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क्या अब “इलाहाबाद विश्वविद्यालय” नहीं रहेगा?

योगी सरकार ने इलाहाबाद शहर का नाम बदलकर प्रयागराज पहले ही कर दिया है, इसलिए अब इलाहाबाद विश्वविद्यालय का नाम भी बदलकर ‘प्रयागराज विश्वविद्यालय’ किए जाने की तैयारी हो रही है।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय
Image courtesy: Prediction Junction

‘हमारी सरकार ने उत्तर प्रदेश के कई शहरों के नाम बदले हैं। हमें जो अच्छा लगा है हमने वह किया है और जहां पर आवश्यकता पड़ेगी सरकार वहां पर उस प्रकार का क़दम उठाएगी।’

ये कथन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का है। एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश में शहरों के नाम बदले जाने पर मुख्यमंत्री ने ये बात कही थी। सबसे पहले मुग़लसराय स्टेशन का नाम बदलकर प. दीनदयाल उपाध्याय स्टेशन कर दिया गया, इसके बाद इलाहाबाद प्रयागराज हो गया और फिर फ़ैज़ाबाद ज़िले को अयोध्या का नाम मिल गया।

अब नाम बदलने में माहिर उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार एक बार फिर चर्चा में है। वजह इलाहाबाद शहर और शहर में बसी प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी यानी इलाहाबाद यूनिवर्सिटी है। क्योंकि योगी सरकार ने इलाहाबाद शहर का नाम बदलकर प्रयागराज कर दिया है, इसलिए अब इलाहाबाद विश्वविद्यालय (इविवि) का नाम भी बदलकर ‘प्रयागराज विश्वविद्यालय’ किए जाने की तैयारी हो रही है। यूनिवर्सिटी के नाम बदलने के इस प्रस्ताव को कार्यकारिणी परिषद के एजेंडे में शामिल कर लिया गया है और अगली बैठक में इस पर अंतिम मुहर लगाए जाने की उम्मीद है। एक ओर प्रशासन तैयार है तो वहीं छात्र संगठनों ने इसका विरोध शुरू कर दिया है।

विश्वविद्यालय की पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष ऋचा सिंह ने न्यूज़क्लिक से बातचीत में कहा, “ये बहुत दुखद है। हम इसका विरोध करते हैं। इलाहाबाद विश्वविद्यालय का 132 साल पुराना गौरवशाली इतिहास रहा है। यह नाम मात्र संज्ञा नहीं है, बल्कि विशेषणों का समूह है। हमें इस पर गर्व है और यही हमारी पहचान है।”

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विरोध में सांसद को लिखा पत्र

छात्रसंघ की पूर्व अध्यक्ष ऋचा सिंह ने सांसद विनोद सोनकर को पत्र लिखकर विश्वविद्यालय का नाम बदले जाने के प्रस्ताव पर अपना विरोध दर्ज करवाया है। ऋचा ने पत्र के माध्यम से कहा है कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय का नाम इसके गौरवशाली इतिहास की पहचान है।  

ऋचा का कहना है कि इसका नाम बदलने से लाखों पूर्व छात्रों की डिग्री पर संकट आ सकता है और एक बड़ी पहचान भी संकट में पड़ जाएगी। ऋचा ने मांग की है कि विश्वविद्यालय का नाम बदलने का विचार तत्काल त्याग दिया जाए। उन्होंने कहा है कि यह किसी के पुत्र या पुत्री का नाम नहीं है, जो जब चाहे बदल दिया जाए।

क्या है पूरा मामला?

इस मामले की शुरुआत इलाहाबाद शहर के नाम बदलने के बाद हुई। कौशांबी के सांसद विनोद सोनकर, जो ख़ुद इस विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र हैं, उन्होंने विश्वविद्यालय प्रशासन के समक्ष इसका नाम ‘प्रयागराज विश्वविद्यालय’ किए जाने का प्रस्ताव रखा। इसके बाद प्रशासन ने इस दिशा में प्रयास तेज़ कर दिए।

