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अमेरिका के सबसे दौलतमंद के लिए यह महामारी भी झोली भरने का मौक़ा

इस महामारी के दौरान भी अमेरिकी श्रमिक के ख़िलाफ़ अपनी लड़ाई में अमेरिका के दौलतमंद और ज़्यादा दौलतमंद और मोटे होते जा हैं।
Jeff Bezos

अमेरिकन एंटरप्राइज इंस्टीट्यूट (AEI) के माइकल स्ट्रेन ने हाल ही में न्यूयॉर्क टाइम्स में एक ऑप-एड (किसी समाचार पत्र में संपादकीय पृष्ठ के उल्टे पृष्ठ पर टिप्पणी, फ़ीचर लेख आदि) लिखा है, जिसमें बताया गया है कि " अमेरिकी ख़्वाब ज़िंदा है और ठीक-ठाक हाल में है" और उनकी राय में इस देश में "असमानता से बड़े कई और मुद्दे" हैं। स्ट्रेन का यह लेख "द अमेरिका वी नीड" नामक पत्र की नयी महामारी-युग श्रृंखला का हिस्सा है और जो इस निष्कर्ष तक पहुंचने वाले प्रभावशाली मानसिक रूप से सक्रिय एक समूह से जुड़ा हुआ है,जो मानता है कि इस बात को लेकर किसी तरह की चिंता नहीं होनी चाहिए कि अमीर और अमीर हो रहे हैं, बल्कि इसके बजाय "उत्पादकता वृद्धि की अपेक्षाकृत धीमी दर" या "पुरुष रोज़गार में दीर्घकालिक गिरावट" पर ध्यान केंद्रित करना बेहतर होगा।

माइकल स्ट्रेन शीर्ष पर धन के इकट्ठा होते जाने को लेकर हमारी नज़र के टिक जाने पर शक जताते हुए पूछते हैं, "क्या अमेरिका के लोग वास्तव में असमानता को लेकर उतनी ही परवाह करते हैं,जितना कि मीडिया और उदार राजनेता का ध्यान उस पर जाता है ?" वह कहते हैं, "यह देखते हुए कि आय असमानता सबसे हालिया दशक में स्थिर रही है या घट रही है, ‘ऐसी बातचीत के लिए’ यह समय...विकट है कि असमानता यह संकेत दे रही है कि पूंजीवाद ख़ुद टूट रहा है या नहीं।" हालांकि, ग़ैर-बराबरी धीरे-धीरे लगातार बढ़ती जा रही है,मगर एक सच्चाई यह भी है कि मुक्त बाज़ार समर्थक अमेरिकी उद्यम संस्थान इस बात की उम्मीद कर रहा है कि हम इसकी अनदेखी कर दें।

अपने ऑप-एड में स्ट्रेन एक ऐसे मंत्र का जाप बार-बार करते हैं, जिसे वह ख़ुद और पूंजीवाद के दूसरे समर्थक पूरी तरह दोहराते हुए महसूस करना चाहते हैं कि “पूंजीवाद नहीं टूट रहा है। खेल अब भी बिगड़ा नहीं है। कड़ी मेहनत का नतीजा ज़रूर मिलता है।” बहुत अशिष्टता के साथ वे कहते हैं, "अमेरिकी कामगार लचीले हैं और आर्थिक चुनौतियों का सामना करने और उस पर जीत दर्ज करने के आदी रहे हैं।" दूसरे शब्दों में, क्योंकि अमेरिकी श्रमिकों का इस्तेमाल इस अर्थव्यवस्था द्वारा वंचित होने के लिए किया जाता है और ज़्यादातर इसे बनाये रखने में लगता है कि कामयाब भी रहे हैं, वे लगातार बढ़ती कठिनाई के सामने ऐसा करना जारी रखेंगे।

डेमोक्रेटिक सीनेटर,शेरोड ब्राउन (डी-ओहियो) ने 19 मई को सीनेट की सुनवाई के दौरान ट्रेजरी सेक्रेटरी स्टीवन मनुचिन से सवाल किया, "अगर हम सुरक्षा की ज़रूरत के बिना लोगों को काम पर वापस भेजते हैं, तो कितने कर्मचारी मरेंगे?" हमारे [सकल घरेलू उत्पाद] को आधा प्रतिशत बढ़ाने के लिए कितने श्रमिकों को अपना जीवन बलिदान कर देना चाहिए? " मनुचिन ने जवाब दिया, "मुझे लगता है कि आपकी यह व्याख्या ठीक नहीं है," लेकिन, उन्होंने ट्रम्प प्रशासन का सिर्फ़ बचाव करने की ही कोशिश नहीं की, बल्कि वास्तव में मीट पैकिंग उद्योग में लोगों को वापस काम पर जाने के लिए मजबूर भी किया गया। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने बहुत आवश्यक चिकित्सा और सुरक्षात्मक उपकरणों के व्यावसायिक उत्पादन को निर्देशित करने के लिए नहीं, बल्कि मांस उद्योग को कवर मुहैया कराने के लिए उस रक्षा उत्पादन अधिनियम का आह्वान किया, जो श्रमिकों को एक ख़तरनाक परिवेश में वापस काम पर भेजने के लिए मजबूर करता है।

