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योगीराज: 'यूपी में मज़हब और जाति के आधार पर माफ़ियाओं पर एक्शन!'

पूर्व आईपीएस अमिताभ ने पूछा- संगीन मुक़दमे वाले अपराधियों का नाम सूची से ग़ायब क्यों?
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फ़ोटो साभार: PTI

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने कुख्यात अपराधियों पर सख्त कार्रवाई के लिए माफ़ियाओं जो सूची जारी की है उस पर पूर्व आईपीएस अमिताभ ठाकुर ने बड़ा सवाल खड़ा किया है। उनका मानना है कि योगी सरकार मजहब और जाति के आधार पर माफ़ियाओं को अपने टारगेट पर ले रही है। वह कहते हैं, "माफ़िया और अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई देश, समाज व प्रशासन के लिए बेहद जरूरी है, लेकिन जाति-संप्रदाय के आधार पर किसी अपराधी को टारगेट किया जाना ठीक नहीं है। अगर किसी खास व्यक्ति को इंगित करते हुए कार्रवाई की जाती है तो उसे निष्पक्ष नहीं माना जा सकता है। अंग्रेजी में इसे प्रतिशोध की भावना (पर्सनल वेंडेटा) से किए गए कार्य कहते हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसे अपना बनाम मुख्तार, अपना बनाम अतीक बना दिया है।"

पूर्व आईपीएस अमिताभ ठाकुर ने दूसरा बड़ा सवाल योगी सरकार द्वारा जारी माफ़ियाओं की सूची पर खड़ा किया है। वह कहते हैं, "बनारस परिक्षेत्र में एक दर्जन से ज्यादा अपराधी हैं जिन पर संगीन मुकदमे दर्ज हैं, लेकिन उनके नाम छोड़ दिए गए हैं। अतीक अहमद के बाद सरकार ने मुख्तार अंसारी पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया है। समूची कार्रवाई धार्मिक आधार पर की जा रही है, जिससे भारत की साख पर बट्टा लग रहा है।"

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में कुछ दिन पहले ही पुलिस अभिरक्षा में माफ़िया अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ अहमद का कत्ल हुआ तो खून के कुछ छींटे खाकी वर्दी पर पड़ीं तो कुछ योगी सरकार पर भी। अतीक अहमद की हत्या का मामला अभी ठंडा पड़ा भी नहीं कि योगी सरकार ने बांदा जेल में बंद मुख्तार अंसारी को निशाने पर ले लिया। उसकी पत्नी अफ्शा अंसारी की गिरफ्तारी के लिए मऊ जिला पुलिस ताबड़तोड़ छापेमारी कर रही है। गाजीपुर स्थित उसके आवास को कई मर्तबा खंगाला जा चुका है। मऊ जिला पुलिस ने अफ्शा अंसारी के खिलाफ लुकआउट नोटिस भी जारी कर दिया है। अफ्शा और उसके परिवार के कई सदस्यों पर संगीन आपराधिक मामले दर्ज हैं। सब के सब फरार चल रहे हैं। मुख्तार की पत्नी को पकड़वाने के लिए मऊ जिला पुलिस ने 25 हजार और वाराणसी के आईजी ने 50 हजार का ईनाम घोषित कर रखा है। उधर, प्रयागराज में अतीक अहमद की पत्नी शाइस्ता परवीन को पकड़ने के लिए भी पुलिस ताबड़तोड़ छापेमारी कर रही है।

योगी के सुशासन पर सवाल

पूर्व आईपीएस अमिताभ ठाकुर ने यूपी के मौजूदा हालात पर एक लेख लिखा, जिसमें उन्होंने कहा है, "उत्तर प्रदेश में अब मुद्दा शासन और सुशासन नहीं रह गया है। सब कुछ राजनीतिक कारणों से हो रहा है। शायद वे इसमें सफल भी रहेंगे। ऐसा भी लगता है कि वोटरों के रुझान को देखते हुए सारी कार्रवाई हो रही है। यह स्थिति दुखद है। चूंकि जिस विश्वास के साथ जनता ने उन्हें सत्ता की चाबी सौंपी थी वे अब उसका दुरुपयोग कर रहे हैं। हालांकि इसका एक पहलू यह भी है कि जो इनके अपने लोग हैं, उन्हें देखा जा रहा है। अपने वोटरों को देखा जा रहा है। बस मैं और मेरा वोटर, हमारी सत्ता और हमारी सीटें। इसमें हो सकता है कि ये सफल भी हो जाएं। कहा भी गया है कि ‘डिवाइड एंड रूल’ एक सफल राजनीतिज्ञ की पॉलिसी होती है, लेकिन न्याय का निरंतर गला घोंटा जा रहा है।"

"मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इन दिनों स्टेटसमैन की तरह काम कर रहे हैं। हालांकि कभी हमने नहीं समझा कि वे स्टेट्समैन हैं। अब सीधे-सीधे किसी भी हद तक जाकर न्याय का गला घोंटने का काम किया जा रहा है। यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है। इतिहास गवाह है कि जब तक जिसके पास बहुमत रहता है वह आसमान में बेपरवाह होकर उड़ान भरता रहता है। निश्चित रूप से देर-सबेर यह भ्रम टूटता है, लेकिन जो कुछ हो रहा है वह सत्ता का विकृत रूप है। जहां तक मुख्तार अंसारी और अतीक के अपराधों की बात है तो और भी नाम लिए जाने चाहिए। इनमें बृजेश सिंह, सुजीत सिंह, सुशील सिंह, विनीत सिंह, धनंजय सिंह, अभय सिंह, राजा भइया, हरिशंकर तिवारी, संजय राठी और कुछ दिन पहले तक नाम आते थे- बृजभूषण शरण सिंह, विनोद सिंह उर्फ पंडित सिंह (अब दिवंगत), डीपी यादव आदि का नाम भी मुख्यमंत्री के लिस्ट में होना चाहिए।"

मज़हब के आधार पर एक्शन अनुचित

पूर्व आईपीएस अमिताभ आगे लिखते हैं, "मैं यह कहूंगा कि उत्तर प्रदेश की धरती अब उतनी उर्वरक रही हो या नहीं रही हो, लेकिन माफ़िया का उदय कराने, उन्हें पुष्पित-पल्लवित करने, महिमामंडित करने में काफी उर्वरक है। सत्ता ने भी इन्हें पूरी ऊर्जा दी है। मैं पहले पुलिस में था। पुलिस में एसपी, एसपी क्राइम, डीएसपी कई पद होते हैं। उसी तरह माफ़िया में भी कई पद देखे जा रहे हैं। मुख्तार ने जो अपराध किए हैं उसे उसके लिए दंड मिलना चाहिए। अतीक ने जो अपराध किए उसका भी दंड मिलना चाहिए, लेकिन अभी जो कार्य हो रहे हैं वे अपराध को खत्म करने के लिए नहीं, बल्कि व्यक्ति विशेष और एक खास समुदाय से जुड़े माफ़ियाओं को समाप्त करने के लिए किए जा रहे हैं। मुख्तार अंसारी आज भी वही है, जो वह पहले था। अतीक भी वही अतीक था, जो पहले था। ऐसे लोगों के खिलाफ एक्‍शन लिया जाना चाहिए। आपने एक्शन लिया, लेकिन जब सत्ता आपके पास है। ईश्वरीय न्याय का अधिकार मिला तो आपको समदर्शी होना चाहिए था।"

"सत्ता की चाबी जिस किसी के पास रही हो, अलग-अलग लोगों ने अपने मुताबिक अलग-अलग फार्मूले बनाए। उसी पर चलते रहे। अभी जो तरीका दिख रहा है वह यह कि हम ‘मास’ को देखें, बड़े पक्ष को देखें और अपने लोगों को देखें। दूसरे वर्ग को न केवल दबाया जा रहा है, बल्कि यह संदेश भी दिया जा रहा है कि हमने उसे दबा दिया। अभी यह फार्मूला हिट दिख रहा है। उसके परिणाम-दुष्परिणाम की चिंता किसी को नहीं है। हमारा मानना है कि सत्ता हर व्यक्ति की होनी चाहिए। सत्ता पाने के लिए सत्ता का उपयोग नहीं होना चाहिए। अभी सत्ता का सबसे घटिया स्वरूप दिख रहा है, ऐसा मेरा स्पष्ट मानना है। विष वमन करते-करते एक पक्ष अंधभक्ति में है। वाहवाही हो रही है। वहीं एक बड़ा वर्ग विचलित है, कष्ट में है, परेशान है। यह लोकतंत्र और उसकी प्रक्रिया का हिस्सा नहीं बनना चाहिए। इस पर रोक लगनी चाहिए।"

पूर्व आईपीएस अमिताभ ठाकुर यूपी के ऐसे शख्स हैं जिन्हें योगी सरकार एक मर्तबा ख़फ़ा होकर जेल भेज चुकी है। इसके बावजूद वह पुलिस की नाइंसाफी पर लगातार तल्ख सवाल उठाते रहते हैं। इन्होंने अधिकार सेना का गठन किया है, जिसके वह राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं।

वह ‘न्यूज़क्लिक’ से कहते हैं, "संगठित अपराध में शामिल होना माफ़िया होने की पहली शर्त है। फिर स्थानीय राजनीति और प्रशासन में दख़ल रखना और ग़ैर-क़ानूनी काले धन को क़ानूनी धंधों में लगाकर सफ़ेद पूंजी में तब्दील करना दूसरी दो ज़रूरी बातें हैं। जब यह तीनों फ़ैक्टर मिलते हैं, तभी किसी गैंगस्टर या अपराधी को 'माफ़िया' कहा जा सकता है।"

पूर्व आईपीएस अमिताभ ठाकुर ने कुछ रोज पहले एक वीडियो जारी करते हुए कहा है, "यूपी सरकार ने माफ़िया और अपराधियों की जो सूची जारी की है, उसमें कई लोगों के नाम राजनीतिक वजहों से जानबूझकर छोड़ दिए गए हैं। इस सूची में तमाम ऐसे नाम जानबूझ कर छोड़ दिए गए हैं, जिन पर दर्जनों संगीन मुकदमे हैं। इनके आपराधिक शोहरत से सभी परिचित हैं।" भाजपा के बाहुबली विधायक सुशील सिंह का हवाला देते हुए अमिताभ कहते हैं, "चंदौली के सैयदराजा इलाके के विधायक सुशील सिंह पर 25 से अधिक मुकदमे रहे हैं, लेकिन उनका नाम सूची से गायब है। इसी तरह डबल मर्डर में सजायाफ्ता और 25 मुकदमे वाले अजय मरदह, दर्जनों मुकदमों वाले सुजीत सिंह बेलवा, फिल्म अभिनेत्री मनीषा कोईराला के मैनेजर के हत्यारे अबू सलेम के साथी उपेंद्र सिंह गुड्डू, चिरईगांव के पूर्व प्रमुख पप्पू सिंह भौकाली और बाहुबली के रूप में ज्ञात एमएलसी विनीत सिंह का नाम सूची से गायब हैं। इतना ही नहीं, बृजेश सिंह के धुर विरोधी वर्षों से फरार इंद्रदेव सिंह उर्फ बीकेडी, जेल से भागे हुए सुनील यादव और फरार अजीम के नाम भी लिस्ट से गायब हैं। यही स्थिति पूरे प्रदेश में है।"

29 सीटों पर असर डालते हैं माफ़िया

उत्तर प्रदेश के 24 पूर्वी ज़िलों की 29 लोकसभा सीटों वाला पूर्वांचल हर बड़े चुनाव में अपने भौगोलिक दायरे से आगे बढ़कर नतीजों और राजनीतिक समीकरणों को प्रभावित करता रहा है। अगले साल लोकसभा का चुनाव होना है और सियासी दल अपने हिसाब से गोटी फिट करने में जुट गए हैं। ख़ास बात यह है कि पूर्वांचल की राजनीति में संगठित माफ़िया सरगनाओं का दबदबा रहा है। पूर्वी उत्तर प्रदेश के राजनीतिक नक़्शे को उठाकर देखें तो माफ़ियाओं के प्रभाव वाले इलाके उभरते हैं और देखते ही देखते पूरे पूर्वांचल का नक़्शा रंग देते हैं।

योगी सरकार ने कुछ रोज पहले यूपी के माफ़ियाओं की जो सूची तैयार की है उसमें पूर्वांचल के नौ माफ़िया पुलिस के रडार पर हैं। वाराणसी कमिश्नरेट के सिर्फ तीन माफ़िया- बृजेश सिंह, सुभाष सिंह ठाकुर और अभिषेक सिंह हनी उर्फ जहर का नाम सार्वजनिक किया गया है। इनके खिलाफ मुकदमों की लंबी फेहरिस्त है। बृजेश सिंह अगस्त 2022 में इलाहाबाद हाईकोर्ट से जमानत पर छूटा था। माफ़िया सुभाष सिंह ठाकुर फतेहगढ़ जेल में बंद है, लेकिन पिछले दो साल से वह उपचार के नाम पर बीएचयू के सर सुंदर लाल अस्पताल में भर्ती है। अभिषेक सिंह हनी उर्फ जहर बागपत और मुख्तार अंसारी बांदा जेल में बंद हैं। त्रिभुवन सिंह उर्फ पवन सिंह मिर्जापुर और पूर्व विधायक विजय मिश्रा आगरा जेल में है। ध्रुव सिंह उर्फ कुंटू सिंह कासगंज और अखंड प्रताप सिंह व रमेश सिंह काका बरेली जेल में बंद हैं।

1980 के दशक में गोरखपुर के 'हाता वाले बाबा' के नाम से पहचाने जाने वाले हरिशंकर तिवारी से शुरू हुआ राजनीति के अपराधीकरण का यह सिलसिला बाद के सालों में मुख़्तार अंसारी, बृजेश सिंह, विजय मिश्रा, सोनू सिंह, विनीत सिंह और फिर धनंजय सिंह जैसे कई हिस्ट्रीशीटर बाहुबली नेताओं से गुज़रता हुआ आज भी पूर्वांचल में फल-फूल रहा है। गोरखपुर, कुशीनगर, महराजगंज से शुरू होने वाला राजनीतिक बाहुबल का यह प्रभाव, आगे फ़ैज़ाबाद, अयोध्या, प्रतापगढ़, मिर्ज़ापुर, ग़ाज़ीपुर, मऊ, बलिया, भदोही, जौनपुर, सोनभद्र और चंदौली से होता हुआ बनारस और प्रयागराज तक जाता है।

यूपी पुलिस का दावा है कि शासन ने 65 माफ़ियाओं की जो सूची जारी की है, उनकी निगरानी की जाएगी। इसकी जिम्मेदारी कमिश्नरेट पुलिस के साथ एसटीएफ को सौंपी गई है। वजह, शातिर माफ़ियाओं के अपराधों की फेहरिस्त काफी लंबी है। पुलिस रिकार्ड के मुताबिक, भदोही के गोपीगंज थाना के कवलापुर निवासी व पूर्व विधायक विजय मिश्रा के खिलाफ 83, आजमगढ़ के छपरा सुल्तानपुर निवासी ध्रुव सिंह उर्फ कुंटू सिंह पर 75, मऊ के कैथौली के रमेश सिंह उर्फ काका के खिलाफ 68, गाजीपुर के बाहुबली मुख्तार अंसारी के खिलाफ 61, बनारस के धौरहरा के बृजेश सिंह पर 41, आजमगढ़ के जमुआ निवासी अखंड प्रताप सिंह पर 38 मामले दर्ज हैं। इसी तरह बनारस के खजुरी के अभिषेक सिंह हनी उर्फ जहर पर 34, गाजीपुर के मुड़ियार के त्रिभुवन सिंह उर्फ पवन सिंह पर 23, जौनपुर के फूलपुर थाना के नेवादा के सुभाष सिंह ठाकुर के खिलाफ दस संगीन मामले दर्ज हैं।

नए अपराधी पैदा करते हैं माफ़िया

चंदौली के वरिष्ठ पत्रकार पवन मौर्य कहते हैं, "साल 1990 के दशक में पूर्वांचल के माफ़ियाओं ने ख़ुद को राजनीति में स्थापित कर लिया था। मुख़्तार के बड़े भाई अफ़जाल अंसारी पहले से ही राजनीति में थे, इसलिए उनके लिए राजनीति में आना आसान था। चंदौली के सिकरौरा नरसंहार कांड के बाद बृजेश सिंह ने अपने बड़े भाई उदयनाथ सिंह उर्फ़ चुलबुल को सियासत में उतारा। उदयनाथ सिंह पहले विधान परिषद के सदस्य रहे और उनके बाद उनके बेटे और बृजेश के भतीजे सुशील सिंह विधायक हुए। सियासत में शह मिलने की वजह से माफ़िया गिरोह अपना साम्राज्य बढ़ाते चले गए। दरअसल, अपराध एक ऐसा दलदल है जिसमें एक बार घुसने के बाद कई बार ख़ुद को ज़िंदा रखने के लिए अपराधी नए अपराध करता चला जाता है।"

पवन यह भी कहते हैं, "अपराधियों के राजनीति में जाने का एक बड़ा कारण यह है कि वो अपने व्यापारिक निवेशों को सुरक्षित करते हुए उन्हें बढ़ाना चाहते हैं। उन्हें सियासी दलों में अपना दख़ल बढ़ाना होता है। माफ़िया चाहता है कि वो एसटीएफ़ और पुलिस को डराकर रखे। उन्हें लगता है कि अगर चुनाव जीत गए तो एसटीएफ एनकाउंटर नहीं करेगी या नहीं कर पाएगी। ज़्यादातर निर्वाचित माफ़िया अपनी रॉबिनहुड की छवि को पुख़्ता रखने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार रहते हैं। वह इलाकाई लोगों की मदद करके उन्हें अपनी छत्रछाया में रखते हैं और इस तरीक़े से अपने लिए एक ऐसा वोट बैंक तैयार करते हैं जो कई बार धर्म और जाति से परे भी उनका वफ़ादार रहता है।"

एक खबरिया चैनल के पत्रकार आकाश यादव कहते हैं, "जाति और मजहब के आधार पर माफ़िया गिरोहों को निपटाने की कार्रवाई ने सिर्फ पुलिस ही नहीं, योगी सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया है। एक वक्त वह भी था जब यूपी में भाजपा, सपा के 'यादववाद' और मायावती के 'जाटववाद' के खिलाफ सड़क से लेकर विधानसभा तक सवाल उठाया करती थी। चौदह साल के वनवास के बाद भाजपा प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आई तो एक साल के अंदर ही योगी पर जातिवाद के आरोप लगने लगे। पुलिस प्रमुखों की नियुक्तियों में भी जातीय आधार पर गोलबंदी होने लगी। सत्ता चाहे जिस दल की हो, जातिवाद और सांप्रदायिकता के आधार पर माफ़िया गिरोहों की गोलबंदी देश और समाज के लिए घातक है।"

नीति और नीयत में फ़र्क़

वाराणसी के वरिष्ठ पत्रकार एवं चिंतक प्रदीप कुमार कहते हैं, "योगी सरकार की नीति और नीयत दोनों में फर्क है। नीति कुछ कह रही है, नीयत कुछ और बता रही है। नीति माफ़ियाओं का सामाज्य नेस्तनाबूत करने की है, लेकिन नीयत कुछ और बयां कर रही है। नीयत सेलेक्टिव है। निशाना सिर्फ उन अपराधी प्रवृत्ति के लोगों को बनाया जा रहा है जिससे इनके हिन्दुत्व का एजेंडा आम जनता तक पहुंच सके। जिस आक्रमकता से ये मुस्लिम समुदाय के बदमाशों पर एक्शन ले रहे हैं, वो चीजें दूसरे मजहब के लोगों को सही नजर आ रही हैं। दूसरे संप्रदाय के जो माफ़िया हैं, उनके ऊपर जो कार्रवाई हो रही है वो कानून दायरे में हो रही है। बेशक अपराध और अपराधी खत्म होने चाहिए। सभ्य और लोकतांत्रिक समाज में इस तरह के एक्शन के लिए जो प्रावधान हैं उन्हीं के साथ कदम उठाए जाने चाहिए, अन्यथा न्याय पालिका और न्यायिक प्रक्रिया से जनता का यकीन उठ जाएगा। गांधी जी के शब्दों में कहा जाए तो अगर ‘आंख के बदले आंख’ का कानून चलेगा तो पूरा समाज ही अंधा हो जाएगा। इसी के मद्देनजर न्याय का यह सिद्धांत अपनाया गया कि सौ अपराधी छूट जाएं, एक बेगुनाह को सजा नहीं होनी चाहिए।"

