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ख़बरों के आगे-पीछे: किरण पटेल और अमरमणि पर मेहरबानी क्यों और जाति गणना का सवाल

अपने साप्ताहिक कॉलम ख़बरों के आगे-पीछे में वरिष्ठ पत्रकार अनिल जैन ने कई मुद्दों की चर्चा की है। इनमें अहम हैं किरण पटेल और अमरमणि पर सरकार की मेहरबानी का मुद्दा। साथ ही उन्होंने जाति गणना पर केंद्र सरकार के दोहरे रुख को उजागर किया है।
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फ़ोटो साभार : The Indian Express

किरण पटेल पर कौन मेहरबान है?

पिछले कुछ दिनों के दौरान एक के बाद एक ऐसे कई ठग और जालसाज पकड़े गए हैं, जो अपने को प्रधानमंत्री कार्यालय या किसी केंद्रीय मंत्रालय का अधिकारी बता कर लोगों को ठगने का काम करते थे लेकिन इन सब में किरण पटेल सबसे अलग था। उसने जम्मू कश्मीर जाकर अपने को प्रधानमंत्री कार्यालय का एडिशनल डायरेक्टर बताया था और यह भी संकेत दिया कि उसे किसी बड़े मिशन में लगाया गया है। उसने अधिकारियों को बेवकूफ बना कर जेड श्रेणी की सुरक्षा भी हासिल कर ली थी। कई बार उसने सेना के मुख्यालय तथा सैन्य चौकियों का दौरा भी किया था और सैन्य अधिकारियों के साथ मीटिंग भी की थी। इस तरह उसने राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा पैदा किया और किसी को पता नहीं कि उसकी असली मंशा क्या थी। इसीलिए उसके खिलाफ ऐसी धाराओं में मुकदमे दर्ज हुए, जिनमें उम्रकैद तक की सजा होती है। लेकिन अचानक जम्मू कश्मीर पुलिस ने धारा 467 हटा दिया। इस धारा मे उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान है, जिसकी वजह से उसे पहली बार में जमानत नहीं मिली थी। लेकिन जैसे ही यह धारा हटाई गई उसके बाद उसके खिलाफ केस कमजोर हो गया और उसे जमानत मिल गई।

सवाल है कि ऐसा किसकी मेहरबानी से हुआ? इसी से जुड़ा सवाल है कि देश क्या वाकई सुरक्षित हाथों में है? एक तरफ लोग मामूली आरोप में जेल में सड़ रहे हैं तो दूसरी ओर राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बना एक व्यक्ति, जिसने प्रधानमंत्री कार्यालय को बदनाम किया उसका केस कमजोर करके उसे जमानत दिलाई जा रही है।

गौरतलब है कि गुजरात के मुख्यमंत्री कार्यालय में अतिरिक्त जनसंपर्क अधिकारी रहे हितेश पंड्या के बेटे अमित पंड्या का नाम भी इस मामले से जुड़ा है और आरोप है कि उसने किरण पटेल को कश्मीर में फ्रॉड करने में मदद की थी। यह भी उल्लेखनीय है कि जब किरण पटेल पकड़ा गया था तब गृह मंत्री अमित शाह के साथ उसकी तस्वीरें भी सोशल मीडिया में आई थीं।

जाति गणना पर केंद्र ने पलटी मारी 

जाति गणना का मसला केंद्र सरकार के गले में हड्डी की तरह फंस गया है। यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट में उसे एक ही दिन में दो हलफनामे दाखिल करना पड़े। पहले तो केंद्र सरकार ने एक हलफनामा देकर जनगणना कानून का हवाला दिया और कहा कि जनगणना या इससे मिलता-जुलता कोई भी काम करने का अधिकार सिर्फ केंद्र सरकार को है। यानी राज्य सरकार जनगणना तो नहीं ही करा सकती है, वह जनगणना से मिलता जुलता भी कोई काम नहीं करा सकती है। लेकिन जिस दिन यानी 28 अगस्त को केंद्र ने यह हलफनामा दिया उसी दिन देर शाम सरकार ने इसे वापस ले लिया। जो नया हलफनामा दिया गया उसमें कहा गया कि जनगणना का काम सिर्फ केंद्र सरकार कर सकती है। जनगणना से मिलते जुलते काम वाली बात उसमें से हटा ली गई। इसका मतलब है कि केंद्र ने बिहार में जाति गणना और सामाजिक-आर्थिक सर्वे का रास्ता साफ कर दिया। सवाल है कि केंद्र ने ऐसा क्यों किया?

