NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
मज़दूर-किसान
भारत
राजनीति
क्या रुक पाएगी यूरिया की कालाबाज़ारी?
सरकार सब्सिडी पर बिकने वाले यूरिया की मात्रा हर एक किसान के लिए हर एक फसल सीजन में तय करने जा रही है। यानी एक किसान एक फसल सीजन में तयशुदा मात्रा से अधिक यूरिया नहीं खरीद सकेगा।
अजय कुमार
24 Oct 2020
यूरिया की कालाबाज़ारी
फोटो साभार : अमर उजाला

भारत में जहां भी लाइन लगाकर सरकारी सेवा पाने की प्रथा है, वहीं पर जमकर भ्रष्टाचार भी है। यूरिया की बोरी लेने के लिए रात रात भर जग कर किसानों द्वारा लगाई गई लंबी लाइनें आपने भी कभी ना कभी तो जरूर देखी होगी। हां यह जरूर हो सकता है कि आपने खाद के लिए लगाई गई लंबी लाइन देखकर कुछ सोचा नहीं होगा। अगर सोचा भी होगा तो यह तो जरूर ही नहीं सोचा होगा कि यूरिया के लिए लगाई गई लंबी लाइनें की जड़ें कहां तक जाती हैं। किन लोगों की वजह से किसान को परेशान होना पड़ रहा है? किन लोगों की वजह से यूरिया की ब्लैक मार्केटिंग हो रही है? यूरिया निर्धारित कीमत से अधिक कीमत में बेचा जा रहा है? चलिए मान लेते हैं आपने यह बात भी सोची होगी! अगर सोची होगी तो यह जवाब भी जान गए होंगे कि कौन से लोग इस अपराध के दोषी हैं? लेकिन यह जानने के बाद यह तो बिल्कुल तय है कि आपने उन लोगों का सामाजिक बहिष्कार करने का नहीं सोचा होगा। वे हमेशा आपके प्रतिष्ठा के पात्र बने होंगे और धीरे धीरे ऐसे ही कालाबाजारी कर पैसा इकट्ठा करते हुए आपके गांव के मुखिया से लेकर विधायक और सांसद बन गए होंगे।

बिहार में कार्यरत कृषि सहयोगी अरविंद कुमार कहते हैं कि गांवों में सरकारी सहकारी समिति के अध्यक्ष के पास 50 से 60 लोगों का आधार कार्ड होता है। ये लोग इस आधार कार्ड पर राशन से लेकर खाद तक मंगवा लेते हैं और इससे ब्लैक मार्केट में बेचकर  बुलेट से लेकर बोलेरो तक खरीदते हैं।

यूरिया की बिक्री से जुड़ी इन बातों का जिक्र किए बिना यूरिया के संदर्भ में सरकार जो योजना बनाने की तैयारी कर रही है उसके बारे में बातचीत करना अधूरा हो जाता। कृषि सहयोगी अरविंद कुमार से ही पता चला कि सरकार सब्सिडी पर बिकने वाले यूरिया की मात्रा हर एक किसान के लिए हर एक फसल सीजन में तय करने जा रही है। यानी एक किसान एक फसल सीजन में तयशुदा मात्रा से अधिक यूरिया नहीं खरीद सकेगा। अरविंद कुमार की बात की जब सरकारी दस्तावेजों में छानबीन की तो अरविंद कुमार की बात सही निकलकर आई। केंद्र सरकार यूरिया के संबंध में बिल्कुल ऐसी ही योजना बनाने जा रही है।

अब समझने वाली बात यह है कि आखिर केंद्र सरकार यूरिया के संदर्भ में ऐसा क्यों करने जा रही है? भारत में सभी खादों के बीच आधा से अधिक हिस्सा यूरिया का इस्तेमाल होता है। यानी यूरिया की खपत भारत के किसान दूसरे खादों के मुकाबले खेतों में बहुत अधिक करते हैं।

यूरिया की खपत को नियंत्रित करने के लिए भारत सरकार ने अभी तक कुछ महत्वपूर्ण कदम भी उठाए हैं। जैसे कि मार्च 2018 में सरकार ने यह शर्त रखी कि वही मैन्युफैक्चरर यूरिया सरकार की सब्सिडी हासिल कर सकेंगे जो यूरिया की बिक्री पॉइंट ऑफ सेल की मशीन के जरिए करेंगे। पॉइंट ऑफ सेल एक तरह की मशीन होती है जिसमें हर तरह की बिक्री रिकॉर्ड कर ली जाती है। साथ में सरकार ने यूरिया के खरीददारों के लिए यह नियम भी बनाया एक बार में

