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महाराष्ट्र में दाल के उत्पादन में क्यों आ रही है कमी?

पिछले कुछ वर्षों में देर से बारिश, बारिश की कमी, फसल के समय भारी बारिश और गारंटीशुदा कीमतों से गिरते दाम के कारण मूंग और उड़द जैसी फसलों का रकबा घट रहा है।
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महाराष्ट्र में मूंग और उड़द जैसी महत्वपूर्ण दाल वाली फसलें खरीफ सीजन में उगाई जाती हैं और उसके बाद तुअर ऊगाई जाती है। देखा जाए तो ये फसलें कम अवधि की होती हैं, इसलिए इनकी खेती खरीफ, रबी और ग्रीष्म तीनों मौसमों में की जाती है।फिर भी इनका ज्यादातर उत्पादन खरीफ में होता है। खेती के जानकार जानते हैं कि भूमि परिवर्तन के लिए दलहन की खेती आवश्यक है। लिहाजा, इन फसलों की खेती मुख्य या अंतरफसल के रूप में भी की जाती है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में देर से बारिश, बारिश की कमी, फसल के समय भारी बारिश, गारंटी मूल्य से कम मूल्य मिलने के कारण इन फसलों का क्षेत्रफल घट रहा है।

यह स्थिति इस लिहाज से भी चिंताजनक है कि पिछले तीन दशकों के दौरान भारत में दलहन की खेती और उत्पादन में कोई उल्लेखनीय वृद्धि नहीं हुई है। यदि पूरे देश की बात की जाए तो पिछले कुछ वर्षों में क्षेत्रफल तो बढ़ा है, लेकिन उत्पादकता नहीं बढ़ी है। हालांकि, महाराष्ट्र ऐसा राज्य है जहां दालों का रकबा भी तेजी से घटा है।

देश की दालों की आवश्यकता मौजूदा 260 लाख टन से बढ़कर 2050 तक 390 लाख टन तक पहुंचने की संभावना जताई गई है। इसलिए सरकार को घरेलू उत्पादन बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए। ऐसा नहीं होता है तो आयात पर निर्भरता बढ़ने की आशंका है। भारत विश्व का अग्रणी दलहन उत्पादक एवं उपभोक्ता देश रहा है। लेकिन, अब देश में दालों का आयात भी सबसे ज्यादा हो रहा है। इसमें मूंग और उड़द भी शामिल है।

महाराष्ट्र में कितना घटा दाल का रकबा?

पश्चिम महाराष्ट्र, खानदेश और पश्चिम विदर्भ के जिलों में मूंग और उड़द की सबसे ज्यादा खेती होती है। वर्ष 2012-13 में मूंग की खेती 4.31 लाख हेक्टेयर तथा उड़द की खेती 3.60 लाख हेक्टेयर में हुई थी। पिछले दशक के दौरान खेती का रकबा घटता जा रहा है। पिछले साल के सीजन में मूंग 2.69 लाख हेक्टेयर और उड़द 3.58 लाख हेक्टेयर में ही बोई गई थी। बीच की अवधि में मूंग और उड़द की खेती स्थिर रही। इस तरह, खास तौर से मूंग की खेती राज्य में प्रभावित हुई है जिसका गए एक दशक में रकबा 1.62 लाख हेक्टेयर तक कम हो गया।

क्यों आई दाल की खेती में गिरावट?

सवाल है कि खेती में गिरावट के क्या कारण हैं। दरअसल, इन फसलों की अवधि सामान्यतः दो से ढाई माह होती है। मूंग और उड़द को कम समय में अधिक आर्थिक लाभ देने वाली फसलों के रूप में देखा जाता है। इन फसलों की बुआई बारिश होते ही पूरी हो जाती है और जमीन तैयार हो जाती है, विशेषकर जून के दूसरे पखवाड़े तक। लेकिन, पिछले कुछ वर्षों से मानसून प्रभावित रहा है और वर्षा की स्थिति अनियमित हो गई। जलवायु में आए इस बदलाव का असर दाल की खेती पर पड़ा है और किसान उन फसलों पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं जो वर्षा से न्यूनतम प्रभावित हो।

