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अग्निपथ स्कीम : रौशनी से ज़्यादा गर्मी पैदा करती योजना?

अग्निपथ 2022 योजना, जिसका असर देश में बड़े पैमाने पर होगा, जिसके दीर्घकालिक राष्ट्रीय निहितार्थ भी हैं, ऐसी नवीनतम योजनाओं को संसद में चर्चा या परामर्श किए बिना ही लागू कर दिया गया है।
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अग्निपथ 2022 योजना, जिसका असर देश में बड़े पैमाने पर होगा, जिसके दीर्घकालिक राष्ट्रीय निहितार्थ भी हैं, ऐसी नवीनतम योजनाओं को संसद में चर्चा या परामर्श किए बिना ही लागू करने के किए धकेल दिया है।

रक्षा सेवाओं में भर्ती की टूर ऑफ ड्यूटी योजना को एक आकर्षक नाम 'अग्निपथ' दिया गया है, और और इसके ज़रिए भर्ती किए जाने वाले युवाओं को 'अग्निवीर' कहा जाएगा।

अग्निपथ योजना के निहितार्थ सेना (और सेना की भीतर विभिन्न विभाग और सेवाओं पर), नौसेना और वायु सेना के लिए अलग-अलग हैं। यह इस लिए है क्योंकि तीनों सेनाओं के ऑपरेशन क्षेत्र, सेवा की शर्ते, कमांड और नियंत्रण श्रृंखला के विभिन्न स्तरों पर कर्मियों की भूमिका और विभिन्न ऑपरेशन और तकनीकी आवश्यकताओं में बड़ा अंतर है। हालाँकि, जो चर्चा इस पर चल रही है वह मुख्य रूप से सेना से संबंधित है।

17.5 से 21 वर्ष की आयु के युवाओं का चयन मौजूदा चयन प्रणाली के अनुसार किया जाएगा – जिसमें लिखित सामान्य प्रवेश परीक्षा + शारीरिक परीक्षा + चिकित्सा परीक्षण शामिल है – उन्हे ऑनलाइन आवेदकों में से, चार साल के अनुबंध पर अग्निवीर के रूप में नियुक्त किया जाएगा, और इसके लिए 31 सप्ताह का बुनियादी सैन्य प्रशिक्षण होगा। 'अग्निवीर' मौजूदा रैंक से अलग एक नया सैन्य रैंक होगा, और अग्निवीर नियमित कैडर सैनिकों की तरह सैन्य ड्यूटि के लिए किसी भी इकाई या रेजिमेंट में तैनाती के लिए योग्य होंगे।

इससे सेना का कामकाज कैसे प्रभावित होगा

सेना, टीम में मौजूद प्रत्येक सैनिक की संचालन क्षमता में आपसी व्यक्तिगत विश्वास और विश्वास के आधार पर कार्य करती है। सामान्य तौर पर, चार साल के अनुबंध वाले अग्निवीर, जिन्हें व्यक्तिगत जोखिम वाले कार्यों में तैनात किया जा सकता है, ने पेशेवर क्षमता के स्तर को हासिल नहीं किया होगा जो पारस्परिक विश्वास और आत्मविश्वास को प्रेरित कर पाए। इसके अलावा, अग्निवीर असुरक्षित होगा, जो चार साल से अधिक सेवा के बारे में अनिश्चित होगा,  और खुद को गंभीर जोखिम या खतरे के मामले में प्रेरित नहीं होगा, जो सैन्य सेवा अक्सर मांग करती है। यह टीम के भीतर अस्वीकार्य प्रदर्शन का कारण बनेगा, और जिसका असर उप-इकाई और यूनिट कमांडरों पर होगा, जो ऑपरेशन की सफलता के लिए जिम्मेदार हैं, वे अग्निवीरों को महत्वपूर्ण कार्यों से बाहर रखेंगे, और नतीजतन नियमित कैडर सैनिकों की ओवरलोडिंग होगी। 

चार साल के अनुबंध वाले अग्निवीर को ऐसे कार्यों में तैनात किया जा सकता है जिनमें व्यक्तिगत जोखिम शामिल है, उन्होंने पेशेवर क्षमता स्तर हासिल नहीं की होगी जो पारस्परिक विश्वास और आत्मविश्वास को प्रेरित कर सके। इसके अलावा, एक अग्निवीर असुरक्षित होगा, चार साल से अधिक सेवा के बारे में अनिश्चित होगा, और खुद को गंभीर जोखिम या खतरे उठाने के मामले में प्रेरित नहीं होगा जो सैन्य सेवा अक्सर मांग करती है।

