सफ़ूरा ज़रग़र की अजन्मी बिटिया की ओर से... तुम कब जनमोगी अम्मा...मैं कब आज़ाद होउंगी!
सब कुछ ठीक है अम्मा!
सलाखों की छाया तुम्हारे पेट पर देखी है मैंने
और सुनी है तुम्हारे दिल की थरथराहट
कोख के पानी में
सब कुछ ठीक है अम्मा !
तुम जेल की कोठरी में हो
और मैं तुम्हारी कोख में
तुम अपने वतन में हो
मैं अपने वतन में
सलाखों से रिसती धूप
रौशनदान से झांकती चांदनी
तुम्हारी धड़कन में सीझकर पहुंचते हैं मेरे पास।
सब कुछ ठीक है अम्मा !
वे जब तुम्हें कैद कर लाए ना अम्मा
उन्हें पता नहीं था
वे एक को नहीं दो को कैद कर लाए हैं
जब तुम्हें खाना दिया
तो पता नहीं था उन्हें
तुम्हें एक की नहीं दो की भूख है
जब सोईं ना तुम
तो पता ही न चला उन्हें
कि ये एक की नहीं दो की नींद है
और कहां पता चलना था उन्हें
कि तुम्हारी आंखों में
एक के नहीं दो के ख़्वाब हैं
कैसा चकमा दिया उन्हें अम्मा
तुम्हारे भीतर छुपकर आ गई मैं
मैं बहुत खुश हूं अम्मा !
अपनी उन आंखों से जो अभी नहीं खुलीं
मैंने एक दुनिया देखी
अपने उन कानों से जो कुछ नहीं सुनते
मैंने कुछ गीत सुने
अपनी उस ज़बान में जो अभी नहीं चली
मेरे पास कुछ जवाब हैं
अजन्मे जवाब अम्मा!
मेरे बाप का नाम पूछें तो कहना वतन
मेरा वतन पूछें तो मुट्ठी भर जेल की माटी देना
मेरा धरम पूछें
तो कहना वहीं जो मादरे हिंद का है
और जो पूछें अम्मा तुमसे
कौन है तुम्हारे पेट में
तो कहना आज़ादी का इक नन्हा नग़्मा पलता है!
बंदिनी मांएं आज़ाद नहीं होतीं
जनमती है
बंदिनी बेटियां जनमती नहीं
आज़ाद होती हैं
तुम कब जनमोगी अम्मा
मैं कब आज़ाद होउंगी !
अंशु मालवीय
(27/5/20)
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