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सज़ा के ख़िलाफ़ राहुल गांधी की अपील क़ानूनन क्यों सही, उनके वकील ने बताए 10 कारण

किरीट पानवाला एक प्रसिद्ध आपराधिक वकील हैं, जिन्होंने चार साल के मानहानि मामले में राहुल गांधी का प्रतिनिधित्व किया और अब सज़ा के ख़िलाफ़ अपील दायर करेंगे।
Rahul

2019 के लोकसभा चुनावों के प्रचार के दौरान कर्नाटक की एक रैली में कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने एक टिप्पणी की, (कुछ हद तक मज़ाकिया अंदाज़ में-वह मुस्कुरा रहे थे) "इन सभी चोरों के नाम मोदी कैसे है?, नीरव मोदी, ललित मोदी, नरेंद्र मोदी, और अगर आप थोड़ा खोजेंगे तो और मोदी निकलेंगे" इस टिप्पणी के चार साल बाद मानहानि के एक मामले में उनको सज़ा हुई है।

पिछले हफ़्ते, सूरत में एक मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, एचएच वर्मा ने राहुल गांधी को भारतीय दंड संहिता, 1860 (आईपीसी) की धारा 499 (मानहानि) और 500 (मानहानि के लिए सज़ा) , जो इस धारा में अधिकतम सज़ा है, के तहत, दो साल के कारावास की सज़ा सुनाई जिसके बाद संसद से किसी सदस्य को अयोग्य घोषित करने के लिए जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8(3) (कुछ अपराधों के लिए दोषसिद्धि पर अयोग्यता) के तहत-आवश्यक न्यूनतम सज़ा-उनकी संसद सदस्यता रद्द कर दी गई।

हाल ही में भारत जोड़ो यात्रा और लोकसभा में तेज़-तर्रार भाषणों के माध्यम से अपना राजनीतिक पुनरुत्थान कर रहे राहुल गांधी के कार्यों में बाधा उत्पन्न हुई जब मानहानि मामले की घोषणा के एक दिन बाद ही राहुल गांधी को तुरंत संसद से अयोग्य घोषित कर दिया गया। राहुल गांधी ने अपने संसद भाषणों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अरबपति उद्योगपति गौतम अडानी के बीच कथित सांठगांठ पर सवाल उठाते हुए कई आरोप लगाए थे। बता दें कि जनवरी में निवेश-अनुसंधान फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च एलएलसी द्वारा जारी एक रिपोर्ट के बाद से बड़े पैमाने पर बाज़ार की अवैधता के आरोपों को लेकर पिछले दो महीनों से अडानी समूह का बहुराष्ट्रीय समूह, जांच के दायरे में है, जिसमें स्टॉक हेरफेर और एकाउंटिंग में धोखाधड़ी का आरोप लगाया गया है।

इस मामले में राहुल गांधी का प्रतिनिधित्व सूरत के आपराधिक वकील किरीट पानवाला कर रहे हैं।

राहुल गांधी की दोषसिद्धि क़ानूनन ग़लत क्यों है, पानवाला ने इसके दस कारण बताए हैं :

1. गांधी के कथित मानहानि के आरोपों में से लगभग 90 प्रतिशत प्रधानमंत्री मोदी के ख़िलाफ़ थे। मानहानि का मामला केवल अपराध से पीड़ित व्यक्ति, यानी नरेंद्र मोदी द्वारा दायर किया जा सकता था। शिकायतकर्ता, गुजरात के विधायक पूर्णेश मोदी को संबंधित मामले में आपराधिक शिकायत दर्ज करने का कोई अधिकार नहीं था। इस प्रकार, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 199(1) (मानहानि के लिए अभियोजन) के तहत यह शिकायत मेंटेनेबल नहीं है।

2. यहां तक कि एक आरोप के लिए भी, पूर्णेश मोदी को पीड़ित व्यक्ति नहीं माना जा सकता है क्योंकि यह व्यक्तिगत रूप से उनसे संबंधित नहीं है; यह सभी 'मोदियों' के ख़िलाफ़ है।

3. सूरत की अदालत ने गांधी को आईपीसी की धारा 499 और 500 के तहत उनकी टिप्पणी के लिए दोषी ठहराया। उन्हें दो साल के कारावास की सज़ा सुनाई गई थी। यह अधिकतम सज़ा है जो अदालत द्वारा दी जा सकती थी। यहां तक कि मानहानि के सबसे गंभीर मामलों में भी, अदालत आमतौर पर ऐसी कठोर सज़ा नहीं देती है। इस तरह की सज़ा निश्चित रूप से एक आरोप के लिए नहीं दी जा सकती थी, जिसे विस्तार से बताया भी नहीं गया था।

