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अफ़ग़ानिस्तान में जंग के खात्मे को लेकर बाइडेन ने जो कुछ कहा, वह लगभग सब झूठ था

जबकि अमेरिकियों ने राष्ट्रपति जोए बाइडेन सरकार के कदम का स्वागत किया था कि दो दशकों के युद्ध के पश्चात अब अमेरिकी सेना अफगानिस्तान से लौट आएंगी, बाइडेन ने युद्ध के बारे में और आगे यह जंग कैसे जारी रहेगी जैसी खासी जानकारियों को साझा नहीं किया।
जोए बाइडेन
चित्र सौजन्य: नेशनल हेराल्ड

अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिकी युद्ध के अंत की घोषणा असल में दिखावटी है और राष्ट्रपति जो बाइडेन वहां निहित यथास्थिति को बनाये रखते हुए प्रगतिशील मक़सदों को लेकर अपनी बनावटी प्रेम को दिखाना जारी रखा हुआ है। उन्होंने व्हाइट हाउस से 14 अप्रैल को टीवी पर प्रसारित अपने संबोधन में कहा, “यह समय अमेरिका के लंबे युद्ध को समाप्त करने का है। यह समय अमेरिकी फौजों को अपने घरों में लौटने का है।” लेकिन इस मुनादी के एक दिन बाद ही, न्यूयार्क टाइम्स ने विडम्बना के संकेत दिये बिना ही खबर दी कि “पेंटागन, अमेरिकी खुफिया एजेंसियां और पश्चिमी सहयोगी अफगान की सरजमीं पर कम दिखने वाली किंतु एक ताकतवर बल को बनाये रखने की परिष्कृत परियोजना पर काम कर रहे हैं।” इसका मतलब तो यही हुआ न कि हम जंग के खात्मे का ऐलान तो कर रहे हैं, लेकिन हकीकत में ऐसा कुछ भी नहीं करने जा रहे हैं। 

बाइडेन के संबोधन के बाद के कुछ ही दिनों में, अमेरिकी नेताओं और जनरलों ने युद्ध के भविष्य को ले कर कहीं अधिक सटीक आकलन प्रस्तुत किए। सीआइए के पूर्व आला अफसर और आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध के विशेषज्ञ माने जाने वाले मार्क पॉलिमरोपोलोस ने इस बारे में टाइम्स को बताया, “हम वास्तव में इस पर चर्चाएं कर रहे हैं  कि किस तरह हम खुफिया सूचनाएं इकट्ठी करें और काबुल में दूतावास की हमारी अपरिहार्यता के अलावा,  वहाँ बिना किसी सैन्य ढांचे या सैनिकों की मौजूदगी के ही आतंकवादी लक्ष्यों के खिलाफ प्रभावी कार्रवाई करें।” दूसरे शब्दों में, अमेरिका दूर बैठ कर अफगानिस्तान के खिलाफ जंग करना चाहता है, जैसा कि उसने यमन, सीरिया और सोमालिया  में किया है। 

अमेरिकी रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन ने जमीन पर सैनिकों के उतारे बिना ही अमेरिका के युद्ध लड़ने की काबिलियत को उजागर करते हुए कहा, “इस दुनिया में शायद ऐसी कोई जगह ही नहीं है, जहां अमेरिका औऱ उसके सहयोगी देश नहीं पहुंच सकते हों।” मैरिन कॉर्प्स के जनरल कीनिथ मैकेंजी जूनियर ने एक अमंगलसूचक संदर्भ में 20 अप्रैल को हाउस आर्म्ड सर्विस कमेटी की एक सुनवाई में यह कहते सुने गये “अगर हम किसी चीज (अफगानिस्तान में) पर हमला करेंगे, तो हम इसे सशस्त्र संघर्ष कानून और युद्ध के अमेरिकी तौर-तरीके के साथ हमला करेंगे।”