विश्वविद्यालय का नाम बदलकर प्रयागराज विश्वविद्यालय करने का पहला प्रयास उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव ने किया था। उन्होंने चार दिसंबर 2018 को केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एचआरडी) के सचिव को पत्र लिखकर नाम बदलने की मांग की। 11 दिसंबर 2018 को मंत्रालय को रिमाइंडर भेजा। इसके बाद तत्कालीन कमिश्नर आशीष गोयल ने 27 नवंबर 2019 को उत्तर प्रदेश के उच्च शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव को पत्र लिखकर नाम बदलने की मांग की। इसी बीच एचआरडी के डिप्टी सेक्रेटरी राजू सारस्वत ने 10 फरवरी 2020 को पत्र लिखकर इविवि प्रशासन से सुझाव मांगा।

जिसके बाद विश्वविद्यालय प्रशासन ने इन तमाम पत्रों को संज्ञान में लेते हुए नाम बदले जाने से संबंधित प्रस्ताव को कार्य परिषद के एजेंडे में शामिल कर लिया। इस मुद्दे पर 16 मार्च को निर्णय लिया जाना था लेकिन कोरोना वायरस के मद्देनज़र 16 को प्रस्तावित कार्यकारिणी परिषद की बैठक स्थगित कर दी गई। प्रस्ताव एजेंडे में शामिल हो चुका है। ऐसे में कार्यकारिणी परिषद की अगली बैठक में इस प्रस्ताव पर निर्णय ले लिया जाएगा।

शुरू हुआ विरोध

उधर छात्रों को जैसे ही इस बात की भनक लगी, उन्होंने विश्वविद्यालय के नाम बदले जाने के प्रस्ताव का विरोध शुरू कर दिया। बृहस्पतिवार, 19 मार्च को इसके विरोध में छात्रों ने छात्रसंघ भवन पर प्रदर्शन किया और कार्यवाहक कुलपति प्रो. आरआर तिवारी का पुतला फूंका।

छात्रों ने विरोध कर इस प्रस्ताव की निंदा की। उनका कहना है कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय का सवा सौ साल से पुराना इतिहास है और यह अपने नाम में ही तमाम स्वर्णिम इतिहास समेटे हुए है। विश्वविद्यालय का नाम ही उसकी धरोहर है और इससे छेड़छाड़ बर्दाश्त नहीं की जाएगी।

विश्वविद्यालय से एमए की पढ़ाई कर रहे छात्र अक्षत कहते हैं, “हमारा नाम हमारी पहचान होता है, इसी तरह इलाहाबाद विश्वविद्यालय का नाम ही इसकी पहचान है। इसे कोई कैसे बदल सकता है? ये विश्वविद्यालय किसी की निज़ी संपत्ति नहीं है, जो जब मर्ज़ी आए नाम बदल ले। अगर किसी को नाम बदलने का इतना ही शौक है तो वो अपना नाम बदले ले, हम अपने विश्वविद्यालय का नाम कभी नहीं बदलने देंगे।”

विश्वविद्यालय की पूर्व छात्रा ममता कहती हैं, “हम कभी कल्पना भी नहीं कर सकते की यूनिवर्सिटी का नाम बदला जाएगा। सालों से डिग्री इलाहाबाद विश्वविद्यालय के नाम से मिलती रही है, ऐसे में कोई नया नाम इसकी पहचान के साथ खिलवाड़ है। पहले शहर का नाम बदल दिया अब विश्वविद्यालय का नाम बदल रहे हैं, मतलब देश और डिग्री क्या अब नेताओं के कंट्रोल में है? याद रखिए आप नाम तो बदल देंगे, इतिहास नहीं बदल पाएंगे।”

ग़ौरतलब है कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय की स्थापना ब्रिटिश हुकूमत में 23 सितंबर 1887 को हुई थी। वर्ष 2005 में इसे केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा मिला। ‘पूरब का ऑक्सफ़ोर्ड’ के नाम से दुनिया में पहचान बनाने वाले इस विश्वविद्यालय की अपनी एक अलग पहचान है। ऐसे में नाम में बदलाव का फ़ैसला निश्चित ही आसान नहीं होने वाला है। छात्रों के विरोध के दौरान कार्य परिषद इस प्रस्ताव पर क्या फ़ैसला लेती है, उसी से आगे का भविष्य तय होगा।

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