Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

एनपीएस की जगह, पुरानी पेंशन योजना बहाल करने की मांग क्यों कर रहे हैं सरकारी कर्मचारी? 

उत्तर प्रदेश में चल रहे विधानसभा चुनावों में भी, एनपीएस की चिंता प्रमुख चुनावी मुद्दों में से एक है, समाजवादी पार्टी (सपा) के अखिलेश यादव ने भी एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में घोषणा की थी कि अगर उनकी पार्टी सत्ता में आती है तो वे पुरानी पेंशन योजना को बहाल करेंगे। 
pension

सरकारी कर्मचारियों की विशाल तादाद का प्रतिनिधित्व करने वाले संगठनों और संघों के बीच राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली(एनपीएस) के स्थान पर पुरानी पेंशन योजना की बहाली के लिए आंदोलन इन दिनों काफी जोर पकड़ रहा है।

उत्तर प्रदेश में चल रहे विधानसभा चुनावों में भी, एनपीएस की चिंता प्रमुख चुनावी मुद्दों में से एक है, जैसा कि समाजवादी पार्टी (सपा) अखिलेश यादव ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में घोषणा की थी कि अगर उनकी पार्टी सत्ता में आती है तो वे सरकारी कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना को बहाल करेंगे। 

1 जनवरी 2004 को या उसके बाद सेवा में शामिल होने वाले केंद्र सरकार और केंद्रीय स्वायत्त इकाइयों में काम करने वाले सभी कर्मचारियों के लिए गारंटीशुदा पेंशन प्रणाली की जगह एनपीएस प्रणाली की शुरुआत की गई थी। 

इसमें गौर करने वाली बात यह है कि पुरानी पेंशन प्रणाली, कमर्चारियों की सर्विस के कुल वर्षों पर आधारित थी। उनकी पेंशन का निर्धारण उनके अंतिम मूल वेतन और महंगाई भत्ते को जोड़कर तय की जाती थी। पुरानी व्यवस्था में समय-समय पर वेतन संशोधन के मुताबिक पेंशन दिए जाने का भी प्रावधान था। उस पुरानी व्यवस्था में, यदि किसी कर्मचारी की सेवावधि 10 वर्षों से कम नहीं है तो उन्हें पिछले मूल वेतन का आधा और सेवानिवृत्ति के समय महंगाई भत्ते की कुल राशि को जोड़कर पेंशन दिए जाने का गारंटीशुदा हक था। और सेवा के दौरान या सेवानिवृत्ति के बाद किसी कर्मचारी की मृत्यु के मामले में, परिवार-पेंशन का भी प्रावधान था, जो उनके अंतिम मूल वेतन और महंगाई भत्ता (डीए) के योगफल का आधा हिस्सा होता था। साथ ही, सेवानिवृत्ति के समय और सेवा के दौरान मृत्यु के मामले में, एक कर्मचारी या उसके परिवार को आर्थिक सहायता दी जाती थी, जिसे 'डेथ कम रिटायरमेंट ग्रेच्युटी (DCRG) कहा जाता है।

केंद्र सरकार ने अपने खजाने पर आर्थिक बोझ को कम करने के लिए दिसंबर 2003 को इस पुरानी पेंशन प्रणाली को निरस्त कर दिया और उसकी जगह एनपीएस को अंशदायी प्रणाली के आधार पर लागू किया। एनपीएस के तहत कर्मचारी के वेतन से मूल वेतन और डीए में से 10 फीसदी राशि की अनिवार्य कटौती की जाती है और उतनी ही राशि सरकार द्वारा उनके पेंशन फंड में जोड़ दी जाती है। इसमें यह प्रावधान था कि सेवानिवृत्ति के समय एक कर्मचारी को इस निधि का 60 फीसदी वापस कर दिया जाएगा और शेष 40 फीसदी को वार्षिकी के रूप में पेंशन पाने के लिए अनिवार्य रूप से निवेश करना होगा।

दुर्भाग्य से, एनपीएस ने उस केंद्रीय सिविल सेवा (पेंशन) अधिनियम-1972 की जगह ली है, जिसमें पारिवारिक पेंशन और ग्रेच्युटी का प्रावधान अंतर्निहित था।

भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) ने अपनी निष्पादन लेखा जांच (रिपोर्ट सं.13/2020) में यह खुलासा किया कि पुरानी पेंशन योजना से NPS की तुलना कैसे की जाती है।

अंतत: एनपीएस के तहत मृत कर्मचारियों के परिवारों को 'ग्रेच्युटी' और 'पारिवारिक पेंशन' की कमी का खामियाजा भुगतना पड़ा है। ऐसे कई मामलों में और शिकायतें मिलने के बाद केंद्र सरकार ने 2009 में ग्रेच्युटी और पारिवारिक पेंशन की अस्थायी रूप से घोषणा की। लेकिन, इस प्रावधान में खोट यह थी कि सरकार इसके तहत मृत कर्मचारियों के परिवार को उनके कुल एनपीएस कोष को हड़पने के बाद ही पारिवारिक पेंशन की पेशकश कर रही थी।

जाहिर था कि इस प्रावधान का विरोध किया जाता। इसके खिलाफ कई कई मुहिम चलाने, अभ्यावेदन सौंपे जाने और रिट याचिकाएं दायर करने के बाद, केंद्र सरकार ने 30 मार्च 2021 को एनपीएस की पारिवारिक पेंशन प्रणाली में आखिरकार संशोधन किया। इसमें प्रावधान है कि कार्यरत कर्मचारी की मृत्यु की स्थिति में पारिवारिक पेंशन के प्रयोजन के लिए केवल सरकारी अंशदान वापस लिया जाएगा और कर्मचारी का अंशदान ब्याज सहित मृतक के परिवार को सौंप दिया जाएगा। और इस तिथि से पूर्ण पारिवारिक पेंशन पाने के लिए उक्त कर्मचारी की सात वर्ष की सेवा पूरी करने की बाध्यता नहीं रखी जाएगी। 

फिर भी, सेवानिवृत्ति से पहले 20 साल से कम की सर्विस के मामले में पेंशन की न्यूनतम गारंटी का कोई प्रावधान नहीं है। ऐसे कई मामले हैं जिनमें सेवानिवृत्त लोगों को कॉर्पस आधारित पेंशन प्रणाली के कारण अभी भी प्रतिमाह 5,000 रुपये से भी कम पेंशन मिल रही है।

एनपीएस लंबी अवधि के निवेश फंड की विचारधारा पर आधारित है और यह किसी कर्मचारी की 30 वर्षों से अधिक की सर्विस में और बेहतर हो सकता है। लेकिन इस कम वर्षों की सर्विस मामले में, उस सेवानिवृत्त व्यक्ति को मिलने वाली पेंशन कम कॉर्पस के कारण जीवित रहने के लिहाज से कतई पर्याप्त नहीं है।

आज एनपीएस पश्चिम बंगाल को छोड़कर देश के हर राज्य में लागू है। लेकिन कई राज्यों में कई वर्षों से न तो कर्मचारियों का अंशदान काटा गया है और न ही उसमें सरकारी अंशदान जोड़ा गया है। इसलिए, कई वर्षों तक कोई कोष निवेश नहीं किया गया, जिसके परिणामस्वरूप पेंशन राशि जमा नहीं हो सकी। ऐसे में सेवानिवृत्ति की स्थिति में कर्मचारियों को बेहद कम पेंशन मिल रही है, जिससे उनकी वृद्धावस्था में अनिश्चितता और असुरक्षा बढ़ गई है। 

पेंशन नियमों में ये कमियां-खामियां केंद्र और राज्य सरकारों की सेवाओं से सेवानिवृत्त 70 लाख अधिक एनपीएस कर्मचारियों की पेंशन सुरक्षा की बुनियादी और आवश्यक जरूरतें प्रदान करने में गहरी अनिश्चितता पैदा कर रही हैं। इसलिए भी एनपीएस के खिलाफ केंद्र और राज्य सरकार के कर्मचारी काफी समय से विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं और पुरानी पेंशन योजना को बहाल करने की मांग कर रहे हैं। 

