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दिल्ली दंगों पर दायर चार्जशीट में कपिल मिश्रा के नाम का जिक्र क्यों नहीं? 

सीएए-विरोधी प्रदर्शनकारियों पर खुद के ख़िलाफ़ "साजिश" और हिंसा भड़काने का आरोप लगाया गया है, जिसने अदालतों को पुलिस की जांच को बकवास कहने के लिए प्रेरित किया है। 
दिल्ली दंगों पर दायर चार्जशीट में कपिल मिश्रा के नाम का जिक्र क्यों नहीं? 

दिल्ली की अदालतों द्वारा कई चिंतनीय आदेशों के बावजूद, दिल्ली पुलिस नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के खिलाफ उठे आंदोलन के इर्द-गिर्द दंगों की साजिश बुनने का काम कर रही है – और पुलिस उन लोगों पर आरोप लगा रही है जो विवादास्पद नागरिक कानून का सक्रिय विरोध कर रहे थे, जिन आरोपों में कहा गया कि आंदोलनकारियों ने उत्तर-पूर्व दिल्ली में सांप्रदायिक हिंसा का करने का "षड्यंत्र" रचा था। 

पिछले साल यमुना पार के इलाके में 23 फरवरी की शाम से लेकर 27 फरवरी तक दंगे चले और कम से कम 53 लोगों की जान गई और सौ से अधिक लोग घायल हो गए थे। 

हालांकि, घटनाओं पर बारीक नज़र दौड़ाने से कुछ अलग ही तस्वीर उभर कर सामने आती है – जिस तस्वीर को जांच एजेंसियों यानि दिल्ली पुलिस ने आसानी से नजरअंदाज कर दिया है। इस तरह की जांच पर अब गंभीर सवाल उठाए जा रहे हैं कि साल भर चली जांच में पुलिस की निष्पक्षता पर भी बड़े सवाल उठाए जा रहे हैं – ऐसी जांच जिस पर अदालतें सवाल उठा रही हैं।

अगर विभिन्न चार्जशीट का संक्षेप में निचोड़ निकाला जाए तो दिल्ली पुलिस का कहना है कि कि सीएए-विरोधी प्रदर्शनकारियों (विशेषकर मुसलमानों) ने पहले हिंसा शुरू की और कानून के समर्थकों (यानि दक्षिणपंथी हिंदू समूहों) ने जवाबी कार्रवाई की थी। बावजूद इसके कि इस बात के खासे सबूत हैं कि सीएए-समर्थक रैली के दौरान भारतीय जनता पार्टी के नेता कपिल मिश्रा ने जाफराबाद मेट्रो स्टेशन के पास मौजपुर ट्रैफिक सिग्नल पर भड़काऊ भाषण दिया था, जिसके बाद हिंसा भड़की थी, लेकिन पुलिस इस तथ्य को छुपा रही है और दंगों के फ्लैशप्वाइंट को अदालत के सामने नहीं ला रही है। 

यद्यपि जांच एजेंसियां (दिल्ली पुलिस) इस कथित साजिश को साबित करने में जितना संभव हो उतना ज़ोर लगा रही हैं, हालांकि वे खुद की दर्ज़ चार्जशीट में इस बात को समझाने में नाकामयाब हैं कि ये तथाकथि साजिशें कब रची गई थी। इसके अलावा, 23 फरवरी को मौजपुर चौक पर बीजेपी नेता का भड़काऊ भाषण उनके द्वारा दर्ज़ "घटनाओं के कालक्रम" से गायब है, जिसे अधिकांश आरोपपत्रों में मैप किया जा चुका है।

पुलिस ने जोर देकर कहा कि हिंसा चांद बाग से शुरू हुई थी, जहां से 24 फरवरी को घटनाओं की रिपोर्ट आई थी। 
प्रत्यक्षदर्शियों द्वारा दिए गए बयानों से स्पष्ट पता चलता है कि; दिल्ली प्रोटेस्ट सपोर्ट ग्रुप (DPSG) के व्हाट्सएप ग्रुपों की सामग्री, जिन्हें अदालत के सामने एक प्रमाण के रूप में प्रस्तुत किया गया है वे झूठी है; और उन्होने मिश्रा और चार्जशीट पर सवाल उठाए हैं, इसलिए एफआईआर संख्या 59 जिसे आरोपपत्र में मुख्य "साजिश" बताया गया और आतंकवाद-विरोधी कानून यूएपीए की कड़ी धाराओं के तहत मुकदमें दर्ज़ किए गए है और जिसकी जांच विशेष सेल द्वारा की जा रही है, प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक सीएए-समर्थक समूह ने नागरिकता कानून के खिलाफ जाफराबाद मेट्रो स्टेशन के नीचे धरना देने वाले पुरुषों और महिलाओं पर पथराव की शुरूवात की थी। 

23 फरवरी, 2020 को आखिर हुआ क्या था?

