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पैदल मार्च: वन और भूमि अधिकार जैसे मुद्दों को लेकर महाराष्ट्र की सड़कों पर उतरे हज़ारों आदिवासी

"पैदल मार्च के नेतृत्वकर्ताओं का कहना है कि वे किसानों और आदिवासियों के मुद्दों पर राज्य का ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं। “हमारी मांगें बुनियादी हैं–जिनमें वन अधिकार अधिनियम के तहत भूमि आवंटन, मौजूदा सूखे के दौरान पीड़ित किसानों को 30,000 रुपये प्रति एकड़ का मुआवजा, वन (संरक्षण) संशोधन विधेयक- 2023 को खत्म करना आदि प्रमुख हैं।” आदिवासियों का ये मार्च 7 दिसंबर को नंदुरबाड़ से शुरू हुआ था और इसमें नासिक, नंदुरबार और धुले में रहने वाले लगभग 15 हज़ार लोग शामिल हुए हैं। मार्च के ज़रिए ये सभी आदिवासी समूह 23 दिसंबर को मुंबई शहर पहुंचकर केंद्रीय सरकार से अपनी मांगें पूरी करने का आग्रह करेंगे।"
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दरअसल, महाराष्ट्र के नंदुरबाड़, धुले और नासिक के करीब 15 हज़ार आदिवासियों ने अपनी, वन और भूमि अधिकार आदि से जुड़ी मांगों को लेकर पैदल मार्च शुरू किया है। यह मार्च 7 दिसंबर को नंदुरबाड़ से शुरू हुआ था। सीपीएम का अग्रणी संगठन, सत्यशोधक शेतकारी सभा, महाराष्ट्र में आदिवासी किसानों की दुर्दशा को लेकर, मार्च का नेतृत्व कर रहा है। उनके अनुसार, मार्च के 23 दिसंबर तक मुंबई पहुंचने की उम्मीद है। मार्च का नेतृत्व कर रहे किशोर दामले, रामसिंह गावित आदि नेताओं के अनुसार, वे किसानों और आदिवासियों के मुद्दों पर राज्य का ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं।

पैदल मार्च का लक्ष्य मुंबई शहर में प्रदर्शन कर केंद्रीय व राज्य सरकार का ध्यान आर्कषित करना है। आदिवासियों के इस मार्च में नासिक, नंदुरबार और धुले में रहने वाले लगभग 15 हज़ार लोग शामिल हुए हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया आदि मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, ये आदिवासी 17 दिनों में 432 किलोमीटर का लंबा रास्ता तय करके 23 दिसंबर को मुंबई पहुंचेंगे। 

कहा कि मार्च में आदिवासी किसान प्रतिदिन लगभग 25-30 किमी पैदल चलते हैं। आयोजकों ने कहा कि वे अपनी मांगों को मनवाने के लिए मुंबई जा रहे थे। “स्थानीय किसान हमारे लिए व्यवस्था कर रहे हैं। हम दिन में चलते हैं और रात को खुले आसमान के नीचे आराम करते हैं। दमले ने कहा, ''जब तक हमारी मांगें पूरी नहीं हो जातीं, हम रुकने वाले नहीं हैं।''

हालांकि इस संदर्भ में आदिवासियों ने रविवार को उप मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस से मिलकर अपनी मांगों के बारे में बताया था। ये मुलाकत कुछ हद तक सफल भी रही है। लेकिन सत्यशोधक शेतकारी सभा के सचिव किशोर दामाले ने कहा, “जब तक सरकार हमें लिखित में आश्वासन नहीं देती, तब तक हम मार्च को बंद नहीं करेंगे।” कहा कि सोमवार को हमने नासिक से मुंबई की ओर चलना शुरू कर दिया है और सरकार से लिखित में आश्वासन मिलने के बाद ही कोई फैसला करेंगे।

क्या है आदिवासियों की मांग

नासिक, नंदुरबाड़ और धुले के इन  आदिवासी किसानों की कई मांगें हैं। जिनमें प्रमुख तौर पर वन अधिकार अधिनियम के तहत आदिवासियों को ज़मीन सौंपना, वन भूमि में चरागाह क्षेत्र स्थापित करना, कृषि उपज के लिए उचित मूल्य तय करना, क्षेत्र के कई तालुकों को सूखा प्रभावित घोषित करना और सूखा प्रभावित क्षेत्र के प्रत्येक किसान को 30 हज़ार रुपये का मुआवजा देना शामिल है। दामले के अनुसार, “वन अधिकार अधिनियम के तहत भूमि आवंटन, मौजूदा सूखे के दौरान पीड़ित सभी किसानों को 30,000 रुपये प्रति एकड़ का मुआवजा, वन (संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2023 को खत्म करना आदि की हमारी मांगें बुनियादी हैं। प्रदर्शनकारी यह भी चाहते हैं कि वर्ष 2018 में घोषित अनियमित मौसम की स्थिति के कारण नुकसान झेलने वाले किसानों को बकाया राशि का तत्काल भुगतान हो तथा फर्जी दस्तावेज बनाकर आरक्षण प्राप्त करने वाले लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई और अन्य मुद्दे शामिल हों।

राजनीतिक मायने

खास है कि आदिवासी किसानों के इस पैदल मार्च के बड़े राजनीतिक मायने भी हैं। दरअसल, 2011 की जनगणना के अनुसार नासिक, नंदुरबार और धुले में लगभग 20 लाख आदिवासी रहते हैं। इसलिए इन आदिवासियों की मांग आने वाले चुनाव में एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन सकती है। इसलिए सरकार वार्ता कर आदिवासी किसानों को मनाने में जुटी है। वहीं, पैदल मार्च के नेतृत्वकर्ता भी अपनी मांगों के सकारात्मक हल को लेकर आशान्वित हैं।

साभार : सबरंग 

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