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बलात्कारी ही नहीं पुलिस की कार्यशैली ने भी दिए बच्ची को गहरे ज़ख़्म!

टिहरी के जौनपुर में 9 साल की बच्ची के साथ बलात्कार की घटना के बाद पुलिस और स्वास्थ्य विभाग की कार्यशैली न सिर्फ सवाल खड़े करती है बल्कि ये दर्शाती है कि किस तरह व्यवस्था का हिस्सा बनकर अपराधी को बचाया जाए और पीड़ित को तिल-तिल कर मारा जाए।
Rape Case

इंसाफ़ देने की जगह पीड़ित को इतना कमज़ोर कर दो कि वो इंसाफ़ मांगने लायक ही न रह जाए। टिहरी के जौनपुर में 9 साल की बच्ची के साथ बलात्कार की घटना के बाद पुलिस और स्वास्थ्य विभाग की कार्यशैली तो यही साबित करती है। यह कार्यशैली न सिर्फ सवाल खड़े करती है बल्कि ये दर्शाती है कि किस तरह व्यवस्था का हिस्सा बनकर अपराधी को बचाया जाए और पीड़ित को तिल-तिल कर मारा जाए।

बलात्कार के बाद पीड़िता को इलाज के लिए देहरादून लाया गया। फिर टिहरी के कैम्पटी थाने की पुलिस अस्पताल पर दबाव बनाकर तीन घंटे के अंदर ही बच्ची को वापस टिहरी ले गई। अस्पताल प्रशासन ने कहा कि बच्ची की हालत स्थिर है। जबकि बच्ची की हालत ठीक नहीं थी। पुलिस को उसे ले जाने की जल्दबाज़ी क्यों थी। क्योंकि यहां सामाजिक संगठन बच्ची के लिए एकजुट हो रहे थे। राजधानी में दलित-सवर्ण का मामला न उछले इसलिए पुलिस कानूनी खानापूर्ति करने की कोशिश में लगी रही।WhatsApp Image 2019-06-03 at 5.04.03 PM_0.jpeg

शारीरिक और मानसिक आघात से गुजर रही बच्ची को जिस समय अच्छी देखभाल की जरूरत थी, टिहरी पुलिस ने उसे 5 दिनों में 500 किलोमीटर पहाड़ी रास्तों का सफ़र कराया। जिससे उसकी हालत और बिगड़ गई। पीड़ित बच्ची की मां ने पुलिस महानिदेशक को इस मामले में कैम्पटी थाने की पुलिस के खिलाफ अभियुक्त को फायदा पहुंचाने को लेकर तहरीर दी। तहरीर में उन्होंने लिखा कि अभियुक्त सवर्ण जाति से हैं और विवेचक भी सवर्ण हैं इसलिए वे अभियुक्त को फायदा पहुंचाने के लिए सही तरीके से विवेचना नहीं कर रहे हैं। पीड़िता की मां ने लिखा की घटना के समय पहने गये कपड़ों को, जिन पर खून लगा था, कब्जे में नहीं लिये गये। यही नहीं 31 मई को पुलिस ने दून महिला अस्पताल से उसे जबरदस्ती डिस्चार्ज करवाया। पुलिस जीप में गांव तक ले गये। इस सफ़र में बच्ची की तबीयत और बिगड़ गई।

इसके ठीक अगले दिन 1 जून को विवेचक उत्तम सिंह जिमिवाल पीड़ित बच्ची को उसके गांव सेंदूल से सुबह पांच बजे नरेंद्र नगर तहसील के कैम्पटी थाने तक लाये। थाने से एक ही गाड़ी में पीड़िता और अभियुक्त को टिहरी ले गये। इस दौरान गाड़ी में बैठे अभियुक्त को देखकर बच्ची और अधिक सहम गई, जिससे उसकी तबीयत और बिगड़ गई।WhatsApp Image 2019-06-03 at 5.03.38 PM_0.jpeg

मां का आरोप है कि अदालत में भी अभियुक्त को पीड़िता के नजदीक ही रखा गया, जिससे वो डरती रही और उसकी तबीयत बिगड़ती रही। बच्ची की मां के मुताबिक एक जून को उसे नई टिहरी मुख्यालय में इधर से उधर घुमाया गया और धारा 164 के तहत बयान दर्ज नहीं कराये गये। सुबह पांच बजे बच्ची को घर से उठाया और रात एक बजे के बाद उसे उसके घर छोड़ा। बच्ची इतनी देर लगातार सफर में रही। जबकि उसकी स्थिति इतने शारीरिक और मानसिक आघात को सहने की नहीं थी। इसी वजह से अगले दिन उसकी तबीयत बहुत अधिक बिगड़ गई। फिर उसे मसूरी के निजी अस्पताल और उसके बाद मसूरी के ही सिविल अस्पताल ले जाया गया। जहां से देर शाम उसे दून महिला अस्पताल में भर्ती कराया गया। पुलिस ने इस दौरान बच्ची के पिता या भाई को साथ नहीं आने दिया सिर्फ उसकी मां को साथ रखा।  

नाबालिग के साथ बलात्कार के मामले में पॉक्सो एक्ट में पुलिस की कार्रवाई के तरीके को लेकर भी दिशा निर्देश दिये गये हैं। इनका पालन न करने पर संबंधित पुलिस अधिकारी पर भी पॉक्सो के तहत कार्रवाई का प्रावधान है। इसके साथ ही पीड़ित बच्ची की मां ने पुलिस महानिदेशक से एससी-एसटी एक्ट के तहत कार्रवाई की मांग की है।