आरोपपत्र के मुताबिक जोकि एफआईआर संख्या 59 में दर्ज़ है कि मिश्रा मौजपुर-बाबरपुर मेट्रो स्टेशन के मीचे मौजपुर तिराहे पर 23 फरवरी की शाम 4:35 बजे सीएए-समर्थक रैली में कथित तौर पर विवादास्पद भाषण देने के बाद चले गए थे। विशेष रूप से, पुलिस की रपट में मिश्रा के भाषण की प्रकृति का उल्लेख नहीं किया गया है।

भाषण के करीब एक घंटे बाद, कथित तौर पर एक बड़ी भीड़ वहां जमा हो गई थी और भीड़ ने सीएए-विरोधी जाफराबाद धरना स्थल पर पथराव शुरू कर दिया था। कथित रूप से भीड़ का नेतृत्व दक्षिणपंथी नेता रागिनी तिवारी कर रही थी, जो खुले तौर पर फेसबुक लाइव चला रही थी – और लोगों से हिंसा में भाग लेने और मुसलमानों पर हमला करने के लिए उकसा रही थी।

इस पथराव ने कथित तौर पर पूरे इलाके में तनावपूर्ण माहौल पैदा कर दिया था जिसके कारण सीएए-विरोधी प्रदर्शनकारियों जो उत्तर-पूर्वी दिल्ली के अन्य इलाकों जैसे कि कर्दमपुरी में धरना  दे रहे थे, के भीतर चिंता पैदा कर दी थी। प्रत्यक्षदर्शियों ने कहा है कि वे लोगों की चीखें सुन सकते थे और यह भी कि दंगाई कर्दमपुरी के निकट पहुंच गए हैं, जहां कबीर नगर के पास बनी एक पुलिया पर सीएए का विरोध चल रहा था।

दिल्ली पुलिस ने व्हाट्सएप समूह की जिस ट्रांस्क्रिप्ट का इस्तेमाल किया है, उसमें सदस्यों को इस बात पर चर्चा करते हुए पाया गया कि सीएए-विरोध को कैसे अधिक प्रभावशाली बनाया जाए, और पुलिस ने इस चर्चा को साजिश साबित करने में सबसे महत्वपूर्ण सबूतों में से एक मान गया है, उसी व्हाट्सएप की चर्चा में ये भी सबूत हैं कि मिश्रा के भड़काऊ भाषण के बाद मौजपुर से दंगे शुरू हुए थे। लेकिन पुलिस ने "घटना के कालक्रम” में इसे शामिल नहीं किया है।

डीपीएसजी व्हाट्सएप ग्रुप में शाम 5:38 बजे साझा किए गए एक संदेश से इस तथ्य की पुष्टि होती है कि हिंसा 23 फरवरी की दोपहर से शुरू हुई थी। संदेश के मुताबिक, “सीएए-समर्थक झुंडों ने मौजपुर इलाके के स्थानीय लोगों और सीएए-विरोधी प्रदर्शनकारियों पर पथराव किया था,”।

इस संदेश के जारी होने के कुछ समय बाद, समूह के सदस्यों ने उस वीडियो को साझा करना शुरू कर दिया था।  
हालांकि दंगाइयों ने कथित तौर पर इलाके की घेराबंदी कर ली थी, और लोगों को जुटाना जारी था, लेकिन उस रात कोई अप्रिय घटना नहीं घटी थी। फिर अगले दिन यानि 24 फरवरी की शाम 4 बजे, कर्दमपुरी के सीएए-विरोधी विरोध धरना स्थल में कथित तौर पर आग लगा दी गई थी। कथित रूप से कर्दमपुरी पुलिया पर भारी पथराव शुरू हो गया था, जिसे सीएए-विरोधी प्रदर्शनकारियों ने अवरुद्ध किया हुआ था ताकि दूसरी तरफ से दंगाई इलाके में प्रवेश न कर सके।

दंगा तब तक यमुना विहार, विजय पार्क, आदि तक फैल चुका था। सांप्रदायिक हिंसा ने 24 फरवरी को चांद बाग और भजनपुरा जैसे इलाकों को अपनी चपेट में ले लिया था और 25 फरवरी को दंगा शिव विहार, बृजपुरी और मुस्तफाबाद में पहुँच चुका था।
 
पुलिस का नज़रिया 

हालांकि पुलिस के पास हिंसा की शुरुआत होने के बारे में अलग-अलग किस्म के संस्करण मौजूद हैं।जांचकर्ताओं के अनुसार, "साजिश" पर दायर एक पूरक आरोपपत्र के मुताबिक वजीराबाद और चांद बाग क्षेत्रों में 24 फरवरी की घटनाओं के बाद अशांति शुरू हुई थी। उन्होंने आरोप लगाया कि हिंसा के दिन कोई भी वीडियो रिकॉर्डिंग न हो इसलिए सीएए-विरोधी प्रदर्शनकारियों ने इलाके के सीसीटीवी कैमरों को नष्ट करने के लिए एक नाबालिग की मदद ली थी। 

