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आरटीआई अधिनियम के तहत सूचना आयोग एक गड़बड़झाला बन गया हैं, रिपोर्ट कहती हैं

सतर्क नागिक संगठन और इक्विटी स्टडीज के केंद्र द्वारा किए गए एक आकलन ने अपीलों और शिकायतों की भारी तादाद में लम्बित पड़े मामलों और साथ-साथ निपटान के लिए लंबे इंतजार की अवधि की तरफ इशारा किया है।
RTI

सूचना अधिकार (आरटीआई) अधिनियम, 2005 के तहत स्थापित सूचना आयोग (आईसी), नागरिकों के लिए काफी महत्वपूर्ण हैं, जिसे ऍम लोगों ने कड़ी मेहनत से इस अधिकार सूचना का प्रयोग करने का हक़ पाया है, जो सरकार और सार्वजनिक कार्यालयों को जवाबदेह बनाते हैं।

लेकिन सतर्क नागिक संगठन (एसएनएस) और सेंटर फॉर इक्विटी स्टडीज (सीईएस) द्वारा सूचना योग (आईसी) के प्रदर्शन पर तैयार की गयी एक नई रिपोर्ट में पाया गया है कि आयोग अपनी काम ठीक से नहीं कर रहा हैं। रिपोर्ट में अपीलों और शिकायतों का एक खतरनाक अम्बार लगा है और साथ ही निपटान के लिए उन्हें लम्बी प्रतीक्षा करनी पड़ती है।

केंद्रीय स्तर पर (केंद्रीय सूचना आयोग) आईसी के साथ-साथ राज्य स्तर (राज्य सूचना आयोग) को व्यापक शक्तियां दी गयी है। इन शक्तियों में सार्वजनिक अधिकारियों द्वारा मांगी गयी सूचना कराना, जन सूचना अधिकारी (पीआईओ) की नियुक्ति, सूचना की कुछ श्रेणियों को प्रकाशित करना और सूचना रखरखाव के तरीकों में बदलाव करने की आवश्यकता शामिल है। आयोगों को भी जरूरत पड़ने पर जांच करने का अधिकार है, सार्वजनिक अधिकारियों को किसी नुकसान या अन्य हानि के लिए शिकायतकर्ता को क्षतिपूर्ति करने की आवश्यकता होती है, साथ ही साथ अपराध करने वाले अधिकारियों पर दंड लगाने की शक्ति भी होती है।

रिपोर्ट के अनुसार, अनुमान बताते हैं कि हर साल 40 से 60 लाख आरटीआई आवेदन भारत में दायर किए जाते हैं।

एसएनएस और सीईएस द्वारा मूल्यांकन ने पूरे भारत में 29 आईसी के प्रदर्शन का विश्लेषण किया है (जिसमें राज्यों के साथ केंद्रीय सूचना आयोग सहित शामिल है सिर्फ जम्मू-कश्मीर को छोड़कर, जो कि राष्ट्रीय आरटीआई कानून के तहत नहीं आता)

इस दौरान कुल 2,76,405 अपील और शिकायतें दर्ज की गईं जबकि 23,80,809 को 23 आईसीज द्वारा निपटाया गया, जिसमें 1 जनवरी 2016 से 31 अक्टूबर 2017 के बीच की जानकारी प्रदान की गई थी।

उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा संख्या में अपील और शिकायत दर्ज की गई (83,054), उसके बाद सीआईसी (47,756) और कर्नाटक (32,403) मिजोरम और मेघालय ने सबसे कम संख्या में अपील और शिकायत दर्ज की, क्रमश: 21 और 63

निपटान के मामले में, सीआईसी ने अपीलों और शिकायतों (54,21 9) की सबसे बड़ी संख्या का निपटारा किया, उसके बाद उत्तर प्रदेश (42, 9 11) और फिर कर्नाटक (28,648)

आंध्र प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और तमिलनाडु के सूचना आयोग ने आईसी के साथ हुई अपील और शिकायतों की संख्या के बारे में जानकारी नहीं दी। इन राज्यों की वेबसाइटों पर भी जानकारी उपलब्ध नहीं थी।

लंबित मामलों के लिए, अध्ययन में पाया गया कि 1,81,852 अपील और शिकायते 31 दिसम्बर 2016 तक 23 आईसी में लंबित पाया गया, और अक्टूबर 2017 के अंत में यह संख्या बढ़कर 1,99,186 हो गई।

As for the pending cases, the study found that 1,81,852 appeals and complaints were pending on 31 December 2016 in the 23 ICs, and the pendency only increased to 1,99,186 at the end of October 2017.

