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पीरियड लीव की मांग जायज़ और ज़रूरी क्यों है?

देश-विदेश में पीरियड लीव की मांग समय-समय पर उठती रही है। सर्वोच्च न्यायालय 24 फरवरी को इससे जुड़ी जनहित याचिका पर सुनवाई करेगा।
Menstrual leave
फ़ोटो साभार: iStock

सुप्रीम कोर्ट में पेड पीरियड लीव की मांग को लेकर एक जनहित याचिका दायर हुई है। सर्वोच्च न्यायालय 24 फरवरी को इस पर सुनवाई करेगा। इस याचिका को दायर करने वाले वकील शैलेंद्र मणि त्रिपाठी का कहना है कि महिलाओं को प्रेगनेंसी के वक्‍त तो वैतनिक अवकाश मिलता है, लेकिन पीरियड्स को लेकर इस तरह का कोई नियम नहीं है। कुछ कंपनियां स्वैच्छिक रूप से एक या दो दिन की छुट्टी देती हैं, तो वहीं देश के कुछ राज्यों में भी पीरियड्स के दौरान महिलाओं को दो दिन की पेड लीव मिलती है। लेकिन इसे लेकर कोई एक देशव्यापी नियम नहीं है, जो सभी राज्‍यों और कंपनियों पर समान रूप से लागू होता हो। ऐसे में याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की है कि वह मेंस्ट्रुअल पेन लीव दिए जाने को लेकर नियम बनाने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश दे।

बता दें कि इस याचिका में मैटरनिटी बेनिफिट एक्ट के सेक्शन 14 को तुरंत लागू करने की भी मांग की गई है, जिसके तहत इंस्पेक्टर्स नियुक्त किए जाते हैं जो इस एक्ट के प्रावधानों को लागू करवाते हैं। याचिकाकर्ता ने कहा है कि ऑनलाइन रिसर्च के मुताबिक, सिर्फ मेघालय ने ही 2014 में एक नोटिफिकेशन जारी करके इंस्पेक्टर्स को अपॉइंट किया था। उन्होंने याचिका में ये भी कहा है कि बिहार अकेला ऐसा राज्य है जो 1992 की एक पॉलिसी के तहत स्पेशल मेंस्ट्रुअल पेन लीव देता है। याचिकाकर्ता के मुताबिक अन्य राज्यों में मेंस्ट्रुअल पेन लीव न देना संविधान के आर्टिकल 14 के तहत समानता के अधिकार का उल्लंघन है। उन्होंने कोर्ट को यह भी बताया कि इस संबंध में लोक सभा में पेश प्राइवेट मेंबर बिल भी आगे नहीं बढ़ सका।

क्या है मेंस्ट्रुअल पेन लीव का कॉन्सेप्ट?

मेंस्ट्रुअल लीव को यदि आसान भाषा में समझे तो ये पीरियड्स के दौरान छुट्टी की बात है। क्योंकि पीरियड्स के दौरान महिलाओं को मानसिक और शारीरिक परेशानियों से गुजरना पड़ता है। इस समय उन्हें पेट दर्द, बदन दर्द, उल्टी, तेज़ बुखार जैसी कई परेशानियों से दो चार होना पड़ता है, इसका काम के संबंध में प्रोडक्टिविटी पर भी असर पड़ता है। इसलिए देश-विदेश में पीरियड लीव की मांग समय-समय पर उठती रही है।

2016 में लंदन के यूनिवर्सिटी कॉलेज में प्रजनन स्वास्थ्य के प्रोफेसर जॉन गिलेबॉड ने बताया था कि पीरियड्स के दौरान कई औरतों को उतनी ही तकलीफ़ होती है जितनी एक हार्ट अटैक के दौरान होती है। डिस्मेनोरिया पर 2012 में किए गए शोध के अनुसार कम से कम 20 फीसदी महिलाओं को पीरियड्स के दौरान इतनी तकलीफ़ होती है कि उनके लिए चलना भी मुश्किल हो जाता है। एक अध्ययन के अनुसार हर साल महिलाओं के पीरियड्स दर्द की वजह से काम के संबंध में प्रोडक्टिविटी में औसतन 33 फीसदी की कमी पाई गई, जो औसतन 9 दिन की कमी के बराबर है।