जुलाई 2022 से शुरू होने वाले चालू वर्ष में 46,000 अग्निवीरों की भर्ती होने की उम्मीद है। चार साल की अवधि के दौरान फिटनेस और प्रदर्शन के आधार पर, चार वर्षों के अंत में, अधिकतम 25 प्रतिशत अग्निवीरों को सेना में शामिल किया जा सकता है।

एक नियमित केडर सैनिक के लिए, इकाई/उप-इकाई स्तर पर उसका प्रदर्शन मूल्यांकन गैर-कमीशन अधिकारी रैंक में पदोन्नति से संबंधित है। यदि नियमित सैनिक पास नहीं होता है, तो वह 15 वर्षों तक सेवा करता है और ग्रेच्युटी, पेंशन, आजीवन चिकित्सा कवर और अन्य लाभों के साथ सेवानिवृत्त हो जाता है। जबकि, एक अग्निवीर के लिए प्रदर्शन का मूल्यांकन यह निर्धारित करेगा कि क्या चार साल के अंत में, वह नियमित कैडर में शामिल होने के लिए चुने गए 25 प्रतिशत या अस्वीकृत 75 प्रतिशत में से एक है, जिसे डिमोबिलाइज किया जाएगा। यह इकाई/उप-इकाई स्तरों पर पहले से ही बोझ से लदी (कार्मिक की कमी के कारण) कमांड संरचना पर जिम्मेदारी का एक अतिरिक्त बोझ डालता है, इसके अलावा यह कमी अग्निवीर को वास्तविक प्रदर्शन के बजाय प्रदर्शन करने पर ध्यान केंद्रित करने का कारण बन सकती है।

निष्पादन मूल्यांकन प्रणाली अभी भी चर्चा/योजना के चरण में है, यह दर्शाता है कि अग्निपथ योजना पर्याप्त तैयारी के बिना शुरू की गई है। यह उस सावधानीपूर्वक योजना के विपरीत है जो पारंपरिक सैन्य लोकाचार का हिस्सा और अंग है।

चार साल बाद हटाए जाने वाले 75 प्रतिशत अग्निवीरों का क्या होगा?

पचहत्तर प्रतिशत अग्निवीरों को एकमुश्त राशि के साथ छुट्टी दी जाएगी – जो राशि 10.04 लाख रुपए होगी, जिसमें उनका स्वयं का 50 प्रतिशत योगदान होगा, साथ ही इसमें अर्जित ब्याज भी शामिल है। इस प्रकार, 21.5 से 25 वर्ष की आयु के लगभग 40,000 छुट्टी होने वाले युवा 2027 के बाद वपास हर साल वाली बेरोजगारों की श्रेणी में लौट आएंगे।

अग्निवीरों की पूर्व-भर्ती असुरक्षा को "कोई रैंक नहीं, कोई पेंशन नहीं, केवल तनाव" के रूप में देखा जा सकता है। यह कि खारिज किए गए अग्निवीरों को केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों ('सीएपीएफ'), राज्य पुलिस, या निजी क्षेत्र, 2027 के बाद में नौकरी देने के बहुत हालिया आश्वासनों के बावजूद है। इन आश्वासनों को संदेह की दृष्टि से देखा जा रहा है, क्योंकि दशकों से, सीएपीएफ, राज्य पुलिस और निजी क्षेत्र में पूरी तरह से प्रशिक्षित और अनुशासित वयोवृद्ध सैनिकों को आरक्षित कोटा में समाहित करना निराशाजनक से भी बदतर रहा है।

