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बीजेपी के 5 साल के आतंक के शासन के बाद त्रिपुरा में बदलाव की लहर : जितेंद्र चौधरी

16 फ़रवरी को विधानसभा चुनाव के लिए मतदान से पहले सीपीआई (एम) के राज्य सचिव ने कहा है कि भाजपा शासन के तहत कृषि या उद्योग में कोई निवेश नहीं हुआ है।
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माकपा त्रिपुरा राज्य सचिव जितेंद्र चौधरी

60 सदस्यीय त्रिपुरा विधानसभा के लिए 16 फरवरी को होने वाले चुनाव की उलटी गिनती शुरू हो गई है। जबकि मौजूदा बीजेपी-आईपीएफटी सत्ता में बने रहने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है, वहीं वाम-कांग्रेस गठबंधन अपनी जीत की संभावनाओं के बारे में काफी उत्साहित है, और इस लड़ाई में एक और मजबूत खिलाड़ी टिपरा मोथा को भी काफी अधिक समर्थन मिल रहा है। सीपीआई (एम) के राज्य सचिव और जाने-माने आदिवासी नेता जितेंद्र चौधरी ने हाल ही में करबूक में न्यूज़क्लिक से साथ बात की, जो इस छोटे से उत्तर-पूर्वी राज्य में आम लोगों की दयनीय स्थिति को लेकर बीजेपी-आईपीएफटी के आतंक से जूझ रहे हैं। पेश हैं साक्षात्कार के संपादित अंश:

संदीप चक्रवर्ती: फ़िलहाल त्रिपुरा की क्या स्थिति है?

जितेंद्र चौधरी: पिछले पांच वर्षों में, भाजपा-आईपीएफटी ताक़तों ने त्रिपुरा के आम लोगों में  अकल्पनीय आतंक फैलाया गया है। यह उस एक बड़े पत्थर की तरह है जिसे उनके गले में ठूँसा जा रहा है, जिसे लोगों को इतने दिनों तक सहन करना पड़ा है। यह चुनाव केवल नई सरकार बनाने का चुनाव नहीं है, बल्कि राज्य में लोकतंत्र की हत्या से बाहर निकलने का एक प्रयास है। आम लोग इस चुनाव को चीजों को बेहतर बनाने के अवसर के रूप में देख रहे हैं। इस बात का आभास हमें पूरे राज्य के लोगों के दृढ़ संकल्प में देखने को मिल रहा है। यह बदलाव के पक्ष में एक लहर है।

यह विपक्षी दलों की बड़ी सफलता है। आम लोगों का यह पराक्रम अचानक से देखने को नहीं मिला है। बल्कि यह इस बात का नतीजा है कि पिछले पांच सालों में माकपा आम लोगों के साथ खड़ी रही है। यह सबसे कठिन समय में पार्टी द्वारा की गई कड़ी मेहनत का फल है।

एससी: लोकप्रिय आदिवासी पार्टी टिपरा मोथा के बारे में क्या ख़याल है?

जेसी: टिपरा मोथा का राज्य की कुछ आरक्षित सीटों पर प्रभाव है, और इसलिए कुछ लोग टिपरा मोथा की ओर गए हैं, कुल मिलाकर यह राज्य में सत्तारूढ़ बीजेपी की कम होती ताक़त को दर्शाता है। हर गुजरते दिन के साथ सत्ता पक्ष पर लोगों का विश्वास कम होता जा रहा है। पिछले चुनावों में बीजेपी को वोट देने वालों की एक बड़ी संख्या वापस वाम मोर्चा में लौट रही है, और मतदाताओं का एक छोटा हिस्सा टिपरा मोथा की तरफ भी जा रहा है। उन्हें लगता है कि टिपरा मोथा राज्य के आदिवासी लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करेगी। टिपरा मोथा के साथ आदिवासी युवकों का एक वर्ग भी जुड़ा है।

एससी: जनता के मूड में बदलाव कैसे संभव हुआ है?

जेसी: राज्य में सैकड़ों हमले हुए हैं और बीजेपी ने आम लोगों को परेशान करने के लिए प्रशासनिक और पुलिस तंत्र का खुल्लम-खुल्ला इस्तेमाल किया है। लोगों के अधिकार छीन लिए गए। एक पार्टी के रूप में सी पी आइ (एम) ने उस कठिन समय में भी इन हमलों के सामने आत्मसमर्पण नहीं किया है। हमारे पार्टी के 400 से अधिक कार्यालयों और 150 से अधिक जन संगठनों के कार्यालयों में तोड़फोड़ की गई और आग लगा दी गई। एक समय यह परिकल्पना की गई थी कि त्रिपुरा से माकपा और वामपंथियों का सफाया हो जाएगा।

लेकिन, इस चुनाव से पहले पार्टी के बंद पड़े हर दफ्तर को फिर से खोल दिया गया है। जिन पार्टी कार्यालयों को भाजपा ने आग के हवाले कर दिया था या छीन लिया था, उन्हें स्पष्ट कारणों से नहीं खोला जा सकता है। हमारा अनुभव है कि अगर आप बिना समर्पण और सिर झुकाए जनता के साथ खड़े रह सकते हैं और यदि पार्टी तमाम बाधाओं के बावजूद आम लोगों के हितों को पूरा करने के लिए किसी भी रूप में काम करती रहती है तो लोग उसका साथ नहीं छोड़ते हैं। चुनाव को लेकर जनता की उत्साहित मिजाज इसका प्रतिबिंब है। आपको आम लोगों के साथ रहना होगा। लोगों के कान और आंखें खुली हुई हैं, और वे सही समय पर सही जवाब देंगे।

एससी: वर्तमान चुनाव में पीएम मोदी की उपस्थिति के बारे में क्या कहना है?

जेसी: गोमोती जिले में, जहां प्रधानमंत्री प्रचार करने आ रहे हैं, पहले के मुक्काबले उनकी रैलियों में कम लोग आ रहे हैं। पहले जब वह राज्य में आते थे तो भारी भीड़ जमा होती थी। यह चुनाव सत्तारूढ़ भाजपा की अग्निपरीक्षा है, क्योंकि उसे अपने आधार की रक्षा करनी है। लेकिन भाजपा सैकड़ों कोशिशों के बाद भी अपनी सभाओं में बड़ी संख्या में लोगों को नहीं खींच पा रही है। यानी 2018 में मोदी का चेहरा दिखाकर, झूठे वादे करके, लोगों को चारे के तौर पर इस्तेमाल करने की जो मुहिम शुरू की गई थी, उसने वोट तो बटोरे, लेकिन आज पांच साल बाद आम जनता को पता चल गया है कि उन्होंने प्रदेश की जनता को ठगा है। लोग  कह रहे हैं कि “दूसरी बार आपसे सुनने के लिए कुछ नहीं है", ऐसा ही कुछ पीएम मोदी  महसूस कर रहे हैं।

पीएम की सभाओं में सुस्त प्रदर्शन पीएम की सामूहिक अस्वीकृति का संकेत देता है, भले ही वाहन और खाने के पैकेट मुफ्त में दिए जा रहे हों, और कुछ जगहों पर तो पैसे भी बांटे गए हैं।

एससी: बीजेपी के वादों और सरकार के काम पर आपका क्या ख़याल है?

जेसी: भाजपा सरकार ने अपने वादे पूरे नहीं किए, एक भी नहीं। त्रिपुरा एक कृषि-प्रधान समाज है और यह देश में प्राकृतिक रबर का सबसे बड़ा उत्पादक है। चाहे कृषि हो या उद्योग, राज्य में कोई निवेश नहीं हुआ है। भाजपा ने बेरोज़गारों को रोजगार देने का वादा करते हुए  कई परियोजनाओं का वादा किया था, जो पूरा नहीं हुआ है।

जब कानून और व्यवस्था की मार पड़ती है और भ्रष्टाचार सार्वजनिक जीवन पर हमला  करता है, तो भ्रष्टाचार संस्थागत हो जाता है। पंचायतों, पीडब्ल्यूडी विभागों, जो सभी भाजपा कार्यालयों से संचालित होते हैं, में कानून का राज कायम नहीं है। पैसा आम लोगों के बजाय उनके पास जा रहा है।

एक भी सेक्टर में सुधार नहीं हुआ है। एकमात्र क्षेत्र जिसमें उन्नति हुई है वह ड्रग्स है, जैसे कि 'फैंसीडील', जो अब आसानी से उपलब्ध है और जिसका सेवन युवा अधिक करते हैं।

साथ ही, लोगों को दो वक्त की रोटी कमाने के लिए बहुत अधिक कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है, जो पहले के युग में अकल्पनीय था।

एससी: बीजेपी शासन में आदिवासी समुदायों की क्या दशा रही?

जेसी: राज्य में आदिवासी लोग की दशा ठीक नहीं हैं। टिपरा मोथा एक अलग राज्य की बात कर रहा है, जो इस तथ्य को नज़रअंदाज़ करते हैं कि त्रिपुरा की भौगोलिक स्थिति इसकी अनुमति नहीं देती है। मोथा का उत्थान आदिवासी समुदाय में उजाड़ भावना का परिणाम है। कुल मिलाकर आदिवासियों की स्थिति बेहद खराब है। राज्य के कई आदिवासी गांवों में न विकास है, न सड़कें हैं, न बिजली है, न शिक्षा है, न स्वास्थ्य केंद्र हैं। इन पांच वर्षों में पहले के मौजूद अधिकांश बुनियादी ढांचे को ध्वस्त कर दिया गया है। स्वायत्त जिला परिषदों या एडीसी को प्रयाप्त धन नहीं मिल रहा है। पिछले चुनावों में वादा किया गया था कि एडीसी का अनुदान बढ़ाया जाएगा। इस साल भी बीजेपी ने अतिरिक्त संसाधनों का वादा किया है। लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि एडीसी को मौत के घाट उतारा जा रहा है, जो आदिवासी समुदाय की खराब होती हालत को दर्शाता है।

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