड़ित-दोष का सामना करना पड़ सकता है। उन्हें अपराधी की ओर से प्रतिशोध का भी डर है और उन्हें भरोसा नहीं है कि पुलिस उन्हें बचा लेगी।'' ज़रगर का कहना है कि कुछ महिलाएं ऐसे अपराधों की रिपोर्ट करती हैं, लेकिन कई अन्य सांस्कृतिक या सामाजिक मानदंडों के कारण रिपोर्ट नहीं की जाती हैं जो महिलाओं को मदद मांगने या यहां तक ​​कि ऐसी घटनाओं पर चर्चा करने से हतोत्साहित करती हैं।

इस मार्च के महीने में ही एक शाम, मेहर को काम से घर लौटते समय भयानक उत्पीड़न का सामना करना पड़ा था। एक युवक ने अपनी कार से उसका पीछा किया और उस पर चिल्लाया, लेकिन इससे पहले कि वह मदद मांग पाती, वह कार से बाहर निकला और उसका रास्ता रोक कर खड़ा हो गया। उसने बेरहमी से उसका हाथ पकड़ लिया और उसका फोन छीनने की कोशिश की, जिससे वह खुद को कैद और असहाय महसूस करने लगी। उसने बताया कि, ''मैं जैसे-तैसे खुद को उसकी पकड़ से छुड़ाने में कामयाब रही और मौके से भाग गई।''

मेहर ने उसी शाम एक्स (पूर्व में ट्विटर) अपनी इस भयावह घटना को साझा किया। उन्हें बारामूला जिले के पुलिस नियंत्रण कक्ष और श्रीनगर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक से फोन आए। लेकिन, इस भयानक अनुभव ने उसे भयभीत कर दिया था और सामाजिक दबाव के कारण उसने मामले को आगे नहीं बढ़ाने का फैसला किया।

22 अगस्त को, प्रधान सत्र न्यायाधीश, श्रीनगर, जवाद अहमद ने एक युवा कानून छात्रा पर एसिड हमला करने के लिए दो लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। जनता ने जांच में पुलिस की भूमिका की सराहना की, लेकिन मेहर का मानना है कि पुलिस में विश्वास बहाल करना एक जटिल प्रक्रिया है जिसके लिए लगातार प्रयास की जरूरत है।

“मुझे नहीं लगता कि यह फैसला अन्य महिलाओं को उनके खिलाफ अपराधों की रिपोर्ट करने के लिए प्रोत्साहित करेगा क्योंकि इस मामले में न्याय पाने में लगभग नौ साल लग गए। उनके अनुसार, एक दशक में कोई एक दोषसिद्धि का जनता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। 

अपराध का बढ़ता ग्राफ़ 

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने पाया कि कश्मीर में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में 2021 में 15.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। रिपोर्ट में 2021 में 3,937 मामले सामने आए, जबकि 2020 में ये 3,405 थे और 2019 में 3,069 मामले थे। रिपोर्ट में 7,000 से अधिक गिरफ्तारियां दिखाई गईं, लेकिन सजा की दर बेहद कम रही और केवल 95 लोगों को दोषी पाया गया। 

एनसीआरबी की रिपोर्ट में 2021 में बलात्कार के 315 मामले, बलात्कार के प्रयास के 1,414 और दहेज हत्या के 14 मामले दर्ज किए गए। विशेष रूप से, बलात्कार के 91.4 प्रतिशत  आरोपी पीड़िता के परिचित थे।

यहां तक कि 2011 की जनगणना के अनुसार जम्मू और कश्मीर में 64 लाख महिलाएं है और 2021 में प्रति लाख जनसंख्या पर अपराध दर 61.6 प्रति 1,00,000 हो गई थी।

जम्मू-कश्मीर राज्य महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष नईमा महजूर का कहना है कि सरकार को महिलाओं की सुरक्षा या उनकी अन्य चिंताओं में कोई दिलचस्पी नहीं है। वे कहती हैं कि उनकी उदासीनता के कारण घाटी में महिलाओं के खिलाफ अपराध हर गुजरते दिन के साथ बढ़ते जा रहे हैं।