की खरीदारी में वह यूरिया की 100 बोरी से अधिक बोरी नहीं खरीद सकते हैं। महीने में कोई खरीदार कितनी बार खरीदारी कर सकता है सरकार ने यह भी तय कर दिया है। साथ में यह भी नियम बना कि किसी जिले के 20 सबसे अधिक खाद बेचने वाले सहकारी समिति के दुकानों की ट्रेकिंग की जाएगी।

इन सबके बावजूद यूरिया की खपत में कोई ज्यादा कमी नहीं आई। समझिए सब धान 22 पसेरी ही रह गया। सरकार ने खुद लक्ष्य रखा कि साल 2016-17 में यूरिया की खपत 30 मिलियन टन हुई थी। यानी 3 करोड़ टन हुई थी। इसे कम कर साल 2019-20 में आधा यानी डेढ़ करोड़ टन कर देना है। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। हुआ कि साल 2019 -20 में पूरे देश भर में 3 करोड़ 30 लाख टन यूरिया की खपत हुई। यह यूरिया के संदर्भ में सरकारी इरादों पर पूरी तरह से पानी फेर देने जैसा था।

यूरिया के लिए बनाए गए नियम कानून धरे के धरे रह गए। जमकर तिकड़म खेला गया और जमकर यूरिया की खरीदारी हुई। इसमें कोई रोक नहीं लग पाया। भ्रष्टाचार भी जमकर हुआ। प्रेमचंद पाल कहते हैं कि यूरिया के खेल में नेता से लेकर अफसर और अफसर से लेकर दुकानदार तक सब शामिल रहते हैं सबको कमीशन पहुंचता है। कम दाम पर सरकार से यूरिया खरीद कर अधिक दाम पर बेची जाती है।

266 रुपये में खरीदी गई यूरिया की बोरी कालाबाजारी में 450 रुपये से 500 रुपये में बिकती है। तो सोचिए यूरिया की खपत कैसे कम होगी।

लेकिन भ्रष्टाचार के अलावा यूरिया की खपत के पीछे कुछ और संरचनात्मक कारण भी हैं।

खाद के तौर पर खेती किसानी में तीन तरह के खाद का इस्तेमाल किया जाता है। मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ाने के लिए यूरिया का इस्तेमाल किया जाता है। फास्फेट की मात्रा बढ़ाने के लिए डाई अमोनियम फास्फेट का इस्तेमाल किया जाता है। जिसे डीएपी कहा जाता है। और पोटाश की मात्रा बढ़ाने के लिए म्यूरेट आफ पोटाश का इस्तेमाल किया जाता है।

सरकार ने तय किया है कि इन तीनों खादों का इस्तेमाल जमीन में 4:2:1 के हिसाब से होना चाहिए। लेकिन इन तीनों का इस्तेमाल इस तरीके से नहीं होता है। हाल फिलहाल मिट्टी में इन तीनों खादो के इस्तेमाल 6.7:2.4:1 है। यह पूरी तरह से असंतुलित अनुपात है.और साफ पता चलता है कि यूरिया का इस्तेमाल सबसे अधिक हो रहा है।

इसके पीछे की वजह यह है कि केंद्र सरकार यूरिया का दाम बहुत कम तय रखती है। भले ही उत्पादन की लागत और वितरण की लागत बढ़ जाए लेकिन केंद्र सरकार यूरिया की कीमत कम रखती है। जो बढ़ोतरी होती है, उसे सब्सिडी के जरिए मैन्युफैक्चर को दे दिया जाता है। साल 2002 के बाद यूरिया की कीमत में इजाफा ही नहीं हुआ है। यानी उत्पादन की लागत में बढ़ोतरी का वहन केंद्र सरकार ने किया है। लेकिन ऐसी ही नीति केंद्र सरकार फास्फेट और पोटाश के खाद के लिए नहीं अपनाती है। सब्सिडी देती है लेकिन कीमत इतना कम नहीं रखती कि उत्पादन का लागत और वितरण से जुड़ा अधिक खर्चा केंद्र सरकार को ही उठाना पड़े। ऐसा भी नहीं है कि साल 2002 के बाद फास्फेट और पोटाश की कीमतों में बढ़ोतरी नहीं हुई हो। इसलिए पोटाश और फास्फेट की कीमत बढ़ती रहती हैं। किसानों ने यूरिया के मुकाबले इनका कम इस्तेमाल किया है और यूरिया का खूब इस्तेमाल किया है। यह भी वजह है कि यूरिया की अधिक खपत होती है।