ऐसे में कोई भी यह अनुमान लगा सकता है कि “युद्ध का अमेरिकी तरीका” परम्परागत युद्ध, जहां सेना एक देश पर कब्जा कर लेती है, से अलग-एक ऐसी लड़ाई से है, जो सामान्य तौर पर अमेरिकी जनता के बीच गहराई तक अलोकप्रिय है। सबके सामने खुलेआम सेना की वापसी का वादा करते हुए चुपचाप लगातार हवाई हमले की योजना बनाते या हमले करते रह कर, बाइडेन यह सुनिश्चित करते हैं कि अफगानिस्तान के खिलाफ हिंसा या खून-खराबा अमेरिकी जनता की आंखों से ओझल ही रहे। 

राष्ट्रपति बाइडेन ने अपने भाषण में इसका भी उल्लेख नहीं किया कि भाड़े के 10 हजार से भी अधिक निजी सैनिक अफगानिस्तान में लड़ रहे हैं। न्यूयार्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक “16,000 भाड़े के नागरिक, जिनमें 6,000 अमेरिकी हैं, जो अब अफगानिस्तान में सुरक्षा, लॉजिस्टिक और अन्य तरह की सहायताएं प्रदान करते हैं।” अखबार न तो यह पूछना उचित मानता है कि जब सेना मोर्चा संभाले रहेगी, तो वहां युद्ध कैसे समाप्त हो सकता है और न यह पूछना कि बाइडेन हवाई हमले लगातार जारी रखते हुए जंग के खात्मे का ऐलान कैसे कर सकते हैं। 

कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के ब्रेकली में इतिहास संकाय में अफगान अमेरिकी प्राध्यापक डॉ हकीम नईम; जिनका अफगानिस्तान में जन्म हुआ और अमेरिका आने के पहले संसार के अनेक देशों में एक शरणार्थी और विस्थापित के रूप में रहे थे,  ने एक अपने इंटरव्यू में उस बात पर फोकस करते हैं, जिसे बाइडेन ने अपने भाषण में (जानबूझ कर?) अनकहा छोड़ दिया था : कि “अमेरिका ने वहां अधिकतर अभिजात्य समूहों का समर्थन कर एक अराजकता रच दी है और माफिया-पद्धति की अर्थव्यवस्था बना दी है,जिसे मादक द्रव्यों के कारोबार के सरदारों, युद्ध स्वामियों और ठेकेदार चलाते हैं।” उन्होंने कहा कि इनमें सबसे बुरा तो यह कि “हुकूमत में तालिबान की वापसी है।” यह अफगानिस्तान को आवश्यक रूप से उसी मोड़ पर छोड़ देना है, जहां से उसने 2001 में शुरुआत की थी। 

अफगान वूमेन फंड की निदेशक फ़हिमा गेज़ डॉ. नईम से इत्तेफाक रखती हुई कहती हैं,“अमेरिका ने अफगानिस्तान में एक बहुत बड़ी कुव्यवस्था फैला दी है और उसने उन मसलों, जिन्हें खुद उसने आज से 40 साल पहले पैदा किये थे, उनके हल ढूंढ़ने में अफगानियों की मदद करने के अनेक वाजिब मौके भी गंवा दिये हैं।” फाहिमा यहां अफगान मुजाहिदीनों को सोवियत संघ के जमाने में हथियारों से लैस करने के वाकयात का हवाला दे रही थीं। सोवियत संघ ने 1970 के दशक के उत्तरार्द्ध में अफगानिस्तान पर आक्रमण किया था और उस पर अपना कब्जा जमा लिया था। दूसरे शब्दों में, 9/11 के बाद किये गये आक्रमण और कब्जे के काफी पहले अफगानिस्तान में शुरू हुई हमारी विघटनकारी संलग्नता आज तक जारी है। अफगानिस्तान में विध्वंस फैलाने की खुद की जिम्मेदारी लेने के बजाय, बाइडेन उस जंग से अमेरिकी सेना की वापसी करने का श्रेय लेना चाहते हैं, जिसमें हमें (2001 से नहीं) 1970 के दशक के उत्तरार्द्ध से ही धकेल दिया गया है और यह तय है कि वह जंग 11 सितम्बर 2021 तक भी खत्म नहीं होगी। 