हाल के महीनों में हजारों श्रमिक संक्रमित हो गए हैं। लेकिन, स्वास्थ्य और मानव सेवा सचिव, एलेक्स अज़ार के मुताबिक़ अगर मीट पैकिंग करने वाले कर्मचारी बीमारी का शिकार होते हैं और मर जाते हैं, तो यह उनकी ग़लती है, अज़ार ने हाल ही में इस बात का दावा किया कि मीट पैकिंग संयंत्र में काम करने वाले श्रमिकों के जीवन में उनके "घर और उनकी सामाजिक" स्थिति ही उनके कोविड-19 के लिए ज़िम्मेदार हैं। वे तो यहां तक कह गये कि उन समुदायों पर और बेहतर तरीक़े से कानून को लागू करने पर नज़र रखने की ज़रूरत है, जहां मीट पैकिंग करने वाले श्रमिक रहते हैं, ताकि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कराया जा सके।

यह साफ़ करते हुए कि श्रमिकों की ख़ास चिंता करने वाले रिपब्लिकनों की संख्या बहुत कम है, इसलिए ट्रम्प ने नौकरी से निकाले गये श्रमिकों के लिए बेरोज़गारी बीमा का विस्तार करने का भी विरोध किया है। उनके श्रम विभाग ने कंपनियों को श्रमिकों के बारे में सूचना मुहैया कराने को लेकर प्रोत्साहित किया है ताकि अगर वे काम पर लौटने से डरते हैं, तो उनके बेरोजगारी लाभ में कटौती की जा सके। और, सीनेट में बहुमत दल के नेता,मिच मैककोनेल, निगमों को उनके ख़िलाफ़ श्रमिकों द्वारा दायर कोरोनोवायरस से जुड़े मुकदमों में आर्थिक ज़िम्मेदारियों से बचाना चाहते हैं।

रिपब्लिकन ने भी ज़्यादा से ज़्यादा प्रोत्साहन बिल को पेश करने या उस पर विचार करने से इनकार कर दिया है,क्योंकि महज नौ हफ़्तों में ही 38 मिलियन से अधिक अमेरिकियों की नौकरियां चली गयी हैं। सदन में अल्पसंख्यक दल के नेता, केविन मैकार्थी श्रमिकों की परेशानी से किस क़दर आंख मूंदे हुए हैं, यह दर्शाते हुए उन्होंने कहा है, "मुझे अभी इसकी ज़रूरत नज़र नहीं आती है।" सीनेटर मैक्कनेल ने यह कहते हुए इस बात का समर्थन किया, "मुझे नहीं लगता है कि हम अभी तुरंत इस पर किसी तरह की कार्रवाई करने की ज़रूरत है। वह समय…[आ सकता है], लेकिन मुझे नहीं लगता कि अभी ऐसी स्थिति आयी है।” अमीरों के आर्थिक फ़ायदे को लेकर रूढ़िवादी राजनेताओं ने बार-बार संकेत दिये हैं कि अमेरिकी कामगार, आवश्यक होने के बजाय, केवल बलिदान करने योग्य हैं। यह एक वर्ग संघर्ष वाला उनका रूप है।

व्हाइट हाउस का श्रमिकों को मदद पहुंचाने को लेकर हालिया विचार यह है कि अमेरिका में विदेशी नौकरियों को प्रोत्साहित करने के एक तरीके के रूप में कॉर्पोरेट करों में आधे की कटौती की जाय। व्हाइट हाउस के शीर्ष आर्थिक सलाहकार, लैरी कुडलो ने अमेरिकियों की जेब में अधिक पैसा डालने के लिए पेरोल कर में कटौती की वक़ालत की है। वह इस बात का उल्लेख नहीं कर पाये कि पेरोल करों में कटौती का मतलब मेडिकेयर और सामाजिक सुरक्षा जैसे पेरोल-टैक्स-फंडेड उन कार्यक्रमों में भी कटौती करना होगा,जिस पर कई अमेरिकी आश्रित हैं और उनका इस बात पर भरोसा है कि वर्ग की लड़ाई लड़ने वाले वर्षों से इस कटौती के हामी रहे हैं।

