एएमयू में छात्रों के ख़िलाफ़ पुलिस की बर्बरता ने हिंदू-मुस्लिमों को एक साथ खड़ा किया है
15 दिसंबर की शाम को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्रों ने हालिया इतिहास की सबसे बड़ी पुलिस बर्बरता का सामना किया। यूनिवर्सिटी प्रशासन ने विरोध कर रहे छात्रों को क़ाबू में करने के लिए पुलिस बुलवाई थी। यह लोग 12 दिसंबर से ही नागरिकता संशोधन क़ानून के विरोध में प्रदर्शन कर रहे थे। बता दें यह क़ानून धर्म के आधार पर नागरिकता तय करता है, जिसमें मुस्लिम शामिल नहीं हैं।
यह ग़ुस्सा तब और बढ़ गया जब छात्रों को पता चला कि दिल्ली में प्रदर्शन करने वाले जामिया के एक छात्र की मौत हो गई है, जो 12 दिसंबर को पुलिस कार्रवाई में बुरी तरह घायल हो गया था। जामिया के छात्रों में भी नागरिकता संशोधन क़ानून को लेकर ग़ुस्सा है। 15 दिसंबर को जामिया में पुलिस बर्बरता के वीडियो सामने आने के बाद यह ग़ुस्सा और बढ़ गया। टीवी चैनलों और सोशल मीडिया पर चले इन दृश्यों में दिखाई पड़ा कि किस तरह पुलिस जामिया के पुस्तकालय और मस्जिद में घुसकर तोड़फोड़ कर रही थी।
भारत का मौजूदा संशोधन क़ानून अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों के ख़िलाफ़ है। यह एक्ट के उस तथ्य से भी साफ़ हो जाता है, जिसके तहत श्रीलंका के सिंहल बौद्ध धर्मावलंबियों से प्रताड़ित तमिल अल्पसंख्यकों और म्यांमार के प्रताड़ित रोहिंग्याओं, तिब्बत के बौद्धों, नेपाल और भूटान के लोगों को बाहर रखा गया है। केवल तीन देशों से आने वाले ग़ैर-मुस्लिमों को ही एक्ट के ज़रिेये नागरिकता देने का प्रावधान है।
CAA के अलावा इस साल अगस्त में असम में हुई NRC में लाखों हिंदुओं को ग़ैर-नागरिक घोषित कर दिया गया। बीजेपी की केंद्र सरकार द्वारा भेदभाव का सबसे बड़ा कदम यहीं दिखाई पड़ता है। इन ग़ैर-नागरिकों को CAA के तहत नागरिकता दे दी जाएगी, वहीं मुस्लिमों को छो़ड़ दिया जाएगा।
असम, कर्नाटक और दूसरी जगहों से डिटेंशन कैंप बनने की ख़बरों ने भी मुस्लिमों को डरा दिया है। 15 दिसंबर को जामिया में पुलिस ने जो बर्बरता की, उसके पीछे की कहानी एक बस को जलाने की थी। आरोप था कि प्रदर्शनकारियों ने वो बस जलाई। लेकिन पुलिस ने इसके बदले जामिया में घुसकर हिंसा की, जबकि बस क़रीब दो किलोमीटर दूर खड़ी थी।
कुछ तस्वीरों से पता चला कि ख़ुद पुलिस ने वो बस जलाई थी, ताकि जामिया के छात्रों पर कार्रवाई करने का आधार बनाया जा सके। क्योंकि वहां के छात्र लगातार धरना प्रदर्शन कर रहे थे, जो बीजेपी सरकार के लिए नीचा दिखाने वाली बात थी। बीजेपी पूर्वोत्तर में चल रहे ज़बरदस्त प्रदर्शनों से वैसे ही परेशान है। मुस्लिमों में बड़े पैमाने पर विश्वास है कि 2002 में रहस्यमयी स्थितियों में गोधरा ट्रेन जलाने वाली घटना का इस्तेमाल मुस्लिमों के नरसंहार के लिए इस्तेमाल किया गया था। उनमें यह भी डर बना कि बस को आग लगाकर जामिया के छात्रों के ख़िलाफ़ हिंसा की वजह को तैयार किया गया।
इन स्थितियों में छात्रों की मौत ने अफ़वाहों को और बल दे दिया और एएमयू के छात्रों में ग़ुस्सा बढ़ता गया। नहीं तो 12 से 15 दिसंबर के बीच एएमयू में विरोध प्रदर्शन शांतिपूर्ण था, जिसमें आलोचना की जा रही थी और संवैधानिक तरीके से प्लेकॉर्ड लहराकर नारे लगाए जा रहे थे।