बुनियादी सैन्य कौशल वाले लगभग 35,000 युवा 2027 के बाद हर साल नौकरी के बाजार में फिर से प्रवेश कर रहे होंगे, जो भारतीय या विदेशी सैन्य ठेकेदार निगमों के भाड़े के सैनिकों के रूप में रोजगार के मामले में एक उत्कृष्ट स्रोत बनेंगे। वास्तव में, अनुभवी लेफ्टिनेंट जनरल अभय कृष्णा का मानना है कि "अग्निपथ निजी सैन्य कंपनियों को बढ़ाने में उसी तरह मदद कर सकता है जैसे कि अमेरिका ने इराक में ब्लैकवाटर तैनात किए थे या रूसियों ने सीरिया में वैगनर समूह का इस्तेमाल किया था या चीनी कैसे अकादमिक का इस्तेमाल झिंजियांग में कर रहे हैं।" सशस्त्र संघर्ष का ऐसा निगमीकरण वांछनीय है या नहीं, लेकिन यह संभव है कि वार्षिक 75 प्रतिशत अस्वीकृत अग्निवीरों को विद्रोही, आतंकवादी या सांप्रदायिक संगठनों द्वारा नियोजित किया जाएगा, जिनके पास विशाल वित्तीय संसाधन हैं, और परिणामस्वरूप समाज में हिंसा और दमन में वृद्धि होगी। 

लेकिन यह संभव है कि वार्षिक 75 प्रतिशत अस्वीकृत अग्निवीरों को विद्रोही, आतंकवादी या सांप्रदायिक संगठनों द्वारा नियोजित किया जाएगा, जिनके पास विशाल वित्तीय संसाधन हैं, और परिणामस्वरूप समाज में हिंसा और दमन में वृद्धि होगी।

अग्निपथ योजना के बारे में जो दावा किया जा रहा है कि, चार साल की अनुबंध अवधि के दौरान युवाओं में देश-भक्ति (देशभक्ति) की भावना पैदा होगी। यह स्वीकार किया जा रहा है कि सैन्य प्रशिक्षण और सैन्य सेवा अनुशासन की भावना पैदा करती है, लेकिन क्या 75 प्रतिशत अस्वीकृत अग्निवीर अपनी चार साल की अनुबंध अवधि के दौरान अतिरिक्त देश-भक्ति को आत्मसात करेंगे, यह संदिग्ध है, क्योंकि वे अपने अर्जित सैन्य कौशल को सर्वश्रेष्ठ भुगतानकर्ता को बेच सकते हैं। विशेष रूप से, राष्ट्रीय कैडेट कोर का आदर्श वाक्य, जो छात्रों को सैन्य प्रशिक्षण प्रदान करता है, "एकता और अनुशासन" है, क्योंकि देश भक्ति पर अलग से जोर देने की जरूरत नहीं है।

जल्दबाज़ी में लागू की गई एक अन्य योजना

भारत 1995 में विश्व व्यापार संगठन में शामिल हुआ था, 2009 में भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण की आधार प्रणाली लागू की गई, 2016 में चार घंटे की नोटिस पर नोटबंदी की गई, और 2017 में अपर्याप्त रूप से तैयार माल और सेवा कर यानी जीएसटी को रोल-आउट किया गया, चार घंटे के नोटिस पर 2020 में राष्ट्रीय कोविड लॉकडाउन लगा दिया गया था, और 2020 के कृषि कानूनों पर ध्यान दें, यह सब संसद में बहुत कम या बिना चर्चा के पारित हुए, और संबंधित हितधारकों से उक्त किसी भी मामले में कोई परामर्श नहीं लिया गया था। अग्निपथ 2022 बड़े पैमाने पर, दीर्घकालिक राष्ट्रीय निहितार्थ वाली ऐसी योजनाओं में नवीनतम है, जिन्हें संसद में चर्चा या परामर्श के बिना लागू करने के लिए धकेल दिया गया है।

अग्निपथ योजना को लेकर युवाओं में अप्रत्याशित, स्वतःस्फूर्त आक्रोश था और परिणामस्वरूप निंदनीय हिंसा हुई। जाहिर तौर पर जवाब में, सरकार ने ऊपरी आयु सीमा को केवल 2022-23 के लिए 23 वर्ष तक बढ़ाने की घोषणा की। अग्निपथ को पायलट के रूप में पेश करने से बचा जा सकता था।

कथित तौर पर, 2019 में, टूर ऑफ़ ड्यूटी के लिए सेना मुख्यालय के एक अवधारणा पत्र ने 100 अधिकारियों और 1,000 सैनिकों की एक पायलट परियोजना की सिफारिश पेश की है। हालांकि, हालांकि अग्निपथ योजना की घोषणा बिना पायलट के की गई थी, सैन्य मामलों के विभाग के अतिरिक्त सचिव लेफ्टिनेंट जनरल अनिल पुरी ने कहा कि रक्षा सेवाओं, केंद्रीय रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों और अन्य सरकारी विभागों के साथ 254 बैठकों और 750 घंटे से अधिक की चर्चा के बाद अग्निपथ को अंतिम रूप दिया गया था। उन्होंने यह भी कहा कि अग्निपथ सेना की युद्ध क्षमता में सुधार करेगा, लेकिन इसे प्रमाणित करने के लिए कुछ भी प्रमाण नहीं दिया।

