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बजट सत्र: अर्थनीति और राजनीति की तस्वीर होगी साफ

73 राज्यसभा सासंद इस साल रिटायर होने वाले हैं। इनमें से कई बजट सत्र में रिटायर होंगे। अब सरकार और विपक्ष में राज्यसभा पर नियंत्रण के लिए प्रतिस्पर्धा होगी।
Budget Session
Image Courtesy: Hindu Business Line

संसद के बजट सत्र का एक हफ्ते से भी कम वक्त बचा है। यह सत्र 31 जनवरी को शुरू होगा। एक फरवरी को वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण बजट पेश करेंगी। यह 11वीं बार है, जब शनिवार को बजट पेश किया जाएगा। पिछली बार 2015 में शनिवार को तत्कालीन वित्तमंत्री अरुण जेटली ने बजट पेश किया था। उस बजट में जीएसटी पर चर्चा शुरू हुई थी और जन-धन अकाउंट के ज़रिए 'डॉयरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर' शुरू किया गया था।

बजट सत्र, संसद का सबसे लंबा सत्र होता है। यह आठ से नौ हफ्ते (30-35 काम वाले दिन) चलता है। इसकी बैठक को दो हिस्सों में बांटा जाता है। शुरुआती संक्षिप्त हिस्से में सांसद सरकार के संचालन, देश की आर्थिक स्थिति और बजट के प्रस्तावों पर चर्चा करते हैं। इसके बाद सदन को एक संक्षिप्त छुट्टी दी जाती है। इस छुट्टी के दौरान संसदीय समितियां मंत्रालयों द्वारा पेश की गई वित्तीय योजनाओं पर करीबी नज़र डालती हैं। इस छुट्टी के खात्मे पर संसदीय समितियों के परीक्षण को सदन में रखा जाता है।

वैसे इस सत्र का मुख्य आकर्षण बजट ही है, लेकिन सत्र में दूसरी चीजें भी हैं। सत्र के पहले दिन राष्ट्रपति दोनों सदनों के सदस्यों को सेंट्रल हाल में संबोधित करेंगे। उनके भाषण (जो सरकार द्वारा तैयार होगा) में राष्ट्रपति आने वाले साल के लिए सरकार की प्राथमिकताएं बताएंगे। इन प्राथमिकताओं को सरकार संसद के ज़रिए कानून या नीतियों में बदलती है।

नरेंद्र मोदी के पहले कार्यकाल में संसद ने 133 बिल पास किए। लोकसभा के निलंबन के साथ ही दूसरे 46 बिल, जो अपने पास होने के इंतजार में थे, वे रद्द हो गए। इनमें कंज़्यूमर प्रोटेक्शन, मोटर व्हीकल संशोधन, लेबर कोड, तीन तलाक आदि शामिल थे। इन्हें दोबारा सदन में लाकर बाद में पास किया गया।

परिणामस्वरूप, 2020 में संसद के सामने बिलकुल कोरा कागज है। इसका मतलब है कि आने वाले चार सालों में सरकार जो करना चाहती है, यह बजट सत्र उसकी शुरुआत का मौसम होगा। सरकार ने अपनी विधायी प्राथमिकताओं की सूची नहीं बनाई, लेकिन कुछ इशारों से पता चलता है कि सरकार ज़मीन, मजदूर और पूंजी के मुद्दों के आसपास घूमेगी।

पहले ज़मीन की बात करते हैं। इस दिशा में एनडीए सरकार का पहला विधायी कदम भूमि अधिग्रहण कानून में 2015 का संशोधन था। इस विधेयक के ज़रिए रणनीतिक और विकास आधारित क्रियाकलापों के लिए भूमि अधिग्रहण की शर्तों में ढील दी जा रही थी। लेकिन संसद में जबरदस्त विरोध के चलते संशोधन को वापस लेना पड़ा था।

सरकार ने इसके बाद अपनी रणनीति में बदलाव किया था। सरकार ने राज्य सरकारों को उनके मुताबिक भूमि अधिग्रहण कानून में बदलाव करने के लिए प्रोत्साहित किया। कई राज्यों ने इसे लागू भी किया। इसके बाद संसद में ज़मीन पर कोई बड़ा विधायी प्रस्ताव नहीं आया है।

पिछले दशक में सरकारों ने ज़मीन के रिकॉर्ड के डिजिटाइजेशन पर काम किया है। 2019 में बीजेपी के मेनिफेस्टो में इस काम को मिशन मोड पर लागू करने की बात थी। मेनिफेस्टो में दूसरी पीढ़ी के भूमि सुधारों की बात भी थी, ताकि ज़मीन मालिक का हक़ पुख्ता किया जा सके और ज़मीन से जुड़े मुकदमों को कम किया जा सके।

अध्ययनों से पता चला है कि देश के कुल लंबित मुकदमों में दो तिहाई मामले ज़मीन विवाद से जुड़े हैं। एक दूसरे अध्ययन से पता चलता है कि एक ज़मीन विवाद को सुलझने में औसतन बीस साल लगते हैं। लोकसभा में बहुमत और राज्यसभा में सुधरी स्थिति के चलते सरकार भूमि सुधारों पर अपने वायदों को पूरा करने की कोशिश करेगी।

दूसरी तरफ 'मजदूर क्षेत्र के सुधारों' के लिए सरकार कोशिश कर रही है। पिछले 6 महीनों में इस विषय से संबंधित तीन अहम विधेयक सामने आए हैं। पहला विधेयक स्वास्थ्य, सुरक्षा और किसी जगह पर नौ मजदूरों से ज्यादा के काम करने की स्थिति के योग्य वातावरण पर बात करता है।

दूसरा विधेयक उद्योग से संबंधित विवादों और ट्रेड यूनियन के बारे में है। इसका नाम 'इंडस्ट्रियल रिलेशन कोड बिल' है। तीसरा विधेयक कामगारों की सामाजिक सुरक्षा, जैसे प्रोविडेंट फंड और मातृत्व फायदों से जुड़ा है। इन तीन विधेयकों के ज़रिए मौजूदा 25 कानूनों को इकट्ठा किया जाएगा। लोकसभा सांसद भर्तहरी महताब की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति फिलहाल इन विधेयकों का परीक्षण कर रही है।

प्रधानमंत्री मोदी के पहले कार्यकाल में विधायी ध्यान मुख्यत: वित्तीय क्षेत्र पर था। कुल पास हुए कानूनों में करीब 26 फ़ीसदी इस विषय से जुड़े थे। जैसे बीमा में एफडीआई, जीएसटी, इंसॉल्वेंसी कोड, फ्यूजीटिव इकनॉमिक अफेंडर आदि इनमें से कुछ थे।

इंसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्टसी कोड अभी भी विकसित हो रहा है। आने वाले सत्र में इस कोड में सरकार एक और संशोधन करेगी। इस संशोधन के ज़रिए रियल एस्टेट प्रोजेक्ट में वित्तीय देनदारों द्वारा प्रस्ताव शुरू करने के लिए न्यूनतम मात्रा को तय किया जाएगा। कंपनी एक्ट में भी बदलाव किए गए हैं। खासकर दोषों के नि:अपराधीकरण की दिशा में। हालांकि अर्थव्यवस्था की रफ्तार को बढ़ाने में सहायक बड़ी घोषणाओं के लिए बजट का इंतजार करना होगा।

सरकार का ध्यान पर्सनल डेटा के उपयोग की तरफ भी है। 'डीएनए टेकनोलॉजी बिल' और 'पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल' को व्यक्तिगत डेटा की सुरक्षा के लिए पेश किया गया है। इन दोनों बिलों पर संसदीय समितियां परीक्षण कर रही हैं। राज्यसभा सांसद जयराम रमेश की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति डीएनए बिल का परीक्षण कर रही है।

वहीं लोकसभा सांसद मीनाक्षी लेखी की अध्यक्षता में दोनों सदनों की एक संयुक्त कमेटी पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल का परीक्षण कर रही है। समितियों के परीक्षण के दौरान, इन कानूनों से जिन लोगों के हित जुड़े होते हैं, वे अपनी आवाज उठा सकते हैं।  

संसद और राजनीति साथ-साथ चलती हैं। इस साल 73 राज्यसभा सांसद रिटायर होने वाले हैं। इनमें से कई बजट सत्र में रिटायर होंगे। पिछले कुछ महीनों में आए राज्यों के नतीजे तय करेंगे कि राज्यसभा में सरकार या विपक्ष, किसका नियंत्रण रहता है। लोकसभा के उपसभापति का पद भी खाली है।

आमतौर पर यह पद उस पार्टी को मिलता है, जो सत्ताधारी पार्टी की सहयोगी है। लेकिन मौजूदा सरकार की गठबंधन में कोई मजबूरी नहीं है, इसलिए देखना होगा कि यह पद किसे मिलता है।

मंत्रीपरिषद के समायोजन का सवाल भी लगातार उठता रहा है। फिलहाल 56 मंत्री हैं। संवैधानिक प्रावधानों के मुताबिक अभी 24 मंत्री और बनाए जा सकते हैं। लोकसभा में आरामदायक बहुमत के चलते देखने वाली बात होगी कि प्रधानमंत्री आने वाले महीनों में मंत्रीपरिषद में विस्तार या बदलाव करते हैं या नहीं।

इन राजनीतिक और विधायी सवालों का जवाब अगले हफ्ते से बजट सत्र के आरंभ के साथ मिलना शुरू हो जाएगा।

(लेखक पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च में लेजिस्लेटिव एंड सिविक एंगेजमेंट इनीशिएटिव के हेड हैं। यह उनके निजी विचार हैं।)

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

Budget Session: Catalyst of Economics and Politics

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