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पाकिस्तान क्यों घिरता जा रहा है आतंकवाद से: एक विश्लेषण

आर्थिक और राजनीतिक अस्थिरता से त्रस्त पाकिस्तान हालिया समय में आतंकवाद जैसी भयावह समस्या में एक बार फिर से जकड़ता हुआ दिख रहा है।
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पाक इंस्टिट्यूट ऑफ पीस स्टडीज़ के अनुसार पिछले वर्ष 2022 में पाकिस्तान में कुल 262 आतंकवादी हमले घटित हुए, जो 2021 के मुकाबले 27 प्रतिशत अधिक थे और बीते वर्ष के अलावा 2019 के बाद से ही आतंकवादी हमलों में बढ़ोतरी हो रही है। क्या है इसके पीछे की वजह?

आर्थिक और राजनीतिक अस्थिरता से त्रस्त पाकिस्तान हालिया समय में आतंकवाद जैसी भयावह समस्या में एक बार फिर से जकड़ता हुआ दिख रहा है। बीते कुछ समय में घटित हुई आतंकवादी घटनाओं को देखकर यह कयास लगाए जा रहे हैं कि पाकिस्तान आने वाले समय में आतंकवाद की समस्या से और ग्रसित हो सकता है।

अभी शुक्रवार, 17 फरवरी की शाम पाकिस्तान के शहर कराची में पुलिस मुख्यालय पर हथियारों से लैस 3 आतंकवादियों ने हमला कर दिया। कुछ घंटों तक पुलिस वालों और आतंकवादियों के बीच गोलीबारी होने के बाद आतंकवादियों पर काबू पा लिया गया। इस घटना में तीन आतंकियों समेत 6 लोगों की मौत हो गई वहीं 11 लोग घायल हुए हैं।

इससे पहले भी पिछले माह 30 जनवरी को पाकिस्तान के शहर पेशावर की मस्जिद में एक बम धमाका हुआ था और इस घटना में 100 से भी अधिक लोग जिसमें अधिकतर पुलिस वाले थे, मारे गए थे।

कराची और पेशावर में घटित हुई आतंकवादी घटनाओं के अलावा भी हालिया समय में पाकिस्तान में कई आतंकवादी घटनाएं घटित हुई हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार पिछले महीने जनवरी में 40 से भी अधिक आतंकवादी हमले पाकिस्तान में घटित हुए हैं। इस्लामाबाद स्थित थिंक टैंक, सेंटर फॉर रिसर्च एण्ड सिक्युरिटी स्टडीज के अलावा पाकिस्तान में आतंकवाद की समस्या पर नज़र रखने वाली तमाम संस्थाओ ने अंदेशा जताया है कि आने वाले समय में पाकिस्तान में आतंकवाद की समस्या बढ़ती हुई दिख रही है।

सवाल यहाँ यह उठता है की आखिरकार हालिया समय में पाकिस्तान में आतंकवादी घटनाएं क्यूँ बढ़ रही है और पाकिस्तानी प्रशासन इसे रोकने में एक बार फिर से नाकामयाब क्यूँ हो रहा है? और कैसे अगस्त 2021 में तालिबान के अफगानिस्तान में सत्ता संभालने के बाद से टीटीपी (तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान) के हमलों में 84 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

हालिया समय में आतंकवादी हमलों में वृद्धि के पीछे जानकार कई कारण बताते हैं। इसके पीछे के कारणों को जानने से पहले हम यह जानने की कोशिश करते हैं की आखिरकार पाकिस्तान आतंकवाद जैसी समस्या में कैसे उलझ गया और इस समस्या की शुरुआत कहाँ से हुई।

पाकिस्तान आतंकवाद जैसी समस्या में कैसे उलझ गया?