प्रारंभिक मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, अग्निपथ योजना (1) सशस्त्र बलों की आयु प्रोफ़ाइल को कम करने, और (2) सरकार द्वारा रक्षा पेंशन भुगतान को कम करने के लिए थी।

आयु प्रोफ़ाइल के बारे में, केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था कि अग्निपथ एक परिवर्तनकारी पहल थी जो सशस्त्र बलों को एक युवा प्रोफ़ाइल प्रदान करेगी।

अग्निपथ योजना से सैनिकों की सांख्यिकीय रूप से "अधिक युवा प्रोफ़ाइल" बनाने की उम्मीद की जा रही है, जिससे फ्रंटलाइन इकाइयों की वर्तमान आयु प्रोफ़ाइल को वर्तमान में 32 वर्ष से घटाकर चार से छह वर्षों में 26 वर्ष कर दिया जाएगा। यह निर्विवाद है कि सैन्य अभियानों में प्रभावी प्रदर्शन के लिए सेना को "युवा" होने की जरूरत है, लेकिन "अधिक युवा प्रोफ़ाइल" बनाने का विचार यह मानता है कि वर्तमान (पूर्व-अग्निवीर) युवा आयु प्रोफ़ाइल किसी तरह अपर्याप्त है। यह धारणा पूरी तरह से गलत है, क्योंकि पिछले दशकों में किसी भी ऑपरेशन के वातावरण में वर्तमान नियमित कैडर सैनिक का मुकाबला, प्रदर्शन के संदेह से परे साबित होता है, और इसमें किसी भी तरह की कमी नहीं है। यहाँ "यदि यह टूटा नहीं है, तो इसे ठीक न करें" का गूढ़ ज्ञान दिमाग में आता है।

सरकारी सूत्रों ने यह सरल तर्क दिया कि चूंकि सैन्य पेंशन का बोझ बहुत अधिक है, और चूंकि सेना के आधुनिकीकरण के लिए धन की जरूरत है, इसलिए पेंशन बिल को कम करने से आधुनिकीकरण के लिए धन मिल पाएगा। यहाँ अंकगणित को एक तरफ रखकर तर्क दिया जा रहा है कि सेना का आधुनिकीकरण केवल सेना के लाभ के लिए है, और मानो राष्ट्रीय सुरक्षा केवल सेना की जिम्मेदारी है।

अग्निपथ योजना को रक्षा पेंशन बिल को कम करने की विधि के रूप में बताया गया था, क्योंकि 75 प्रतिशत अग्निवीर चार साल के लिए गैर-पेंशन योग्य सैन्य सेवा प्रदान करेंगे, 25 प्रतिशत अग्निपथ को नियमित कैडर के रूप में अवशोषित किया जाएगा।

"अधिक युवा प्रोफ़ाइल" बनाने का विचार यह मानता है कि वर्तमान (पूर्व-अग्निवीर) युवा आयु प्रोफ़ाइल किसी तरह अपर्याप्त है। यह धारणा पूरी तरह से गलत है, क्योंकि पिछले दशकों में किसी भी ऑपरेशन के वातावरण में वर्तमान नियमित कैडर के सैनिक का मुकाबला, प्रदर्शन के संदेह से परे साबित होता है, और इसमें किसी भी तरह की कमी नहीं है।

यह एक और बात है कि रक्षा मंत्री, सिंह ने कथित तौर पर कहा कि अग्निपथ योजना पैसे बचाने के लिए नहीं है, शायद यह उन्हौने इस लिए कहा क्योंकि देश भर में संभावित अग्निवीर युवाओं के बीच इस योजना को लेकर बहुत निराशा और मोहभंग था। अग्निपथ योजना चार से छह वर्षों के बाद सालाना लगभग 50,000 युवाओं के लिए चार साल के रोजगार की राहत के रूप में दिखाई देती है, उनमें से केवल 25 प्रतिशत को वास्तविक लाभ होगा – ये देश भर में लाखों बेरोजगारों में से होंगे!

