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आदिवासी घरेलू सहायिका के अमानवीय उत्पीड़न पर क्यों चुप है भाजपा?

झारखंड की विपक्षी पार्टी भाजपा ने अंकिता राज हत्या प्रकरण के दोषी के मुसलमान होने के कारण पूरे मामले को “हिन्दू-मुसलमान” कर सांप्रदायिक रंग देने पर तुली हुई है। वहीं, दूसरी ओर, अपनी ही पार्टी की नामचीन महिला नेत्री द्वारा अपनी घरेलू कामगार आदिवासी युवती सुनीता खाखा के साथ किये गए अमानुषिक अत्याचार के मामले पर चुप्पी साधे हुए हैं।
​​jharkhand

यह झारखंड के इतिहास में किसी शर्मनाक हादसा से कम नहीं होगा कि महज चंद दिनों के अन्दर प्रदेश की उप राजधानी दुमका में अंकिता राज, राजधानी रांची में आदिवासी महिला कामगार सुनीता खाखा और चतरा में काजल कुमारी के साथ किये गए जघन्य अमानवीय कृत्य सरेआम हुए। इनमें दुमका की अंकिता राज की दुर्भाग्यपूर्ण मौत भी हो गयी।

भाकपा माले व सीपीएम समेत प्रदेश के सभी वाम व अन्य राजनीतिक दलों के साथ साथ ऐपवा व एडवा समेत अनेक सामाजिक जन संगठनों और लोगों ने इसका तीखा विरोध किया है। इन कांडों के दोषियों को कड़ी सजा देने की मांग को लेकर सड़कों पर प्रतिवाद कार्यक्रमों का सिलसिला जारी है। ख़बरों के अनुसार झारखंड सरकार ने भी उक्त कांडों के दोषियों को दण्डित करने की कारवाई करने के साथ-साथ पीड़ितों व उनके परिजनों को यथासंभव न्याय और सरकारी सहायता देने के लिए आवश्यक क़दम उठा रही है। 

लेकिन एक शर्मनाक पहलू यह भी चर्चा में उभर कर आ रहा है कि प्रदेश में खुद को लोकतान्त्रिक विपक्षी कहनेवाली भाजपा ने अंकिता राज हत्या प्रकरण के दोषी के मुसलमान होने के कारण पूरे मामले को “हिन्दू-मुसलमान” का सांप्रदायिक राजनीतिक रंग देने पर तुली हुई है। इसके लिए दिल्ली से लेकर झारखंड तक के कई नेताओं को तो पूरी तरह से झोंक रखा है। ‘झारखंड  की बेटी अंकिता को न्याय दो’ के नारे राजधानी रांची से लेकर पूरे प्रदेश में विरोध प्रदर्शित कर रही है। 

वहीं, दूसरी ओर, अपनी ही पार्टी की नामचीन महिला नेत्री द्वारा अपनी घरेलू कामगार आदिवासी युवती सुनीता खाखा के साथ किये गए अमानुषिक अत्याचार के मामले पर चुप्पी साधे हुए हैं। इसके खिलाफ पूरे राज्य में काफी क्षोभ व्याप्त है। हर तरफ से यही सवाल उठ रहा है कि- सुनीता खाखा के इंसाफ़ का सवाल क्या भाजपा की नज़र में ‘नारी सम्मान’ का सवाल नहीं है, वो भी ऐसे में जब उनकी पार्टी नेता सीमा पात्रा के यहाँ पिछले 8 वर्षों से सूरज की रोशनी तक देखना नसीब नहीं हुआ। सबसे बड़ी बात कि सुनीता आज घोर अमानुषिक अत्याचार का शिकार होकर विकलांग अवस्था में रिम्स में इलाजरत हैं। 

कहने को तो भाजपा प्रदेश अध्यक्ष ने मीडिया बुलाकर इस कांड की निंदा करते हुए सीमा पात्रा को पार्टी से निलंबित किये जाने की बात कह दी। लेकिन दुमका की अंकिता राज मामले पर जिस क़दर से साम्प्रदायिक रंग देते हुए सड़कों से लेकर सोशल मीडिया में उछल कूद मचाकर सरकार पर त्वरित कार्रवाई करने के लिए दबाव बनाये हुए है, सुनीता खाखा के अत्याचारी पर कार्रवाई के सवाल पर मौन बनी हुई है।

