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बजट 2020: कॉरपोरेट दोस्तों की जेबें भरने के लिए जनता की लूट

अपने कॉरपोरेट दोस्तों को छूट देने के लिए मोदी सरकार ने आम लोगों पर भार बढ़ा दिया है। इस तरह सरकार ने देश को सिर्फ एक फायदा पहुंचाने वाली मशीनरी में बदल दिया है और अर्थव्यवस्था को गहरे गड्ढे में ढकेल दिया है।
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एक फरवरी, 2020 को संसद में पेश किए गए बजट से एक झकझोरने वाली तस्वीर सामने आती है। यह दिखाती है कि कैसे नरेंद्र मोदी की सरकार ने भारतीय अर्थव्यवस्था को मटियामेट कर दिया है। बजट से समझ आता है कि इस ''अमीरों की सरकार'' ने कॉरपोरेट को छूट देने के लिए आम आदमी पर भार खतरनाक स्तर तक बढ़ा दिया है। कुलमिलाकर देश को कॉरपोरेट से जुड़े कुछ लोगों के लिए महज़ एक फायदा दिलाने वाली मशीनरी में तब्दील किया जा रहा है।

विध्वंसक मंदी को समझिए

प्राथमिकताओं की नजरंदाजी, कुप्रबंधन और हेर-फेर के ज़रिए मोदी सरकार ने अर्थव्यवस्था को गड्ढे में ढकेल दिया है। इसके चलते सरकार के राजस्व में भारी कमी आई है। सिर्फ एक साल में ही ''कुल कर राजस्व'' 2.98 लाख करोड़ रुपये तक गिर गया। पिछले साल बजट में तय किए गए लक्ष्य से यह बारह फ़ीसदी कम रहा। कस्टम और एक्साइज़ ड्यूटी से मिलने वाला राजस्व क्रमश: 30,904 करोड़ रुपये और 51,988 करोड़ रुपये कम हुआ है। कुल-मिलाकर कस्टम में 20 फ़ीसदी और एक्साइज़ ड्यूटी में 17 फ़ीसदी की भारी-भरकम गिरावट आई है। वहीं जीएसटी कलेक्शन में 51,000 करोड़ रुपये की कमी दर्ज़ की गई है और यह कलेक्शन पिछले साल से आठ फ़ीसदी गिरा है।

यह जानते हुए भी कि हमारा राजस्व लगातार गिर रहा है, मोदी सरकार ने पिछले साल अगस्त में कॉरपोरेट टैक्स में कमी कर दी। सिर्फ इस कमी से ही राजस्व में 1.56 लाख करोड़ की गिरावट आई। यह गिरावट बीस फ़ीसदी से भी ज्यादा थी।

कर राजस्व की इस भयानक गिरावट को छुपाने के लिए मोदी सरकार ने एक और अभूतपूर्व कदम उठाया। कानूनन प्रावधानों से हटकर, मोदी सरकार ने राज्यों को दिए जाने वाले पैसे में कटौती की। यह कटौती 1.53 लाख करोड़ रुपयों की थी। इसका मतलब यह हुआ कि केंद्र की नीतियां, जिनमें कॉरपोरेट को छूट भी शामिल है, उनका भार अब राज्य वहन कर रहे हैं।  इस ''बचत'' के साथ ही मोदी सरकार ने नुकसान का एक बड़ा हिस्सा छुपाने में कामयाबी पाई और अपने बही-खाते में सिर्फ 36,740 करोड़ रुपये की गिरावट दिखाई। इस बीच राज्य संशय में हैं कि वे अपनी जिम्मेदारियां कैसे पूरी करें।

इस तरह आम जनता और राज्य सरकारों को ठेंगा दिखाकर केंद्र सरकार ने कॉरपोरेट के प्रति अपने झुकाव पर पर्दा डाला। पूरी प्रक्रिया में केंद्र सरकार ने आर्थिक मंदी के भयावह प्रभावों को भी छुपा लिया।

खर्च में की गई कटौतियां

इस साल के बजट में दिखाए गए पिछले साल के ''व्यय बजट (Expenditure Budget)'' से समझ में आता है कि किस तरह मोदी सरकार ने पूरे झोलझाल का भार लोगों पर डाल दिया। ध्यान रहे पूरे देश के लोग वैसे ही बड़े पैमाने की बेरोजगारी, बढ़ती कीमतों और आर्थिक मंदी से घटती आय से परेशान हैं। इस भयावह स्थिति में लोग राहत पहुंचाने के लिए सरकार से कड़े कदमों की आश लगा रहे थे, उम्मीद थी कि सरकारी खर्च बढ़ाया जाएगा, ताकि इस संकट से बेहतर तरीके से निपटा जा सके। सरकार की तरफ से अर्थव्यवस्था में पैसा डालकर  लोगों की क्रय शक्ति को बढ़ाया जा सकता था, जिससे माल और सेवाओं की मांग में इजाफा होता और अर्थव्यवस्था में तेजी आती।

लेकिन नवउदारवादी नीतियों में अंधविश्वास रखने वाली इस सरकार ने बिलकुल उलटा काम किया है। पिछले एक साल में सरकार ने केंद्रीय क्षेत्र की योजनाओं में  खर्च को 97,600 करोड़ रुपये कम कर दिया। वहीं केंद्र प्रायोजित योजनाओं (जैसे MGNREGA, PMGSY आदि) में 14,794 करोड़ रुपये की कटौती की गई। साथ में कुछ दूसरे केंद्रीय खर्चों में भी 30,580 करोड़ रुपये की कमी की गई है।

इसका प्रभाव यह हुआ कि ग्रामीण रोजगार गारंटी स्कीम, MNGREGA, पीएम आवास योजना और पीएम ग्राम सड़क योजना में बनने वाली सड़कों के काम पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तरीके से इस कदम ने लोगों की तकलीफों को और बढ़ाया है।

इन कदमों से लोगों को यह समझ आता है कि मोदी सरकार उनकी परवाह नहीं करती। सरकार देशी-विदेशी कॉरपोरेट के फायदे के लिए लोगों को कुर्बान कर सकती है।

 योजनाओं की आवंटन निधि में इस कटौती को समझने के लिए नीचे दिए गए चार्ट पर ध्यान दीजिए।

खाद्यान्न सब्सिडी में 75,532 करोड़ रुपये की कटौती की गई है। ध्यान रहे इस सब्सिडी से लोगों को कम कीमतों पर खाद्यान्न सुरक्षा उपलब्ध कराई जाती है। वहीं स्वास्थ्य पर होने वाले खर्च में 1,168 करोड़ रुपये की कटौती की गई। यहां तक कि कृषि और इससे जुड़े क्षेत्रों (जैसे मतस्यपालन) में भी 30,683 करोड़ रुपये की कटौती हुई। इस कटौतियों से बड़ी संख्या में लोग प्रभावित होंगे।

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आम भारतीयों को समझ रहे हैं कि मोदी सरकार कॉरपोरेट की जेबें भरने के लिए ऐसे कदम उठा रही है। कुछ महीनों पहले ही मोदी को वोट देकर सत्ता सौंपने वाले लोगों के साथ यह बहुत बड़ा छलावा है। सांप्रदायिकता फैलाने और लोगों में बैर बढ़ाने वाले हालिया फैसलों को जब हम इन कदमों के साथ मिलाकर देखते हैं, तो हमें मोदी सरकार सिर्फ दागदार नज़र आती है।

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