पुरानी पेंशन योजना की मांग को लेकर सरकारी कर्मचारियों के प्रदर्शन के बाद केरल सरकार ने एनपीएस की समीक्षा के लिए वर्ष 2017 में ही एक समिति का गठन किया था। इसी तरह, आंध्र प्रदेश, असम और पंजाब सरकारों को भी एनपीएस कर्मचारियों के बड़े विरोध के बाद अपने सूबे में एनपीएस पर समितियों का गठन करना पड़ा। और तो और भारतीय जनता पार्टी शासित हिमाचल प्रदेश सरकार को भी पिछले दिसम्बर में एनपीएस की समीक्षा के लिए एक कमेटी बनाने पर मजबूर होना पड़ा। फरवरी 2020 में तो उत्तर प्रदेश सरकार ने कर्मचारियों के विरोध के बाद एनपीएस की समीक्षा के लिए एक समिति की भी घोषणा की।

दूसरे राष्ट्रीय न्यायिक वेतन आयोग ने भी फरवरी 2020 में अपनी रिपोर्ट में यह सुझाव दिया था कि न्यायपालिका पर एनपीएस लागू नहीं किया जाना चाहिए। 

2018 में दी गई सीएजी की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि योजना, क्रियान्वयन और निगरानी के आधार पर एनपीएस वृद्धावस्था सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा प्रदान करने के अपने उद्देश्य में विफल हो रहा है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने 20 दिसम्बर 2021 को केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार को एक पत्र लिखकर इस बारे में अपना जवाब देने और कर्मचारियों के मानवाधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एनपीएस की समीक्षा के लिए एक समिति गठित करने का निर्देश दिया था। इसके बाद, पेंशन फंड नियामक और विकास प्राधिकरण या पीएफआरडीए ने भी घोषणा की कि कर्ज में डूबी IL&FS के जरिए निवेश करने से पेंशन फंड के 1,600 करोड़ से अधिक रुपये शेयर बाजार में डूब गए।

हालांकि केंद्र ने कर्मचारियों के हितों की रक्षा के लिए एनपीएस में कुछ संशोधन किए हैं, जैसे कि 2016 में मृत्यु-सह-सेवानिवृत्ति ग्रेच्युटी का प्रावधान, अप्रैल 2019 से सरकारी योगदान को 10 फीसदी से बढ़ाकर 14 फीसद करना, और मृत्यु की स्थिति में कर्मचारी अंशदान को हड़पे जाने पर रोक लगाना, पर ये संशोधन वृद्धावस्था में कर्मचारियों को सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा प्रदान करने के लिहाज से काफी नहीं है।

निःसंदेह यह कर्मचारियों की बढ़ती हुई वृद्धावस्था से जुड़ी असुरक्षा की बात है क्योंकि पेंशन फंड बाजार में निवेश किया जा रहा है, जो जोखिम भरा है और यह एनपीएस के लागू होने के 17 वर्ष बाद भी रिटर्न की कोई गारंटी नहीं देता है।

नेशनल सिक्योरिटीज डिपॉजिटरी लिमिटेड की सेंट्रल रिकॉर्ड-कीपिंग एजेंसी और पीएफआरडीए के सूत्रों के मुताबिक, शेयर बाजार में अब तक 6 लाख रुपये करोड़ रुपये से अधिक का निवेश किया जा चुका है। ऐसे में अभी बड़ा सवाल यह है कि इतनी बड़ी रकम की सुरक्षा की गारंटी कहां है? और, इस फंड को शेयर बाजार के बिग बुल द्वारा निगल लिए जाने की स्थिति में किसे जवाबदेह ठहराया जाएगा?

(लेखक नेशनल मूवमेंट फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम, दिल्ली के अध्यक्ष हैं और एक सामाजिक सुधार कार्यकर्ता हैं। आलेख में व्यक्त विचार उनके निजी हैं)

अंग्रेजी में मूल रूप से लिखे गए लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:

Why NPS is National Problem Scheme for Employees

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest