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आज़ादी के बाद की सबसे अधिक बेरोज़गारी से जूझ रहीं हैं औरतें: मरियम ढवले

शैली स्मृति व्याख्यान में "महिलायें; शोषण के पहले निशाने पर हैं तो प्रतिरोध के भी अग्रिम मोर्चे पर हैं" विषय पर बोलते हुए मरियम ढवले ने कहा कि बीमारी के पहले से औरतों को काम नहीं मिल रहा है। महामारी में और स्थिति बिगड़ गई है।
मरियम ढवले

शैलेन्द्र शैली स्मृति व्याख्यान 2021 में बोलते हुए अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति की महासचिव मरियम ढवले ने उदारीकरण के दौर में आमतौर से और मोदी राज में खासतौर से महिलाओं की स्थिति भयावह रूप से खराब होने की बात कही। उन्होंने कहा कि कोरोना का बहाना लेकर जो पहलकदमी सरकार कर रही है वह महिलाओं की  परेशानी और भी बढ़ा रही है। इनके आत्मनिर्भर भारत का अर्थ भारत की आत्मनिर्भरता नहीं है जनता को बाजार के हाल पर छोड़ देना और सरकार का सारी जिम्मेदारी से हाथ खींच लेना है। जैसे महामारी के असर से जनता को बचाने के लिए अमरीका ने जीडीपी का 27 प्रतिशत हिस्सा लगाया और लोगों के खातों में डाला। ब्रिटेन ने 17 प्रतिशत डाला और हमारी सरकार ने 2 प्रतिशत से भी कम लगाया। ऊपर से किसी भी क्षेत्र में बजट नहीं बढाया। स्वास्थ्य में, शिक्षा में किसी में भी नहीं। उलटे मनरेगा में कटौती कर ली गयी।

उन्होंने कहा कि बीमारी के पहले से औरतों को काम नहीं मिल रहा है। महामारी में और स्थिति बिगड़ गई है। घरेलू कामगार, मनरेगा कामगार, असंगठित क्षेत्र की मजदूर सबसे अधिक मुश्किल में हैं और सड़कों पर आ रही हैं। काम न होने से उसकी जिंदगी बेहद असुरक्षित हो गयी है। सरकार कह रही है कि मुफ्त अनाज देने वाले हैं कितना? 5 किलो। और वह भी केवल नवंबर तक। लेकिन सूखे अनाज से तो कुछ नहीं होता। उसके साथ जो जिंस देने होते हैं वह नहीं दिये जा रहे हैं। पेट्रोल डीजल के दाम आसमान छू रहे हैं। अपनी जिंदगी चलाने के लिये सम्मान की जिंदगी जीने के लिये जरूरत की चीजें नहीं मिल रही हैं। इन्सानी जिंदगी के सम्मान के लिये आवश्यक चीजें गायब होती जा रही हैं। बस्तियों में, गांवों में अनाज की भारी कमी है। नतीजा यह निकला कि आज भारत दुनियां का सबसे भूखा देश बन गया है। वैश्विक भूख सूचकांक (ग्लोबल हंगर इंडेक्स) के अनुसार 107 देशों में  भारत का 94वां स्थान है।

गैस सिलेंडर उज्ज्वला योजना की ठगी उजागर करते हुए मरियम ढवले ने कहा कि इसके जरिये आधार कार्ड वगैरा जोड़कर कई लोगों को गैस सब्सिडी से बाहर कर दिया गया।  नतीजे में 22,635 करोड रूपये की सब्सिडी आज 3559 हजार करोड़ पर आ गयी है। इसका मतलब कुकिंग गैस की सब्सिडी खत्म करके औरतों की जेब से पैसे निकाला जा रहा है। अब सिलेंडर 1000 रुपये के आसपास आ रहा है। उज्ज्वला का कोई नाम नहीं लेता है। सबका साथ सबका विकास कह कह कर पेट्रोल पर टैक्स लगा कर ढाई लाख करोड़ रुपये कमा रही है। जब जनता बेरोजगार है उसकी जेब से पैसा निकाला जा रहा है चोरी किया जा रहा है तब पूंजीपतियों का टैक्स 1.45 लाख करोड़ रुपये माफ कर दिया गया। मतलब सीधा है कि जनता की जेब से निकाल कर पूंजीपति की जेब भरी जा रही है।

