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बजट 2019 : किसानों के लिए 0 बजट!

वित्त मंत्री ने अपने बजट को भले ही किसानों पर केंद्रित बताया है लेकिन कृषि क्षेत्र से जुड़े जानकारों ने बजट पर निराशा जताई है। उनका कहना है कि इस बजट में किसानों को लेकर कुछ नहीं है।
फाइल फोटो
(फोटो साभार: डीएनए)

निर्मला सीतारमण ने केंद्र की सत्तारूढ़ नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का पहला और देश की पहली पूर्ण कालिक महिला वित्त मंत्री के रूप में अपना पहला बजट शुक्रवार को संसद में पेश किया। इस दौरान उन्होंने कहा कि गांव, गरीब और किसान उनकी हर योजना का केंद्र बिंदु होगा। 

सीतारमण ने महात्मा गांधी की कही बात से शुरुआत की। उन्होंने कहा कि असल भारत गांव में बसता है और गांव और किसान उनकी हर योजना के फोकस में होंगे। किसानों का जीवन और व्यवसाय आसान बनाने के लिए काम किए जाएंगे। 

क्या कहा वित्त मंत्री ने?

सीतारमण ने कहा कि सरकार कृषि अवसरंचना में निवेश करेगी। आजादी की 75वीं सालगिरह तक किसान की आय दोगुनी करने की कोशिश की जाएगी।

बजट पेश करते हुए निर्मला सीतारमण ने कहा कि दस हजार नए किसान उत्पादक संगठन बनाए जाएंगे। भारत अब दाल में आत्म निर्भर हो गया है, इसके लिए देश के सभी किसानों को धन्यवाद देते हैं। हम किसानों से उम्मीद करते हैं कि ऐसी ही कामयाबी वे हमें तिलहन में भी दिलाएंगे। सरकार कृषि क्षेत्र के बुनियादी ढांचे में जबरदस्त निवेश कर रही है। हमारा लक्ष्य आयात पर कम खर्च करना है, इसके साथ ही डेयरी के कार्यों को भी बढ़ावा दिया जाएगा।

उन्होंने कहा कि किसानों को उस स्थिति में पहुंचाना है जहां पर जीरो बजट खेती कर सकें। इस तरह की खेती में किसान को बाजार पर निर्भर नहीं होना पड़ता है और ये काफी सस्ती भी है।

सीतरमण ने कहा कि अन्नदाता को ऊर्जादाता बनाने पर काम होगा। किसानों के उत्पाद से जुड़े कामों में प्राइवेट आंत्रप्रेन्योरपिश को बढ़ावा दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि किसानों को पहले से ही प्रशिक्षित किया जा रहा है, ताकि दोहरी आय हासिल करने में किसानों की मदद की जा सके।

कृषि से जुड़े लोगों ने जताई निराशा 

वित्त मंत्री ने अपने बजट को भले ही किसानों पर केंद्रित बताया है लेकिन कृषि क्षेत्र से जुड़े जानकारों ने बजट पर निराशा जताई है। उनका कहना है कि इस बजट में किसानों को लेकर किसी भी नई योजना के बारे में बात नहीं की गई। इसके अलावा स्वामीनाथन आयोग, आय को दुगुनी करने की बात, हर खेत को पानी, मनरेगा आदि की भी चर्चा नहीं की गई। 

किसान नेता और स्वराज पार्टी से जुड़े योगेंद्र यादव ने बजट को लेकर दो ट्वीट किए। बजट की खिंचाई करते हुए उन्होंने लिखा,'मोदीजी को झोली भर के वोट देने वाले किसान ने बजट सुनना शुरू करते हुए गुनगुनाया: आज हम अपनी दुआओं का असर देखेंगे। बजट स्पीच के अंत में उसने निराश होकर बोला: आज की रात बचेंगे तो सहर (सुबह) देखेंगे।'

उन्होंने आगे लिखा,'कम से कम किसान के लिए तो यह ज़ीरो बजट स्पीच थी: न सूखे का जिक्र, न आय दोगुना करने की योजना, न किसान सम्मान निधि का विस्तार, न एमएसपी रेट किसान को दिलवाने की पुख्ता योजना, न आवारा पशु से निपटने की कोई तरकीब।'

