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बुलेट ट्रेन परियोजना: सूट-बूट वालों के साथ खड़ी दिखती सरकार, किसानों की सुध लेने वाला कोई नहीं

एनएचएसआरसीएल ने कोर्ट में कहा है कि गोदरेज समूह के द्वारा प्रस्तावित भूखंड के अधिग्रहण में कोई समस्या नहीं है। सूट-बूट वाली सरकार के गोदरेज के साथ यह समझौते से हमें आश्चर्यचकित नहीं होना चाहिए।
bullet train

नेशनल हाई स्पीड रेल कॉरपोरेशन (एनएचएसआरसीएल) ने गोदरेज समूह द्वारा प्रस्तावित वैकल्पिक ज़मीन को पहली नजर में अधिग्रहण के लिए उपयुक्त पाया है। एनएचएसआरसीएल ने बीते रोज़ मंगलवार को बंबई उच्च न्यायालय के सामने प्रस्तुत होकर कहा है कि गोदरेज समूह ने जो ज़मीन दी है उसपर बुलेट ट्रेन परियोजना बनाने में कोई दिक्कत नहीं है।

दरअसल बुलेट ट्रेन परियोजना के प्रस्तावित ट्रैक पर गोदरेज और उसकी सहभागी कंपनी बॉयस मैन्यूफैक्चरिंग कंपनी लिमिटेड की 3.5 हेक्टेयर ज़मीन आ गई थी। जिसके अधिग्रहण के लिए एनएचएसआरसीएल ने 26 मार्च 2018 को कंपनी को नोटीस भेजा था।

गोदरेज और उसकी सहभागी कंपनी एनएचएसआरसीएल के इस अधिग्रहण के खिलाफ बंबई उच्च न्यायालय चली गई थी। वहाँ उसने हलफनामा दायर कर कहा था कि वह एनएचएसआरसीएल को यह परियोजना पूरी करने के लिए दूसरी ज़मीन दे सकता है। 

1.08 लाख करोड़ की इस परियोजना पर आपत्ति जताने वाला केवल गोदरेज समुह नहीं है। इसके अलावा गुजरात और महाराष्ट्र के किसानों ने भी इस परियोजना पर आपत्ति जता चुके हैं।

सैंकड़ों किसानों का आरोप है कि इस परियोजना के लिए भूमी आवंटन में अनियमितता बरती गई है। नियम और कानून को ताक पर रख कर किसानों से ज़मीन अधिग्रहण कर ली है। परियोजना का विरोध करते हुए सैंकड़ों किसानों ने कई बार महाराष्ट्र और गुजरात में आंदोलन किया है, लेकिन इनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है।

वहीं गोदरेज समूह के केस में सरकार की जल्दबाजी अपने आप में कई सवाल खड़े करती है।

पिछली सुनवाई के दौरान एनएचएसआरसीएल ने न्यायमूर्ति एन एच पाटिल और न्यायमूर्ति जी एस कुलकर्णी की पीठ से कहा था कि कंपनी ने वैकल्पिक भूखंड सुझाए हैं। हालांकि, यह बाद  में  प्रकाश में आया कि कंपनी के द्वारा जो ज़मीन पहले प्रस्तावित की गई थी, जाँच करने पर पाया गया  कि उस ज़मीन पर कानूनी विवाद चल रहा है।

31 जुलाई को हुई सुनवाई में कोर्ट के सामने एनएचएसआरसीएल ने 1.08 लाख करोड़ से बनने वाली बुलेट ट्रेन परियोजना के लिए समुह के द्वारा विक्रोली में दूसरा वैकल्पिक भूखंड प्रस्तावित किया गया। एनएचएसआरसीएल  की तरफ से दायर वकील ने कोर्ट से कहा कि प्रस्तावित भूखंड परियोजना के लिए उपयुक्त है।

हालांकि कोर्ट ने राज्य सरकार को प्रस्तावित भूखंड की जाँच करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने यह भी कहा है कि इस भूखंड का अधिग्रहण करने से पहले, सरकार इस बात को भी ध्यान में रखे कि पर्यावरण से संबधित किसी भी तरह की समस्याओं को नज़रअंदाज़ नहीं किया जाएगा।

गौरतलब है कि जो भूभाग प्रस्तावित किया गया है उस  प्रस्तावित भूखंड के कुछ भूभाग पर भी विवाद चल रहा है।

एनएचएसआरसीएल की तरफ से पक्ष रखते हुए वकील अनिल सिंह ने अदालत को आश्वस्त किया है कि वह अगली सुनवाई पर गोदरेज के साथ पूर्ण समाधान के साथ आएंगे। पीठ ने मामले की अगली सुनवाई की तारीख तीन सितंबर को तय की है।