किसान बताते हैं कि कई साल बारिश के देर से आने, बारिश में रुकावट और विशेषकर अगस्त के महीने में भारी बारिश के कारण मूंग और उड़द की फसल की खेती पर असर पड़ने लगा है। अहम बात यह है कि केंद्र सरकार ने दलहन का क्षेत्रफल बढ़ाने के लिए योजनाएं लागू की हैं। लेकिन, उसके बाद भी राज्य में क्षेत्रफल वृद्धि दर बढ़ने की बजाय घट गई है।

रकबा घटा तो घट गया उत्पादन

देर से हुई बारिश उत्पादकता को लेकर अनिश्चितता पैदा करती है। जून के महीने में बुआई के बाद फसल आमतौर पर अगस्त में काटी जाती है। लेकिन, पिछले कुछ वर्षो का अनुभव है कि इस दौरान भारी बारिश की मात्रा में बढ़ोतरी हुई है। इसलिए मूंग की कटाई नहीं हो पा रही है। इस हालत में वर्षा के कारण पकी फलियां फूट जाती हैं। फूटी हुई फलियों के बीज फलियों के भीतर ही अंकुरित होते हैं। नतीजा यह होता है कि मूंग की पूरी फसल नष्ट हो जाती है या उपज कम हो जाती है। कई इलाकों में सूखे और बाढ़ जैसी आपदा ने भी मूंग और उड़द की खेती में किसानों की रुचि कम कर दी है।

बाजार का हाल बेहाल

जाहिर है कि इन आपदाओं में नुकसान के बाद किसानों को कम उपज मिलती है। ऐसी स्थिति में भी दालों की अच्छी कीमत नहीं मिल पाती है। आपदा की स्थिति में भी किसानों को उनकी फसल की सुरक्षा की कोई गारंटी बहाल नहीं होती।

वहीं, केंद्र सरकार ने वर्ष 2022-23 में मूंगा के लिए 7,755 रुपये और उड़द के लिए 6,600 रुपये की गारंटी मूल्य की घोषणा की है। लेकिन, बारिश के कारण महत्वपूर्ण मूंग-उड़द उत्पादक राज्यों में फसल को भारी नुकसान हुआ। फसल पर कीट एवं रोग का भी प्रभाव पड़ा। इससे खरीफ में मूंग और उड़द का उत्पादन 30 फीसदी तक कम हो गया है। खरीफ उत्पादन में गिरावट के बाद इन दालों की कीमतों में उछाल आया, लेकिन इससे किसानों को कोई अपेक्षित लाभ हासिल नहीं हो सका।

आखिर क्यों हुआ उत्पादकता में उतार-चढ़ाव?

महाराष्ट्र राज्य कृषि विभाग के तीसरे प्रारंभिक अनुमान के अनुसार, इस वर्ष राज्य में 1.70 मिलियन टन मूंग और 2.25 मिलियन टन उड़द का उत्पादन हुआ। मूंग की उत्पादकता 6.31 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है, जबकि उड़द की उत्पादकता 6.29 क्विंटल है। लेकिन, 2021-22 के खरीफ सीजन में मूंग की उत्पादकता 4.94 क्विंटल प्रति हेक्टेयर थी, जबकि उड़द की उत्पादकता 4.83 क्विंटल प्रति हेक्टेयर थी। इससे स्पष्ट होता है कि इस वर्ष मूंग और उड़द की उत्पादकता में वृद्धि के बावजूद उत्पादन घट गया। वजह साफ है कि किसान अब पहले की तुलना में कम क्षेत्रफल पर दाल उगा रहे हैं।

देखा जाए तो राज्य में वर्ष 2015-16 में दशक की सबसे कम उत्पादकता दर्ज की गई थी, जिसमें मूंग की प्रति हेक्टेयर उत्पादकता केवल 1.90 क्विंटल और उड़द की 2.14 क्विंटल रही। जाहिर है कि उत्पादकता की यह स्थिति देख कर दाल उत्पादक किसान हतोत्साहित हुए। उस वर्ष वर्षा की अनियमितता, जलवायु परिवर्तन, कीट और बीमारियों का प्रकोप जैसे विभिन्न कारणों से उस वर्ष उत्पादकता में कमी आई थी। यह क्रम बाद के वर्षो में भी देखा गया। बावजूद इसके ऐसे संकट से उभरने के लिए न तो किसानों को कोई रास्ता सूझ रहा है और न ही इस दिशा में सरकार ही कुछ समाधान निकालने की राह पर बढ़ती दिख रही है।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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