अचरज तो इस बात का भी है कि शेयर बाजार को इस बात की तनिक भी परवाह नहीं है। एक तरफ़ बेरोज़गारी सप्ताह दर सप्ताह लगातार बढ़ती ही जा रही है, लेकिन इसके बावजूद दूसरी तरफ़, डॉउ जोंस और नैस्डैक सूचकांकों में तेज़ी बनी हुई है। वास्तव में, लोकप्रिय रेडियो कार्यक्रम मार्केटप्लेस पर हर दिन बहुत अधिक धूम-धड़ाके के साथ जिन संकेतकों की घोषणा की जाती है, उन घोषणाओं का अमेरिकी श्रमिकों के हितों पर वास्तविक असर बिल्कुल नहीं पड़ता है, चाहे अपनी इन घोषणाओं के दौरान कार्यक्रम प्रस्तोता, काई राइसडल कितने भी उत्साह में क्यों न रहते हों। उनकी विश्वसनीयता बनी रहे, इसलिए उन्होंने यह स्वीकार करते हुए तो इतना तो  कहा है कि, "सबसे अमीर 10 प्रतिशत अमेरिकी परिवारों के पास सभी शेयरों का 84 प्रतिशत है।"

इस महामारी से पहले ट्रम्प ने कम बेरोज़गारी दर और शेयर बाज़ार की उछाल पर अपने फिर से चुने जाने को दांव पर लगा दिया था। अब, शेयर बाज़ार की तेज़ी के साथ-साथ सरकारी बेरोज़गारी के आंकड़ों इतने असंगत हो गये हैं कि उनके व्यापक आर्थिक समृद्धि का दावा मुश्किल होता जा रहा है। सच्चाई तो यही है कि महामारी से पहले भी कोई समृद्धि नहीं थी। आधिकारिक बेरोज़गारी की दर कम ज़रूर थी, लेकिन इससे यह संकेत नहीं मिलता कि कितने लोगों ने काम की तलाश छोड़ दी थी या उन नौकरियों की गुणवत्ता कितनी ख़राब थी। इस महामारी ने इस सच्चाई को बाहर ला दिया है कि ट्रम्प के वित्तीय विजय के दावे हमेशा से चमत्कार के बनिस्पत मृगतृष्णा ज़्यादा थे।

क्योंकि कॉर्पोरेट मुनाफ़ाख़ोरों और उनके राजनीतिक लाभार्थियों के लिए लाखों अमेरिकी श्रमिकों की परेशानियां अप्रासंगिक है, इसलिए हमें इस सच्चाई से ख़ुशी मिलने की उम्मीद है कि अमेज़न के संस्थापक और सीईओ, जेफ बेज़ॉस कुछ ही वर्षों में दुनिया के पहले खरबपति बन सकते हैं। अगर हम ऐसी बेशर्मी को नज़रअंदाज़ करने को लेकर आश्वस्त हो जायें और इसके बजाय मजदूरों के "लचीले" बने रहने वाली बात पर अपना ध्यान केंद्रित कर लें, तो माइकल स्ट्रेन और अमेरिकन एंटरप्राइज इंस्टीट्यूट के लिए आसान हो जायेगा, क्योंकि अमीरों ने अपना वर्ग युद्ध छेड़ रखा है। अमेरिकी अर्थव्यवस्था की इस बेतुकी स्थिति का एकमात्र तर्कसंगत जवाब यह है कि अरबपतियों (और विशेष रूप से खरबपतियों) को अस्तित्व में आने ही नहीं दिया जाये। शुरुआती 100 मिलियन डॉलर के बाद और अधिक धन के संग्रह को जारी रखने की ज़रूरत ही नहीं है। कांग्रेस उन अरबपतियों पर इस हद तक कर लगाने वाले क़ानून को तो आसानी से लागू कर ही सकती है कि वे अपने जीवन के बाक़ी हिस्से ज़्यादा से ज़्यादा आरामदायक तरीक़े से बिता सके, जबकि रोग-अवकाश के दौरान भुगतान, सबके लिए मेडिकेयर, द ग्रीन न्यू डील, और इसी तरह की दूसरी आवश्यक सेवाओं के वित्तपोषण के लिए बड़ी संख्या में अमेरिकियों को लाभ मिल सके। हममें से बाक़ी लोगों की तुलना में किसी व्यक्ति के पास इतनी संपत्ति जमा करने का कोई औचित्य नहीं है। लेकिन, वे स्वेच्छा से उस धन को कभी छोड़ेंगे भी नहीं। इसके बजाय वे अपने अकल्पनीय धन का संरक्षण और उसे बढ़ाने के लिए जी जान से लड़ेंगे, झूठ बोलेंगे और छल-प्रपंच रचेंगे। ऐसी स्थिति के विरुद्ध सिर्फ़ एक ही विकल्प बचता है और वह है-वर्ग संघर्ष।

(सोनाली कोल्हटकर, फ़्री स्पीच टीवी और पैसिफिक स्टेशनों पर प्रसारित होने वाले एक टेलीविजन और रेडियो शो, "राइजिंग अप विद सोनाली" की संस्थापक, मेज़बान और कार्यकारी निर्माता हैं।)

इस लेख इकोनॉमी फॉर ऑल द्वारा तैयार किया गया है, जो इंडिपेंडेंट मीडिया इंस्टीट्यूट की एक परियोजना है।

अंग्रेज़ी में लिखा गया मूल आलेख पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

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