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आपकी सुबह की चाय महँगी हो सकती है...शायद नहीं भी 

महामारी को देखते हुए लॉकडाउन को अमल में लाने के कारण चाय के उत्पादन में आई कमी के चलते इसकी कीमतों में उछाल देखने को मिल रही है। लेकिन चाय व्यापारियों का एक वर्ग ऐसा भी है जो यह तय नहीं कर पा रहा है कि आने वाले समय में उत्तर भारत में भारी फसल के सीजन को देखते हुए यह तेजी कब तक बरकरार रहने वाली है।
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कोलकाता: असम और पश्चिम बंगाल में चाय उद्योग के बारे में अनुमान है कि 2019 की तुलना में उत्पादन में इस बार अपरिहार्य परिस्थितियों के कारण भारी गिरावट दर्ज की गई है। चाय उद्योग आज के दिन अगले तीन महीनों- अगस्त, सितम्बर और अक्टूबर के भरोसे है, जोकि परम्परागत तौर पर उत्तर भारत में बम्पर सीजन के तौर पर जाना जाता है।

सबसे पहले तो मार्च के अंतिम दिनों में चाय बागान की समस्त गतिविधियों को पूरी तरह से ठप कर देना पड़ा था, जब कोरोनावायरस महामारी को रोकने के लिए केंद्र सरकार की ओर से अचानक से देशभर में लॉकडाउन थोप दिया गया था। बाद के दिनों में लॉकडाउन के प्रभावी होने के बावजूद, आधिकारिक तौर पर चायबागानों के काम-काज को प्रतिबंधों के साथ एक बार फिर से शुरू करने की इजाजत दे दी गई थी।

बाद के दौर में इस शर्त पर सामान्य गतिविधि की इजाजत दे दी गई थी, कि चाय बागान प्रबंधन निर्धारित सुरक्षा मानदंडों के पालन को अपने बागानों में सुनिश्चित करेंगे। लेकिन इस बीच सामान्य हालात बहाल होने तक करीब एक महीने के उत्पादन का नुकसान हो चुका था। चाय बागान में उत्पादन में नुकसान की अगली वजह यह रही कि असम जहाँ भारी बाढ़ की चपेट में रहा, वहीँ उत्तरी बंगाल में कई दिनों से मूसलाधार बारिश होती रही। 

टी बोर्ड के अस्थाई अनुमानों के अनुसार उत्तर भारत में इन चार महीनों में अप्रैल माह तक 2019 के 704.7 लाख किलोग्राम चाय की तुलना में इस बार 576.4 लाख किलो उत्पादन को ही हासिल किया जा सका है। मानसून भी इस साल शुरुआत से ही सक्रिय रहा है और जून के अंत से और यहाँ तक कि अभी भी असम में बाढ़ और उत्तरी बंगाल में मूसलाधार बारिश की वजह से बागानों में सामान्य गतिविधि बाधित चल रही है। हालाँकि इस बारे में आधिकारिक अनुमान उपलब्ध नहीं हो सके हैं, लेकिन उद्योग जगत की आशंकाओं को मानें तो फसल के उत्पादन में इस साल गिरावट तय है।


हालात को देखते हुए टी रिसर्च एसोसिएशन (टीआरए) ने लॉकडाउन के समय के लिए कृषि कार्यों के सम्बन्ध में विशेष एडवाइजरी जारी की थी, जिसमें एक बार फिर से खास परिस्थितियों में क्या करें और क्या न करें की सूची जारी की थी।एडवाइजरी में रेत के जमा होने, जल-निकासी के जाम होने और कीटों के हमलों की बढ़ती घटनाओं से उत्पन्न होने वाली समस्याओं से निपटने के लिए एक्शन पॉइंट्स को तय करने का काम किया गया है। टीआरए द्वारा खाद और पत्तियों से सम्बंधित पोषक तत्वों के अनुप्रयोग और पत्तियों को तोड़ने के काम को शुरू करने से पहले बरती जाने वाली सावधानियों सहित कई अन्य बिंदुओं को शामिल किया गया है।

इस दृष्टिकोण को बाढ़ की अवधि को ध्यान में रखते हुए निर्धारित करना होगा, इसमें तीन दिनों तक बाढ़ की स्थिति और तीन दिन से अधिक की स्थिति में अलग-अलग तरीकों को अपनाना होगा। यदि मिट्टी तीन दिनों से अधिक समय तक पानी में डूबी रहती है तो कोमल टहनियाँ में एक ओर लटक जाने के संकेत नजर आने लगते हैं और उसके बाद पत्तियाँ खुद-ब-खुद झड़कर गिरने लगती हैं।