डॉ नईम के मुताबिक, आज,“सीआइए के हजारों हजार उग्रवादी अफगानिस्तान में सक्रिय हैं और भाड़े के हजारों सैनिक भी जमे हुए हैं, जिनके मकसदों के बारे में अफगान कुछ भी नहीं जानता।” उनका निष्कर्ष है,“यह सोचना निहायत ही मासूमियत भरा और बेहद आसान होगा कि अफगानिस्तान में जंग खत्म हो जाएगी।” फ़हिमा गेज़, जो अफगानिस्तान में अपनी जारी मानवीय सहायता परियोजनाओं की देखरेख के लिए वहां के दौरे पर जाती रहती हैं, ने बताया कि पहली नजर में ही जो वहां दिखाई पड़ता है, वह है-भाड़े के निजी सैनिकों की मौजूदगी। उन्होंने कहा, “उन्हें सीआइए की तरफ से इजाजत और असलहे मिले हुए हैं, और उनका अर्द्ध सैनिक बल के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।” दरअसल, निजी सैनिक के ठेकेदारों की तादाद अमेरिकी सैनिकों की तुलना में काफी बढ़ गई है, इतनी तादाद कि सेना के मुकाबले ये सैन्य ठेकेदार ही अधिक संख्या में मारे गए हैं। एक वॉचडॉग एजेंसी स्पेशल इंस्पेक्टर जनरल फॉर अफगानिस्तान रि-कंस्ट्रक्शन (सिगार/SIGAR), ने चेतावनी दी है कि  सैनिकों की वापसी की तुलना में इन सैन्य ठेकेदारों को हटाने का नतीजा बहुत बुरा होगा।

बाइडेन के भाषण का सर्वाधिक कपटी आयाम उनका इस बात पर बल देना था कि अफगानिस्तान में अमेरिका का बड़ा ही सरल लक्ष्य था और जो पूरा हो गया है। उन्होंने कहा,“हम अफगानिस्तान से अल कायदा की जड़ें खोदने और वहां की सरजमीं से अमेरिका के खिलाफ होने वाले किसी भी हमले को रोकने के लिए 2001 में अफगानिस्तान में दाखिल हुए थे।” और कि “हमारा यह लक्ष्य एकदम स्पष्ट था।” किंतु वहां अमेरिका ने जो या जितना किया, वह उसके तय लक्ष्यों से काफी ज्यादा था। इसने एक कठपुतली सरकार और लोकतंत्र के अपने अनुचित विचारों का एक पैबंद बनाया औऱ उसे अमेरिका व उसके समर्थित युद्ध स्वामियों के साथ जूझ रही अफगान की जनता पर थोप दिया और इस तरह यह सुनिश्चित किया कि धर्मनिरपेक्ष-लोकतांत्रिक अभियान कमजोर ही बने रहें। अमेरिका ने मादक द्रव्यों से लड़ाई में बिलियंस डॉलर्स की रकम लुटा दी, जिसकी परिणति ड्रग उत्पादन को बढ़ावा देने में हुई। इसने विद्रोही गुट को अमन के अपने सहभागी के रूप में चुन कर ही तालिबान को परास्त कर सका। इस अवधि में, 40 हजार से अधिक अफगानी नागरिक मारे गए-इस तादाद के और भी अधिक होने का अनुमान है। 

मौजूदा समय में अफगानिस्तान में राष्ट्रपति अशरफ गनी के नेतृत्व में एक सरकार काम कर रही है, लेकिन वह अपनी वैधता के लिए पूरी तरह अमेरिका तथा तालिबान के कमांड में होने वाली हिंसा तथा हथियारबंद कट्टरपंथी युद्धस्वामियों की दया पर आश्रित है, जिससे अमेरिका के विभिन्न प्रशासनों एवं स्वयं सरकार ने वैधता दे रखी है।  

लेकिन इनमें से किसी भी तथ्य का उल्लेख करना बाइडेन को बहुत आवश्यक नहीं लगा। इसके बजाय, राष्ट्रपति ने दावा किया कि 2001 में, “वह कारण उचित था...और मैंने उस सैन्य कार्रवाई का समर्थन किया था।”  फिर, उस विध्वंसक युद्ध को एक अकेले सरलतम वाक्य में समेटते हुए बाइडेन ने दावा किया कि, “हमने एक दशक पहले बिन लादेन का इंसाफ कर दिया था, और अफगानिस्तान में हमें रहते हुए एक दशक हो गये हैं।”