हालांकि, स्थानीय निवासियों ने इलाके में पुलिस पर मिलीभगत, क्रूरता और निष्क्रियता का आरोप लगाया। उदाहरण के लिए, उन्होने बताया कि चाँद बाग सीएए-विरोधी आंदोलन स्थल पर पुलिस ने कुछ महिला प्रदर्शनकारियों को कथित रूप से पीटा था। उन्होंने कहा,'' 24 फरवरी को सुबह करीब 11 बजे बिना किसी उकसावे के लाठीचार्ज किया था। पुलिस कुछ पुरुष प्रदर्शनकारियों को उठा ले गई थी, जिन्हें कड़े विरोध के बाद बाद में रिहा कर दिया गया था। पुलिस ने फिर से दोपहर करीब 12 बजे लाठीचार्ज शुरू कर दिया था। इस बार, उन्होंने आंसू गैस के गोलों का भी सहारा लिया था। पुलिस उन लोगों को भी साथ लाई थी जो वहाँ गड़बड़ी पैदा करने के लिए इकट्ठा हुए थे। पुलिस कथित रूप से दंगाइयों के साथ मिल गई थी और प्रदर्शनकारियों के उपर पथराव कर रही थी, “प्रदर्शनकारियों में से एक ने आरोप लगाया जो वहाँ मौजूद था।

अब यह सवाल उठता है कि पुलिस आखिर सांप्रदायिक हिंसा को भड़काने के लिए मिश्रा के कथित अभद्र भाषाण की भूमिका को स्वीकार क्यों नहीं कर रही है।

दिल्ली प्रोटेस्ट सपोर्ट ग्रुप ने क्या किया?

मामले के विस्तृत विश्लेषण से इस सवाल का जवाब मिल जाता है। व्हाट्सएप समूह के संदेशों की करीबी जांच करने से पता चलता है कि समूह के कई सदस्य "दंगों की साजिश" के बजाय इलाके में तनाव को कम करने के तरीकों पर चर्चा कर रहे थे। लेकिन जांचकर्ताओं ने संदेशों के चुनिंदा अंशों को बिना किसी संदर्भ के लेते हुए उनकी कहानी को नकार दिया जो उनकी बातचीत को आसानी से अनदेखा करती है।

उदाहरण के लिए, समूह के एक सदस्य ने लिखा कि, “कम से कम हमें मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में अधिक धरने नहीं करने चाहिए। इसके अलावा अगर धरनों की कोई योजना है, तो इसे रणनीतिक स्थान पर करें जहां आपकी आवाज सुनी जा सकती है, न कि वहाँ, जहां शायद ही कोई आपकी आवाज़ की परवाह करता हो और स्थानीय लोगों को प्रभावित करता हो। अन्यथा लोग भावनाओं में बह कर अपने संसाधनों को बर्बाद कर देंगे। 

23 फरवरी को एक और चेतावनी दी गई थी कि, "सभी विरोध-स्थलों पर यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि कोई भी सांप्रदायिक टकराव में बह न जाए। और यह सबसे बड़ा खतरा होगा क्योंकि इसका दूसरा चरण अधिक टकराव वाला होगा। किसी भी किस्म के सांप्रदायिक टकराव के खतरे को देखते हुए दो कदम पीछे लेना समझदारी होगी। हिंदुत्व ब्रिगेड अब तक के विरोधों की प्रकृति और उसकी भाषा से बेहद बेचैन और भ्रमित है। वे यह भी जानते हैं कि इस आंदोलन के लिए एनपीआर का बहिष्कार कितना महत्वपूर्ण है और वे इसे ऐसी स्थिति में फसाने की पूरी कोशिश करेंगे, ताकि सांप्रदायिक तनाव और विभाजन पैदा किया जा सके। इस आंदोलन को इस तरह की संभावना के बारे में पता होना चाहिए और ऐसा नहीं होने देना चाहिए।"

वास्तव में, 29 दिसंबर, 2019 को समूह के गठन के तुरंत बाद जो पहला संदेश जारी किया गया वह यह था:

"हुकूमत की प्रतिक्रिया के अंदेशे का पता होना चाहिए, और हमें इसके लिए तैयार रहना चाहिए

- वे झूठ बोलकर आंदोलन को बदनाम कर सकते हैं

- वे हिंदुओं बनाम मुसलमानों को आमने-सामने करके टकराव पैदा कर सकते हैं

- वे इसे शहरी नक्सल द्वारा भड़काने वाली घटना कहकर बदनाम कर सकते हैं

- वे आंदोलन को कुचलने के लिए बल का प्रयोग कर सकते हैं

उपरोक्त सभी हरकतें पहले से ही चलन में थी।”

समूह में एक संदेश में आगे कहा गया, “केंद्र सरकार आंदोलन को रोकने या विरोध को सांप्रदायिक टकराव में बदलने पर आमादा है। हमारा इस तरह के जाल में फंसना विनाशकारी होगा।”

जब दंगे हुए, समूह के कई प्रमुख सदस्यों ने तत्कालीन दिल्ली पुलिस आयुक्त अमूल्य पटनायक को लिखा- और उनसे बिगड़ती कानून व्यवस्था को नियंत्रण में लाने के लिए अपील की थी।

इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

Why Police Report Doesn’t Mention Kapil Mishra’s Speech in Delhi Riots Chargeesheet

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