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अयोध्या विवाद : सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता पर आदेश सुरक्षित रखा

उत्तर प्रदेश राज्य सहित हिंदू पक्षकारों ने अदालत के प्रस्ताव का विरोध किया है।
सांकेतिक तस्वीर

सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने बुधवार को अयोध्या राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को मध्यस्थता के लिए भेजने के फैसले को सुरक्षित रख लिया।

हालांकि उत्तर प्रदेश राज्य सहित हिंदू पक्षकारों ने अदालत के प्रस्ताव का विरोध किया। प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजन गोगोई अध्यक्षता वाली 5 जजों की संवैधानिक बेंच ने साफ कहा कि हम अयोध्या जमीन विवाद और इसके प्रभाव को गंभीरता से समझते हैं और जल्दी फैसला सुनाना चाहते हैं। बेंच ने आगे कहा कि अगर पार्टियां मध्यस्थों का नाम सुझाना चाहती हैं तो दे सकती हैं।

उत्तर प्रदेश की तरफ से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, "यह (मध्यस्थता) उचित और विवेकपूर्ण नहीं होगा।"

राम लला की तरफ से पेश वरिष्ठ वकील सी.एस.वैद्यनाथन ने मध्यस्थता का विरोध किया और अदालत से कहा कि भगवान राम की जन्मभूमि विश्वास व मान्यता का विषय है और वे मध्यस्थता में विरोधी विचार को आगे नहीं बढ़ा सकते। हिंदू महासभा में अपना पक्ष रखते हुए मध्यस्थता का विरोध किया। महासभा ने कहा कि कोर्ट को ही फैसला करना चाहिए।
हिंदू महासभा ने बाबर का भी जिक्र किया। उसने कहा कि बाबर ने मंदिर को ध्वस्त किया था। इस पर जस्टिस एस. ए. बोबडे ने कहा, 'अतीत में क्या हुआ, उस पर हमारा नियंत्रण नहीं है। किसने हमला किया, कौन राजा था, मंदिर था या मस्जिद था। हम मौजूदा विवाद के बारे में जानते हैं। हमें सिर्फ विवाद के निपटारे की चिंता है।'

मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने आगे कहा कि मुस्लिम पिटिशनर्स मध्यस्थता और किसी समझौते या सेटलमेंट के लिए राजी हैं, जो पार्टियों को बाध्य करे। उन्होंने बेंच से मध्यस्थता के लिए शर्तें तैयार करने को भी कहा।

(आईएएनएस के इनपुट के साथ)

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