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आधार नहीं धारा 7 को वैध ठहराया गया है

पैन कार्ड बनवाने के लिए आधार की अनिवार्यता  होने की वजह से तकरीबन भारत के हर नागरिक को जीवन के किसी न किसी पड़ाव पर आधार कार्ड से जुड़ने की जरूरत पड़ सकती है।
Aadhaar

आधार की जरूरत पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया।  इस याचिका पर मुख्य न्यायधीश दीपक मिश्रा के साथ न्यायधीश  ए के सीकरी, ए.एम खानविल्कर, डी. वाई चंदरचूड़  और अशोक भूषण से बनी 5 जजों की संवैधानिक बेंच ने  सुनवाई की। इनमें से चार न्यायधीशों ने आधार की संवैधानिकता को वैध ठहराया और केवल न्यायधीश  चंद्रचूड़ ने आधार को असंवैधानिक करार दिया।   

साल 2009 में लागू हुए आधार के तहत अभी तक तकरीबन 100 करोड़ के लोगों का नामांकन हो चूका है। इतने नामांकन होने के बावजूद भी इस प्रोजेक्ट की खूब आलोचना हुई। आधार को व्यक्ति की निजता के क्षेत्र में सेंधमारी करने वाला बताया गया। यह भी कहा गया कि इससे राज्य किसी भी व्यक्ति की किसी भी तरह गतिविधि का सर्विलांस करने लगेगा जो व्यक्ति के निजता के अधिकार का उलंघन है। आधार की संवैधानिकता के खिलाफ खड़े हुए याचिकर्ताओं की   आलोचना है कि कि इससे राज्य पूरी तरह से तानाशाह में बदल जाएगा और यह स्थिति बहुत गंभीर होगी। इसलिए याचिकाकर्ताओं की मांग थी कि आधार की संरचना को ही पूरी तरह से खारिज कर दिया जाए क्योंकि इससे लोकतान्त्रिक सिद्धांतों और कानून के नियम का उलंघन होता है। 

इस फैसले का मुख्य केंद्र बिंदु आधार एक्ट की धारा 7 रही। इस धारा के तहत आधार के जरिये वंचित लोगों को लक्षित कर उनतक जरूरी लाभ जैसे वित्त,सब्सिडी और सेवाओं की पहुँच बनाये जाने का प्रावधान है। सुप्रीम कोर्ट ने इसी धारा को आधार का मकसद बनाकर आधार से जुड़े सारे सवालो पर जवाब दिया। 

सुप्रीम कोर्ट के सामने पहला सवाल था कि क्या आधार एक्ट निजता के अधिकार का उलंघन करता है और इस आधार पर असंवैधानिक है।  इस सवाल पर सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि आधार एक्ट का मकसद ही है कि वंचित लोगों को पहचान कर उन तक मूलभूत सुविधाओं की पहुँच बनाई जाए ताकि सुविधाओं को पहुँचाने में कम से कम लीकेज हो। आधार के जरिये वंचित लोगों की पहचान में आने वाली बाधा को कम करने में आसानी होती है । इस आधार पर आधार एक्ट की धारा 7 संवैधानिक है, जो इसी विषय पर बात करती है। संविधान में लिखे गए शब्द  'हम भारत के लोग' का मतलब केवल कुछ लोग नहीं है। इसकी व्याख्या में सभी लोग शामिल है। और कुछ लोग जिनकी पहुँच संसाधनों तक आसनी से हो जाती है, केवल उन्हें ध्यान में रखकर कोई  नीति नहीं बनाई जा सकती है। एक तरफ निजता का अधिकार है तो दूसरी तरफ साथ खाने,रहने और रोजगार का भी अधिकार है। इन दोनों के बीच समायोजन  करना जरूरी है।  इसलिए  इस विषय पर निजता के अधिकार पर बात करते हुए ,इस पर भी सोचना जरूरी है कि क्या निजता का अधिकार इतना बड़ा है कि किसी को खाने ,रहने और रोजगार के अधिकार से वंचित कर दिया जाए। आधार के जरिये किसी व्यक्ति के निजता की बहुत ही निम्न स्तर की जानकारी हासिल की जाती है।  इसलिए निजता के अधिकार के आधार पर आधार जैसे प्रोजेक्ट को असंवैधानिक नहीं कहा जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के अनुसार तकरीबन 99.76 आधार कार्ड धारकों की बायोमेट्रिक एक्यूरेसी में किसी तरह की धोखाधड़ी नहीं पायी गयी है। इस तरह से केवल 0.232 फीसदी के आंकड़ें पर वंचितों की पहचान करने वाली योजना आधार को खारिज कर देना सही नहीं है। इसलिए वंचितों को सरकारी योजनाओं में हिस्सेदारी पाने के लिए आधार से जुड़ना अनिवार्य कर दिया गया है।  

इस तरह से  सुप्रीम कोर्ट ने आधार प्रोजेक्ट और इसके तहत होने वाले एनरोलमेंट को वैध करार दिया है। यानी कि आधार के तहत पहचान पत्र हासिल करने की कार्रवाई जारी रहेगी। इसके साथ सुप्रीम कोर्ट ने यह माना कि आधार के जरिये प्रोफाइलिंग सम्भव नहीं है क्योंकि आधार बनाने के प्रक्रिया में आधार को सुरक्षित रखने के भी तरीके मौजूद हैं।इस निष्कर्ष पर पहुँचने से लिए न्यायाधीशों ने आधार से जुड़े तकनीकी  पहलुओं का समग्र अध्ययन करवाया है। 