महजूर कहती हैं कि, “जम्मू और कश्मीर एकमात्र राज्य [केंद्र शासित प्रदेश] है जहां महिला आयोग नहीं है। नतीजतन, महिलाओं को घर के भीतर और बाहर बहुत अधिक घुटन होती है - कश्मीर में ज्यादातर महिलाएं बदनामी के डर और पुलिस में विश्वास की कमी के कारण एफआईआर दर्ज कराने के लिए पुलिस स्टेशन जाना पसंद नहीं करती हैं।''

महिला अधिकार कार्यकर्ता रशीदा नजीर का कहना है कि घरेलू हिंसा की पीड़ित महिलाएं  पुलिस जांच के मुक़ाबले महिला आयोग की जांच सार्थक विकल्प मानती है। महिलाएं ऐसे में किसी समर्पित आयोग में बिना किसी बाधा के दुर्व्यवहार की रिपोर्ट कर सकती हैं। लेकिन चूंकि आयोग अब अस्तित्व में नहीं है, इसलिए पुलिस स्टेशन ही उनका एकमात्र सहारा हैं, जिस पर महिलाओं को भरोसा नहीं है।

टेलीमानस ने किए और अधिक खुलासे  
जनता को मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने के लिए स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने पिछले अक्टूबर में श्रीनगर में शुरू किए गए एक कॉल सेंटर में महिला कॉल करने वालों की भीड़ बढ़ गई है। “जम्मू-कश्मीर में मानसिक स्वास्थ्य सहायता के लिए 70 प्रतिशत महिलाओं की संकटपूर्ण हालात में कॉल आती हैं। टेली मानस हेल्पलाइन के एक परामर्शदाता, जो अपना नाम नहीं बताना चाहती हैं ने बताया कि, घरेलू हिंसा महिलाओं को तनाव और मानसिक स्वास्थ्य संकट के प्रति अधिक संवेदनशील बना रही है।''

श्रीनगर के टेली मानस की नियमित परामर्शदाता डॉ. महक ने इस संवाददाता को बताया कि महिला आयोग के भंग होने के बाद, उन्हें घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं से रोजाना सैकड़ों फोन कॉल आते हैं। 

संस्था ने जिन मरीज़ों की जांच की है उनके अनुसार, कश्मीर में महिलाओं को घाटी में सशस्त्र संघर्ष के दौरान जो चुपचाप सहना पड़ा, उससे उनका मानसिक स्वास्थ्य खराब हो गया है।

टेलीमानस सेंटर, श्रीनगर में पूर्व मानसिक रोग अस्पताल में स्थित है, जिसे अब मानसिक स्वास्थ्य और तंत्रिका विज्ञान संस्थान (आईएमएचएएनएस) के रूप में जाना जाता है। इसके टोल-फ्री फोन बजते रहते हैं और परामर्शदाता कश्मीरी और उर्दू में कॉल करने वालों को सलाह देते हैं।

“जम्मू और कश्मीर एकमात्र ऐसा राज्य है जहां श्रीनगर और जम्मू शहर में दो मानसिक स्वास्थ्य सुविधा केंद्र हैं। महक कहती हैं, ''दूर-दराज के इलाकों के लोग दिन या रात में किसी भी समय, यहां तक कि घरेलू हिंसा से संबंधित मामलों के लिए भी परामर्शदाताओं को फोन कर सकते हैं।''

देश के अन्य इलाकों की तुलना में कश्मीर में मुद्दे काफी गंभीर हैं। अन्य महत्वपूर्ण राज्यों की तुलना में, कश्मीर में कम आबादी होने के बावजूद यहां मानसिक स्वास्थ्य कठिनाइयां अधिक हैं और मदद के लिए आने वाले सबसे अधिक फोन की संख्या के मामले में शीर्ष तीन राज्यों में से एक है। महाराष्ट्र और तमिलनाडु इसमें अन्य दो राज्य हैं।

लेखक, जम्मू-कश्मीर स्थित एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। व्यक्त विचार निजी हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:

Art 370 Revoked Lifeline of Kashmir’s Women Abuse Survivors

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