दरअसल पाकिस्तान में आतंकवाद जैसी समस्या की शुरुआत होती है 1970 के दशक से। 1970 के दशक से पहले तक पाकिस्तान आतंकवाद की समस्या से न के बराबर ग्रसित था। अफगानिस्तान में तालिबानियों का तथाकथित जिहाद और पाकिस्तान में धार्मिक चरमपंथियों का पैदा होना, पाकिस्तान में आतंकवाद की समस्या की शुरुआत यहीं से नजर आती है। लेकिन इतिहास के पन्नों में जो सबसे महत्वपूर्ण घटना, पाकिस्तान में आतंकवाद की समस्या की शुरुआत होने के कारणों को बताती है वह है पाकिस्तान के तानाशाह जनरल जियाउल हक और अमेरिका की पाकिस्तान के प्रति नीति। 70 के दशक के आखिरी सालों में दो सुपर पॉवर्स अमेरिका और सोवियत संघ अफ़ग़ानिस्तान पर अपनी बादशाहत जमाने में लगे थे, और उसी दशक में पाकिस्तान पर नज़र पड़ती है अमेरिका की और यहीं से शुरुआत होती है पाकिस्तान में आतंकवाद की समस्या की। अमेरिका और सोवियत संघ, उस समय के सुपर पॉवर्स के आपसी संघर्ष और अफ़ग़ानिस्तान पर राज करने की ज़िद ने, पाकिस्तान में आतंकवाद जैसी समस्या की बीज बोने का काम किया। तब के पाकिस्तान के तानाशाह जनरल जियाउल हक ने कोल्ड वार में अमेरिका का साथ देते हुए पाकिस्तान के शहर पेशावर को सोवियत से लड़ने के लिए अमेरिका के हवाले कर दिया। इस क्षेत्र को अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए और पाकिस्तानी सेना ने अफगान मुजाहिदीन के आतंकवादी प्रशिक्षण के तौर पर इस्तेमाल किया। पाकिस्तान को मुजाहिदीन के प्रशिक्षण के तौर पर इस्तेमाल करने की जनरल जियाउल हक की नीति ने पाकिस्तान में आतंकवाद की समस्या से ग्रसित करने की शुरुआत की। तब से लेकर अब तक पाकिस्तान की इस नीति का खामियाजा पेशावर व पाकिस्तान के लोगों को उठाना पड़ रहा है। इसी जगह के बोए हुए बीज धीरे धीरे पाकिस्तान के बाकी इलाकों बलूचिस्तान, सिंध और पंजाब प्रांत में पहुँचते चले गए।

आतंकवाद की समस्या बढ़ने के पीछे पाकिस्तानी सरकार की नीतियां ज़िम्मेदार

सोवियत संघ तो 1989 में अफ़ग़ानिस्तान से हार के साथ पीछे हट गया और उसके साथ ही अमेरिका ने इन मुजाहिदीन से अपने रिश्ते खत्म कर लिए। लेकिन पाकिस्तानी प्रशासन और हुक्मरानों ने इन मुजाहिदीन को खत्म करने के बजाय अपने पड़ोसी मुल्क हिंदुस्तान व अफगानिस्तान पर इसका इस्तेमाल करने के कारण कथित तौर पर इन्हें पाला-पोसा। और पाकिस्तान पिछले तीन दशकों से खुद की इसी बोई हुई फसल का खामियाजा भुगत रहा है।

यहाँ अमेरिकी राजनयिक व नेता हिलेरी क्लिंटन का एक बहुत प्रसिद्ध प्रसंग याद आता है जिसमें उन्होंने कहा था की अगर आप सांप पालोगे तो वह एक न एक दिन आपको ज़रूर डसेगा, और वही पाकिस्तान के साथ साफ-साफ देखने को मिल रहा है।

पाकिस्तानी सरकार और उनकी नीतियों की वजह से साल दर साल पाकिस्तान में आतंकवाद की समस्या में बढ़ोतरी होती चली गई। 21वीं शताब्दी के शुरुआती लगभग डेढ़ दशक तक पाकिस्तान में आतंकवाद अपने चरम पर था। वर्ष 2014 के आंकड़ों पर नज़र डालें तो वह यह स्पष्ट करते हैं कि यह साल पाकिस्तान में आतंकवाद के इतिहास में सबसे काले वर्षों में से एक था। 2014 का साल वह समय था जब देश में कई महत्वपूर्ण आतंकवादी घटनाएं घटित हुईं। वैश्विक आतंकवाद सूचकांक (Global Terrorism Index) 2015 के अनुसार, 2014 में आतंकवाद के कारण 78% मौतों के लिए जिम्मेदार पांच देशों में पाकिस्तान शामिल था, इस साल पाकिस्तान में 1,500 से अधिक आतंकवादी घटनाओं में 5,000 से अधिक मौतें हुईं थी। आतंकवादी घटनाओं में इसी बेतहाशा वृद्धि के बाद ही पाकिस्तान, 2014 में आतंकवादियों का खात्मा करने के लिए एक व्यापक अभियान शुरू करने पर मजबूरहुआ। 2000 से लेकर 2014 तक हर साल आतंकवादी घटनाओं में वृद्धि होती चली गई लेकिन 2014 के बाद इसमें कमी होनी शुरू हो गई। नीचे दी गई तालिका में उद्धृत आंकड़ों में साफतौर पर इस बात को देखा जा सकता है।

वर्ष 2014 के बाद से पाकिस्तान में आतंकवाद की समस्या में क्यों कमी देखी जाने लगी?