तो इस तरीके से यूरिया का तंत्र स्वाभाविक तौर पर ऐसा है जहां पर यूरिया की बिक्री खूब होती है। जमीन की उर्वरा ताकत अधिक यूरिया की वजह से कमजोर भी होती है। और यह तंत्र भ्रष्टाचार का भी जरिया है। मौजूदा समय में एक आधार कार्ड के जरिए किसान या गैर किसान कोई भी यूरिया की जितनी चाहे उतनी बोरी खरीद सकता है। लेकिन अब सरकार इस व्यवस्था को बदलने की योजना बना रही है। अब केवल किसान ही अपनी किसानी के लिए निर्धारित प्रमाण देने के बाद अपने आधार कार्ड के जरिए निर्धारित यूरिया की बोरी खरीद सके, ऐसी योजना बनाने के बारे में सरकार विचार कर रही है। अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या यूरिया की खपत कम हो पाती है या नहीं?

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र में पीएचडी शोधार्थी उत्तम कुमार अपने ब्लॉग में लिखते हैं कि सरकार की योजना बहुत मुश्किल लग रही है। पहली बात तो यह बिल्कुल ठीक है कि यूरिया के बाजार में कालाबाजारी बहुत हो रही है। सरकार यूरिया की सब्सिडी पर सालाना तकरीबन 45 हजार से लेकर 50 हजार करोड रुपये खर्च करती है। इसमें से तकरीबन 30 फ़ीसदी कालाबाजारी में गायब हो जाता है। यानी ईमानदार करदाताओं का 13 हजार करोड़ रुपये से लेकर 15 हजार करोड रुपये तक यूरिया की सब्सिडी में जाता तो है लेकिन कालाबाजारी की वजह से पूरी तरह से बर्बाद भी हो जाता है। इसे रोकने के लिए सरकार द्वारा कठोर कदम उठाया जाना बहुत जरूरी है।

लेकिन सरकार यूरिया की कालाबाजारी रोकने के लिए केवल किसानों को आधार कार्ड के जरिये निर्धारित यूरिया की बोरी से अधिक बोरी नहीं दिए जाने का जो नियम ला रही है, उसका लागू हो पाना नामुमकिन लगता है। भारत में तकरीबन 2 लाख 30 हजार सहकारी समितियों की रिटेल दुकाने हैं जहां पर यूरिया बिकता है। तकरीबन भारत की 40 फ़ीसदी से अधिक जनता खेती किसानी से जुड़ी हुई है। सब अलग-अलग मात्रा में अलग-अलग खेतों के अनुसार यूरिया का इस्तेमाल करते हैं। इनके लिए खाद की सीमा तय करना बहुत मुश्किल काम है। प्रशासन को सभी किसानों की जमीनों का दस्तावेज लेना होगा। उसके अनुसार निर्धारण करना होगा। सबके लिए एक ही तरह का नियम नहीं बनाया जा सकता है। और अगर अलग-अलग नियम ही बनाए गए तो भी भ्रष्टाचार करने वाले इस जटिल स्थिति का फायदा उठाकर कालाबाजारी करने का रास्ता आसानी से निकाल लेंगे।

किसान प्रमोद चौहान कहते हैं कि यूरिया के लिए अबकी बार सुबह सात बजे से लाइन में खड़े थे और शाम के पांच बज रहे थे तब तक नंबर नहीं आया था। हमको तो केवल एक बोरी ही दी गई। जुगाड़ वाले एक से डेढ़ ट्रॉली खाद लेकर चले गए लेकिन जो लाइन लगाये थे, उन्हें उनके जरूरत के हिसाब से नहीं मिला। अब जो नया नियम आ रहा है उसके बारे में हमें ज्यादा पता नहीं। लेकिन जैसा आप बता रहे हैं उस हिसाब से कालाबाजारी तो नहीं रुकने वाली। हमारे पास 5 एकड़ जमीन है। हमें यूरिया चाहिए तकरीबन 300 किलो। 45 किलो बोरी के हिसाब से यह हुआ तकरीबन 7 बोरी। हमें सात बोरी यूरिया कभी नहीं मिलेगा, लेकिन जिसके पास 2 एकड़ से भी कम जमीन होगी और उसे अपने आधार कार्ड पर 10 बोरी यूरिया मिल जाएगा। यही यूरिया कालाबाजारी में और महंगे दाम पर बिकने लगेगा। 