15 दिसंबर की शाम गुस्से वाली भीड़ में कुछ ऐसे शख्स घुस गए, जिन्होंने विरोध प्रदर्शन को मुस्लिम आधारित बनाने की कोशिश की। उन्होंने ''नारा-ए-तकबीर/अल्लाहू अकबर'' जैसे नारों का इस्तेमाल किया। यह समूह मुख्य दरवाज़े को भी तोड़ना चाहता था, जहां छात्र प्रदर्शन कर रहे थे, ताकि अफ़वाहों के मुताबिक़ जो ''जामिया में मारा गया छात्र'' था, उसके लिए जनाज़ा निकाला जा सके। इसके बाद पथराव शुरू हो गया, जिसमें एक पुलिस अधिकारी घायल हो गया।
एएमयू प्रशासन का कहना है कि उसके बाद पुलिस को अंदर आने देने के अलावा उनके पास कोई विकल्प नहीं बचा था। लेकिन इसके पहले कभी भी पुलिस स्टन ग्रेनेड, रबर बुलेट और टियर गैस के गोलों के साथ एएमयू के हॉस्टल में नहीं घुसी थी। पुलिस उन हॉस्टलों में घुसी, जो मुख्य दरवाज़े स्थित धरना स्थल से बहुत दूर थे।
आरोप है कि पुलिस ने बड़ी संख्या में छात्रों के सिर और छाती पर रबर की गोलियां दागी। कुछ छात्रों ने एएमयू के दो गेस्ट हाउस में शरण ली, जो मुख्य दरवाजे के पास स्थित हैं। अगली सुबह यह दोनों गेस्ट हाउस बुरी-तरह तहस-नहस मिले। पत्रकारों द्वारा ली गई वीडियो और स्टूडेंट ने जो सीसीटीवी फुटेज सामने रखी, उसमें पुलिस तोड़-फोड़ करती नजर आ रही है। बिलकुल वैसे ही जैसे दिल्ली की जामिया यूनिवर्सिटी में कर रही थी।
एएमयू के शिक्षकों को गेस्टहाउस की ज़मीन पर ख़ून ही ख़ून मिला।
कम से कम 27 नौजवानों को हॉस्टल के कमरों और गेस्ट हाउस से उठाया गया। मोरिसन कोर्ट हॉस्टल के कमरा नंबर 35 में पुलिस ने धुएं का सहारा लेकर छात्रों को बाहर निकलने पर मजबूर किया। यह लोग गंभीर तौर पर घायल थे, बावजूद इसके उन्हें हिरासत में ले लिया गया।
16 दिसंबर की रात, हिरासत में लिए गए 23 युवाओं को छोड़ दिया गया। इनमें से कोई भी चलने लायक स्थिति में नहीं था। सभी बुरी तरह घायल थे। एक छात्र की हथेली ही भंग हो गई। एक दूसरा छात्र भी गंभीर तौर पर घायल है और उसका इलाज दिल्ली के श्री गंगाराम हॉस्पिटल में चल रहा है।
छात्रों को पुलिस ने 22 घंटे हिरासत में रखने के बाद छोड़ दिया। ज़्यादातर का इलाज एएमयू के जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में चल रहा है। पुलिस ने इनमें से किसी को भी मजिस्ट्रेट के सामने पेश नहीं किया। इसलिए उनकी हिरासत भी अवैध है।
इन छात्रों ने मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, दोस्तों और शिक्षकों को अपने स्टेटमेंट दिए हैं। उन्होंने बताया कि पुलिस कस्टडी में इतनी ठंड में उन्हें नंगा कर बुरी तरीक़े से पीटा गया। छात्रों का आरोप है कि पुलिस ने मुस्लिव विरोधी गालियां भी दीं और उनसे जय श्री राम के नारे लगवाए। कुछ ने उन्हें आतंकी तक कह डाला। कश्मीरी छात्रों ने रिहा होकर बताया कि उन्हें तो और बुरी तरह से पीटा गया। कुछ पुलिसवालों ने उनके मुंह पर पेशाब भी किया।
पुलिस स्टेशन में कई छात्रों के हाथ-पांव फ्रैक्चर हो गए। ग़ौर करने वाली बात है कि इसमें जो छात्र हिंदू थे, पुलिस ने उनकी पिटाई नहीं की और तुरंत छोड़ दिया। इन बातों से उत्तरप्रदेश पुलिस की मुस्लिम विरोधी मानसिकता का पता चलता है।
पुलिस बुलवाने के लिए छात्र एएमयू प्रशासन से ख़ासे ख़फ़ा हैं। एएमयू प्रशासन लगातार इस बात को कह रहा है कि विरोध प्रदर्शन में कुछ बाहरी आसामाजिक तत्व घुस गए थे, जिन्होंने प्रदर्शनों को हिंसक बना दिया। कुछ छात्रों ने भी माना है कि कुछ दक्षिणपंथी कट्टर मुस्लिम भी प्रदर्शन में शामिल हो गए थे। उन्होंने जामिया में छात्र की मौत की अफ़वाह का फ़ायदा उठाया।
बल्कि मुख्य दरवाज़े पर जो हिंसा हुई, उसका इस्तेमाल प्रशासन यूनिवर्सिटी में पुलिस की बर्बरता की सफाई के तौर पर कर रहा है। यह सफाई पेरेंट्स और छात्रों के गले नहीं उतर रही है, न ही अलीगढ़ की स्थानीय आबादी के।
प्रदर्शन के बाद एएमयू प्रशासन ने शीतकालीन छुट्टियों को एक हफ़्ते के भीतर जारी करने का आदेश दे दिया है। वहीं परीक्षाओं को आगे बढ़ा दिया गया है और छात्रों से हॉस्टल ख़ाली करवाए जा रहे हैं। इससे भी छात्रों और अभिभावकों में ग़ुस्सा है। क्योंकि इस वक़्त ध्रुवीकरण बहुत ज़्यादा हो गया है। यात्रा करने वाले छात्रों के ऊपर कट्टरपंथियों और पुलिस द्वारा हिंसा का ख़तरा बढ़ गया है। पूर्वोत्तर और कश्मीर से आने वाले छात्रों के लिए ख़तरा और ज़्यादा है क्योंकि उनके इलाक़ों में तो कर्फ़्यू की स्थिति है।
एएमयू प्रशासन के प्रबंधकों को समझना चाहिए था कि यह कोई आम प्रदर्शन नहीं है। न ही कोई छात्र आधारित मुद्दा है। इसलिए यह ज़्यादा वक़्त तक ज़िंदा रहेगा। यह एक क़ानून के ख़िलाफ़ प्रतिरोध है, जो एक बड़े हिस्से के नागरिकता अधिकारों को छीन सकने की ताक़त रखता है। छात्र उस मुद्दे के लिए लड़ रहे हैं, जो सिर्फ़ उन तक सीमित नहीं है। एएमयू प्रशासन को सत्ता की शक्ति के साथ इन प्रदर्शनों को कुचलते हुए दूर तक दिखाई नहीं देना चाहिए था।
एएमयू टीचर्स एसोसिएशन के ख़िलाफ़ लंबे समय से नाराज़गी है। संगठन ने एनआरसी, पुराने नागरिकता क़ानून और नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर पर किसी भी तरह की बातचीत का आयोजन नहीं किया है। अगर इन मुद्दों पर एक अच्छी जानकारी वाली बातचीत हो जाती तो इस मुद्दे पर टकराव से बचा जा सकता था। एएमयू शिक्षक संघ इन ज्वलंत मुद्दों पर बातचीत से बच रहा है।
एएमयू हॉस्टल को ज़बरदस्ती ख़ाली करवाने के ख़िलाफ़ एएमयू स्टाफ़ की महिला सदस्यों में भी ग़ुस्सा है। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के कई समूहों ने कैंपस में शिरकत की है और पूरी घटना की जांच कर अपनी रिपोर्ट बना रहे हैं। पीड़ित छात्र और उनके अभिभावक एक नियत समय में, न्यायसम्मत न्यायिक जांच की मांग कर रहे हैं, जिसमें पुलिस की बर्बरताओं की जांच की जा सके और पीड़ितों को मुआवजा उपलब्ध दिया जाए।
एएमयू कैंपस के पास रहने वाले सबालटर्न मुस्लिम ने लेख के लेखक को बताया कि वे आमतौर पर बोलते नहीं हैं, न ही विरोध प्रदर्शन करते हैं, क्योंकि इससे हिंदुओं में ध्रुवीकरण हो जाता है। इस कारण से उनके नेता उन्हें शांत रहने के लिए कह रहे हैं। कुछ ने मुझे बताया कि वो लोग अयोध्या फ़ैसले के खिलाफ भी प्रदर्शन करना चाहते थे। वह मांग करते थे कि जिस जगह कभी मस्जिद थी, वहां स्कूल या हॉस्पिटल बना दिया जाए। वह हिंदुओं से यह भी कहना चाहते थे कि सुप्रीम कोर्ट ने जो पांच एकड़ ज़मीन दी है, उस पर हिंदू अपना मंदिर बनवा लें। लेकिन उनके नेतृत्व ने उन्हें ये सब करने से रोक दिया।
अब नागरिकता पर सवाल खड़ा होने के बाद भारतीय मुस्लिमों को लगता है कि यह उनकी आख़िरी लड़ाई है। अगर वो कुचल दिए गए तो फिर कभी खड़े नहीं हो पाएंगे।
