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असम में 10 कवियों पर मुकदमा, जलेस ने की निंदा, संस्कृतिकर्मियों से एकजुटता का आह्वान

यह मुक़दमा जिन दस कवियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं पर दर्ज हुआ है, वे एनआरसी के मुद्दे पर काफी सक्रिय रहे हैं। कविता के बहाने (जिसमें कविता की रचना से लेकर उसे सोशल मीडिया पर साझा करना तक शामिल है) उन्हें उनकी सक्रियता की सज़ा दिये जाने की तैयारी है।
‘I am a Miyah’

जनवादी लेखक संघ (जलेस) ने असम के दस कवियों पर एफआईआर दर्ज किए जाने की निंदा की है। कवियों पर दर्ज मुक़दमा वापस लो!’ शीर्षक से जारी अपने एक सार्वजनिक बयान में जलेस ने इस कार्रवाई को अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला बताया है और असम सरकार से यह मुक़दमा तत्काल प्रभाव से वापस लिए जाने की मांग की है।

जलेस का बयान

हाफ़िज़ अहमद समेत असम के दस कवियों पर एफ़आईआर दर्ज किये जाने की एक शर्मनाक घटना सामने आयी है यह एफ़आईआर इस महीने की 10 तारीख़ को प्रणबजीत दोलोई नामक व्यक्ति की शिकायत पर दर्ज की गयी है, जिसमें कहा गया है कि काज़ी सरोवर हुसैन की एक ‘मिया कविता’ (कविता वस्तुतः हाफ़िज़ अहमद की है), जिसका अंग्रेज़ी में शालिम एम हुसैन ने अनुवाद किया है, इन दिनों सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है और देश-विदेश में असमिया लोगों की छवि को खराब कर रही है कविता पर यह आरोप लगाया गया है कि

1. इससे देश की राष्ट्रीय सुरक्षा के सामने गंभीर ख़तरा उपस्थित हो रहा है;

2. चूँकि कवि ने इसमें अपने एनआरसी नंबर का ज़िक्र किया है, यह अदालत की अवमानना का मामला है और यह एनआरसी के अद्यतनीकरण की प्रक्रिया में बाधक हो सकती है;

3. यह असम में साम्प्रदायिक हिंसा का कारण बन सकती है;

4. दुनिया की निगाह में असमिया जनता की ज़ेनोफ़ोबिक छवि बना कर उन्हें बदनाम करती है|

शिकायतकर्ता ने बाक़ायदा कविता की वाक्य-दर-वाक्य व्याख्या की है जो ख़ासी हास्यास्पद है और कविता के किसी भी पाठक के लिए उसका कोई मतलब नहीं हो सकता लेकिन आश्चर्य की बात है कि गुवाहाटी पुलिस ने उसी के आधार पर मुक़दमा दर्ज कर लिया|

यह मुक़दमा जिन दस कवियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं पर दर्ज हुआ है, वे एनआरसी के मुद्दे पर काफी सक्रिय रहे हैं कविता के बहाने (जिसमें कविता की रचना से लेकर उसे सोशल मीडिया पर साझा करना तक शामिल है) उन्हें उनकी सक्रियता की सज़ा दिये जाने की तैयारी है

हाफ़िज़ अहमद की उक्त कविता का हिन्दी के कथाकार चन्दन पाण्डेय ने अंग्रेजी से अनुवाद किया है उसे पढ़ें तो समझ में आता है कि महमूद दरवेश की ‘पहचान पत्र’ से प्रभावित इस कविता के बारे में एक कमज़ोर और हास्यास्पद शिकायत को तवज्जह देने की वजह क्या है :

लिखो

दर्ज करो कि / मैं मिया हूँ / नाराज* रजिस्टर ने मुझे 200543 नाम की क्रमसंख्या बख्शी है / मेरी दो संतानें हैं / जो अगली गर्मियों तक / तीन हो जाएंगी, / क्या तुम उससे भी उसी शिद्दत से नफरत करोगे / जैसी मुझसे करते हो? / लिखो ना / मैं मिया हूँ / तुम्हारी भूख मिटे इसलिए / मैंने निर्जन और नशाबी इलाकों को / धान के लहलहाते खेतों में तब्दील किया, / मैं ईंट ढोता हूँ जिससे / तुम्हारी अटारियाँ खड़ी होती हैं, / तुम्हें आराम पहुँचे / इसलिए / तुम्हारी कार चलाता हूँ, / तुम्हारी सेहत सलामत रहे इसलिए / तुम्हारे नाले साफ करता हूँ, / हर पल तुम्हारी चाकरी में लगा हूँ / और तुम हो कि तुम्हें इत्मिनान ही नहीं! / लिख लो, / मैं एक मिया हूँ, / लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष, गणतंत्र का नागरिक / जिसके पास कोई अधिकार तक नहीं, / मेरी माँ को संदेहास्पद-मतदाता** का तमगा मिल गया है, / जबकि उसके माँ-बाप सम्मानित भारतीय हैं, / अपनी एक इच्छा-मात्र से तुम मेरी हत्या कर सकते हो, मुझे मेरे ही गाँव से निकाला दे सकते हो, / मेरी शस्य-स्यामला जमीन छीन सकते हो, / बिना किसी सजा के तुम्हारी गोलियाँ, / मेरा सीना छलनी कर सकती हैं. / यह भी दर्ज कर लो / मैं वही मिया हूँ / ब्रह्मपुत्र के किनारे बसा हुआ दरकिनार / तुम्हारी यातनाओं को जज्ब करने से / मेरा शरीर काला पड़ गया है, / मेरी आँखें अंगारों से लाल हो गई हैं. / सावधान! / गुस्से के अलावा मेरे पास कुछ भी नहीं / दूर रहो / वरना / भस्म हो जाओगे।

*नाराज रजिस्टर: नागरिकों की राष्ट्रीय जनगणना रजिस्टर
** संदेहास्पद मतदाता: डी वोटर

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आला अदालत के आदेश पर जो प्रक्रिया चल रही है, उसकी आलोचना करना अपने-आप में अदालत की अवमानना नहीं है भारतीय संविधान अभिव्यक्ति की इस आज़ादी को सुनिश्चित करता है साथ ही, कविता या किसी भी साहित्यिक विधा में पीड़ा की ऐसी अभिव्यक्तियों की सीधे-सीधे कानूनी व्याख्या नहीं की जा सकती अगर ऐसा होने लगे तो संसार के महान साहित्य के बहुत बड़े हिस्से को राजद्रोही और समाजद्रोही बताकर रचनाकारों को—अगर वे जीवित हों—दण्डित किया जाने लगेगा|

जनवादी लेखक संघ अभिव्यक्ति की आज़ादी पर होने वाले इस हमले की कठोर शब्दों में निंदा करता है और यह मुक़दमा तत्काल प्रभाव से वापस लिए जाने की मांग करता है जलेस देश के लेखकों-संस्कृतिकर्मियों का आह्वान करता है कि ऐसे प्रयासों के ख़िलाफ़ एकजुट हों और राज्य को यह स्पष्ट सन्देश दें कि रचनाकर्म पर ऐसे अंकुशों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा

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