Urea
Urea black marketing
farmer
Agriculture
Urea Subsidy
Corruption
modi sarkar
BJP
farmer crises
Government subsidy on Urea

Related Stories

किसानों और सत्ता-प्रतिष्ठान के बीच जंग जारी है

हिसारः फसल के नुक़सान के मुआवज़े को लेकर किसानों का धरना

कार्टून क्लिक: किसानों की दुर्दशा बताने को क्या अब भी फ़िल्म की ज़रूरत है!

तमिलनाडु: छोटे बागानों के श्रमिकों को न्यूनतम मज़दूरी और कल्याणकारी योजनाओं से वंचित रखा जा रहा है

बिहार : गेहूं की धीमी सरकारी ख़रीद से किसान परेशान, कम क़ीमत में बिचौलियों को बेचने पर मजबूर

आख़िर किसानों की जायज़ मांगों के आगे झुकी शिवराज सरकार

किसान-आंदोलन के पुनर्जीवन की तैयारियां तेज़

सार्वजनिक संपदा को बचाने के लिए पूर्वांचल में दूसरे दिन भी सड़क पर उतरे श्रमिक और बैंक-बीमा कर्मचारी

झारखंड: केंद्र सरकार की मज़दूर-विरोधी नीतियों और निजीकरण के ख़िलाफ़ मज़दूर-कर्मचारी सड़कों पर उतरे!

दो दिवसीय देशव्यापी हड़ताल को मिला व्यापक जनसमर्थन, मज़दूरों के साथ किसान-छात्र-महिलाओं ने भी किया प्रदर्शन


बाकी खबरें

  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष: महंगाई, बेकारी भुलाओ, मस्जिद से मंदिर निकलवाओ! 
    21 May 2022
    अठारह घंटे से बढ़ाकर अब से दिन में बीस-बीस घंटा लगाएंगेे, तब कहीं जाकर 2025 में मोदी जी नये इंडिया का उद्ïघाटन कर पाएंगे। तब तक महंगाई, बेकारी वगैरह का शोर मचाकर, जो इस साधना में बाधा डालते पाए…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    ज्ञानवापी पर फेसबुक पर टिप्पणी के मामले में डीयू के एसोसिएट प्रोफेसर रतन लाल को ज़मानत मिली
    21 May 2022
    अदालत ने लाल को 50,000 रुपये के निजी मुचलके और इतनी ही जमानत राशि जमा करने पर राहत दी।
  • सोनिया यादव
    यूपी: बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था के बीच करोड़ों की दवाएं बेकार, कौन है ज़िम्मेदार?
    21 May 2022
    प्रदेश के उप मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री ब्रजेश पाठक खुद औचक निरीक्षण कर राज्य की चिकित्सा व्यवस्था की पोल खोल रहे हैं। हाल ही में मंत्री जी एक सरकारी दवा गोदाम पहुंचें, जहां उन्होंने 16.40 करोड़…
  • असद रिज़वी
    उत्तर प्रदेश राज्यसभा चुनाव का समीकरण
    21 May 2022
    भारत निर्वाचन आयोग राज्यसभा सीटों के लिए द्विवार्षिक चुनाव के कार्यक्रम की घोषणा  करते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश समेत 15 राज्यों की 57 राज्यसभा सीटों के लिए 10 जून को मतदान होना है। मतदान 10 जून को…
  • सुभाष गाताडे
    अलविदा शहीद ए आज़म भगतसिंह! स्वागत डॉ हेडगेवार !
    21 May 2022
    ‘धार्मिक अंधविश्वास और कट्टरपन हमारी प्रगति में बहुत बड़े बाधक हैं। वे हमारे रास्ते के रोड़े साबित हुए हैं। और उनसे हमें हर हाल में छुटकारा पा लेना चाहिए। जो चीज़ आजाद विचारों को बर्दाश्त नहीं कर सकती,…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें