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 आपदा से कराह रहे पिथौरागढ़ के लोगों की आवाज़ सुन रहे हैं आप

उत्तराखंड में पिथौरागढ़ और चमोली जैसे ज़िले इस समय बारिश-भूस्खलन जैसी आपदाओं से जूझ रहे हैं, लेकिन आपदा प्रबंधन, आपदा के बाद रेस्क्यू ऑपरेशन तक ही सिमटा है।
पिथौरागढ़ में राहत-बचाव कार्य में जुटी एसडीआरएफ की टीम

पिथौरागढ़ में बारिश-भूस्खलन से इस मानसून सीजन में अब तक 20 लोगों की मौत हो चुकी है और 3 लोग लापता हैं। इनमें से 12 मौतें पिछले 7-8 दिनों के बीच हैं। बारिश के साथ पहाड़ से उतरे मलबे में इंसानों के साथ दर्जनों जानवर भी दब गए। सड़कें टूट गई हैं। पुल बह गया। मकान ज़मींदोज़ हो गए। खेती की ज़मीनें खत्म हो गईं। गांवों में मातम पसर गया। कुदरत के कहर से सहमे लोग सुरक्षित स्थानों पर ले जाने की मांग कर रहे हैं। उत्तराखंड में पिथौरागढ़ और चमोली जैसे जिले इस समय बारिश-भूस्खलन जैसी आपदाओं से जूझ रहे हैं। आपदा प्रबंधन आपदा के बाद रेस्क्यू ऑपरेशन तक ही सिमटा है। राहत-बचाव टीमें भी समय पर नहीं पहुंच पा रहीं। मदद के लिए हेलिकॉप्टर भी मौसम ठीक होने का इंतज़ार कर रहा है। सूचना समय पर देने के लिए मोबाइल नेटवर्क तक काम नहीं कर रहा।

पिथौरागढ़ में क़ुदरत का क़हर

पिथौरागढ़ में इस समय एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, आईटीबीपी की टीमें राहत-बचाव अभियान चला रही हैं। सेना के कुमाऊं स्कॉट धारचुला की टीम भी राहत कार्य में जुटी हुई है। बंगापानी तहसील के कई गांवों में भारी बारिश से बहुत नुकसान हुआ है। 27 जुलाई की शाम करीब पौने सात बजे बंगापानी तहीसल के धामी गांव में भारी बारिश और भूस्खलन के बाद काफी मात्रा में मलबा आया। मलबे की चपेट में आने से दो लोगों मौत हो गई। मकानों में भी मलबा घुस गया। गूठी गांव में भी एक व्यक्ति की मौत हुई।  

पिथौरागढ़ में राहत-बचाव कार्य में जुटी एसडीआरएफ की टीम2.jpg

28 जुलाई की शाम मेतली गांव से एक महिला का शव मलबे से निकाला गया। राहत टीमें अब भी तीन लापता लोगों की तलाश कर रही हैं। इससे पहले 19-20 जुलाई को बंगापानी तहसील के ही टांगा गांव में तेज बारिश और भूस्खलन से 9 लोगों की मौत हो गई थी। 2 लापता हो गए थे। जिनके शव बाद में बरामद कर लिए गए। मल्ला गैला गांव में भी तीन लोगों ने अपनी जान गंवायी। पांच घायल हुए। इन गांवों में मकान और पशुओं का भी बहुत नुकसान हुआ। इसके अलावा बाता मदकोट, सिरटोला गांव में भी काफी नुकसान हुआ।

जिलाधिकारी डॉ. विजय कुमार जोगदण्डे ने आपदा प्रभावित क्षेत्र में तीन जिला स्तरीय अधिकारियों को 15 दिन के लिए तैनात किया है। आपदा प्रभावित क्षेत्र में आपदा सामग्री के साथ अतिरिक्त टेन्ट भेजे गए हैं। मलबा आने से बंद जौलजीबी-मुनस्यारी मार्ग और मेतली गांव के पास क्षतिग्रस्त मोटरपुल को जल्द तैयार करने के निर्देश दिए गए हैं। सड़क मार्ग और पुल के बाधित होने से राहत कार्य में बाधा आ रही है। कई गांव अलग-थलग पड़ गए हैं। राहत-बचाव कार्य के लिए जिलाधिकारी ने राज्य सरकार से हेलिकॉप्टर उपलब्ध कराने की मांग की है।

27 जुलाई की रात की भीषण बारिश और भूस्खलन के बाद पिथौरागढ़ में ही मदकोट से लेकर जौलजीबी तक की रोड पूरी तरह गायब हो गई है। इस सड़क का जिम्मा केंद्रीय एजेंसी बीआरओ के पास है। जब तक ये सड़क नहीं तैयार होती कई गांवों का संपर्क एक-दूसरे से कटा रहेगा।

टांगा गांव के लोगों का पत्र.jpeg

एक एकड़ कृषि योग्य ज़मीन, दो कमरों के मकानों की मांग

धापा और टांगा गांव इस वर्ष बारिश से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। टांगा गांव के लोग सरकार से एक एकड़ कृषि योग्य ज़मीन और दो कमरों का मकान बनाने की मांग कर रहे हैं। ऐसा न होने की सूरत में बाज़ार भाव से कृषि योग्य ज़मीन और घर का मुआवज़ा मांग रहे हैं। भूस्खलन से गांव के सभी घरों में दरारें पड़ चुकी हैं। यहां रहना अब जानलेवा है।

आपदा में फिर बेबसी, मानसून से पहले क्या तैयारी की?

राज्यसभा सांसद प्रदीप टम्टा ने पिथौरागढ़ में प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया। वह बताते हैं कि 19-20 जुलाई की बारिश में 11 लोग की मौत के साथ टांगा गांव आइसोलेशन में चला गया है। यहां लगभग 70-80 फीसदी कृषि भूमि पूरी तरह बर्बाद हो गई। मिट्टी की डेढ़ फीट नीचे तक की पूरी सतह मलबे में दब गई।

धापा गांव में भी 80 प्रतिशत कृषि भूमि पूरी तरह समाप्त हो गई। ये गांव पिछले 3-4 सालों से लगातार आपदा झेल रहा है। प्रदीप टम्टा कहते हैं कि मानसून में इन क्षेत्रों में राज्य सरकार को पता होता है कि आपदा आएगी लेकिन फिर इससे बचने के लिए किया क्या? वह कहते हैं कि इन गांवों में आपदा के बाद मदद के लिए सबसे पहले स्थानीय लोग ही आए। स्थानीय विधायक प्रभावित क्षेत्रों में पहुंच गए और एसडीआरएफ की टीम बाद में पहुंची। एसडीआरएफ की टीम पिथौरागढ़ में ही क्यों नहीं तैनात थी? एसडीआरएफ की टीमें हल्द्वानी, अल्मोड़ा और हरिद्वार से पिथौरागढ़ आईँ। जबकि एनडीआरएफ की टीम गाजियाबाद से आई। मानसून के तीन महीनों में एनडीआरएफ की टीम को हल्द्वानी या हरिद्वार में ही क्यों नहीं स्टेशन किया जाता, ताकि आपदा की स्थिति में वे जल्द मौके पर पहुंच सकें। क्या राज्य और केंद्र के बीच तालमेल नहीं है।

पिथौरागढ़ में मदद के लिए क्यों नहीं पहुंचा हेलिकॉप्टर

राज्य के पांच जिले पिथौरागढ़, बागेश्वर, चमोली, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी हर वर्ष ही कुदरत का कहर झेलते हैं। ये भी तय होता है कि आपदा की सूरत में सड़क पर मलबा आएगा, पुल खतरे में आएंगे तो जिला प्रशासन के पास तत्काल रेस्क्यू ऑपरेशन के लिए एसडीआरएफ टीम और हेलिकॉप्टर क्यों नहीं दिये जाते। पिथौरागढ़ के जिलाधिकारी लगातार हेलिकॉप्टर की मांग कर रहे हैं और देहरादून से बताया जा रहा है कि मौसम खराब होने की वजह से हेलिकॉप्टर रवाना नहीं किया जा सकता। रेस्क्यू टीमें भी किसी तरह प्रभावित जगहों पर पहुंच रही हैं।

भूगर्भीय सर्वेक्षण के बाद राज्य सरकार को एक रिपोर्ट दी गई थी। जिसमें आपदा के लिहाज से गांवों को दो श्रेणियों में बांटा गया था। पहली श्रेणी में ऐसे गांव जिन्हें कहीं और बसाने के अलावा कोई और विकल्प नहीं है। दूसरी श्रेणी में वे गांव हैं जहां पहाड़, नाले, गदेरों का ट्रीटमेंट कर लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है। लेकिन इस दिशा में राज्य सरकार ने कोई कदम नहीं बढ़ाया है। संवेदनशील गांवों को कहीं और बसाने की कोई योजना फिलहाल नहीं दिखाई देती।

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मौसम के सही-सही आंकलन के लिए केदारनाथ आपदा के बाद ही उत्तराखंड में 4 डॉप्लर राडार लगाए जाने पर काम चल रहा है। सात वर्ष के लंबे समय के बाद महज मुक्तेश्वर में एक डॉप्लर राडार लगा है। जिसने अभी काम करना नहीं शुरू किया है। धारचुला में लगने वाला डॉप्लर रडार अब भी फाइलों में कहीं अटका है।

पिथौरागढ़ में चलता है नेपाल का मोबाइल नेटवर्क

आपदा की स्थिति में सूचना का सही समय पर मिलना सबसे पहला जरूरी स्टेप है। लेकिन पिथौरागढ़ के सीमांत क्षेत्रों में नेटवर्किंग अब भी बड़ी समस्या है। आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने कुछ सेटेलाइट फ़ोन भी बांटे हैं। राज्यसभा सांसद प्रदीप टम्टा कहते हैं कि जब मैं प्रभावित क्षेत्र में पहुंचा तो मेरे फोन में कोई नेटवर्क नहीं था। सेटेलाइट फोन राजस्व विभाग के किसी अधिकारी के पास है जो उस समय जियोलॉजिस्ट के साथ सर्वे के लिए गए हुए थे। गांव के प्रधान के पास सेटेलाइट फोन नहीं था।