4. इस तरह की असंगत सज़ा का ऐलान यह धारणा देता है कि यह केवल संसद सदस्य के रूप में गांधी की अयोग्यता को गति देने के लिए था, क्योंकि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत संसद से अयोग्यता के लिए दो साल की न्यूनतम सज़ा ज़रूरी है। राहुल गांधी के इस मामले में केवल जुर्माना लगाने से न्याय का लक्ष्य पूरा हो जाता।

5. ऐसा नहीं है कि कोई व्यक्ति, व्यक्तियों के समूह की ओर से शिकायत दर्ज नहीं कर सकता है। लेकिन व्यक्तियों का वह समूह एक 'सुपरिभाषित समूह' होना चाहिए जो निश्चित हो, और जिसे बाक़ी समुदाय से अलग किया जा सके। इस तर्क का समर्थन करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के कई उदाहरण हैं।

6. सभी वकीलों के ख़िलाफ़ या एक पूरे समुदाय के ख़िलाफ़ एक अपमानजनक टिप्पणी उस समुदाय के सदस्यों को मानहानि की शिकायत दर्ज करने का अधिकार नहीं देती है, जब तक कि कथित टिप्पणी को वकीलों के एक पहचान योग्य समूह की ओर निर्देशित नहीं किया जाता है। शिकायत का कथित तर्क कि, कुल 13 करोड़ मोदी हैं और उन सभी के लिए आरोप लगाया गया है, सही नहीं है। ऐसा इसलिए है क्योंकि वे 13 करोड़ व्यक्ति एक अच्छी तरह से परिभाषित पहचान योग्य समूह नहीं हैं।

7. यहां कोई 'मोदी समुदाय' नहीं है क्योंकि मोदी उपनाम वाले व्यक्तियों का कोई विशिष्ट समूह नहीं है। मोदी कई समुदायों में फैले हुए हैं। इसके अलावा, शिकायतकर्ता मोध गांची या मोध वणिक की जाति से संबंधित है। यह सुझाव देने के लिए कोई सबूत नहीं है कि वह उस समुदाय का हिस्सा है।

8. मोदी के तथाकथित वर्ग या खुद शिकायतकर्ता की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने का कोई इरादा या जानकारी प्रतीत नहीं होती है। राहुल गांधी ने नरेंद्र मोदी की तुलना भगोड़े कारोबारी नीरव मोदी और ललित मोदी से करते हुए कथित बयान दिया। उनका कथन स्पष्ट रूप से उनके सामान्य उपनामों की ओर निर्देशित था। अगर मंशा 'मोदी' को बदनाम करने की होती तो वह अपने कथित बयान को विस्तार से बताते। इस परिदृश्य में, मानहानि का एक महत्वपूर्ण घटक स्पष्ट रूप से गायब है।

9. राहुल गांधी सूरत कोर्ट के अधिकार क्षेत्र से बाहर हैं। ऐसे मामलों में, सीआरपीसी की धारा 202 (प्रक्रिया जारी करने का स्थगन) लागू होती है, जहां प्रक्रिया जारी करने से पहले जांच अनिवार्य है। इस जांच में गवाहों का परीक्षण ज़रूरी है। हालांकि, कोई पूछताछ नहीं की गई और न ही किसी गवाह की जांच की गई।

10. कार्यवाही के किसी भी स्तर पर धारा 202 के उल्लंघन का मुद्दा उठाया जा सकता है। इस संबंध में एक प्रावधान 2005 में जोड़ा गया था ताकि झूठी शिकायत दर्ज करके अदालत के अधिकार क्षेत्र से बाहर रहने वाले व्यक्तियों के उत्पीड़न को रोका जा सके। यह कानून के अनिवार्य प्रावधानों का उल्लंघन है और इसे मुकदमे को अमान्य करना चाहिए। दीपक गाबा व अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य (2023) मामले में यह हुआ था।

पृष्ठभूमि

आईपीसी की धारा 499 के स्पष्टीकरण 2 के अनुसार, "कंपनी या एक संघ या व्यक्तियों के समूह" के ख़िलाफ़ लगाया गया आरोप मानहानि होगी। इसे सीआरपीसी की धारा 199(1) के साथ पढ़ा जाता है, जिसमें कहा गया है कि कोई भी अदालत मानहानि के मामले का संज्ञान तब तक नहीं ले सकती जब तक कि "किसी पीड़ित व्यक्ति" द्वारा शिकायत दर्ज नहीं कराई जाती है।