दरअसल यह मामला वोट के लिहाज से बेहद संवेदनशील है। इसलिए केंद्र सरकार इस मामले में संशय बनाए रखना चाहती है। वह न तो इसके समर्थन में दिखना चाहती है और न विरोध में। इसलिए सरकार ने पहले जान-बूझकर बिहार की जाति गणना में अड़ंगा डालने वाला हलफनामा दायर किया और बाद में उसे वापस ले लिया। गौरतलब है कि भाजपा बिहार में जाति गणना का समर्थन कर रही है और उत्तर प्रदेश में विरोध कर रही है। केंद्र सरकार दोनों काम कर रही है।

डिजिटल स्पेस में घट रही है मोदी की लोकप्रियता

सोशल मीडिया में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा की लोकप्रियता घट रही है। हाल की दो घटनाओं को लेकर कुछ लोगों ने स्वतंत्र रूप से आंकड़े जुटाए हैं, जिनके मुताबिक सोशल मीडिया के अलग-अलग प्लेटफॉर्म पर भाजपा की पहुंच कम हो रही है और कांग्रेस नेता राहुल गांधी की बढ़ रही है। इस तरह के अध्ययन प्रायोजित भी हो सकते हैं लेकिन कुछ आंकड़े जरूर सच के करीब हैं। जिन दो घटनाओं को लेकर इस तरह के आंकड़े आए हैं, उनमें से एक स्वतंत्रता दिवस के मौके पर शुरू किया गया अभियान है और दूसरा लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर प्रधानमंत्री का भाषण है।

गौरतलब है कि स्वतंत्रता दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री ने 'मेरी मिट्टी-मेरा देश’ अभियान शुरू करने का ऐलान किया था। कहा गया था कि लोग एक मुट्ठी मिट्टी लेकर अपनी सेल्फी ले और उसे अपलोड करें। पिछले साल की तरह तिरंगे की सेल्फी अपलोड करने को भी कहा गया था और डीपी में तिरंगा लगाने की अपील भी की गई थी। लेकिन कहा जा रहा है कि पिछली बार के मुकाबले इस बार की अपील का असर आधे से भी कम रहा।

इसी तरह अविश्वास प्रस्ताव पर हुई चर्चा में राहुल के भाषण को प्रधानमंत्री मोदी के भाषण से ज्यादा व्यूज मिले। पहले जब तक विपक्षी पार्टियों की ओर से सोशल मीडिया पर बहुत आक्रामक अभियान नहीं चलता था तब तक भाजपा को बढ़त थी लेकिन अब वह बढ़त कम हो रही है और मुकाबला बराबरी का हो रहा है।

गठबंधन के अंदर भी गठबंधन

विपक्षी पार्टियों के गठबंधन 'इंडिया’ के अंदर भी एक नया गठबंधन बन गया है। कांग्रेस की बढ़ती ताकत या उसके विपक्षी एकता का केंद्र बनने की संभावनाओं को देखते हुए चार पार्टियों ने अनौपचारिक गठबंधन बनाया है। इनमें से तीन ऐसी पार्टियां हैं, जो बड़ी हिचक के साथ गठबंधन से जुड़ी हैं और अब भी मौका देख कर अलग होने की सोच के तहत काम कर रही हैं। इस गुट के नेताओं का काम कांग्रेस की हर बात में अड़ंगा लगाना है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ये तीन ऐसे नेता हैं, जो पहले विपक्षी गठबंधन के विचार के खिलाफ थे। लेकिन बाद में ये गठबंधन से जुड़े लेकिन तब भी कांग्रेस से दूरी बनाए हुए हैं।

शरद पवार जरूर कांग्रेस गठबंधन में शामिल थे लेकिन बाद में वे भी इन तीन नेताओं के साथ हो गए हैं। इस तरह ममता, केजरीवाल, अखिलेश और पवार का एक दबाव समूह विपक्षी गठबंधन के अंदर बन गया है। पहले तीन नेताओं को लग रहा है कि उन्हें अपने दम पर ही लड़ना है इसलिए गठबंधन को ये बहुत गंभीरता से नहीं ले रहे हैं और दबाव की राजनीति कर रहे हैं। अगर इनके मनमाफिक फैसला हो गया तो ठीक, अन्यथा इन्हें अलग रास्ता लेने में भी दिक्कत नहीं है। इन नेताओं के रुख को देखते हुए कांग्रेस को अपनी रणनीति अलग तरह से बनानी पड़ रही है। यूपीए के पुराने सहयोगियो को लेकर कांग्रेस इन्हें रोकने के उपाय कर रही है।

