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अला अब्द फताह: आज़ादी का संघर्ष

अला अब्द फताह एक इजिप्टियन राजनैतिक, मानवअधिकार कार्यकर्ता एवं सॉफ्टवेयर विकासक हैं। उन्हें पिछले दिसम्बर को गिरफ्तार किया गया था और उनका अपराध था बिना अनुमति लिए विरोध प्रदर्शन करना। इस प्रदर्शन  की मुख्य मांग यह थी कि उस कानून को निरस्त किया जाए जिसके तहत आम आदमी को भी अपराध के लिए सैन्य न्यायलय में पेश किया जाता है। यह विरोध प्रदर्शन उस फैसले के तुरंत बाद आयोजित किया गया था जिसमे नए विरोध कानून बनाये गए । इस विरोध कानून के तहत प्रदर्शन देने के अनुमति का अधिकार केवल आतंरिक मामलों के मंत्रालय के पास होगा। सरकार ने इस कानून को लाने की वजह यह दी थी कि इसका मकसद मुस्लिम ब्रदरहुड द्वारा रोजाना आयोजित किए जा रहे विरोध प्रदर्शनों पर लगाम लगाना है। जबकि धर्मनिर्पेक्ष कार्यकर्ताओं के अनुसार यह कानून अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कुचलने का एक तरीका था जिससे सरकार के खिलाफ उठे सभी प्रतिरोध को दबाया जा सके। फताह और अन्य प्रदर्शनकारियों पर पुलिस पर हमला और हिंसा का आरोप लगाया गया और उन्हें पुलिस हिरासत में रख लिया गया था। जब एक तरफ बाकी सभी को जमानत दे दी गई वहीँ फताह को ४ महीने तक जेल में रखा गया। जून में जब न्यायिक प्रक्रिया शुरू हुई तो सभी प्रदर्शनकारियों को १५ साल की सजा सुनाई गई । यह सज़ा तब दी गई जब किसी भी अभियुक्त को न्यायलय में प्रवेश नहीं दिया जा रहा था। क्योंकि यह सज़ा अभियुक्तों की अनुपस्थिति में सुनाई गई थी अतःकेस की सुनवाई फिर शुरू की गई। जब २२ जुलाई को सुनवाई फिर शुरू हुई तो न्यायालय ने फताह, मोह्म्मद नोबी और वैल मेत्वाली के अलावा बाकी सभी को रिहा कर दिया। अगली सुनवाई 10 सितम्बर को है।

हाल ही में अला अब्द फताह जब अपने बीमार पिता अहमद सिफ सेमिलने गए तो उन्होंने जेल में ही अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर जाने की घोषणा की। उन्होंने अपने विचार एक पत्र के जरिये भी व्यक्त किए जो नीचे अनुवादित है। फताह और आन्दोलन के बारे में आगे जानने के लिए यहाँ पढ़े http://weekly.ahram.org.eg/News/7099/17/Hungry-for-justice.aspx 

पत्र

आज ४ बजे मैंने अपने साथियों के साथ जेल में अपना आखिरी भोजन लिया। आज जबमैंने अपने पिता को मौत से लड़ते देखा तो निश्चय किया कि मैंने अपनी रिहाई के लिए अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर जाने का फैसला किया है। मेरे शरीर का सही हालत में रहने का तब तक कोई अर्थ नहीं जब तक मेरा शरीर इस खुले कारावास में बंद है, और जहाँ न न्याय की उम्मीद है न न्याय पालिका के सही होने की।

मैंने पहले भी ये सोचा था पर बाद में इस फैसले को नजरंदाज कर दिया था। मै अपने परिवार पर एक और बोझ नहीं बढ़ाना चाहता था। हम सभी को पता है कि हड़ताल पर जाने वालों के परिवार के साथ मंत्रालय का सलुख करता है। पर अब मुझे अहसास हो गया है कि मेरे जेल में रहने के कारण मेरे परिवार की मुश्किलें लगातार बढती ही जा रही हैं।  मेरी छोटी बहन सना और एत्थादिया के प्रदर्शनकारियों को इसलिए गिरफ्तार किया गया क्योंकि वे उनकी रिहाई की मांग कर रहे थे जो बिना किसी सबूत के सजा काट रहे हैं।उन्होंने मेरी बहन को इसलिए जेल में डाल दिया क्योंकि वो मेरी रिहाई की मांग कर रही थी।   

उन्होंने मुझे अपने बेटे खालिद से अलग कर दिया जो मेरी गिरफ्तारी के सदमे से गुजर रहा था। फिर आतंरिक सुरक्षा के मंत्रालय ने अपने “ मानवीय मूल्यों” को तब दर्शाया जब मैं अपने बीमार पिता से मिलने गया । पुलिस ने पूरा अस्पताल खाली करवाने की कोशिश की, और सभी डॉक्टर, नर्स और मरीजों के परिवार को वहां से जाने के लिए कहा। उन्होंने समय निर्धारित किया, हमे सूचित किया और बाद में उससे निरस्त भी कर दिया। पुलिस निर्देशक यह नहीं सोच पा रहे थे कि आखिर कैसे यह सुनिश्चित किया जाए कि मई वहां भी कैद में रहूँ। उन्हें यह भी यकीन था कि उस समय और कोई बीमार नहीं पड़ेगा इसीलिए पुरे अस्पताल को खाली करवा दिया गया। अंततः मुझे लोहे की जंजीरों में बाँध कर वहां लाया गया और हमरे विरोध के बावजूद इस पूरी पारिवारिक मुलाकात को कैमरे में कैद किया गया।

यह सभी मेरे उस समझ को और मज़बूत करता है कि संयम रखने से मेरी माँ लैला, बहन मोना और मेरी पत्नी मनाल को कोई राहत नहीं मिलेगी।  यह इंतज़ार मेरे परिवार की कठिनाइयों को कम करने के बजाए उन्हें भी मेरी तरह एक कैदी बना रहा है । एक ऐसा कैदी जिससे उस व्यवस्था की हर बात माननी पद रही है जिसमे न तो मानवता है और न ही न्याय के प्रति ज़िम्मेदारी।   

मैंने पहले भी न्यायलय और जेलों का सामना किया है। मै उन्हें प्रतिरोध के आवश्यक और अपेक्षित कीमत के तौर पर देखता था।  जिसमे उसूल, अधिकार और न्याय के लिए लड़ने का एक मौका मिलता है।  हर सुनवाई एक और मौका देती थी अपनी आवाज़ न्याय के लिए और बुलंद करने की।  पर जब मई अपने न्यायाधीश के सामने खड़ा हुआ तो मुझे वहां सबसे बेकार न्याय प्रणाली के मुकाबले भी बेहद कम न्याय की उम्मीद दिखी । नियम, कानून सभी को दर-किनार होते हुए देखा।  हालकी हम अपने केस के सारे तथ्य खुले तौर पर उजागर करने में कामयाब हुए थे पर किसी एक न्यायाधीश ने तोरा पुलिस संस्थान में चल रही सुनवाई के खिलाफ आवाज़ उठाना मुनासिफ नहीं समझा।

जेल में बिता हुआ मेरा हर एक दिन मुझे न्याय की उम्मीद से दूर कर रहा ।  जेल मुझे इस न्यायपालिका के प्रति घृणा के सिवा और कुछ नहीं दे रहा।  

जबसे इस्लामिस्ट कट्टरपंथियों और सरकार के बीच जंग शुरू हुई थी, मैंने यह साफ़ कर दिया था कि इसका आम जनता पर कोई असर नहीं पड़ना चाहिए।  जब रुढ़िवादी ताकतो के ऊपर ज़िम्मेदारी आती है कि वे स्थिरता उत्पन्न करें, और जब ऐसी जंग शुरू होती है जिसका कोई अंत नहीं होता, तब क्रांति की आस लिए बैठे लोगो से यही उम्मीद की जाती है कि वे इस जंग को विराम के लिए प्रेरित करें और समाज में स्थिरता लाए।  मैंने हमेशा ही कहा है कि हमें हिंसा के उन सभी के साथ खड़ा होना चाहिए जो पीड़ित हैं, चाहे फिर उनकी पहचान अलग अलग ही क्यों न हो। मैंने यह भी कहा है कि हमें ऐसी परिस्थिति में जीवन जीने और अभिव्यक्ति के अधिकार के होते हनन के खिलाफ आवाज़ उठानी चाहिए।  क्योंकि आज जीवन की जो नीव है वो ही खतरे में है, हमारी आजादी पर भी सवाल है।  

और मै केवल अपने जीवन की रक्षा के लिए नहीं लड़ रहा। मेरे साथी और भी हैं , भले उनकी आवाज़ इस लगातार चल रहे जंग के कारण दब गई हो। पर इस जंग में मेरे सबसे करीबी सहयोगी और साथी जो जीवन के लिए लड़ रहे हैं वो मेरे परिवार वाले ही रहे हैं ।

मेरी गिरफ्तारी मेरे परिवार द्वारा किए जा रहे लगातार संघर्ष का जवाब था। हम सब साथ में उन हज़ारो व्यक्तियों के संघर्ष का हिस्सा थे जिन्होंने कभी हार नहीं मानी है । आज यह संघर्ष खतरे में । सना जो मेरा ध्यान रखती थी अब जेल में हैं और अब किसी और को उसका ध्यान रखना पड़ता  है।मनाल,खालिद को उस मानसिक तनाव से बचाने की कोशिश कर रही है जो उससे मेरी गिरफ्तारी के बाद झेलना पड़ रहा है।  इसीलिए मै आपकी आज्ञा चाहता हूँ कि मै यह लड़ाई लड़ सकूँ , केवल अपनी नहीं बल्कि मुझसे जुड़े सभी व्यक्तियों की आज़ादी के लिए।   आज से मै अपना खाना इसलिए छोड़ रहा हूँ ताकि मई जल्द रिहा हो सकूँ और अपने बीमार पिता के पास जा सकूँ।  मै आपसे आपकी दुआ, सहयोग की आशा करता हूँ। मै आपसे अनुरोध करता हूँ की आप उन कार्यो को आगे बढ़ाएं जिन्हें मै पूरा नहीं कर पा रहा- और वो है संघर्ष, उम्मीद और आज़ादी के स्वप्न देखना।

अगस्त 18, २०१४

हड़ताल का पहला दिन

 

डिस्क्लेमर:- उपर्युक्त लेख मे व्यक्त किए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत हैं, और आवश्यक तौर पर न्यूज़क्लिक के विचारो को नहीं दर्शाते ।

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