टीआरए के सचिव जॉयदीप फुकन के अनुसार, अप्रैल और मई माह में पौधों में जरूरत से ज्यादा वृद्धि के चलते उत्पादन में शुरुआती नुकसान देखने को मिला था और उसके बाद असम में आई बाढ़ और उत्तर बंगाल में हो रही लगातार बारिश से गंभीर नुकसान पहुंचा था। फुकन ने न्यूजक्लिक से बात करते हुए उम्मीद जताई है कि अगस्त से स्थिति में सुधार की उम्मीद की जा सकती है।

उत्पादन में स्पष्ट तौर पर दिखने वाली भारी गिरावट का असर चाय की नीलामी की कीमतों पर भी दिख रहा है, जो काफी हद तक बढ़ी हुई हैं। उत्तरी भारत के नीलामी केंद्रों में 1 जून से 18 जुलाई के बीच में बिक्री 36% घटकर 471.4 लाख किलो रह गई है। जबकि 2019 की इसी अवधि के दौरान बिक्री 635.8 लाख किलो थी। इसी तरह पिछले साल 6 जून को समाप्त होने वाले हफ्ते में औसत कीमत 158.48 रुपये प्रति किलोग्राम थी। वहीँ इस बार कीमत लगभग 39% बढ़कर 218.97 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुँच चुकी है। पिछले साल 18 जुलाई के सप्ताहांत तक कीमत 169.22 रूपये प्रति किलोग्राम बनी हुई थी। वहीँ इस साल यह कीमत लगभग 60% बढ़कर 270.24 रुपये हो चुकी है।

कलकत्ता चाय व्यापर संघ के सचिव जे कल्याण सुंदरम ने न्यूजक्लिक से बातचीत के दौरान बताया है कि "कीमतों में इस प्रकार की उछाल काफी लम्बे अर्से के बाद देखने को मिली है।"हालांकि चाय व्यापारियों का एक वर्ग इस बात को लेकर आश्वस्त नहीं है कि ये ऊँचे दाम भविष्य में भी टिकाऊ रहने वाले हैं। काफी कुछ अगस्त, सितंबर और अक्टूबर के महीनों में होने वाले जबर्दस्त फसल के सीजन पर निर्भर करेगा। पिछले साल इन तीन महीनों के दौरान उत्तर भारत ने 4781.7 लाख किलो तक के उत्पादन को दर्ज किया गया था, जोकि उत्तर भारत के कुल 11,710.9 लाख किलो के 41% के बराबर था। इसलिए इस बात में कोई संदेह नहीं कि इस अवधि का विशेष महत्व है।
लेकिन कुछ और लोग भी हैं जो चाय के व्यापार में गहराई से जुड़े हैं। जिनका विश्वास है कि उत्पादन में कमी यदि इसी परिमाण में बनी रहती है, तो भले ही अगस्त-अक्टूबर की अवधि में सामान्य परिस्थितियों के हिसाब से अच्छी फसल हो जाती है, तो भी कुछ ख़ास बेहतर होने की संभावना नहीं है। उनके अनुसार जमीनी हकीकत अगले साल की शुरुआत में ही जाकर पता चल पाने की उम्मीद है।


लेकिन उपलब्ध संकेत इस बात का इशारा कर रहे हैं कि अधिकारियों को इस प्रकार की नाजुक स्थिति का सामना करने की संभावना नजर नहीं आती, जैसा कि प्याज और चीनी की किल्लत के दौरान देखने को मिलता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि पहले से ही संतुलन कारक इस सम्बंध में अपना काम कर रहे हैं।इसकी एक मुख्य वजह यह है कि लॉकडाउन के पूर्ण और प्रतिबंधित चरण के दौरान, जिसे अचानक से 24-25 मार्च की आधी रात से लागू कर दिया गया था और आज जिसे चार महीने से अधिक हो चुके हैं। इस दौरान घरों से बाहर चाय की खपत में एक सुस्पष्ट गिरावट देखने को मिली है, खास तौर पर सड़कों के किनारे चाय के ढाबों, होटलों और रेस्तरां में चाय की खपत में भारी गिरावट देखी गई है। चाय व्यापारियों के अखिल भारतीय संघ (एफएआईटीटीए) के अध्यक्ष वीरेन शाह के आकलन के अनुसार, अकेले इसी वजह से घरेलू खपत में 25-30% की गिरावट आ चुकी है।

