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भारत
उत्तराखंड के जौनपुर में मासूम बच्ची के साथ हैवानियत, इंसाफ की मांग
पहाड़ पर महिलाओं और दलितों के ख़िलाफ़ हिंसा और भेदभाव लगातार बढ़ रहा है। यहां मीडिया सक्रिय नहीं है, इसलिए इस तरह की घटनाएं सामने नहीं आ पाती हैं। जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय और भीम आर्मी की ओर से इन मामलों में तुरंत कार्रवाई की मांग की गई है।
वर्षा सिंह
01 Jun 2019
Rape Case

घर से टॉफियां लेने निकली छोटी सी बच्ची को नहीं पता था कि वो जिस व्यक्ति को “अंकल टॉफी दे दो” कहकर संबोधित करेगी,वो अपनी कुंठा, बदनीयती और हैवानियत उस छोटी बच्ची पर दिखाएगा। लड़की दलित परिवार से है और आरोपी राजपूत है। घटना टिहरी के जौनपुर क्षेत्र के नैनबाग की है। ये वही जगह है जहां दलित युवक जीतेंद्र को शादी में कुर्सी पर बैठने के लिए सवर्ण समुदाय के लोगों ने पीट-पीट कर मार डाला। ये घटना हैवानियत की ओर एक कदम और बढ़ाती है। जहां छोटी बच्चियां सुरक्षित नहीं। साथ ही इस मिथक से भी परदा उठाती है कि पहाड़ों में महिलाओं से इस तरह के अपराध नहीं होते। पहाड़ों में भी महिलाओं से हिंसा की वारदातें तेजी से बढ़ रही हैं, साथ ही दलित भेदभाव भी।

लड़की की मां के साथ देहरादून के दून अस्पताल में मेडिकल परीक्षण के लिए आए राष्ट्रीय सेवा दल के जबर सिंह बताते हैं कि नौ साल की बच्ची की रात में चीखने-चिल्लाने की आवाज़ गांववालों ने सुनी तो, सबको इस वाकये का पता चला। उन्होंने बताया कि आरोपी उसी गांव का रहने वाला है और 34 साल का है। गांव के लोगों ने पहले गांव में ही फ़ैसला करने का दबाव बनाया ताकि पुलिस तक मामला न पहुंचे। लेकिन लड़की के घरवालों ने इससे इंकार कर दिया। जबर सिंह बताते हैं कि घटना के 24 घंटे बाद 30 मई की रात को पुलिस में रिपोर्ट करायी गई।

कैम्प्टी थाने की पुलिस ने बताया कि पॉक्सो एक्ट के साथ एससी-एसटी धाराओं में मामला दर्ज कर लिया गया है।

दलित उत्पीड़न के मामलों को लेकर सक्रिय जबर सिंह बताते हैं कि चार साल पहले इसी गांव की बालिग लड़की को शाम को करीब 10-12 लड़कों ने उठा लिया था, रात भर उसके साथ गैंगरेप किया और सुबह उसका मर्डर कर दिया गया। लेकिन ये मामला सामने नहीं आया, गांव मे ही मामले को दबा दिया गया।

वे कहते हैं कि पहाड़ में भी इस तरह के मामले लगातार हो रहे हैं। चूंकि यहां मीडिया सक्रिय नहीं है, इसलिए इस तरह की घटनाएं सामने नहीं आ पातीं हैं।

दलितों के हक के लिए आवाज़ उठा रही भीम आर्मी भी घटना की खबर लगते ही सक्रिय हो गई। भीम आर्मी के उत्तराखंड अध्यक्ष सुशील गौतम 31 मई को कैम्प्टी थाने पहुंच गये। आरोपी की गिरफ्तारी नहीं हुई थी, जिसे लेकर सामाजिक संगठनों ने दबाव बनाना शुरू किया। सुशील कहते हैं कि पुलिस मामले में ढिलाई बरतने की पूरी कोशिश कर रही थी। लेकिन जब हम सबने मिलकर दबाव बनाना शुरू किया था, पुलिस को सक्रिय होना ही पड़ा। शुक्रवार शाम आरोपी की गिरफ्तारी कर ली गई।

दून अस्पताल से उपचार के बाद लड़की को उसके परिजनों के साथ घर भेज दिया गया। सुशील गौतम का कहना है कि चूंकि जितेंद्र की हत्या का मामला अभी ठंडा नहीं पड़ा है, इसलिए पुलिस भी गंभीर है। उनका कहना है कि जब उनके संगठन के लोग लड़की के परिजनों से मिलने के लिए दून अस्पताल पहुंचे तो पुलिस ने उन्हें अस्पताल के अंदर दाखिल नहीं होने दिया।

पहाड़ की घटनाओं पर नज़र रखने वाली और महिला सामाख्या की निदेशक रह चुकीं, सामाजिक कार्यकर्ता गीता गैरोला कहती हैं कि लोगों का नज़रिया दलितों को अपनी संपत्ति समझने जैसा रहा है। वे नहीं समझते कि दलित भी इंसान हैं और उनकी भी बहू-बेटियां हैं। वे उन पर शुरू से ही अपना अधिकार जमाते आए हैं। गीता कहती हैं कि पहले लोग सोचते थे कि ये दलित हैं तो प्रशासन इन पर क्या कार्रवाई करेगा। लेकिन आज स्थितियां थोड़ी संभली हैं। उनके मुताबिक पहाड़ों में भी महिलाओं के साथ उतनी ही तीव्रता से अपराध होते हैं जितने मैदानों में। ये पहाड़ और मैदान का मामला नहीं है बल्कि पितृसत्ता और उससे उपजी सोच से जुड़ा हुआ मामला है। गीता अफसोस जताती हैं कि आज के समय में लड़कियां कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं। इस तरह की घटनाएं झकझोर देती हैं।

पहाड़ में महिलाओं से अपराध के आंकड़े

पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक राज्य में वर्ष 2019 में अप्रैल महीने तक महिलाओं की हत्या के 13 मामले सामने आए। वर्ष 2018 में ये संख्या 16 थी और वर्ष 2017 में 15.