भाजपा के लगभग सभी प्रवक्ता आयातित

किसी भी राजनीतिक पार्टी में आमतौर पर प्रवक्ता ऐसे नेता को बनाया जाता है, जो लंबे समय से पार्टी में रहा हो और पार्टी की रीति-नीति और विचारों को जानता हो। और लंबे समय तक पार्टी मे रहा हो। लेकिन भाजपा इसका उल्टा कर रही है। वह दूसरी पार्टियों से तोड़ कर नेताओं को ला रही है तथा उन्हें तत्काल और कुछ नहीं तो प्रवक्ता बना दे रही है। इस सिलसिले में हाल ही में कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में शामिल हुए अनिल एंटनी को पार्टी का राष्ट्रीय प्रवक्ता बनाया गया है। वे केरल के हैं और कांग्रेस के दिग्गज नेता एके एंटनी के बेटे हैं। इससे कुछ दिन पहले ही भाजपा ने कांग्रेस के प्रवक्ता रहे जयवीर शेरगिल को अपना राष्ट्रीय प्रवक्ता बनाया। उससे पहले समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता रहे गौरव भाटिया को भी पार्टी का प्रवक्ता बनाया गया था और वे टेलीविजन चैनलों पर संबित पात्रा के साथ-साथ भाजपा की ओर से दिखने वाला सबसे चर्चित चेहरा हैं। बाहर से आए शहजाद पूनावाला को भी भाजपा ने प्रवक्ता बना दिया है। लंबे समय तक कांग्रेस में रहे टॉम वडक्कन, शिव सेना से आए प्रेम शुक्ल और आम आदमी पार्टी से आईं शाजिया इल्मी भी भाजपा की प्रवक्ता हैं।

अमरमणि पर भी मेहरबान हुई सरकार 

जिस तरह से पिछले साल स्वतंत्रता दिवस के मौके पर बिलकीस बानो के साथ बलात्कार करने वाले 11 दोषी रिहा हुए थे, उसी तरह इस साल स्वतंत्रता दिवस के बाद उत्तर प्रदेश के अमरमणि त्रिपाठी और उनकी पत्नी को रिहा कर दिया गया है। मधुमिता शुक्ला की हत्या के मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद अमरमणि त्रिपाठी और उसकी पत्नी को उम्रकैद की सजा हुई थी। हालांकि उम्रकैद की लगभग पूरी सजा उसने जेल की बजाय गोरखपुर के एक अस्पताल में काटी। सरकार चाहे जिसकी रही हो लेकिन अमरमणि को कोई तकलीफ नहीं हुई। अब उसके बेटे और पूर्व विधायक अमनमणि त्रिपाठी ने कहा है कि राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उनके अभिभावक और मार्गदर्शक हैं। उनके साथ राजनीतिक नहीं, बल्कि पारिवारिक संबंध है। दिलचस्प बात है कि योगी आदित्यनाथ का अपने परिवार के साथ कोई संबंध नहीं है क्योंकि वे संन्यास ले चुके हैं, लेकिन अपनी पत्नी की हत्या करने के आरोप में जेल जा चुके और मुकदमे का सामना कर रहे अमनमणि का कहना है कि योगी के साथ पारिवारिक संबंध है!

बहरहाल, अमरमणि अकेला नहीं है, जो महिलाओं के प्रति अपराध में जेल गया और उस पर सरकार की मेहरबानी हुई। बिलकीस बानो के दोषियों को भी गुजरात की भाजपा सरकार ने रिहा किया। महिला पहलवानों के यौन शोषण के आरोपी सांसद बृजभूषण शरण सिंह की न तो गिरफ्तारी हुई और पार्टी ने भी उन पर कोई कार्रवाई नहीं की। राजस्थान के निहालचंद पर बलात्कार के आरोप लगे थे, इसके बावजूद वे नरेंद्र मोदी की पहली सरकार में मंत्री बने थे। उन्हें 2017 में अदालत से राहत मिली लेकिन उससे पहले वे मंत्री बने रहे थे। अपनी शिष्या से बलात्कार के आरोपी पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वामी चिन्मयानंद के केस भी राज्य की भाजपा सरकार ने वापस लेने का प्रयास किया था, लेकिन कामयाबी नहीं मिली।