सूरत में स्थित अपनी कम्पनी जीवराज टी लिमिटेड से शाह ने न्यूज़क्लिक से अपनी बातचीत में कहा "हाँ, हो सकता है कि अपने-अपने घरों में खुद को बंदी बनाकर रहने के दौरान लोगों ने अपनी दिनचर्या में पहले की तुलना में एक या दो कप चाय ज्यादा पीनी शुरू कर दी हो, लेकिन इसे सामान्यीकृत नहीं किया जा सकता। घर से बाहर चाय की खपत में आई गिरावट पर इसका बेहद मामूली क्षतिपूरक प्रभाव दर्ज किया जा सकता है।


वे आगे कहते हैं "इसके अतिरिक्त लोगों ने इस बीच अपनी प्रतिरक्षा शक्ति को मजबूत करने के लिए लौंग, काली मिर्च, अदरक, पाम कैंडी और कुछ अन्य मसालों से तैयार पेय को ‘काढ़े’ के तौर पर इस्तेमाल में लाना शुरू कर दिया है। कई जगहों पर अब इसी को पीने का चलन जोर पकड़ रहा है, और इसके प्रमाण देखे जा सकते हैं” 


अहमदाबाद स्थित वाघ-बकरी समूह के कार्यकारी निदेशक, पराग देसाई भी इस आकलन से सहमत दिखते हैं कि लॉकडाउन के दौरान घरेलू खपत में गिरावट देखने को मिल रही है।वाघ बकरी समूह चाय व्यापार के क्षेत्र में अपनी प्रमुख उपस्थिति के साथ मौजूद है। इसके 13 चाय लाउंज और तकरीबन 100 चाय के किओस्क चलते हैं। जैसे ही अखिल भारतीय स्तर पर लॉकडाउन की प्रक्रिया शुरू हुई थी, इसे भी अपने कारोबार को स्थगित करना पड़ा था . 

राज्य सरकार की ओर से आश्वासन मिलने के बाद वाघ बकरी ने एक हफ्ते पहले ही अपने काम-काज को एक बार फिर से शुरू किया है। देसाई ने न्यूज़क्लिक को बताया है कि कंपनी ने इस बीच हुए राजस्व के नुकसान के बावजूद अपने कर्मचारियों को उनके पूरे वेतन का भुगतान किया है। वर्ष 2019 की तुलना में इस साल वे काफी कम उत्पादन होने की संभावना को देख रहे हैं।

इसके अलावा अन्य संतुलन कारक के तौर पर निर्यात को देखा जा सकता है। चाय का आयात करने वाले देशों में से ज्यादातर देश अभी भी महामारी के खिलाफ अपनी जंग को जारी रखे हुए हैं, और अभी तक इस बात के कोई स्पष्ट संकेत नहीं मिल सके हैं कि कब जाकर इस वायरस के प्रकोप में कमी आने जा रही है, जिससे कि आयात-निर्यात एक बार फिर से सामान्य गति से चल सके। उत्तर भारत से चाय के अनुमानित निर्यात जनवरी-मार्च 2020 की तिमाही के लिए अनुमानित अनुमान 324.7 लाख किलो है, जबकि 2019 की इसी तिमाही में यह निर्यात 395.7 लाख किलो था।

इंडियन टी एसोसिएशन के सचिव सुजीत पात्रा के अनुसार निर्यात के संभावित स्तर के बारे में अभी से कोई अनुमान लगाना जल्दबाजी होगी। लेकिन इस मुकाम पर जिस प्रकार के ध्यान देने योग्य आंकड़े मौजूद हैं, उसे देखते हुए निर्यात में कमी की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।

एफएआईटीटीए के अध्यक्ष ने आगे बताया कि केन्या के सीटीसी (कुचलना, तोड़ना, लपेटना) चाय के उत्पादन के बारे में उन्हें रिपोर्ट मिली है, जिसमें उनके यहाँ से निर्यात में तेजी नजर आ रही है। इसकी वजह उस देश में कीमतों में कमी भी हो सकती है। इसलिए भारत के सीटीसी चाय के कुछ आयातकों ने कीमतों को ध्यान में रखते हुए केन्याई उत्पादों को भी एक एक निश्चित मात्रा में खरीदने के बारे में सोच रखा है। शाह के अनुसार हमें इसे भी ध्यान में रखने की आवश्यकता है।