"महिलायें; शोषण के पहले निशाने पर हैं तो प्रतिरोध के भी अग्रिम मोर्चे पर हैं" विषय पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि आज 2.5 करोड नये बेरोजगार देश में घूम रहे हैं। ऊपर से मनरेगा में कटौती कर दी। 2020-21 और 21-22 के बजट में उन्होंने प्रस्ताव किया है कि जहां पर अधिकतर औरतों को सुरक्षित रोजगार मिलता है उन पब्लिक सैक्टर के रोजगारों में जैसे बैंक, एलआईसी, स्टील, इलेक्ट्रिसिटी, सीमेंट, रेलवे का निजीकरण करके पैसा खड़ा करेंगे। पूंजीपतियों का कर्ज माफ करेंगे। उन्होंने पूछा कि जनता के पैसे से खड़ी की हुयी संपत्ति को बेचने का अधिकार मोदी और शाह को किसने दिया। शिक्षा,बैंक आदि ये रोजगार महिलाओं के लिये सुरक्षित थे यद्यपि ये कम हैं लेकिन हैं तो सही।  वहां पर भी यदि रोजगार खत्म हो गया तो क्या होगा। नये कानूनों में बच्चा होने के बाद मिलने वाली छुट्टी में कटौती की गयी है। यदि महिला छुट्टी लेती है तो उसे नौकरी से निकालने का प्रावधान कर दिया गया है। इसका मतलब औरतों की बेरोजगारी बढेगी।

उन्होंने कहा कि जैसे जैसे रोजगार में कटौती होगी वैसे वैसे महिलाओं की असुरक्षा, मजबूरी, गरीबी, लाचारी, बेहाली बढ़ेगी। क्योंकि आर्थिक रूप से स्वतंत्र होना एक सम्मानजनक जिंदगी के लिये जरूरी है। इसलिये रोजगार का संघर्ष, औरतों को बराबरी लेने का संघर्ष एक महत्वपूर्ण संघर्ष हैं। आज बड़ी संख्या में औरतें निकल रहीं हैं। मोदी को शर्म आनी चाहिये कि जब जनता की बदहाली बढ़ रही है तब अंबानी और अडानी की संपत्ति करोडों रूपये महामारी के दौरान बढ गयी है। निजीकरण का एक दूसरा अर्थ भी है। निजीकरण का अर्थ केवल किसी इंडस्ट्री को निजी हाथों में देना नहीं है। बल्कि महंगा होना भी है।

शिक्षा के निजीकरण से और महंगी हुयी शिक्षा का अर्थ लड़कियों में अशिक्षा का बढ़ना है। आजादी के पहले ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई फुले ने जो आंदोलन चलाया था उसे ही आगे बढाना होगा।  लॉकडाउन में ऑनलाइन शिक्षा के दौर में गरीब का बच्चा, लड़कियां शिक्षा से बाहर हो गये हैं। एक आदिवासी गांव का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र के आचाड गांव में जब हम गये तो वहां की सरपंच हमसे मिलने आईं। उन्होंने कहा कि कैसे भी करके स्कूल चालू करवाइये क्योंकि यहां का एक भी बच्चा पिछले दो सालों में कुछ पढ़ नहीं पाया है क्योंकि गांव तक इंटरनेट है ही नहीं। ऐसे तो कई गांव और कस्बे होंगे। कई शहरों की कई गरीब बस्तियां होंगी।

