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बेहद मामूली और बहुत देर से मिला एमएसएमई क्षेत्र को मोदी का 'दिवाली उपहार’

नोटबंदी और जीएसटी के दोहरे झटके के बाद, एमएसएमई क्षेत्र अभी वहां भी वापस नही आ पाया है जहां वह दो साल पहले था।
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Image Courtesy: iamwire

यहां एक ऐसी कहानी है जो अक्सर दिल्ली के मजदूर वर्ग के क्षेत्रों में एक मज़दूर से संबंधित होती है, कई साल पहले उस मज़दूर ने अपनी बीमार बेटी के लिए दवाएं खरीदने के लिए अपने मालिक से 500 रुपये का अग्रिम कर्ज़ लिया था। जब वह घर जाने के लिए एक बहुत भीड़ वाली निजी बस में चढ़ा और जब उसने टिकट लेने के लिए जेब से पैसा निकालने के लिए हाथ डाला, तो उसका 500 रुपये का नोट गायब मिला। किसी ने उसकी जेब काट ली थी। वह अपना आपा खो बैठा और रोया और विनती की, लेकिन पैसा तो चला गया था। अन्य यात्रियों ने उसे किसी तरह शांत किया। लेकिन, बस कंडक्टर ने मांग की कि वह अपना टिकट जरूर खरीदे। मज़दूर ने अनुरोध किया कि उसका पूरा पैसा खो गया है और उसे इस पर कुछ दया दिखायी जानी चाहिए। जब यह सब चल रहा था, तो एक यात्री ने हस्तक्षेप किया और कहा, "मैं उसका टिकट खरीदूंगा, बेचारा गरीब आदमी!" और किराये का भुगतान कर दिया। पूरी तरह टूट चुके मज़दूर ने उन्हें धन्यवाद और आशीर्वाद दिया। वह यात्री बस से उतर गया। वह वास्तव में जेब कतरा था!

सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) के लिए तथाकथित दिवाली उपहार की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा इस कहानी की याद दिलाती है। मोदी ने घोषणा की है कि 1 करोड़ रुपये तक का ऋण 59 मिनट में उपलब्ध होगा, और उन सभी को 2 प्रतिशत ब्याज सब्सिडी दी जाएगी जिन्होंने ऋण लिया है, बशर्ते वे वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के तहत पंजीकृत हों। उन्होंने यह भी घोषणा की कि एमएसएमई इकाइयों के लिए कुछ श्रम कानून बंदिशों को माफ कर दिया जाएगा।

इन एमएसएमई इकाइयों के बारे में अनुमान है कि भारत में ये करीब 6.5 करोड़ की विशाल संख्या में मौजूद हैं और जिन्हे मोदी सरकार की दो प्रमुख नीतियों - नवंबर 2016 में नोटबंदी और जुलाई 2017 में जीएसटी ने बर्बाद कर दिया था। रोजगार और उत्पादन में कमी आई क्योंकि इस दोहरे हमले ने बड़े पैमाने पर अनौपचारिक क्षेत्र में नकदी प्रवाह को सुखा दिया था। इसका एक आकर्षक उदाहरण नीचे दिए ग तालिका /ग्राफ में इन दो अवधियों में बैंक क्रेडिट प्रवाह (जैसा कि भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा सूचित किया गया है) में सूक्ष्म और लघु उद्यमों में देखा जा सकता है:

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पहली गड़बड़ी तब हुयी जब नोटबंदी हुयी। फिर क्रेडिट प्रवाह कुछ हद तक वापस आया लेकिन फिर जीएसटी लागू हो गयी और यह फिर से फिसल गया। नीचे दिए गए ग्राफ में दिखाया गया है कि इसने मध्यम उद्यमों को भी पीछे होने के लिए मजबूर कर दिया:

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नोटबंदी के लगभग दो साल और जीएसटी के डेढ़ सालों के बाद, क्रेडिट प्रवाह मुश्किल से नोटबंदी पूर्व के स्तर पर आ पाया है। सूक्ष्म और लघु उद्यमों के लिए, कुल क्रेडिट प्रवाह सितंबर 2018 में 3,638 अरब रुपये था और  सितंबर 2016 की तुलना में यह 3,630 अरब रुपये था। सितंबर 2016 में मध्यम उद्यमों के लिए सितंबर 2018 में क्रेडिट प्रवाह 1,053 अरब रुपये था, जो सितंबर 2016 में 1,107 अरब रुपये से भी कम था।

यही नहीं। सिडबी और ट्रांसयूनियन सिबिल की एक रिपोर्ट से पता चला कि मार्च 2018 में, एमएसएमई क्षेत्र में गैर-निष्पादित संपत्ति या विशाल यानी (बुरा ऋण) 81,000 करोड़ रुपये था। बाद में, जून 2018 में, आरबीआई ने कुछ प्रावधानों में छूट दी ताकि इन बुरे ऋणों के पुनर्भुगतान के लिए 180 दिनों की खिड़की उपलब्ध हो। इससे 5,000 करोड़ रुपये की राशि कम हो गई। लेकिन 11,000 करोड़ रुपये उन उद्यमों से वसूलने थे जिन्हें कम से कम एक बैंक से एनपीए घोषित किया गया था। और उसके बाद 1,20,000 करोड़ रुपये उन भारी जोखिम वाले उद्यमों के रूप में रिपोर्ट में वर्गीकृत किए गए थे। रिपोर्ट में कहा गया है कि मार्च 2019 तक, 12,000 करोड़ रुपये ओर एनपीए बन जाएंगे।

ये सभी एनपीए बड़े निगमों की तुलना में बहुत कम हैं। लेकिन बुरे ऋण तो बुरे ऋण हैं - और इस मलिनता के अस्तित्व से पता चलता है कि एमएसएमई क्षेत्र संकट की जकड़ में है।

मोदी द्वारा उनको अधिक ऋण देने का दबाव इस संकट को हल नहीं करेगा। एमएसएमई क्षेत्र को जो जरूर है वह है कि मांग को बढ़ाया जाए जिससे उत्पादन (और रोजगार) में वृद्धि होगी। बस अधिक ऋण उपलब्ध कराना सड़क पर चलते हुए डब्बे में लात मारने जैसा है। जिसका आपको बाद में भुगतान करना होगा।

लेकिन मोदी और वित्त मंत्री अरुण जेटली संकट को हल करने के बारे में चिंतित नहीं हैं। वे यह सोच रखते हैं कि इस तरह से पैसे फेंकने से वे चुनाव जीत जाएंगे। वे जेब कतरों की तरह व्यवहार करना चाहते हैं जिन्होंने पहले मज़दूर के 500 रुपये को लूट लिया और फिर उसके लिए बस टिकट खरीद दिया।

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