इसी तरह इस वर्ष के शुरुआती चार महीनों में बलात्कार की घटनाएं दर्ज हुई हैं, जबकि वर्ष 2018 में 137 और वर्ष 2017 में 117 मामले दर्ज किये गये थे।

दहेज के चलते होने वाली मौतों का इस वर्ष अप्रैल तक का आंकड़ा 17 है, वर्ष 2018 में ये 13 था और वर्ष 2017 में 15 मौतें।

लड़कियों के घर से गायब होने या घर छोड़ कर चले जाने के 106 मामले इस वर्ष अप्रैल तक सामने आए हैं। वर्ष 2018 में 124 और वर्ष 2017 में 104 मामले दर्ज किये गये।

छेड़खानी और धारा 354 के तहत इस वर्ष अप्रैल तक 144 मामले दर्ज किये जा किये जा चुके हैं। वर्ष 2018 में 155 और वर्ष 2017 में 132 मामले दर्ज किये गये थे।

दहेज अधिनियम के तहत वर्ष के 4 महीने में 148 मामले दर्ज किये जा चुके हैं। वर्ष 2018 में 168 वर्ष 2017 में 115 मामले दर्ज किये गये।

अनैतिक ट्रैफिकिंग के इस वर्ष 2 मामले दर्ज किये गये हैं। वर्ष 2018 में 10 और वर्ष 2017 में 2 मामले दर्ज हुए थे।

इसके अलावा महिला उत्पीड़न से जुड़े इस वर्ष अप्रैल तक 208 मामले दर्ज किये जा चुके हैं। वर्ष 2018 में 248 और वर्ष 2017 में 159 मामले दर्ज किये गये थे।

इस तरह इस वर्ष अप्रैल तक उत्तराखंड में महिलाओं से अपराध के कुल 804 मामले दर्ज किये जा चुके हैं वर्ष 2018 में इनकी कुल संख्या 871 थी और वर्ष 2017 में 669।

यानी हर रोज महिलाओं से अपराध के 6 से अधिक मामले दर्ज हो रहे हैं। इसके साथ ही वर्ष 2018 और 19 के आंकड़ों की तुलना करें तो इस वर्ष महिलाओं से अपराध की घटनाएं तेज़ी से बढ़ी हैं। यानी कानून-व्यवस्था को संभालने में राज्य की सरकार चूक रही हैं। 

जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय की ओर से मुख्यमंत्री को पत्र

उधर, इसी मामले में जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय की ओर से मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत और राज्य महिला आयोग को एक पत्र लिखा है जिसमें कहा गया है कि यह अत्यंत दुखद और शोक का विषय है कि राज्य में लगातार दलितों के साथ अत्याचार और दलित बच्चियों के साथ बलात्कार की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। दलित बच्ची के साथ हुए हैवानियत का जिक्र करते हुए पत्र में कहा गया कि पीड़ित परिवार पर फैसले का भारी दबाव बनाया गया। किसी तरह उसकी मां, समाज के लोगों के साथ अपनी बेटी को बेहोशी की हालत में देहरादून लेकर पहुंची जहां अस्पताल में उसका इलाज चालू है। लेकिन आरोपी फरार है। चार साल पहले भी इसी दलित परिवार की एक युवती के साथ सामूहिक बलात्कार इसी गाँव के सवर्ण युवकों ने किया था और बाद में उसकी हत्या कर दी थी। दबंगों ने मामला दबा दिया था। तर्क दिया गया था कि गांव की बदनामी होगी।  

इसी तरह  हाल ही में कुर्सी पर बैठकर खाना खाने पर दलित जितेंद्र दास की हत्या वाले गाँव की है। इस मामले में भी न्याय का इंतजार है।

इन सब मामलों में प्रशासन व पुलिस की भी निष्क्रियता दिखाई देती है। जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय तथा साथी संगठन,सामाजिक कार्यकर्ता आप से मांग करते हैं और उत्तर की अपेक्षा रखते हैं: 

1-उत्तराखंड के जौनसार क्षेत्र में दलित अत्याचार पर तुरंत एक स्पेशल टास्क फोर्स बनाई जाए।

2- आरोपी की तुरंत गिरफ्तारी करके एसएससी एसटी कानून व प्रोटेक्शन आफ चिल्ड्रेन फ्राम सेक्सुअल अफेंसेस एक्ट 2012 कानून के तहत मुकदमा दायर किया जाए।

(नोट : शुक्रवार शाम आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया।)

3-समय बद्ध रूप में जांच करके समय बाद रूप में ही कानूनी कार्यवाही पूरी की जाए।

4-पीड़िता को कानूनी मुआवजा व परिवारों को समुचित न्यायिक सुरक्षा दी जाए।

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