उन्होंने बदले जा रहे पाठ्यक्रमों के विनाशकारी असर पर भी चिंता जताई। उन्होंने कहा कि बच्चों की सोच को नींव कमजोर करने के लिये मनुस्मृति जैसे पुस्तकों का आधार लिया जा रहा है। पाठ्य पुस्तकों में यह डाला जा रहा है कि दहेज देना हमारी संस्कृति का हिस्सा है और जो परिवार दहेज नहीं देता वह देशद्रोही होता है। यह क्या पढ़ाने वाले हैं हमारे बच्चों को। और यदि बच्चों के नाजुक दिमागों में ऐसी विषैली विचारधारा को रोपा जायेगा तो वह बडे होने पर अपनी पत्नी और अन्य महिलाओं के साथ कैसा व्यवहार करेगा यह सोचा जा सकता है। अंधविश्वास को पाठ्य पुस्तकों में घुसाया जाता है।  सांप्रदायिक मान्यतायें उसमें घुसाई जा रही हैं। आज़ादी के 74वें साल में  शर्म की बात है कि जो उस वक्त हमारे संविधान का हमारी प्रगतिशील सिद्धांतों का विरोध कर रहे थे वे आज सत्ता में हैं।

उन्होंने बताया कि लक्ष्यद्वीप के अंदर कैसा जुल्म ढाया जा रहा है। अपने पूंजीपति दोस्तों को यह सरकार उस द्वीप की पूरी संपत्ति को दे देना चाहते हैं। उसका विरोध करने वाले हर किसी को दबाया जा रहा है। लेकिन वे लड़ रहे हैं, वहां पर एक फिल्मकार आयशा सुल्ताना ने इसके खिलाफ आवाज उठायी तो उसके खिलाफ देशद्रोह की धारा लगा दी।  सीएए और एनआरसी के खिलाफ औरतों ने आवाज उठायी। किसान आंदोलन में भी महिलायें सक्रिय हैं क्योंकि वे जानती हैं कि जमीन जाने का मतलब औरतों की बदहाली है। हर आंदोलन में हर मोड़ पर वे सक्रिय हैं। किसान आंदोलन में महापंचायत में वे भाग ले रही हैं उसका नेतृत्व कर रही हैं। खेती में 70 प्रतिशत काम औरते करती हैं जैसे वनोपज जमा करना, पशुपालन करना जिसका उसे कोई मुआवजा नहीं मिलता लेकिन ये सारे काम खेती से जुड़े काम हैं। क्योंकि जमीन के साथ उसकी जिंदगी, उसका घर जुडा हुआ है। और किसान आंदोलन में भी वे बड़ी संख्या में भाग ले रही हैं।

उन्होंने कहा कि हिंसा मनुवादी सोच की वजह से बढ़ रही है, जो कहता  है कि औरतें सिर्फ उपभोग की वस्तु हैं। अभी दिल्ली के अंदर एक दलित बच्ची पर बलात्कार हुआ। बलात्कारी बेधड़क हैं क्योंकि उन्हें उन लोगों से संरक्षण मिलता है जो ये बाते कर रहे हैं कि औरतों का स्थान घर में है औरतों को बराबरी का अधिकार नहीं मिलना चाहिये। औरतें दोयम स्थान पर हैं। औरतों का स्थान इंसान के नाते नहीं है।

उन्होंने साफ़ किया कि यदि यह बढ़ेगा तो औरतें इसे  सहन नहीं करेगी। मनुवाद को टक्कर देते देते औरतों ने अपनी जिंदगी बनायी है। और यदि उसी आग में फिर से औरतों को ढकेलने की कोशिश की जायेगी तो उसे औरतें सहन नहीं करेंगी। वे एकजुट होंगी और एक नए  भारत के निर्माण के लिये, भारत को बचाने के लिये किये जाने वाले आंदोलन में हजारों लाखों की संख्या में शामिल होंगी।

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