इस तरह से सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि आधार के जरिये स्टेट सर्विलांस भी संभव नहीं है। और स्टेट कभी तानाशाह की भूमिका में नहीं आएगा। 

इस फैसले में न्यायधीश सीकरी, दीपक मिश्रा और खानविल्कर  ने आधार कानून की धारा 33 (2), 57 और 47  को ख़ारिज कर दिया है। इस कानून की धारा 33(2) के तहत भारत सरकार संयुक्त सचिव के अधिकारी के सलाह पर राष्ट्रीय  सुरक्षा की जरूरत पर आधार का डाटा हासिल कर सकती थी। अब इस प्रावधान को खरिज कर दिया गया है। धारा 57 के तहत कॉरपोरेट और प्राइवेट इंडिविजुअल को भी किसी व्यक्ति के पहचान की जांच के लिए आधार के जरिये मिलने वाले सूचना को इस्तेमाल करने की अनुमति मिलती थी। अब इस प्रावधान को भी खारिज कर दिया है। धारा 47 के तहत आधार के डेटा में धोखाधड़ी के मामलें में केवल यूनिक आइडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ़ इण्डिया  को क्रिमिलनल शिकायत दायर करने का अधिकार था। अब आइडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ़ इण्डिया  को मिले इस अधिकार को भी ख़ारिज कर दिया गया है। 

नेट,सीबीएसई जैसी परीक्षाओं का दायरा आधार एक्ट की धारा 7 के तहत नहीं आता है। इसलिए परीक्षाओं के मसले पर आधार की पहचान पत्र के तौर अनिवार्यता नहीं है। बच्चों के लिए आधार को पहचान पत्र के तौर पर बनाया जाएगा अथवा नहीं,इसका फैसला करने  का अधिकार बच्चों के माँ -बाप  का होगा। बच्चों के लिए बनाई गयी सर्वशिक्षा अभियान जैसी सरकारी योजनाओं का लाभ के लिए आधार की जरूरत नहीं होगी।18 साल के बाद कोई भी बच्चा चाहे तो अपने माता पिता के जरिये हासिल किये गए आधार पहचान पत्र को छोड़ सकता है। 

आधार एक्ट को बजट सत्र में धन विधेयक के तौर पर भी पारित करने पर सवाल उठाये गए थे। सुप्रीम कोर्ट ने आधार एक्ट को धन विधेयक के तौर पर पारित करने  को भी वैध ठहराया है। सुप्रीम कोर्ट का तर्क है कि आधार एक्ट का मुख्य  केंद्र बिंदु आधार एक्ट की धारा 7 है। जिसके तहत आधार के जरिये वंचितों की पहचान कर उन्हें  जरूरी वित्त,सब्सिडी और सेवाएं पहुँचाने का प्रावधान है। चूँकि इस पैसे को कंसोलिडेटेड फण्ड ऑफ़ इन्डिया से हासिल किया जाएगा और धन विधेयक के तौर पर उन विषयों  को शामिल करने की अनुमति होती है, जिनके खर्चे के लिए कंसोलिडेटेड फण्ड ऑफ़ इण्डिया का इस्तेमाल किया जाता है ,इसलिए आधार एक्ट को धन विधेयक के तौर पर पारित करना  अवैध नहीं है।  फिर भी 5 जजों की बेंच में जस्टिस चंद्रचूड़ ने आधार के इस हिस्से पर असहति जताई है। चंद्रचूड़ का मानना है कि आधार के साथ केवल कंसोलिडेटेड फण्ड ऑफ़ इण्डिया से खर्च करने का मसला नहीं जुड़ा है, आधार की आधकारिता वंचित समुदाय को लाभ पहुँचाने से परे भी जाती है ,व्यक्ति के निजता के अधिकार से हस्तक्षेप भी करती है। इसलिए धन विधेयक के तौर पर आधार को  शामिल करने के सवाल पर न्यायिक पुनर्विचार की जरूरत है । 

बैंक खाता खुलवाने या जारी रखने के लिए आधार की जरूरत नहीं है और दूरसंचार विभाग द्वारा आधार से मोबाइल लिंक करवाने के लिए दिया गया निर्देश भी सुप्रीम कोर्ट द्वारा गैरकानूनी और असंवैधानिक करार देकर खारिज कर दिया गया। लेकिन पैन कार्ड के लिए आधार की जरूरत होगी और आय कर रिटर्न फाइल करने के लिए बैंक खाते को आधार और पैन से जुड़ा होना अनिवार्य कर दिया गया है। इस तरह से पैन कार्ड बनवाने के लिए आधार की अनिवार्यता  होने की वजह से तकरीबन भारत के हर नागरिक को जीवन के किसी न किसी पड़ाव पर आधार कार्ड से जुड़ने की जरूरत पड़ सकती है।  

इस तरह से सुप्रीम कोर्ट के द्वारा दिए गए पूरे फैसला आधार एक्ट की धारा 7 के इर्द गिर्द घूम रही है। कल्याणकारी राज्य की अवधारण की तरफ घूम रही है, जो वंचितों के लाभ को लाभ पहुँचाने के लिए निजता के अधिकार जैसे मूलाधिकारों के साथ जरूरी समायोजन कर रही है। साथ में आधार को नागरिकों के लिए हर जगह पहचान पत्र के तौर पर अनिवार्य न बनाकर आधार की प्रासंगिकता को बहुत अधिक कमजोर भी कर रही है। इस तरह से हम कह सकते हैं कि आधार नहीं धारा 7 को वैध को ठहराया गया है।

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