राजधानी रांची के अलबर्ट एक्का चौक से लेकर कई स्थानों पर जहाँ ‘अंकिता को इंसाफ दो’ के सवाल पर विरोध प्रदर्शन हुए थे, 31 अगस्त को भी उन्हीं स्थानों पर ‘सुनीता खाखा को इंसाफ दो’ के कार्यक्रम हुए, जिसमें महिला संगठनों के अलावा कई आदिवासी  संगठनों के महिला-पुरुष भी शामिल हुए। प्रतिवाद में शामिल महिला एक्टिविस्टों ने भाजपा पर तीखा प्रहार करते हुए स्पष्ट कहा कि- भाजपा दुमका की ‘अंकिता राज ह्त्या’ मामले का राजनीतिकरण करते हुए उसे सांप्रदायिक रंग दे रही है। लेकिन अपनी ही पार्टी की महिला नेता द्वारा सुनीता खाखा पर किये गए अमानुषिक अत्याचार पर चुप्पी साबित करता है कि वास्तव में भाजपा किसी भी महिला का सम्मान नहीं करती है। इसका खुला नज़ारा 15 अगस्त को भी दिखा जब प्रधानमंत्री ने एक ओर, ‘महिला सम्मान’ का दावा किया, तो दूसरी ओर उन्हीं की पार्टी की गुजरात सरकार ने बिलक़ीस बानो के सज़ायाफ्ता दुराचारियों व हत्यारों को बाइज्ज़त बरी कर सार्वजनिक रूप से उनका अभिन्दन किया।      प्रतिवाद कार्यक्रम में शामिल सभी प्रदर्शनकारी महिलाओं ने एक स्वर से ये मांग उठायी कि भाजपा दुमका में साम्प्रदायिकता की रोटी सेंकना बंद करे।

ज्ञात हो कि गत 21 अगस्त को रांची पुलिस ने भाजपा की महिला नेता सीमा पात्रा के घर से बेहद गंभीर हालत में सुनीता खाखा को मुक्त कराकर रिम्स में इलाज़ के लिए भारती करवाया था। जिसकी खबर मिलते ही 23 अगस्त को कई आदिवासी संगठनों के प्रतिनिधियों ने अस्पताल जाकर सीमा से मुलाक़ात की। अस्पताल में ही सुनीता खाखा के दिए बयान के आधार पर पुलिस को सीमा पात्रा  की गिरफ्तारी के लिए मजबूर होना पड़ा। बाद में हेमंत सोरेन सरकार के निर्देश पर आगे की कारवाई के लिए हटिया डीएसपी को मामला सुपुर्द किया गया। 

इस पूरे प्रकरण में सियासी चर्चा यह भी है कि आये दिन हेमंत सोरेन सरकार पर राज्य के आदिवासियों के खिलाफ काम करने का आरोप लगाने वाले भाजपा विधायक दल नेता बाबूलाल मरांडी ने अभी तक पीड़ित आदिवासी महिला को अस्पताल में जाकर देखने तक की जहमत नहीं उठायी है। वहीं, मोदी सरकार में आदिवासी मामलों के केन्द्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा समेत झारखंड  के सभी आदिवासी भाजपा सांसद, विधायकों व नेताओं ने भी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। 

खबर है कि तेलंगाना सरकार के एक मंत्री ने घोषणा की है कि वे सुनीता खाखा की पढ़ाई का सारा खर्चा उठाएंगे। 

बहरहाल, महिलाओं पर बढ़ते अत्याचार की घटनाएं अपने सभ्य और विकसित कहलाने वाले पूरे नागरिक समाज के लिए एक गंभीर चुनौती बन चुकी है। लेकिन अब उससे भी बड़ी और भयावह चुनौती बन रही है, इस मुद्दे के जरिये भी सांप्रदायिक राजनीति का किया जाना। 

झारखंड  प्रदेश की मौजूदा भारी सियासी अस्तव्यस्तता और केंद्र प्रायोजित अनिश्चितता के बीच भी ‘अंकिता, सुनीता और काजल’ के साथ हुए अत्याचारों के खिलाफ एक साथ आवाजें उठ रहीं हैं। लेकिन प्रदेश भाजपा और उसके नेता-कार्यकर्ताओं द्वारा ‘अंकिता राज ह्त्या’ मुद्दे के जरिये अपनी सांप्रदायिक राजनीति को जारी रखने तथा आदिवासी महिला कामगार सुनीता खाखा के साथ हुए अमानुषिक अत्याचार पर केंद्र से लेकर प्रदेश भाजपा की चुप्पी पर सवाल तो बनता ही है। 

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