ऊपर दिए गायें आंकड़ों मे से साफ तौर पर यह देखा जा सकता है कि 2014 के बाद से पाकिस्तान में आतंकवादी घटनाओं में साल दर साल कमी देखने को मिलने लगी थी। 2014 के बाद से आतंकवादी घटनाओं में कमी के पीछे कई वजहें थी।

गौरतलब हो कि 2014 का साल पाकिस्तान के इतिहास में सबसे अधिक आतंकवादी घटनाएं घटने वाला साल था और इन घटनाओं की संख्या साल दर साल बढ़ती चली जा रही थी। इसी साल पाकिस्तान में दो बड़े हमले घटित हुए थे। एक पेशावर के मिलिट्री स्कूल पर हुआ हमला, जिसे टीटीपी ने अंजाम दिया था और दूसरा कराची एयरपोर्ट पर हुआ हमला, जिसे इस्लामिक स्टेट-खुरासान (IS-K) ने अंजाम दिया था। इन दोनों बड़ी आतंकवादी घटनाओं ने पाकिस्तानी सत्ता में बैठे लोगों को आतंकवादी संगठनों के ऊपर कार्रवाई करने के लिए मजबूर कर दिया। जिसके बाद पाकिस्तानी प्रशासन द्वारा व्यापक स्तर पर कार्रवाई के बाद ही आतंकवादी घटनाओं में कमी देखने को मिलने लगी थी।

2014 में ऑपरेशन, "जर्ब-ए-अज्ब", और 2017 में एक और आतंकवाद विरोधी रणनीति, "रददुल फसाद" के अमल में लाने के बाद वहाँ के प्रशासन ने हज़ारों ऑपरेशन किए। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार ऑपरेशन "रददुल फसाद" के अमल में आने के बाद 2017 से 2021 तक चार वर्षों में 375,000 से भी अधिक खुफिया-आधारित ऑपरेशन किए गए जिसमे हजारों आतंकवादियों को गिरफ्तार किया गया और वहीं 350 से अभी अधिक आतंकवादियों को मौत के घाट उतारा गया। वहीं 2014 में अमल में लाए गए ऑपरेशन जर्ब-ए-अज्ब में व्यापक स्तर पर की गई कार्रवाई में 3,500 से भी अधिक आतंकवादी मारे गए। लगभग 5000 आतंकवादियों को मौत के घाट उतार दिया था। जिसके बाद से पाकिस्तान में आतंकवाद की घटनाओं में कमी देखने को मिल रही थी, लेकिन एक बार फिर से 2019 के बाद पाकिस्तान में आतंकवादी घटनाओं में वृद्धि देखने को मिलने लगी। 

2019 के बाद से आतंकवादी समस्या में एक बार फिर से बढ़ोतरी

2019 के बाद से पाकिस्तान में एक बार फिर से आतंकवाद की घटनाओं में बढ़ोतरी देखने को मिलने लगी। आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2020 में पाकिस्तान में 193 घटनाएं घटित हुई जिसमें 506 मौतें हुई जो कि 2019 के मुकाबले ज़्यादा हैं। आतंकवादी घटनाओं के आंकड़ों में यह उछाल वर्ष 2021, 2022 और हालिया समय में भी देखने को मिल रहा है। पिछले तीन महीनों के आंकड़ों पर नजर डालने पर हमें यही उछाल देखने को मिलता है, इन दिनों में ही 140 आतंकवादी घटनाएं घटित हुई हैं।

