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ब्रिटिश राज से अरबपति राज तक – भारत की नवउदारवादी यात्रा

निस्संदेह भारत में चीन के मुकाबले मध्य वर्ग में बढ़ोतरी नहीं हो रही है.
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विश्व असमानता रिपोर्ट, 2018 जिसे 20 दिसम्बर को भारत में जारी किया गया, ने दुनिया भर में बढ़ती असमानताओं पर विभिन्न देशों में एक गंभीर बहस पैदा कर दी है. रिपोर्ट के मुताबिक भारतीयों के लिए सोचने के लिए इसमें काफी कुछ है. इसके रिपोर्ट के अनुसार, 1980 के दशक के बाद से अमेरिका, चीन और रूस के साथ भारत भी एक ऐसा देश है, जहाँ असमानता तेजी से बढ़ी है.

विश्व संपत्ति और आय डेटाबेस, जिस पर यह रिपोर्ट आधारित है, दर्शाती है कि भारत की आय में आबादी के ऊपरी 1% का हिस्सा जो 1983 में लगभग 6% था, वह 2014 में बढ़कर 22% हो गया है. और इसके उलट,देश की आय में आबादी के निचले 50% का हिस्सा 1983 में 24% से 2014 में घटकर 15% रह गया है.

स्वतंत्रता के बाद भारत में आय असमानताओं में कमी आई

भारत के लिए असमानता के आंकड़ों का गहन अध्ययन करने वाले चांसल और पिकेटी ने बताया कि 1951 से 1980 तक स्वतंत्रता के बाद भारत में असमानताओं में तेजी से कमी आई क्योंकि आजादी के बाद भारत की विभिन्न सरकारों ने कई प्रगतिशील आर्थिक नीतियों को अपनाया था.

भारतीय सरकार ने 1951 में रेलवे का और 1953 में हवाई परिवहन का राष्ट्रीयकरण किया, उन्हें निजी पूँजी के हाथों से छीन लिया. इसके बाद, 1960 और 1970 के दशक में, लगभग सारे बैंकिंग क्षेत्र और तेल उद्योग का राष्ट्रीयकरण हुआ, साथ ही कई अन्य सुधारों ने सरकार को मजदूर वर्ग और किसानों के हाथों में आय को पुनर्वितरित करने में मदद की, अगर ऐसा नहीं होता तो यह भी अमीर उद्योगपतियों के खजाने में चली जाती.

आजादी के बाद की अवधि (1951 से 1980) में इस देश के मजलूमों के लिए आय में बढ़ोतरी हो गयी. इन 3 दशकों में, जबकि राष्ट्रीय आय में 67% की दर से वृद्धि हुई, और निचले पायदान पर रह रही आबादी के लिए आमदनी इससे भी ऊँची दर से बढ़ी.

आबादी के आधे के करीब निचले हिस्से की आय में 87% की वृद्धि हुई और जनसंख्या के बीच के 40% हिस्से की आय में 74% की दर से बढ़ोतरी हुयी. लेकिन,आबादी के शीर्ष 1% की आय में मात्र 5% की बढ़ोतरी हुई और वह भी पूरे 30 वर्ष की अवधि में. इससे भी ज्यादा तथ्यपरक यह है कि सबसे अमीर की आय, जो  शीर्ष 0.001% जनसंख्या में आते हैं उनकी आय में नकारात्मक -42% वृद्धि हुई.

नतीजतन, ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन (1939 में) के दौरान शीर्ष 1% आबादी का हिस्सा कुल राष्ट्रीय आय का 21% था, जो 1983 तक आते-आते 6% से कम हो गया.

नवउदारवाद ब्रिटिश राज को फिर से वापस ले आया है

आजादी के बाद नव-उदार नीतियों के आगमन से असमानतायें तेज़ी से बढी हैं और वे नीतियाँ पलट गयी जो बड़े हिस्से की आमदनी को बढ़ा रही थी. चांसल और पिकेटि ने बताया कि हालांकि, 1991 में नवउदारवाद में आधिकारिक रूप से भारत का प्रवेश हुआ, लेकिन इस तरह की नीतियों की शुरूआत 1984 में तत्कालीन राजीव गांधी सरकार द्वारा कर दी गई थी – जिसने अधिक उदार शासन के लिए आर्थिक नीति का मार्ग प्रशस्त किया.