शहर को लोग, जिनमें ग़रीब हिंदू भी शामिल हैं, उन्हें भी महसूस होता है कि एएमयू के छात्र अपनी नागरिकता की लड़ाई लड़ रहे हैं। उन्हें लगता है कि छात्र सिर्फ़ ख़ुद के लिए नहीं, बल्कि सभी नागरिकों के लिए आत्मसम्मान की मांग कर रहे हैं। उन्हें आश्चर्य होता है कि क्यों उन्हें नागरिकता साबित करने का काम करवाकर उन्हें नीचा दिखाया जा रहा है। छात्रों के साथ यह लोग भी एएमयू पर धरना दे रहे हैं, तब भी जब 90-95 फ़ीसदी छात्रों से हॉस्टल ख़ाली करवा दिया गया है।
हिंदुओं के लिए एक अहम मौक़ा, उन्हें चूकना नहीं चाहिए
एनआरसी में ग़ैर मुस्लिमों को भी अपने दस्तावेज़ इकट्ठे करने और उन्हें पेश करने की दिक़्क़तों का सामना करना पड़ेगा। सभी धर्मों के संपत्ति विहीन लोगों को दस्तावेज़ न होने की समस्या से गुजरना पड़ेगा।
इसके बावजूद राम मनोहर लोहिया, अंबेडकर, मंडल और बिरसा मुंडा का नाम लेने वाले नेता लोगों के बीच जाकर नागरिकता साबित करने के दर्द के बारे में नहीं बता रहे हैं। सत्ताधारियों को एक मनौवैज्ञानिक समस्या हो गई है, जिसके तहत उन्हें लोगों को लाइनों में लगवाने का शौक लगता है। चाहे वह नोटबंदी की हो या आख़िरी मौके पर ट्रैफिक डॉक्यूमेंट बनवाने की लाइन। एनआरसी के लिए भी अब ऐसी ही कोशिश हो रही है।
मतदाताओं को इन घिनौने खेल को समझना होगा, जिनसे सत्ताधारियों को सुकून मिलता है।
भारतीय गणतंत्र के इतिहास में पहली बार है जब मुस्लिम नागरिक, नागरिकता के अधिकारों को लेकर सड़कों पर उतरे हैं। यह वो मूल्य हैं जो संविधान में निहित हैं और नागरिकता की पंथनिरपेक्ष व्याख्या करते हैं। इसके पहले इनके प्रदर्शन पर्सनल लॉ, लैंगिक सुधारों के खिलाफ पहचान आधारित मुद्दों पर हुआ करते थे। यह विरोध प्रदर्शन सच्चे और सही हिंदुओं के लिए ऐतिहासिक मौका है। उन्हें अपना समर्थन देना चाहिए। भारतीय नागरिकता में पंथनिरपेक्षता को मजबूत और गहरा करने में योगदान देना चाहिए।
जो हिंदू इन लोगों का समर्थन करने की इच्छा रखते हैं, उन्हें पाकिस्तान के अनुभव से सीख लेनी चाहिए। जहां मुस्लिम बहुसंख्यकों ने समाज, अर्थव्यवस्था और कानून को तबाह कर दिया है। खुद को इस्लामिक राष्ट्र घोषित कर पाकिस्तान अपनी सीमाओं के भीतर लगातार नए लक्षित समूहों की खोज करता रहता है। जिन्हें वह ग़ैर-इस्लामिक घोषित कर सके। चाहे वह अहमदिया हों या शिया। मुहाजिर हों या बलूची। ऐसे ही नए लक्ष्य मिलते रहते हैं। इन समूहों को या तो दोयम दर्जे का नागरिक बना दिया जाता है या इनसे नागरिक अधिकार छीन लिए जाते हैं।
साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई में भारत ने एक बहुलतावादी, समग्र समाज का सपना देखा था। अल्पसंख्यकों को निशाना बनाकर और उनके ख़िलाफ़ ज़हर फैलाकर हम राष्ट्रवादी नहीं हो सकते। इसलिए हर भारतीय नागरिक को इस भेदभावकारी। बांटने वाले, नफ़रत से भरे, बहुसंख्यकवादी और तानाशाही भरे क़ानून के ख़िलाफ़ पूर्ण नागरिक अवज्ञा आंदोलन छेड़ देना चाहिए।
यही असली राष्ट्रवाद होगा।
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)
अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।
AMU Police Brutality Brings Aligarh’s Muslims, Hindus Closer
अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।