कुछ ऐसा ही मानना अखिल भारतीय किसान सभा (एआईकेएस) महासचिव हन्नान मोल्ला का है। वे कहते हैं, 'वास्तविकता में बजट में किसानों के लिए कुछ नहीं है। सिर्फ थोड़ी बहुत भाषणबाजी की गई है लेकिन पीड़ित किसानों की बेहतरी के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। किसानों की खुदकशी, फसल के दाम, एमएसपी, लोन, कृषि मजदूर खेती की लागत जैसी बातों पर चर्चा नहीं की गई है। उल्टा दस हजार नए किसान उत्पादक संगठन बनाकर कॉरपोरेट की इंट्री सरकार करा रही है। पिछले पांच साल सरकार ने किसानों को धोखा दिया है। इस बजट के जरिए वही धोखा एक बार फिर दिया गया है।'

सवाल और भी हैं

वहीं, भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता धमेंद्र मलिक कहते हैं, 'देश की पहली वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन जी द्वारा बजट पेश किए जाने से किसानों को काफी उम्मीदें थीं। किसानों को उम्मीद थी कि निर्मला सीतारमन द्वारा पिछली सरकार में वाणिज्य मंत्री के रूप में व्यापार को आसान बनाने के लिए 7000 कदम उठाए गए थे। कृषि को आसान बनाने के लिए कम से कम 5000 कदम सुझाए जाने की उम्मीद थी, लेकिन यह बजट किसानों की आशाओं के विपरीत है। वित्त मंत्री जी ने देश को दालों में आत्मनिर्भर बनाने के लिए किसानों की सराहना करते हुए भगवान भरोसे छोड़ दिया। किसानों की फसलों की खरीद कम से कम समर्थन मूल्य पर सुनिश्चित हो। इसके लिए कोई उपाय नहीं किया गया। देश का सबसे बड़ा वित्त मंत्री मानसून है। आज आधा देश सूखे की चपेट में है, लेकिन वित्त मंत्री जी द्वारा इन किसानों के लिए न तो कोई चिन्ता जाहिर की गई और न ही कोई प्रतिबद्धता दिखाई गई।'

मलिक आगे कहते हैं, 'कृषि के सकल घरेलू उत्पाद में घटते योगदान को लेकर सरकार के सामने किसानों की आमदनी बढाए जाने की चुनौती है। देश के 17 राज्यों में किसानों की औसत आमदनी 20000 से भी कम है। देश में किसानों की आत्महत्याओं की प्रत्येक दिन खबर आ रही है। ऐसे में किसानों को बजट से निश्चित आमदनी तय किए जाने की अपेक्षा थी। वित्त मंत्री जी द्वारा दिए गए भाषण में किसानों के लिए चलायी गई योजनाएं जैसे प्रधानमंत्री किसान, ई-नाम, ड्राप-मोर क्रोप, ग्रामीण हार्ट, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, खेत, तालाब जैसी योजनाओं का न तो जिक्र किया गया और न ही इनके लिए आबंटित धनराशि की कोई जानकारी दी गई।'

मलिक ने बताया,' पहली बार बजट भाषण में कृषि क्षेत्र के आबंटन की धनराशि का जिक्र तक नहीं किया गया। यह बजट गांव, गरीब और किसान के लिए जीरो बजट साबित होगा। बजट के अनुसार किसानों को अब सरकार की जीरो और भगवान का ही सहारा है।'

बजट में किसानों को लेकर अखिल भारतीय किसान सभा के संयुक्त सचिव वीजू कृष्णन कहते हैं, 'आप बजट में एग्रीकल्चर में हाईलाइट देखेंगे तो वह भी नहीं मिल रहा है। 2014 के मैनिफेस्टों में बीजेपी ने कहा था कि एग्रीकल्चर इज द इंजन आफ इकनॉमिक ग्रोथ लेकिन गुरुवार को आए आर्थिक सर्वे में कहा गया कि प्राइवेट इनवेस्ट इज द ड्राइवर आफ इकनॉमिक ग्रोथ। इसकी झलक इस बजट में भी दिख रही है। एमएसपी के निर्धारण में दिख रही है। किसानों का आय दोगुनी करने की जो बात थी उस तरफ सरकार कदम ही नहीं बढ़ा रही है। सरकार ने किसानों के लिए बजट में कोई ठोस निर्णय या कदम नहीं उठाया है। सिर्फ कुछ बातें कहकर वित्त मंत्री ने अपना भाषण खत्म कर दिया।'

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