उपनाम 'मोदी' किसी विशिष्ट समुदाय या जाति का उल्लेख नहीं करता है। गुजरात में, इस उपनाम का उपयोग हिंदुओं, मुसलमानों और पारसी समुदाय के सदस्यों द्वारा किया जाता है जबकि अन्य पिछड़ा वर्ग के कुछ सदस्य उपनाम के रूप में 'मोदी' का उपयोग करते हैं, अन्य नहीं करते हैं। यह उपनाम राजस्थान, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में भी व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।

जी. नरसिंह और अन्य बनाम टी.वी. चोकप्पा (1972) मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने धारा 499 के स्पष्टीकरण 2 की जांच की और माना कि व्यक्तियों के एक समूह के ख़िलाफ़ मानहानि केवल तभी की जा सकती है जब वे एक पहचान योग्य समूह हों, यानी वे एक निश्चितता के साथ विशेष व्यक्तियों के समूह के रूप में निर्धारित हों, जो बाक़ी समुदाय से अलग हैं।

इस मामले में, राजनीतिक दल द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम के ख़िलाफ़ ‘द हिंदू’  अखबार में एक आरोप प्रकाशित किया गया था। इस शिकायत को इस आधार पर रद्द कर दिया गया था कि द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम आईपीसी की धारा 499 के स्पष्टीकरण 2 के अर्थ के भीतर एक निश्चित और दृढ़ निकाय नहीं था।

इसके अलावा, वीएस अच्युतानंदन बनाम पीएस वर्गीज व अन्य (1993) मामले में, केरल उच्च न्यायालय ने यह देखा कि आईपीसी की धारा 499 के स्पष्टीकरण 2 के तहत "एसोसिएशन या व्यक्तियों का समूह" शब्द को सीआरपीसी की धारा 199(1) में "कुछ पीड़ित व्यक्ति" अभिव्यक्ति के साथ पढ़ा जाना चाहिए। यह "एसोसिएशन या व्यक्तियों के संग्रह" शब्द को एक सीमित निर्माण देने के लिए है।

अदालत ने कहा था: "यह निश्चित रूप से उस व्यापक अर्थ में नहीं है कि विधायिका ने अभिव्यक्ति 'एसोसिएशन या व्यक्तियों का समूह' का इस्तेमाल किया होगा। अन्यथा, यदि कोई समग्र रूप से भारतीयों के ख़िलाफ़ आरोप लगाता है, तो प्रत्येक भारतीय को अपनी पसंद के मजिस्ट्रेट कोर्ट में शिकायत दर्ज करने का अधिकार होगा।

इस मामले में, केरल विधानसभा में तत्कालीन विपक्ष के नेता, वीएस अच्युतानंदन पर मानहानि का आरोप लगाया गया था।

राहुल गांधी की सज़ा को 30 दिनों के लिए निलंबित कर दिया गया है ताकि वह सज़ा या दोषसिद्धि के ख़िलाफ़ अपील कर सकें।

लोक प्रहरी बनाम भारत निर्वाचन आयोग (2018) मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा यह कहा गया कि एक बार अपील के दौरान सज़ा पर रोक लगने के बाद, उस सज़ा के परिणामस्वरूप अयोग्यता प्रभाव में नहीं रह सकती है। हालांकि, मौजूदा सीट को भरने के लिए चुनाव आयोग द्वारा उपचुनाव की मांग राहुल गांधी के स्थगनादेश दिए जाने से पहले या उसके अज्ञात रहने के बाद अनुमोदित हुआ है।

लक्ष्यद्वीप के सांसद मोहम्मद फैज़ल के मामले में, जिन्हें 11 जनवरी को हत्या के प्रयास के लिए दस साल की कारावास की सज़ा सुनाई गई थी और बाद में 13 जनवरी को लोकसभा सचिवालय द्वारा अयोग्य घोषित कर दिया गया था, केरल उच्च न्यायालय द्वारा उनकी सज़ा पर रोक लगाने के दो महीने बाद उनकी योग्यता कल बहाल कर दी गई थी।

Courtesy: The Leaflet

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें :

Rahul Gandhi’s Lawyer Lists Ten Reasons To Appeal Against His Conviction

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