पाकिस्तानी शोध संस्थान पाक इंस्टिट्यूट ऑफ पीस स्टडीज़ (PIPS) द्वारा तैयार की गई "पाकिस्तान सुरक्षा रिपोर्ट 2022" में यह दावा किया गया है कि पिछले साल पाकिस्तान में आतंकवादी घटनाओं में 27 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। पिछले वर्ष पाकिस्तान में कुल 262 आतंकवादी हमले घटित हुए,जिनमें से 14 आत्मघाती बम विस्फोट शामिल थे। इन घटनाओं में कुल 419 लोगों की जान गई और अन्य 734 लोग घायल हुए। 2021 की तुलना में बीते वर्ष में मृत्युदर 25 प्रतिशत ज़्यादा थी। इस रिपोर्ट में यह दावा किया गया की बीते वर्ष घटनाओं में वृद्धि के पीछे सबसे ज़्यादा तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) का हाथ था। टीटीपी के अलावा इस्लामिक स्टेट-खुरासान (IS-K) और बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA) ने बीते वर्ष आतंकवादी घटनाओं को अंजाम दिया। इस वर्ष पाकिस्तान में दर्ज किए गए कुल आतंकवादी हमलों में से 60 प्रतिशत से अधिक हमले इन तीन आतंकवादी समूहों द्वारा अंजाम दिए गए।

2019 के बाद से आतंकवादी घटनाओं में एक बार फिर से वृद्धि के कारण यह कहा जा रहा है कि आने वाले समय में पाकिस्तान एक बार फिर से आतंकवाद जैसी समस्या से बुरी तरह ग्रसित हो सकता है।

क्या हैं वजह?

अब जो सबसे अहम सवाल है वह यह उठता है की हालिया समय में पाकिस्तान में आतंकवाद की घटनाएं बढ़ती क्यूँ दिख रही हैं? 2014 के बाद से जिन आतंकवादी घटनाओं में कमी देखने को मिल रही थी उसमें अचानक पिछले तीन सालों में बढ़ोतरी कैसे हो गई? और पाकिस्तान में आतंकवाद की समस्या पर नज़र रखने वाली संस्थाओं और जानकारों ने यह आशंका क्यूँ जताई है कि आने वाले समय में वहाँ आतंकवाद की समस्या और बढ़ती हुई दिख रही है।

दरअसल पिछले कुछ सालों में आतंकवाद की समस्या के बढ़ने के पीछे कई वजह है। जानकारों का कहना है कि इसके पीछे की वजह आतंकवाद के प्रति पाकिस्तानी सत्ता में बैठे लोगों के संकल्प का कमजोर होना, पाकिस्तान में आर्थिक और राजनीतिक अस्थिरता का होना और सबसे अहम अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता में वापसी है।

पाकिस्तान हालिया समय तक खुद को पूर्ण रूप से आतंकवाद की समस्या को खत्म करने की दिशा में नहीं ले जा रहा है। उसकी नीति में तरह तरह की भ्रांतिया हैं। जानकार पाकिस्तान में तमाम आतंकवादी संगठनों को लेकर पाकिस्तानी सरकार के रुख को लेकर कहते हैं कि वह हालिया समय तक “गुड तालिबान” और “बैड तालिबान” की नीति में फंसी हुई है। और इसी कारण उसने कभी भी खुलकर आतंकवाद के खात्मे की बात ही नहीं की।

पाकिस्तानी राजनीति से संबंध रखने वाले जानकारों का यह भी मानना है कि पाकिस्तान ने कभी भी दहशतगर्दों से अपने रिश्ते पूरी तरह खत्म ही नहीं किए। “वह अपने फायदे के लिए इन लोगों को गुड और बैड तालिबान की नीति के खांचे मे डालती रही। और उसकी इस नीति ने उसके पड़ोसी मुल्क यानी हिंदुस्तान व अफ़ग़ानिस्तान को पिछले कुछ दशकों में जितना नुकसान पहुंचाया है उससे कहीं ज़्यादा नुकसान उसको खुद हुआ है”।

साउथ एशिया टेररिज़म पोर्टल पर जब हम पाकिस्तान में घटित हुई आतंकवादी घटना से संबंधित आंकड़ों को देखते हैं तब हम पाते हैं की पिछले 22 सालों में इस देश में 30 हजार से भी ज़्यादा आतंकवादी घटनाएं घटित हुई हैं।

इसके अलावा पाकिस्तान हालिया दिनों में राजनीतिक अस्थिरता से गुज़र रहा है। इमरान खान की सरकार गिरने के पहले से ही वह राजनीतिक अस्थिरता का सामना कर रहा है। राजनीतिक अस्थिरता के अलावा पाकिस्तान हालिया समय में भयावह स्तर पर आर्थिक अस्थिरता का भी सामना कर रहा है। यह दो ऐसे कारक हैं जिनकी वजह से भी पाकिस्तान में इस समय आतंकवादी घटनाओं में बढ़ोतरी देखने को मिल रही है।