अर्थव्यवस्था को विदेशी पूंजी के लिए खोलने सेसार्वजनिक क्षेत्र का बड़े पैमाने पर निजीकरणश्रम कानूनों की धज्जियां उडाना  और निजी पूंजी के लिए खानोंस्पेक्ट्रमभूमिपानी आदि जैसे सार्वजनिक संसाधनों को का स्पष्ट रूप से खोल दिया. इसके  प्रभावस्वरुप – आय गरीबों गरीबों के हाथों से निकलकर अमीर के हाथ में चली गयी.

इससे असमानताओं का नक्शा ही बदल गया. 1983 सेशीर्ष 1% की आय में हिस्सेदारी बढ़ती गयी. 1983 में 6% से शुरू होकर  उनका हिस्सा 2014 में 22% तक पहुंच गया, जोकि  ब्रिटिश समय से भी ज्यादा था.

आखरी पायदान तक बढ़ोतरी के खोखले दावे

चांसल और पिकेटी ने उन दावों को भी तहस-नहस कर दिया जिनमें यह झांसा दिया गया था कि नव-उदारवाद सबके लिए लाभकारी है जबकि 1980 से 2014 तक के 34 वर्षों मेंपिछले तीन दशकों (67% बनाम 187%) की तुलना में बहुत अधिक वृद्धि देखी गई है. इस विकास के फल ज्यादातर समृद्ध लोगों के पास गए हैं. इन 34 वर्षों में निचले पायदान पर 50% आबादी की आय केवल 89% की वृद्धि दर से बढी है. जब 1951 से 1980 तक इस समूह की 87% की विकास दर से तुलना करते हैं तो.

वास्तव मेंकल्याणकारी राज्य के पीछे हटने को देखते हुएनीचे की 50% आबादी की प्रभावी आय इससे भी कम होगी. निजीकरण के दौर के बाद सार्वजनिक परिवहन और सार्वभौमिक सार्वजनिक वितरण व्यवस्था सहित अन्य गरीबों से जुडी  विभिन्न सब्सिडी की वापसी के चलते  - उदारीकरण के बाद जीवित रहने की वास्तविक लागत में बढ़ोतरी हुयी यानी जीवन जीना महंगा हो गया है.

इस तथ्य यह स्पष्ट है कि विकास पूरी तरह से सुपर-समृद्ध के पक्ष में हुआ, क्योंकि जनसंख्या के शीर्ष 0.001% आबादी की आय में जिनमें अंबानी और अदानी भी शामिल हैं की आय में 2726% की बढ़ोतरी हुयी है.

हांयह सही है - 2726% तक की बढ़ोतरी - इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि पिछले 3 दशकों में भारत के अरबपतियों की सूची 1 से 132 तक पहुँच गई है. इस दौरानभारत कुपोषित बच्चों और गरीब लोगों की सबसे बड़ी आबादी वाला घर बन गया है.

भारत के मध्य वर्ग का मिथक

विश्व असमानता रिपोर्ट के आंकड़े के अनुसार अवह इस तथाकथित मिथक को भी तोडती है कि भारत में मध्यम वर्ग की आबादी अब्ध रही है. चांसल और पिक्केटी ने नोट किया है किसंसाधनों और आय के वितरण संबंधी मामलों में नवउदारवादी अवधि की तुलना में आज़ादी के बाद पहले तीन दशकों में मध्य वर्ग बहुत ज्यादा बेहतर था. 1951-1980 के बीच मध्यम वर्ग (शीर्ष 10% की आबादी के नीचे के 40% हिस्से) ने लगभग 50% वृद्धि दर हासिल की इसके विपरीत1980-2014 की अवधि में इसने केवल 23% वृद्धि दर हासिल की.

इसकी तुलना अगर चीन से करेंजिसने पिछले कुछ दशकों में इसी तरह की उच्च वृद्धि दर देखी हैजहां मध्य वर्ग ने भारत के मुकाबले (जोकि आबादी का 40% हिस्सा है) ने आय में 43% पर कब्जा कर लिया है.

इससे जाहिर होता है कि भारत में मध्य वर्ग नहीं बढ़ रहा है क्योंकि वह चीन में बढ़ रहा है.

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