प्रदीप टम्टा कहते हैं कि यहां मोबाइल नेटवर्क दुरुस्त क्यों नहीं है। जबकि सीमांत क्षेत्र होने की वजह से ये सामरिक दृष्टि से भी अहम है। जब हमारे पास समय पर सूचना ही नहीं पहुंचे तो हम समय पर प्रतिक्रिया कैसे करेंगे। वह बताते हैं कि सीमांत क्षेत्र के ज्यादातर लोग नेपाल के सिम का इस्तेमाल करते हैं क्योंकि नेपाल का मोबाइल नेटवर्क यहां अच्छे से काम करता है। सिर्फ आम लोग ही नहीं जिला प्रशासन के अधिकारी भी इमरजेंसी की स्थिति के लिए नेपाल का सिम रखते हैं।

उत्तराखंड देश का पहला राज्य है जहां आपदा प्रबंधन मंत्रालय बना है। लेकिन ये मंत्रालय कर क्या रहा है। जब खराब मौसम में सामान्य हेलिकॉप्टर नहीं उतर सकता तो एनडीआरएफ एडवांस तकनीक के हेलिकॉप्टर क्यों नहीं लाती। सीमांत क्षेत्र के स्थानीय लोग सुरक्षा के लिहाज से भी अहम होते हैं। पहली सूचना इन्हीं से मिलती है। सीमा की रक्षा ये भी करते हैं। इन लोगों की मदद के लिए एडवांस तकनीक का इस्तेमाल क्यों नहीं किया जा रहा।

उत्तराखंड आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अधिशासी निदेशक पीयूष रौतेला आपदा के सवालों पर बड़ा सधा सा जवाब देते हैं कि आपदाएं पहले भी आती थीं लेकिन तब मीडिया इतना सक्रिय नहीं था, मोबाइल फ़ोन नहीं थे, सूचनाएं इतनी तेज़ी से नहीं फैलती थीं। उनका जवाब ही सवाल है कि जब सूचनाएं समय पर मिल जा रही हैं तब भी हम क्यों कुछ नहीं कर पा रहे।

मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत पिथौरागढ़ में इतनी मौतों के बाद भी प्रभावित लोगों के बीच नहीं गए।

क्यों बढ़ रही हैं आपदाएं, रिमझिम बारिशों के दौर क्यों कम हुए

वैज्ञानिक अध्ययनों के मुताबिक भारत में मानसून के दौरान पिछले 50 वर्षों में होने वाली कुल बारिश तकरीबन एक समान रही है। हालांकि बीच-बीच में कुछ वर्षों में उतार-चढ़ाव भी आए हैं। लेकिन ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से मानसून में तेज़-भारी बारिश के दिन बढ़े हैं और रिमझिम बरसात वाले दिन कम हुए हैं। साल दर साल मूसलाधार बारिश और बाढ़ की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। आने वाले दशकों में यही स्थिति देखने को मिलेगी। इस तरह की बारिश से बाढ़, भूस्खलन जैसी घटनाएं बढ़ रही हैं। बिना किसी पूर्व चेतावनी के ये आपदाएं हो रही हैं। बादल फटने, बाढ़, भूस्खलन में गांवों और घरों पर मिनटों में मिट जाने का खतरा है। नदी किनारे ये खतरे और अधिक हैं। जैसे-जैसे ग्लोबल वार्मिंग बढ़ेगी, बिना किसी पूर्व सूचना के ये आपदाएं लोगों को सावधान होने का मौका भी नहीं देंगी। बाढ़-भूस्खलन में मरने वालों की संख्या भी बढ़ सकती है। क्लाइमेट चेंज यानी जलवायु परिवर्तन से जुड़े रिसर्च पेपर पढ़ना एक आम पाठक के लिए मुश्किल भरा हो सकता है। लेखक मार्क लायनस ने वर्ष 2007 में क्लाइमेट चेंज से जुड़े बहुत से रिसर्च पेपर का अध्ययन कर सिक्स डिग्रीज़: अवर फ्यूचर ऑन ए हॉटर प्लैनेट किताब लिखी थी। ये उसी किताब का एक अंश है।

इस समय आप कोरोना के मौत के आंकड़े, राजस्थान के सियासी उठापटक, देश में आने वाले रफ़ाल विमान, भारत-चीन विवाद, अयोध्या मंदिर निर्माण और सुशांत सिंह राजपूत की मौत से जुड़ी जरूरी खबरों से जूझ रहे होंगे। असम की बाढ़ और उत्तराखंड के भूस्खलन के ज़रिये प्रकृति किस तरह की चेतावनी दे रही है, इसे जानना हमारे-आपके जीवन से सीधे तौर पर जुड़ा है। आज भी उत्तराखंड में कई जगहों पर भारी बारिश हो रही है। मौसम विभाग ने आज के मौसम को लेकर रेड अलर्ट भी जारी किया है।

(वर्षा सिंह स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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