पुलिस का पीड़ित बच्ची के 164 के बयान दर्ज करवाने के नाम पर टिहरी लेकर जाना पोक्सो एक्ट का उल्लंघन है। देहरादून में वरिष्ठ अधिवक्ता चंद्रशेखर तिवारी का कहना है कि एक्ट में साफ़ लिखा है कि जहां पीड़िता रहती है या जहां वह चाहे उसके बयान सब-इंस्पेक्टर रैंक से ऊपर की महिला पुलिस अधिकारी को दर्ज करने चाहिए थे। इसके साथ ही 164 के तहत बयान वारदात के न्याय क्षेत्र में पड़ने वाले मजिस्ट्रेट ही लें ये ज़रूरी नहीं हैकोई भी मजिस्ट्रेट पीड़िता के बयान दर्ज कर सकता है और उसे मामले की सुनवाई करने वाले मजिस्ट्रेट को दिया जा सकता है।

इस पूरे केस में स्थानीय पुलिस कर्मियों की संदिग्ध भूमिका को देखते हुए महानिदेशक कानून-व्यवस्था अशोक कुमार ने उत्तम सिंह जिमिवाल और नरेंद्र नगर के सीओ को पीएसी से सम्बद्ध कर दिया है। साथ ही मामले की जांच एडिशनल एसपी स्वप्न किशोर को सौंपी गई है। वे यह भी जांच करेंगे कि इस पूरे मामले में पुलिस की भूमिका क्या रही।

पुलिस महानिदेशक (कानून-व्यवस्था) अशोक कुमार का कहना है कि पुलिस की भूमिका को लेकर विभागीय जांच की जा रही है। पुलिस वालों पर पॉक्सो के तहत कार्रवाई की जाएगी या नहीं, इस पर उनका कहना है कि जांच के बाद ही ये तय होगा। जांच कितने समय में पूरी होगी, इसके लिए उन्होंने अधिकतम 15 दिन का समय बताया है।  

जिस समय पीड़ित बच्ची को लेकर ये सारी ख़बरें सामने आ रही थीं, उसी समय आईजी गढ़वाल अजय रौतेला का बयान सामने आया। उन्होंने कहा कि थाने की जीप पहाड़ की चढ़ाई नहीं चढ़ पाती, इसलिए पुलिस पीड़िता और उसकी मां को निजी वाहन में टिहरी लेकर गई। उन्हें सबसे आगे बिठाया गया था। बीच में पुलिस बैठी थी और सबसे आखिर में आरोपी को बिठाया गया था।

इस पूरे मामले में पीड़ित परिवार के साथ रहे नेशनल अलायन्स आफ पीपुल्स मुवमेंट के समन्वयक जबर सिंह वर्मा कहते हैं कि आईजी का बयान शर्मनाक और निंदनीय है। वो कहते हैं कि पुलिस की यही गाड़ी रोज कैम्पटी-मसूरी की चढ़ाई चढ़ती है। यमुनापुल-कैंपटी की चढ़ाई चढ़ती है। उनका कहना है कि वे और उनके अन्य साथी प्रत्यक्षदर्शी हैं कि पीड़ित बच्ची और मां गाड़ी में सबसे आगे नहीं बल्कि बीच वाली सीट पर बैठे थे। पीड़ित की मां ने बताया कि आरोपी बीच में खांसी मारकर अपनी मौजूदगी का एहसास करा रहा था, जिससे मां-बेटी दोनों असहज महसूस कर रहे थे।

पीड़ित के साथ पुलिस के इस अमानवीय व्यवहार की खबर मिलते ही राजधानी देहरादून के सामाजिक कार्यकर्ता भी एकजुट होने लगे। डीजीपी और महिला आयोग से इसकी शिकायत की गई। देहरादून की सामाजिक कार्यकर्ता दीपा कौशलम का कहना है कि कानून होने के साथ महत्वपूर्ण बात यह है कि कानून को लागू करने वाले विभागों की मंशा क्या है और वे कितनी सतर्कता और मानवीयता से पीड़ित महिलाओं और बच्चियों को न्याय दिलाने में विश्वास रखते हैं। वे कहती हैं कि धारा 164 के बयान घर या अस्पताल में भी हो सकते हैं। दो साल पहले नई टिहरी के एक मामले में बालिका का 164 का बयान बाल संरक्षण गृह देहरादून जाकर लिया गया था। महिलाओं और दलितों की सुरक्षा के लिए बने सभी सशक्त कानूनों की तय साजिश के तहत कमर तोड़ दी गई और हालत जस की तस बनी हुई है ।

इधर भीम आर्मी भी इस पूरे मामले में सक्रिय है। भीम आर्मी एकता मिशन के संस्थापक एडवोकेट चंद्रशेखर आजाद ने भी दून अस्पताल में बच्ची का हालचाल पूछा। संगठन के लोग टिहरी में बच्ची के गांव भी गये हैं ताकि वहां दलित-सवर्ण स्थिति का आकलन कर सकें।

पांच जून को राजधानी के सतर्क लोग इस घटना के खिलाफ अपनी बात रखने के लिए गांधी पार्क में इकट्ठा होंगे।

इधर, दून महिला अस्पताल में पीड़ित बच्ची से मिलने के लिए बाल आयोग से लेकर नेताओं तक का तांता लगा हुआ है।

एक बच्ची सिर्फ एक बार हादसे की शिकार नहीं हुई, न्याय व्यवस्था के प्रहरियों ने इस हादसे के जख्म को और गहरा करने का काम किया है। फिर ये वो घटना है जो हम लोगों के सामने आई। ऐसी कितनी पीड़ित बच्चियां होंगी जिनके साथ उत्पीड़न की घटनाएं घर के अंदर, गांव के अंदर, थाने के अंदर ही दबा दी जाती हैं। इंसाफ....एक लंबी, उलझी हुई और दर्दनाक कानूनी प्रक्रिया का नाम है।

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