इन सबके अलावा पाकिस्तानी हुक्मरानों का आरोप है कि हालिया समय में बढ़ रही आतंकवादी घटनाओं के पीछे अफगानिस्तान तालिबान का हाथ हो सकता है। हालांकि अफगानिस्तान के तालिबानी नेता इस बात को सिरे से नकारते हैं। गौरतलब हो कि तालिबान के अगस्त 2019 में सत्ता में आने के बाद से पाकिस्तान में टीटीपी द्वारा की जा रही घटनाओं में 84% की वृद्धि हुई है। टीटीपी यानी तहरीक-ए-तालिबान, जो अफगानी तालिबान के तर्ज पर पाकिस्तान में जन्मा आतंकवादी संगठन है। अफगानी तालिबान के तर्ज पर बनने के कारण तहरीक-ए-तालिबान की विचारधारा उसके जैसी ही है और जब पाकिस्तान टीटीपी पर 2014 के बाद कार्रवाई कर रहा था तब कथित तौर पर उसके 6000 मुजाहिदीन को अफगानी तालिबान ने शरण दी थी। अब जब अफगानिस्तान में तालिबान सत्ता पर काबिज है और पाकिस्तान उन मुजाहिदीन के शिविरों को बंद करने की मांग अफगानी तालिबान से कर रहा है तब वह उन मांगों को मानने के बजाय उसे अनसुना कर रहा है। और यह संभावना भी नहीं है कि वह निकट भविष्य में इन मांगों पर विचार करेगा। पाकिस्तानी सरकार के अफगान तालिबान पर आरोप लगाने के पीछे यही वजह है।

पाकिस्तानी सरकार के आरोपों को बहुत हद तक जानकार सही मानते हैं। जानकारों का मानना है कि  पाकिस्तान में आतंकवादी संगठनों खासकर टीटीपी के हमलों में व्यापक स्तर पर वृद्धि के पीछे का एक कारण अफगानिस्तान में तालिबान का सत्ता पर काबिज होना भी है। जैसा की हमने पहले बताया कि अफगानी तालिबान और टीटीपी की विचारधारा एक ही है, और दोनों के मकसद भी लगभग एक से हैं। अब चूंकि तालिबान अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज हो गया है तो टीटीपी को ऐसा लगता है की वह पाकिस्तान में भी ऐसा करने में कामयाब हो जाएगी। और अगर इस हद तक कामयाब नहीं भी हुई तो वह बहुत हद तक अपनी बात सरकार से मनवाने लायक हो जाएगी। जिस कारण वह हालिया समय में पाकिस्तान में आतंकवादी घटनाओं को व्यापक स्तर पर अंजाम दे रही है।

पाकिस्तान हालिया समय में जब वह आर्थिक और राजनीतिक रूप से अस्थिर है, आतंकवाद की समस्या का बढ़ना उसके लिए खतरे की घंटी है। बढ़ते आतंकवाद को काबू में लाना पाकिस्तान के लिए आने वाले समय में आसान नहीं होगा। आतंकवाद की समस्या को काबू में करने और उसे जड़ से मिटाने के लिए उसे अफगानिस्तान और बाकी देशों की मदद की जरूरत पड़ेगी जो फिलहाल मिलती हुई मुश्किल लग रही है। एक तरफ अफगानी तालिबान का पाकिस्तानी सरकार के संबंध बेहतर न होना और दूसरी तरफ अमेरिका जो आतंकवाद से लड़ने के लिए आर्थिक स्तर से लेकर सैन्य और तमाम स्तरों पर उसकी मदद करता था अब उसकी भी इस मसले पर उतनी दिलचस्पी नहीं दिखाना, पाकिस्तान के आतंकवाद के खिलाफ जारी लड़ाई को समस्या से घिरा हुआ दिखा रहा है। इन्हीं सब कारणों से जानकार यह अंदेशा जता रहे हैं कि आने वाले समय में पाकिस्तान आतंकवाद की समस्या से और ज्यादा घिरता हुआ दिख रहा है और उसके लिए आतंकवाद की समस्या पर काबू पाना आसान नहीं होगा।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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