अकाली-भाजपा गठबंधन आसान नहीं

अकाली दल और भाजपा के बीच फिर से तालमेल की संभावना घटती जा रही है। भाजपा को लग रहा है कि अकाली दल का जनाधार अब बहुत कम हो गया है, इसलिए पुराने फॉर्मूले पर उसे ज्यादा सीटें देकर तालमेल नहीं किया जा सकता है। भाजपा को ऐसा इसलिए भी लग रहा है क्योंकि कैप्टन अमरिंदर सिंह और सुनील जाखड़ कांग्रेस छोड़ कर भाजपा के साथ जुड़े हैं और भाजपा ने जाखड़ को प्रदेश की कमान सौंपी है। अकाली दल भाजपा के लिए लोकसभा की चार से ज्यादा सीटें छोड़ने के लिए तैयार नहीं है, जबकि भाजपा को कम से कम छह सीट चाहिए। अकाली दल को लग रहा है कि कांग्रेस नेताओं के भाजपा में शामिल होने के बावजूद न तो भाजपा का संगठन मजबूत हुआ है और न उसका वोट बढ़ा है। इसलिए अकाली नेता सुखबीर बादल पुराने फॉर्मूले के हिसाब से ही सीट देने पर अड़े हैं। उन्हें यह भी लग रहा है कि बहुजन समाज पार्टी के साथ उनका तालमेल फायदेमंद हो सकता है।

सुखबीर बादल इस बात पर नजर रखे हुए हैं कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का तालमेल होता है या नहीं। अगर तालमेल होता है तो उन्हें मजबूरन भाजपा के साथ गठबंधन करना पड़ेगा। लेकिन तालमेल नहीं होता है और त्रिकोणात्मक या चारकोणीय मुकाबला होता है तो अकाली दल और बसपा के लिए मौका होगा। गौरतलब है कि पंजाब देश में सबसे ज्यादा दलित आबादी वाला प्रदेश है, जहां बसपा का साथ अकाली दल को कुछ सीटों पर बढ़त दिला सकता है खास कर दोआबा के इलाके में।

कर्नाटक के भाजपा नेताओं से नाराज़ हैं मोदी!

कर्नाटक में भाजपा के बुरी तरह हारने के बाद लगता है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राज्य के अपने नेताओं से नाराज हैं। चुनाव के करीब चार महीने बाद भी न तो नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति हो पाई है और न ही विधायक दल का नेता चुना जा सका है। इस बीच चुनाव के बाद पहली बार प्रधानमंत्री मोदी कर्नाटक पहुंचे तो उन्होंने अपनी पार्टी के किसी नेता से मिलना जरूरी नहीं समझा। हवाईअड्डे पर उनका स्वागत करने का मौका प्रदेश भाजपा के नेताओं को मिला। इसी से अंदाजा लगाया जा रहा है कि वे पार्टी नेताओं के अंदरूनी झगड़े की वजह से नाराज हैं। प्रधानमंत्री का कार्यक्रम पहले से तय हो गया था कि वे यूनान से लौटेंगे तो दिल्ली आने की बजाय पहले बेंगलुरू जाएंगे और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो के कमांड सेंटर में जाकर चंद्रयान-3 से जुड़े वैज्ञानिकों से मुलाकात करेंगे। सो, भाजपा के नेता तैयारी में लग गए। हवाईअड्डे पर प्रधानमंत्री का स्वागत करने वाले नेताओं के नाम तय किए जाने लगे। लेकिन बाद में बताया गया कि इस तरह का कोई कार्यक्रम नहीं होना है। प्रधानमंत्री शनिवार को सुबह बेंगलुरू पहुंचे और रोड शो करते हुए इसरो के कमांड सेंटर पहुंचे। इस दौरान भाजपा के बड़े नेता भी सड़क के किनारे जनता के बीच खड़े रहे। इस पर तंज करते हुए कांग्रेस ने कहा कि प्रधानमंत्री ने प्रदेश के नेताओं को उनकी जगह बता दी। जवाब में भाजपा नेताओं ने कहा कि उन्हें जनता के बीच खड़े होने में कोई शर्म नहीं है।

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