आईसीएस द्वारा अपील और शिकायतों के निपटान में बड़े पैमाने पर उन्हें दबाने का मामला आयोगों के सामने सबसे बड़ी समस्या है।

रिपोर्ट में कहा गया है, "लंबित मामलों का उच्च स्तर अक्सर आईसी में आयुक्तों और / या मौजूदा आयुक्तों का धीमी गति से कार्यवाही करना या उनकी नियुक्तियों में कमी का नतीजा है।"

दरअसल, मूल्यांकन में यह पाया गया कि मुख्य सूचना आयुक्त के समक्ष आयुक्तों के पद, कई राज्यों में खाली पड़े थे। नतीजतन, कई राज्यों में कमीशन गैर-कार्यात्मक था या कम क्षमता (आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, गुजरात, केरल और ओडिशा सहित) काम कर रहे थे।

आरटीआई एक्ट के तहत, आईसी में मुख्य सूचना आयुक्त और 10 सूचना आयुक्त शामिल होते हैं, जिन्हें भारत के राष्ट्रपति द्वारा केंद्रीय स्तर पर और राज्यों के राज्यपाल द्वारा नियुक्त किया जाता है। विभिन्न उच्च न्यायालय के निर्णय में यह माना गया है कि प्रत्येक आईसी में कम से कम मुख्य और एक अन्य सूचना आयुक्त शामिल होना चाहिए।

इसके अलावा, अध्ययन ने पाया है कि 1 नवंबर, 2017 को राज्य आईसीएस द्वारा निपटाए जाने के लिए अपील या शिकायत के लिए कितना समय लगेगा, (यह माना जा रहा है कि अगर अपील और शिकायतों को क्रमानुसार क्रम में निपटाया जाए तो )। अनुमान है कि इन निपटारे में पश्चिम बंगाल में 43 साल लगेगा, जबकि केरल में प्रतीक्षा अवधि छह साल और छह महीने की होगी, और ओडिशा में पांच वर्ष से भी अधिक का समय लगेगा।

रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि कई आईसी का प्रदर्शन वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित करने और सार्वजनिक डोमेन में उन्हें डाल देने के मामले में निराशाजनक रहा था। 29 आईसी में से अठारह (62 प्रतिशत) ने अपनी वेबसाइट पर 2016 के लिए अपनी वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित नहीं की थी। पंजाब आईसी ने 2012 के बाद अपनी कोई वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित नहीं की थी, जबकि झारखंड, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश ने 2013 के बाद तक कोई वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित नहीं की थी। जबकि उत्तर प्रदेश आईसी ने आरटीआई आवेदन के जवाब में कहा था कि 2016-17 की वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित की गई थी, जो उनकी वेबसाइट पर उपलब्ध नहीं थी।

इससे भी अधिक बात यह है कि, आरटीआई कानून ने आईसी की शक्तियों को दंड देने का अधिकार दिया है। आरटीआई अधिनियम के प्रावधानों के उल्लंघन के लिए अपराधियों को 25,000 रुपये का भुगतान करने का प्रावधान है हालांकि, अध्ययन में पाया गया कि राज्य आईसी ने "केवल उन मामलों का एक बहुत छोटा अंश जिसमें दंड असंभव था" में जुर्माना लगाया था।

1 जनवरी 2016 और 31 अक्टूबर 2017 के बीच, संबंधित सूचनाएं प्रदान करने वाले 22 कमीशन ने 4,194 मामलों (अपील और शिकायत) के आधार पर 4.41 करोड़ रोपे का जुर्माना लागाया लेकिन इसी अवधि में दंड की मात्रा केवल 49.73 लाख थी।

सबसे ज्यादा जुर्माना कर्नाटक (1.69 करोड़ रुपये), हरियाणा (95.97 लाख रुपये) और उत्तराखंड (72 लाख रुपये) में लगाया गया है। दी गयी समय समा में सीआईसी ने 29.36 लाख का जुर्माना लगाया है। इस अवधि के दौरान पश्चिम बंगाल और मिजोरम के आईसीएस ने कोई जुर्माना नहीं लगाया था।

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