भारत की बात करें, तो बिहार पहला ऐसा राज्य है, जहां साल 2 जनवरी 1992 से महिला कर्मचारियों को 2 दिन की पीरियड्स के लिए छुट्टी दी जा रही है। इसके लिए उन्होंने 32 दिन तक हड़ताल की थी जिसके बाद उन्हें यह हक मिला। इसकी शुरुआत लालू प्रसाद यादव की सरकार ने की थी। इसके बाद 2017 में मुंबई में स्थित कल्चर मशीन ने 1 दिन की छुट्टी देने की शुरुआत की। साल 2020 में फूड डिलीवरी कंपनी जोमैटो ने पीरियड लीव देने का ऐलान किया। इस समय भारत में 12 कंपनी पीरियड लीव दे रही हैं जिसमें बायजू, स्विगी, मातृभूमि, बैजू, वेट एंड ड्राई, मैगज्टर जैसी कंपनी शामिल हैं। हाल ही में केरल सरकार ने उच्च शिक्षा विभाग के तहत आने वाले राज्‍य के सभी विश्वविद्यालयों की छात्राओं को पीरियड लीव देने का ऐलान किया था। इससे पहले कोचीन में स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (सीयूएसएटी) ने एक बड़ा फैसला लेते हुए अपनी फीमेल स्टूडेंट्स को हर महीने पीरियड लीव दिए जाने की घोषणा की थी।

क्यों ज़रूरी और महिलाओं का हक़ है पीरियड लीव?

महिला अधिकार कार्यकर्ता ऋचा सिंह बताती हैं कि वैज्ञानिक नजरिए से देखा जाए तो औरतों को मेंस्ट्रुअल लीव की बेहद जरूरत है। मूड स्विंग के साथ ही पीरियड्स में पीसीओडी, एंडोमेट्रायोसिस, या पेल्विक इंफ्लेमेटरी डिजीज बढ़ जाती हैं। ऐसे में किसी औरत का खुद को समय देना बेहद जरूरी है, पीरियड्स के दौरान काम से छुट्टी लेना एक औरत का हक़ होना चाहिए। क्योंकि पीरियड्स भी आखिर एक आम स्वास्थ्य-संबंधित परेशानी ही है, जिससे महिलाएं हर महीने दो चार होती हैं।

ऋचा के मुताबिक दुनिया को देखें तो, द्वितीय विश्व युद्ध के ठीक बाद 1947 में जापान ने नए श्रम कानून में पीरियड्स लीव को शामिल किया। 1922 में सोवियत संघ ने इसके लिए नेशनल पॉलिसी बनाई थी और तभी से कुछ सेक्टर्स में पीरियड लीव दी जाने लगी थी। वहीं, इंडोनेशिया में इसकी शुरुआत 1948 में की गई। इसके बाद कई देशों ने महिलाओं का दर्द समझते हुए छुट्टी देने का प्रावधान किया। आज ऑस्ट्रेलिया, चीन, रूस, ताइवान, इंग्लैंड, दक्षिण कोरिया जैसे देश माहवारी के लिए छुट्टी दे रहे हैं। ऐसे में भारत को भी एक प्रगतिशील नज़रिया अपनाते हुए इसे तुरंत लागू करना चाहिए।

पेशे से मनोचिकित्सक मनीला कहती हैं कि पीरियड्स के दौरान एक महिला कई तरह की मानसिक परेशानियों से जूझती है। इस दौरान महिलाओं के स्वभाव में परिवर्तन और चिड़चिड़ापन बहुत आम बात है। ज्यादातर महिलाएं इसकी बात करने तक में झिझकती है लेकिन इससे को इंकार नहीं कर सकता कि ये तकलीफ़ कई औरतों के लिए एक बहुत बड़ी सच्चाई है।

