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दिल्ली: हज़ारों कर्मचारियों की ‘चेतावनी रैली’, मांगें पूरी न होने पर ‘राष्ट्रव्यापी हड़ताल’ का ऐलान

पुरानी पेंशन बहाली समेत कई मांगों को लेकर देशभर के हज़ारों कर्मचारी दिल्ली के रामलीला मैदान में जुटे। कर्मचारियों का कहना है कि उनकी मांगें नही मानी गईं तो वे ‘राष्ट्रव्यापी हड़ताल’ करेंगे।
Ramleela Maidan

देश भर के हज़ारों सरकारी कर्मचारी पुरानी पेंशन बहाली समेत कई मांगों को लेकर शुक्रवार, 3 नवंबर को दिल्ली के रामलीला मैदान में एकत्र हुए। कर्मचारियों ने अपनी इस रैली को ने 'चेतावनी रैली' का नाम दिया। उनका कहना है कि वो केंद्र सरकार को चेतावनी देने आए हैं कि लाखों सरकारी कर्मचारियों की मांगों को पूरा किया जाए नहीं तो उनका आंदोलन और तेज़ होगा।

इस 'चेतावनी रैली' की अध्यक्षता सुभाष लांबा, रुपक सरकार, सीएन भारती, अशोक थूल व के. राजेंद्रन ने संयुक्त तौर पर की।

रैली में जम्मू-कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक सभी राज्यों के कर्मचारी हज़ारों की तादाद में शामिल हुए। इस 'चेतावनी रैली' में सुबह से ही जुलूस की शक्ल में ये कर्मचारी पहुंचने लगे थे जो सरकार के ख़िलाफ़ और अपनी मांगों के समर्थन में नारेबाज़ी भी कर रहे थे। ये सिलसिला दोपहर करीब एक बजे तक जारी रहा। कर्मचारियों में भारी रोष साफ़ देखा जा सकता था।

रैली में जुटे हज़ारों कर्मचारी और उनके संगठनों ने सरकार को चेतावनी दी कि अगर 15 दिन के अंदर रैली में उठाई गई उनकी मांगों पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई तो राष्ट्रव्यापी हड़ताल का ऐलान किया जाएगा।

कर्मचारियों की मांगें:

* पुरानी पेंशन बहाल की जाए। 
* ठेका कर्मियों को नियमित किया जाए और निजीकरण पर रोक लगाई जाए। 
* खाली पदों को भरा जाए और आठवें वेतन आयोग का गठन किया जाए। 
* 18 महीने से बकाया डीए /डीआर का भुगतान किया जाए और एनईपी पर रोक लगाई जाए।

रैली को संबोधित करते हुए सेंटर ऑफ़ इंडियन ट्रेड यूनियन (CITU) के महासचिव तपन सेन ने कहा कि "देशभर के कर्मचारियों ने निरंतर आंदोलन कर पुरानी पेंशन बहाली को राजनीतिक मुद्दा बना दिया है। यही कारण है कि संसद में पीएफआरडीए एक्ट पारित करने वाले दल भी पुरानी पेंशन बहाली करने का ऐलान कर रहे हैं।" उन्होंने सीटू की तरफ से कर्मचारियों की रैली और मांगों का समर्थन किया।

इस रैली का आह्वान अखिल भारतीय राज्य सरकारी कर्मचारी महासंघ, कनफेडरेशन ऑफ सेंट्रल गवर्नमेंट एम्प्लॉयीज़ एंड वर्कर्स, स्कूल टीचर फेडरेशन ऑफ इंडिया और अखिल भारतीय राज्य सरकारी पेंशनर्स फेडरेशन ने संयुक्त तौर पर किया था।

'अखिल भारतीय राज्य सरकारी कर्मचारी महासंघ' के अध्यक्ष सुभाष लांबा ने कहा कि "सरकार के पास पूंजीपतियों के लाखों करोड़ क़र्ज़ को राइट ऑफ करने, विभिन्न प्रकार के टैक्सों को माफ करने, कॉरपोरेट टैक्स 30 से घटाकर 22 प्रतिशत करने के लिए पर्याप्त धन है, लेकिन पुरानी पेंशन बहाली, ठेका कर्मियों की रेगुलराइज़ेशन, खाली पदों को भरने, 18 महीने के बकाया डीए डीआर का भुगतान करने के लिए पैसा नहीं है।

फेडरेशन के महासचिव ए.श्री. कुमार ने कहा कि "इस रैली में वे कर्मचारी शामिल हैं जो पब्लिक सर्विसेज़ देने का काम करते हैं। सरकार नव उदारवादी आर्थिक नीतियों को लागू करते हुए जन सेवाओं और पीएसयू को तेज़ी से निजी हाथों में सौंप कर अपनी संवैधानिक ज़िम्मेदारियों से छुटकारा पाना चाहती है। हम संविधान और संवैधानिक संस्थाओं को बचाने तथा ट्रेड यूनियन अधिकारों की रक्षा व कर्मचारियों की मांगों को लागू करने के लिए संधर्ष निरंतर जारी रखेंगे।"

कनफेडरेशन ऑफ सेंट्रल गवर्नमेंट एम्प्लॉयीज़ एंड वर्कर्स फेडरेशन के सेक्रेटरी जनरल एसबी यादव ने रैली को संबोधित करते हुए कहा कि "सरकार पुरानी पेंशन बहाली करने की बजाय एनपीएस में कुछ संशोधन कर कर्मचारियों के गुस्से को कम करना चाहती है।" उन्होंने आरोप लगाया कि जीएसटी की रिकॉर्ड कलेक्शन के बावजूद, सरकार, कोरोना में कर्मचारियों एवं पेंशनर्स के फ्रीज़ किए गए 18 महीने के डीए-डीआर का भुगतान नहीं कर रही है।

एनएफपीई के सेक्रेटरी जनरल जनार्दन मंजूमदार ने कहा कि "निजीकरण के ख़िलाफ़ हड़ताल के कारण एनएफपीई और क्लास-3 यूनियन की मान्यता रद्द कर दी गई है जिसका हम डटकर विरोध करेंगे। 

स्कूल टीचर फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसटीएफआई) के जनरल सेक्रेटरी सीएन भारती ने कहा कि "केंद्र सरकार संसद में पारित किए बिना ही देश में नेशनल एजुकेशन पॉलिसी (एनईपी) लागू कर रही है। एनईपी से शिक्षा के निजीकरण को बढ़ावा मिलेगा और शिक्षा पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।"

पेंशनर्स फेडरेशन के अध्यक्ष अशोक थूल ने कहा कि "केंद्र सरकार पेंशनर्स की 65, 70, 75 व 80 साल में बेसिक पेंशन में 5 प्रतिशत बढ़ोतरी करने जैसी जायज़ मांग की भी अनदेखी कर रही है जिसके कारण देश के करोड़ों पेंशनर्स में भारी आक्रोश है।

अखिल भारतीय राज्य सरकारी कर्मचारी महासंघ के कोषाध्यक्ष शशीकांत राय ने कहा कि "पचास लाख से ज़्यादा ठेका संविदा कर्मचारी केंद्र एवं राज्य सरकारों एवं पीएसयू में कार्यरत हैं। सरकार उनको न तो समान काम समान वेतन व सेवा सुरक्षा प्रदान कर रही है और न ही रेगुलर करने की नीति बना रही है, जिससे ठेका कर्मियों ने नाराज़गी बढ़ती जा रही है।"

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