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आज मुख्यधारा से नहीं वैकल्पिक पत्रकारिता से है उम्मीद

सीएएजे में वक्ताओं ने साफ़ कहा कि हालात इमरजेंसी से भी बदतर हैं और मुख्यधारा की पत्रकारिता सूचना देने के नहीं सूचना छिपाने के धंधे में है। वैकल्पिक पत्रकारिता के बारे में गंभीरता से विचार करने की ज़रूरत है।
सीएएजे

दिल्ली पत्रकारों के खिलाफ हो रहे हमलों  को सुन रही है। सुनने की जगह कॉन्स्टिट्यूशन क्लब है। दो दिन के सम्मेलन में शनिवार को पहले दिन सुबह से  लेकर शाम तक पत्रकारों के  खिलाफ जारी हमलों  पर बातचीत की गई। इस बातचीत में देश के हर कोने से आए पत्रकार और जागरूक नागरिक भागीदार बने। यही क्रम आज रविवार को भी जारी है।

उद्घाटन सत्र को  देशबंधु अख़बार के एडिटर इन चीफ़ ललित सुरजन और अभिनेता/सामाजिक कार्यकर्ता प्रकाश राज ने संबोधित किया। अध्यक्षता इकोनोमिक एंड पॉलिटीकल वीकली के एडिटर रह चुके और  वर्तमान में तीसरी दुनिया के संपादक आनंद स्वरूप वर्मा और संचालन मीडिया विजिल के संस्थापक संपादक डॉ.पंकज श्रीवास्तव ने किया। पत्रकारों की अंतरराष्ट्रीय संस्था CPJ (कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नल्सिट) के भारतीय प्रतिनिधि कुणाल मजूमदार ने पत्रकारों की स्थित पर रिपोर्ट पेश की और संगठन की ओर से आयोजन को समर्थन दिया।

वक्ताओं ने साफ़ कहा  कि हालात इमरजेंसी से भी बदतर हैं और मुख्यधारा की पत्रकारिता सूचना देने के नहीं सूचना छिपाने के धंधे में है। वैकल्पिक पत्रकारिता के बारे में गंभीरता से विचार करने की ज़रूरत है। ललित सुरजन ने गुरिल्ला पत्रकारिता की ज़रूरत पर ज़ोर देते हुए कहा कि पत्रकारिता जोखिम लेने का काम है और इसका रिश्ता तक़लीफ़ से हैं। युवा पत्रकारों को चाहिए कि छोटे-छोटे प्रयासों और सोशल मीडिया के ज़रिये बड़े-बड़े सत्य का उद्घाटन करने का जोखिम लें। आनंद स्वरूप वर्मा ने कहा कि जब सब कुछ गलत हो रहा हो  तो बोलना ही दुनिया का सबसे सार्थक काम है। प्रकाश राज ने पत्रकार  गौरी लंकेश और उनके पिता को याद करते हुए  जनपक्षधर पत्रकारिता और चकाचौंध वाली पत्रकारिता के फ़र्क़ को बताया। उन्होंने बताया कि  “गौरी लंकेश के पिता उनके मेंटर थे और  बिना विज्ञापन के  पत्रिका निकालते थे। विज्ञापन लेना भी उन्हें पत्रकारिता के खिलाफ लगता था। इस दौर में ऐसे बाप की बेटी को मारा गया है। इसके खिलाफ मैं कुछ नहीं कर रहा  केवल अपना नागरिक कर्तव्य निभा रहा हूं। कर्नाटक चुनाव से पहले भी राज्य के हर हिस्से में घूमकर जनता को जागरूक करने का काम कर भी  मैंने  केवल अपना नागरिक कर्तव्य निभाया था।” 

उद्घाटन सत्र में उत्तराखंड संघर्ष वाहिनी के नेता शमशेर सिंह बिष्ट के निधन की खबर आयी। इस  निधन पर शोक जताते हुए दो मिनट का मौन रखकर उन्हें श्रद्धांजलि दी गई।

इसके बाद पत्रकारों की हत्या और उन पर हो रहे शारीरिक हमले के विषय पर दूसरे सत्र का आयोजन हुआ। इस सत्र में उन  पत्रकारों  के परिजनों ने  अपनी बात रखी जिनकी सच के लिए लड़ते हुए हत्या कर दी गई और जिन्हें इस हिम्मत के लिए शारीरिक हमलों का शिकार होना पड़ा।

बिहार के सीवान से आईं पत्रकार  जयदेव रंजन की पत्नी आशा रंजन ने अपनी पति के हत्या बारे में बताया। उन्होंने आरोप लगाया कि एक निर्भीक पत्रकार को राष्ट्रीय जनता दल की शह पर  सीवान के दबंग शहाबुद्दीन ने मरवा दिया। यह घटना  राष्ट्रीय स्तर से लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर की खबर बनी लेकिन अभी तक इसमें इंसाफ नहीं मिला है। 

पद्मश्री से सम्मानित पूर्वोत्तर की पत्रकार  पैट्रिशिया ने कहा कि भारत की मुख्य भूमि पूर्वोत्तर का दर्द नहीं समझ सकती। हमारे लिए भारतीय राष्ट्र का कोई मतलब नहीं। ऐसे हालात में दिल्ली, मेघालय के पत्रकार पर हो रहे हमलों का संज्ञान लेगी, इसकी उम्मीद करना खुद को धोखा देना है। कुछ इसी तरह की बातें जम्मू कश्मीर के पत्रकार जलील राठौर ने भी कीं। जलील राठौर बताते हैं कि कश्मीर में पत्रकारिता करना दुनिया का सबसे मुश्किल काम है। कश्मीर में मीडिया हाउस को निजी क्षेत्र से विज्ञापन लेने का अधिकार नहीं है केवल राज्य ही विज्ञापन दे सकते हैं। ऐसी स्थिति में अगर राज्य ने मुंह फेरा  तो मीडिया हाउस को बन्द होने में मिनटों नहीं लगते। इसके साथ हमें भारतीय समर्थक या  उग्रवादी समर्थक जैसे खांचों में डालकर हमारे जरिये बताए जा रहे  सच को  बर्बाद करने की कोशिश की जाती है। जलील राठौर अपना खुद का वाक्या सुनाते हुए कहते हैं कि किस तरह  उन्हें उग्रवादी समर्थक बताकर मीडिया प्रतिष्ठान ने नौकरी देने से मना कर  दिया। ऐसे तमगे जम्मू कश्मीर के पत्रकारों का भविष्य बन चुके हैं।

इसके बाद मीडिया वीजिल के पत्रकार अभिषेक श्रीवास्तव ने मध्य प्रदेश के भिंड जिले में हुई पत्रकार संदीप वर्मा की दर्दनाक मौत के बारे में बताया। संदीप वर्मा ने पुलिस और रेत खनन माफिया के बीच हुई आपसी सांठगांठ के बातचीत का वीडियो चैनल पर चलवा दिया था। इसके बाद संदीप वर्मा के खिलाफ मौत की धमकियां आने लगीं।  संदीप वर्मा ने पुलिस संरक्षण की मांग भी की। लेकिन संदीप को पुलिस संरक्षण नहीं मिला। एक दिन वह रास्ते से जा रहे थे और एक ट्रक उन्हें कुचल कर चला गया। उनके परिवार के लिए हालात इतने ख़राब हो गए हैं  कि परिवार   भिंड में  अपना घर किराये पर देकर इंदौर में किराये के घर में रहने  लगा है  ताकि घर के दीवारें संदीप वर्मा की याद न दिलाएं।

अंतिम सत्र सोशल मीडिया पर चल रहे ट्रोलिंग  के विषय से जुड़ा था। इस सत्र में भागीदारी जाने माने पत्रकार रवीश कुमार, नेहा दीक्षित और निखिल वाघले ने की। रवीश कुमार ने कहा कि सोशल मीडिया पर जहर उगला जा रहा है। इस जहर को पढ़कर रात में नींद नहीं आती है। लिखने से पहले कलम को कई बार डर भी लगता है। ऐसे माहौल में भी खुद को दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी मानने वाली संगठन  मेरे शो का बहिष्कार करती है। ट्रोलिग करवाती है। ऐसी हरकतों से मुझे लगता है  कि  खुद को दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी मानने वाले पार्टी के लोग एक छोटे से पत्रकार से डरते हैं। वही लोग और अधिकारी  जो 2011 में मेरे शो में आने के लिए सन्देश भेजा करते थे अब वह सब गायब हैं। मुझे लगता है कि मेरा नाम सुनते ही उन्हें पसीना आ जाता होगा। अगर आप ऐसे लोगों के समर्थक हैं तो आप पहलू खान और अखलाक का मत सोचिए, कम से कम ये तो सोचिए कि उन्हें मारने वाली भीड़ में अगर आपका बेटा शामिल हो तो आप उनके बारे में क्या सोचेंगे।

जानी-मानी महिला पत्रकार नेहा दिक्षित ने कहा कि औरतों के साथ की जाने वाली सोशल मीडिया की ट्रोलिंग मर्दों के मुकाबले कई गुना गन्दी है। हमें हर काम के लिए किसी के साथ सोने वाला बता दिया जाता है और हमारा शारीरिक चारित्रिक चित्रण किया जाता है। ऐसा चित्रण की मुझे यह सब बताने में भी  तकलीफ हो रही है। 

वरिष्ठ पत्रकार निखिल वाघले कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि धमकियां और गालियां इसी दौर में मिलना शुरू हुईं हैं। इनका सामना करते हुए मुझे आज 40 साल हो गए लेकिन यह दौर सबसे बुरा दौर है। इसे रोकने के लिए हमें सांस्थानिक तौर पर काम करना चाहिए।

सम्मेलन में शनिवार को पूरे दिन पत्रकारों और पत्रकारिता पर हमले को लेकर ऐसी-ऐसी सच्ची कहानियां सुनने को मिली की कह सकते हैं कि ये पूरा दिन हिम्मत भरा लेकिन रुलाने वाला था।   

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