"उत्तर प्रदेश में हाल के दिनों में जितने भी एनकाउंटर हुए हैं अथवा जिन लोगों के घरों पर बुलडोजर चला है, उसके आंकड़े इकट्ठे किए जाएं और उनका मजहब पता लगाया जाए तो उसमें एक खास संप्रदाय के लोगों की तादाद सबसे ज्यादा नजर आएगी। समाज में एक तरफ जहां समुदाय विशेष में असुरक्षा की भावना बढ़ती जा रही है, वहीं दूसरी तरफ सांप्रदायिक उन्माद का दायरा भी बढ़ रहा है। हाल में प्रयागराज की घटना पर नजर डाली जाए तो इसी नीयत का फायदा उठाने के लिए हत्यारों ने दुस्साहसिक वारदात को अंजाम देने के बाद ‘जय श्रीराम’ के नारे भी लगाए। जिनके घरों में दो वक्त की रोटी जुटा पाना मुहाल था, उन्होंने सात-सात लाख रुपये के हथियार से अतीक और उनके भाई का काम तमाम कर दिया। सब कुछ जानकर भी पुलिस खामोश है। यह स्थिति कानून और संविधान के लिए नुकसानदेह है। अगर इससे आगे बढ़ा जाए तो सरकारें जमींदार की भूमिका में आ गई हैं और सुरक्षा व जांच एजेंसियां लठैतों का किरदार निभा रही हैं। पहले के दौर में जब रियाया के बीच से सिस्टम के खिलाफ आवाज उठती थी तो जमींदार के लठैत उनके दरवाजों पर पहुंच जाते थे। ठीक उसी तरह आज की सत्ता और व्यवस्था काम कर रही है।"

सीनियर जर्नलिस्ट प्रदीप यह भी कहते हैं, " योगी सरकार की इस नीयत और नीति के चलते एक तबके का माफ़िया जहां खत्म हो रहा है, वहीं कई नए माफ़िया खड़े होते जा रहे हैं। अपराध और अपराधियों पर काबू पाने के लिए एनकाउंटर व बुलडोजर से ज्यादा जरूरी है कि एक ऐसी सोच व राजनीति का निर्माण करना, जिसमें अपराधियों के लिए कोई जगह ही न हो। सच तो यह है कि मौजूदा दौर की सियासत की पालकी के कहार अपराधी ही बने हुए हैं। जरूरत है कि नेताओं, अफसरों के साथ अपराधियों का गठजोड़ तोड़ा जाए। जब तक यह गठजोड़ बना रहेगा, तब तक नए नाम के साथ नए माफ़िया सामने आते रहेंगे।"

"उत्तर प्रदेश में अपराध और अपराधियों की स्थिति तो रक्तबीज राक्षस जैसी हो गई है। मजहब और जाति आधारित राजनीतिक सोच, अपराध व अपराधियों के सबसे बड़े विश्वविद्यालय बने हुए हैं। माफ़ियाओं को संरक्षण देने वालों में मजहबी सोच रखने वाले राजनेता हैं तो सूबे के तमाम आला अफसर भी हैं। जब तक इस चक्रव्यूह को तोड़ा नहीं जाएगा, तब तक ‘माफ़िया को मिट्टी में मिला देने का नारा’ सिर्फ सियासी हथकंडा बना रहेगा। हैरत तो तब होती है, जब तथाकथित बुद्धिजीवी पूरे हालात का विश्लेषण करते हुए समाज के समाने यह नतीजा निकालते हैं कि अमुक माफ़िया के मारे जाने से इससे आने वाले चुनाव में फला पार्टी और फला नेता को जबर्दस्त फायदा होगा। इसी तरह के विश्लेषण और नतीजे प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से सत्ता पर काबिज लोगों को मनमानी करने के लिए बढ़ावा देते हैं।"

आपको बता दें कि इस मामले में स्वतंत्र तौर पर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका डाली गई है, जिसमें अतीक और अशरफ हत्याकांड की जांच के लिए स्वतंत्र आयोग के गठन की मांग की गई है। सोमवार को सुप्रीम कोर्ट इसकी सुनवाई के लिए तैयार हो गया है और सुनवाई के लिए 28 अप्रैल की तारीख़ तय की गई है।

इसे पढ़ेंः अतीक, अशरफ की हत्या की स्वतंत्र जांच कराने के अनुरोध वाली याचिका पर सुनवाई 28 अप्रैल को

(बनारस स्थित लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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