इस बीच चाय बागान में कार्यरत श्रमिकों और उनकी ट्रेड यूनियनों के लिए राहत भरी खबर यह रही कि कोविड-19 से जुड़ी घटनाएं यहाँ पर काफी हद तक नियंत्रण में रही हैं, क्योंकि यहाँ पर काम-काज को धीरे-धीरे आगे बढ़ाया गया था। असम में सिर्फ कुछ ही मामले प्रकाश में आये थे, जिसको लेकर प्रबंधन ने तत्काल उपचारात्मक उपाय अपनाकर उनका निदान करा दिया था।

असम चा मजदूर संघ (एसीएमएस) के महासचिव रूपेश गोवाला कहते हैं "इससे पहले कि चाय बागानों में काम-काज को एक प्रतिबंधित स्तर पर फिर से शुरू किया जाये, हमने इस बात को लेकर लगातार दबाव बनाये रखा था कि सभी सुरक्षात्मक सुविधाओं को चाक-चौबंद रखने की जिम्मेदारी प्रबन्धन की होगी।” उनके अनुसार, बीमारी को लेकर श्रमिकों के बीच में कोई दहशत नहीं है।

गोवाला ने न्यूज़क्लिक को डिब्रूगढ़ से फ़ोन के माध्यम से सूचित किया है कि, 2 जुलाई को भारतीय राष्ट्रीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस से संबद्ध, एसीएमएस और बागान मालिकों के पैत्रक संगठन- द कंसलटेटीव कमिटी ऑफ़ प्लांटेशन एसोसिएशन के बीच हुए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सफलतापूर्वक वार्ता सम्पन्न हुई है, जिसमें करीब 40,000 सुपरवाइजरों के लिए एक "संतोषजनक" वेतन संशोधन को लेकर समझौता हुआ है।

वहीँ दार्जिलिंग जिला चाय मजदूर यूनियन के कार्यकारी अध्यक्ष, समन पाठक ने न्यूज़क्लिक से अपनी बातचीत में कहा “दोबारा काम शुरू होने के साथ ही हमने स्थिति पर बारीक नजर बनाये रखी थी। श्रमिकों के आवास में सीमित स्थान को देखते हुए हमने इस बात को पहले से ही स्पष्ट कर दिया था कि यदि संक्रमण का कोई भी मामला पाया जाता है, तो घर पर ही क्वारंटीन में रहने की किसी भी स्थिति को मंजूर नहीं किया जायेगा। यह हमारे लिए सौभाग्य की बात है कि हालात यहाँ पर कभी भी चिंता का कारण नहीं बने हैं। केवल कुछ ही मामले निकल कर आये थे, लेकिन तत्काल सुधारात्मक कदमों के जरिये इस बीमारी को फैलने से रोकने में हमें सफलता हासिल कर ली थी।”

पाठक जोकि पूर्व राज्यसभा सदस्य रह चुके हैं और वर्तमान में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) से संबद्ध सेंटर ऑफ़ इंडियन ट्रेड यूनियन (सीटू) के जिला सचिव हैं, ने बताया कि चाय बागानों के विशाल विस्तार में शारीरिक दूरी के मानदंडों को लागू करने में कोई समस्या नहीं है। लेकिन श्रमिक बस्तियों में जगह की कमी के चलते घर पर रहकर क्वारंटीन रह पाना किसी भी सूरत में संभव नहीं है।

इसलिए हमने प्रबंधन से इस बारे में वैकल्पिक व्यवस्था करने के लिए कहा था, जोकि निर्धारित मानदंडों के अनुरूप हो। हमने कड़ाई से इसकी मॉनिटरिंग की और हमें इस बात की बेहद प्रसन्नता है कि ऐसा करना कारगर रहा” पाठक कहते हैं। हालांकि वे खेद व्यक्त करते हुए कहते हैं कि "श्रमिकों के वित्तीय संकट में कमी लाने के बारे में काफी कुछ नहीं किया जा सका है"।


लेखक कोलकाता स्थित स्वतंत्र पत्रकार हैं।
 


 

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