इन शब्दों के साथ, राष्ट्रपति बाइडेन ने अफगानिस्तान युद्ध का एक लुभाऊ चरित्र-चित्रण किया : कि अमेरिका की मंशा आतंकवाद को जड़ से ऊखाड़ फेंकना था, वह मकसद पा लिया गया है, और इसके बाद हमें वहां से जल्द ही चला आना चाहिए था। अफगान-जंग को ऐसे बेहद विन्रम चश्मे से देखना यह एक आरामदेह ख्याल है-गोया हमारी गलती सिर्फ इतनी है कि हम वहां ज्यादा दिन टिक गये, इसके अलावा हमारी कोई गलती नहीं है। बाइडेन ने निश्चित रूप से इसका भी उल्लेख नहीं किया कि बिन लादेन अफगानिस्तान में नहीं, पाकिस्तान में पकड़ा और मारा गया था। 

युद्ध को लेकर राजनीतिक संवाद से गायब रहने की बहुत बड़ी कीमत हमने 20 साल तक चले इस फालतू की जंग में चुकाई है। यह जंग अफगानिस्तान को भ्रष्ट और निष्प्रभावी सरकार तथा एक नयी सशक्त हुई तालिबानी ताकतों और अन्य दूसरे युद्ध स्वामियों और उग्रवादी संगठनों के हाथों में छोड़ देगी।  ब्राउन यूनिवर्सिटी द्वारा युद्ध परियोजना की लागतों पर किये जा रहे एक प्रोजेक्ट के आकलनों के मुताबिक अमेरिकी करदाताओं की गाढ़ी मेहनत की कमाई का 2.2 ट्रिलियन डॉलर्स धन अफगानिस्तान में गंवा दिया गया है। बाइडेन हमें यह भरोसा दिलाना चाहता हैं कि इसके एवज में बिन लादेन को एक दशक पहले पाकिस्तान में मार कर अमेरिका ने अपना मकसद पूरा कर लिया है। 

ऐसे समय में जब अमेरिकी समाज में असमानताएं लगातार बढ़ रही हैं और उसके राजनीतिक नेता देश की संरचनागत परियोजनाओं अथवा ग्रीन न्यू डील अथवा मेडिकेयर फॉर ऑल के लिए धन की कमी का रोना रोते रहते हैं, अफगान में जारी जंग की कीमत आर्थिक एवं मानवीय दोनों ही मामलों में बढ़ती जा रही है। करदाता हवाई हमलों और निजी सेना के ठेकेदारों के खर्चे के बिल भरते रहेंगे, जिसका अंत होता दिखाई नहीं दे रहा है। अफगानी उसी तरह पीड़ित होते और मरते रहेंगे। 

अफगानिस्तान को ऐसे नजरिये से देखते हुए डॉ नईम ने राष्ट्रपति बाइडेन के भाषण के प्रभाव का सरल शब्दों में सटीक अंकन किया,“एक उपनिवेशवादी और हस्तक्षेप का एक प्राच्यविद समर्थन।”

(सोनाली कोल्हटकर टीवी एवं रेडियो पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रम “राइजिंग अप विद सोनाली” की संस्थापक, मेजबान और कार्यकारी निर्माता हैं। यह कार्यक्रम फ्री स्पीच टीवी चैनल एवं पैसिफिक रेडियो स्टेशन से प्रसारित होता है। वह इंडिपेंडेंट मीडिया इंस्टिट्यूट के इकोनॉमी फॉर ऑल प्रोजेक्ट में राइटिंग फेलो हैं। आलेख में व्यक्त विचार उनके निजी हैं।) 

यह आलेख मूल रूप में इंडिपेंडेंट मीडिया इंस्टिट्यूट के प्रोजेक्ट इकनॉमी फॉर ऑल द्वारा प्रस्तुत किया गया था।      

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें।

Almost Everything Biden Said About Ending the Afghanistan War Was a Lie

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