यह बेहद खेदजनक है कि चीनी और पाकिस्तानी सशस्त्र बलों की चल रही शत्रुता के बावजूद, सेना की युद्ध-लड़ने की क्षमता पर अग्निपथ योजना का प्रभाव एक गैर महत्व वाली मुद्दा या मुद्दा ही नहीं था। इसके अतिरिक्त, हमारी सेना के सामने आंतरिक सुरक्षा का "आधा मोर्चा" भी खुला हुआ है, और यह राजनीतिक-नौकरशाही-पुलिस की संयुक्त अयोग्यता के कारण है।

अग्निपथ को फिलहाल के लिए अलग रखते हुए, सरकार सेना की रेजिमेंटल प्रणाली को बदलने पर भी आमादा है, जो युद्ध-लड़ाई प्रभावशीलता की साबित नींव पर है। बताया गया कारण यह है कि रेजिमेंटल प्रणाली ब्रिटिश मूल की है और इसे बदलने की जरूरत है। एक बार फिर, "यदि यह टूटा नहीं है, तो इसे ठीक न करें" के ज्ञान पर ध्यान दिया जाना चाहिए। विशेष रूप से, राजनीतिक कारणों से दूरगामी सैन्य संगठनात्मक परिवर्तन करना, रणनीतिक छोटी समझ को प्रदर्शित करता है।

अग्निपथ योजना को वापस लिया जाना चाहिए

कई वरिष्ठ-रैंकिंग, अनुभवी दिग्गजों ने अग्निपथ योजना के बहुआयामी नकारात्मक प्रभाव, सेना के प्रस्तावित डी-रेजिमेंटेशन और राष्ट्रीय सुरक्षा पर परिणामी नकारात्मक प्रभाव पर गहरी चिंता व्यक्त की है। वे अग्निपथ योजना को वापस लेने और सेना के लड़ाकू हथियारों की संरचना के साथ छेड़छाड़ नहीं करने का आह्वान कर रहे हैं। विशेष रूप से, सेना के एक वरिष्ठ वयोवृद्ध, जो सरकार की आलोचना करने वाली किसी भी बात पर अथक रूप से भड़कते हैं, ने भी अग्निपथ योजना और डी-रेजिमेंटेशन दोनों का स्पष्ट रूप से विरोध किया है।

यह बेहद खेदजनक है कि चीनी और पाकिस्तानी सशस्त्र बलों के साथ चल रही शत्रुता के बावजूद, सेना की युद्ध-लड़ने की क्षमता पर अग्निपथ योजना का प्रभाव कोई मुदा नाहें या गैर-महत्व वाला  मुद्दा था।

थल सेना, नौसेना और वायु सेना के वरिष्ठ सेवारत अधिकारी अपर्याप्त रूप से सोची-समझी अग्निपथ योजना को लागू कर रहे हैं। क्या वे इसी तरह डी-रेजिमेंटेशन को लागू करेंगे, यह देखा जाना अभी बाकी है, हालांकि वर्तमान में सरकार उस गाने अभी गा नहीं रही है।

अब समय आ गया है कि सरकार योजनाओं, प्रस्तावों, परियोजनाओं आदि के संबंध में अधिक पारदर्शी और खुले तौर पर काम करे - विशेष रूप से बिना मिसाल के कुछ न करे, जैसे कि अग्निपथ और डी-रेजिमेंटेशन न करे – और योजनाओं को अमल में लाने से पहले लोगों और विशेषज्ञों के साथ चर्चा और परामर्श से काम करे, और शासन के लोकतांत्रिक साधनों का इस्तेमाल करे। 

दुख की बात है कि अग्निपथ योजना से उज़ाला कम और गर्मी अधिक पैदा हो रही है। सरकार को राष्ट्रहित में पायलट के रूप में इसे इस्तेमाल करने पर सावधानीपूर्वक पुनर्विचार और जांच करनी चाहिए और इसलिए इसे वापस लेने की सलाह सही है।  

मेजर जनरल वोमबाटकेरे, सुप्रीम कोर्ट में चल रहे देशद्रोह के मामलों में याचिकाकर्ताओं में से एक हैं और संवैधानिक क़ानून और क़ानूनी मामलों में ख़ुद को एक आम आदमी मानते हैं।

सौजन्य: द लीफ़लेट

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें: 

Agnipath Scheme: Generating More Heat Than Light?

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