मनीला एक सर्वे के बारे में बताते हुए कहती हैं, “आस्ट्रेलिया स्थित मेलबर्न में विक्टोरियन वुमन ट्रस्ट एंड सर्कल इन ने 2021 में एक सर्वे किया गया। इसमें 700 महिलाएं शामिल हुई थीं। इसमें सामने आया कि 70 फीसदी महिलाएं अपने मैनेजर से पीरियड्स के बारे में बात करने में असहज महसूस करती हैं। वहीं, 83% महिलाओं ने कहा कि इसका काम पर बुरा असर पड़ेगा। वहीं, साल 2021 में ब्रिटेन के स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक की स्टडी के मुताबिक मीनोपॉज से गुजर रहीं महिला कर्मचारी नौकरी छोड़ने के लिए मजबूर होती हैं। 2,400 में से 25% महिलाओं ने कहा कि उनके लक्षण, जागरुकता की कमी, सहकर्मियों के सहयोग का अभाव उनकी नौकरी छोड़ने की संभावना को बढ़ा देता है। वहीं, 22% ने कहा कि यह सब कारण उनके कदम रिटायरमेंट की तरफ बढ़ाते हैं।"

पीरियड लीव औरतों के लिए सबसे बड़ी राहत

गुरुग्राम की एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम कर रहीं श्वेता सिंह कहती हैं, “पीरियड्स के दौरान कई बार बिस्तर से उठने तक का मन नहीं करता, ऐसे में ऑफिस का काम सच में बहुत बड़ा टेंशन रहता है। क्योंकि काम से छुट्टी नहीं ले सकते इसलिए हेल्थ कॉम्प्रमाइज करनी पड़ती है। अगर पीरियड लीव मिलने लगे, तो ये औरतों के लिए सबसे बड़ी राहत होगी। ऐसा इसलिए नहीं की हम काम से बचना चाहते है, बल्कि इसलिए की हम बेहतर काम कर सकें।"

एक अन्य कामकाजी महिला राधिका बताती हैं कि उन्हें हर बार छुट्टी की जरूरत नहीं लगती, लेकिन कभी-कभी वो मजबूर होकर अनपेड लीव तक ले लेती हैं, क्योंकि उन्हें पीसीओडी की दिक्कत है, जो पीरियड्स में और बढ़ जाती है। कई बार उन्हें इसकी वजह से अस्पताल तक में भर्ती होना पड़ा है। इसलिए राधिका मानती हैं कि महिलाओं को पीरियड्स के दौरान छुट्टी मिलनी चाहिए और जो महिलाएं छुट्टी नहीं लेना चाहती वह उनके अधिकार में होना चाहिए कि वह उस छुट्टी का क्या करेंगी? ऐसे में जिन महिलाओं को छुट्टी की जरूरत नहीं लगती है, वह पीरियड्स के दौरान भी काम कर सकती हैं, लेकिन जैसे ही जरूरत हो वो बिना रुकावट इसका इस्तेमाल कर सकें।

गौरतलब है कि देश में पहली बार मासिक धर्म से जुड़ा मेन्स्ट्रुएशन बेनिफ़िट बिल, 2017 अरुणाचल प्रदेश से सांसद निनॉन्ग एरिंग ने रखा था। इस प्राइवेट बिल में कहा गया था कि सरकारी और प्राइवेट सेक्टर में नौकरी करने वाली महिलाओं को दो दिन के लिए 'पेड पीरियड लीव' यानी पीरियड्स के दौरान दो दिन के लिए छुट्टी दी जानी चाहिए। हालांकि ये बिल विरोध के चलते आगे नहीं बढ़ सका। इस संबंध में बीते साल लोकसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने था कहा था कि ‘सेंट्रल सिविल सर्विसेज (लीव) रूल 1972’ में पीरियड लीव का कोई प्रावधान नहीं है। इतना ही नहीं, उन्होंने आगे ये भी कहा था कि इस तरह की छुट्टियों को इन नियमों में शामिल करने का भी फिलहाल कोई प्रस्ताव भी नहीं है।

बहरहाल, अभी तो हमारे देश के लिए पीरियड पावर्टी यानी पीरियड प्रोडक्ट्स खरीदना ही महंगा सौदा बना हुआ है, ऐसे में पीरियड्स को लेकर अपने अधिकारों के प्रति महिलाओं को खुद भी जागरूक होना जरूरी है, ताकि मासिक धर्म के दौरान स्वच्छता बरती जा सके। कामकाजी महिलाओं के साथ ही घर पर काम करने वाली महिलाओं को भी पीरियड के दौरान अपने आप पर पूरा ध्यान देने की जरूरत है। इसके अलावा बिना किसी हिचक इस पितृसत्तात्मक समाज में पीरियड से जुड़े मिथकों को भी तोड़ने की जरूरत है।

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