आपको पता दे कि गोदरेज समूह इस मुद्दे पर केंद्र सरकार, राज्य सरकार और एनएचएसआरसीएल के खिलाफ 21 मई को बंबई उच्च न्यायालय में गया था। समूह ‘Right to Fair Compensation & Transparency in Land Acquisition, Rehabilitation & Resettlement Act, 2013’ का हवाला देते हुए न्यायालय में हलफनामा दायर किया था। हलफनामा में उसने कहा था कि या तो एनएचएसआरसीएल यह भूखंड से परियोजना दूसरी जगह ले जाए या तो इस जगह का 800 करोड़ रूपये दे।

508.17 किलोमीटर की यह बुलेट ट्रेन परियोजना अहमदाबाद से मुंबई के बीच चलेगी। प्रस्तावित परियोजना के तहत 21 किलोमीटर ट्रैक भूमीगत होगा। इस सुरंग का एक द्वार गोदरेज समूह की ज़मीन पर निकलता है। इसी भूभाग पर कंपनी और एनएचएसआरसीएल के बीच विवाद चल रहा है।

हालांकि यह बात किसी से छुपी नहीं है कि गोदरेज समुह के पास मुंबई में सबसे ज्यादा निजी ज़मीन है।

सरकार से ले कर मीडिया भी इन मामलों पर चुप्पी साधे हुए है। किसानों ने इस मुद्दे को सरकार के सामने कई बार उठाया है। 17 मई 2018 को महाराष्ट्र के ठाणे और पालघर जिलों के विभिन्न गाँवों के किसान मुंबई के आज़ाद मैदान में उनकी ज़मीन ज़बरदस्ती अधिग्रहण के खिलाफ इकठ्ठा हुए थे।

इसके बाद जून में गुजरात में भी इस परियोजना का विरोध हुआ था। सूरत जिले से करीब 200 किसान इस परियोजना का विरोध करते हुए राज्य की राजधानी गांधीनगर में आकर कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा था।

सूरत जिले के 15 गाँवों से आये किसान इस अधिग्रहण का विरोध करने आए थे। किसानों का आरोप था की इलाके के 21 गाँवों की 110 हेक्टेयर ज़मीन बिना किसी सूचना और  उचित मुआवजे के बगैर इस परियोजना के लिए ले ली गई।

महाराष्ट्र के आज़ाद मैदान में आए किसानों का आरोप था कि बीते वर्ष नवंबर में महाराष्ट्र के राज्यपाल ने एक अधिसूचना जारी किया था। जिसमें ये कहा गया था कि अब आदिवासी इलाकों में लोगों की ज़मीन लेने के लिए ग्राम सभा की अनुमति नहीं चाहिए होगी।

किसानों ने इसके अलावा भी कई बार इस परियोजना का विरोध किया है। किसानों के आंदोलन व विरोध के बावजूद सरकार इस मामले पर खामोश है।

बुलेट ट्रेन के लिए ज़मीन अधिग्रहण का विरोध कर रहे किसानों के साथ आंध्र प्रदेश की राज्यपाल रह चुकी कुमुदबेन जोशी भी किसानों के साथ विरोध में शामिल हुई थीं।

आदिवासियों व किसानों का आरोप है कि राज्यपाल की इस अधिसूचना से ‘Panchayats (Extension to Scheduled Areas) Act (PESA), 1996’ कमज़ोर हुआ है। राज्यपाल की इसी अधिसूचना के बाद से ही ज़मीन पर कब्ज़े की प्रक्रिया शुरू की गयी थी।

जैसा कि न्यूज़क्लिक ने पहले ही अपने रिपोर्ट में आशंका जताई थी कि ‘‘सरकारों और पूँजीपतियों के रिश्तों का इतिहास बताता है, इस बात की बहुत संभावना है कि गोदरेज कम्पनी और सरकार कोई रास्ता निकाल लें और किसानों के विरोध पर फिर से आँखें मूँद ली जाए।” मामले को देखते हुए तो कुछ ऐसा ही लग रहा है, कि सरकार किसी भी तरह गोदरेज समूह से इस मामले का समाधान निकालना चाह रही है।

वर्तमान में सत्ता पर आसीन भारतीय जनता पार्टी पर सूट-बूट वालों के साथ रहने का आरोप लगता रहा है। हालांकि इस बात का प्रमाण खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भरी सभा में दे दिया था, तो सरकार की इस भावी परियोजना में गोदरेज समूह के साथ समझौता करने पर हमें आश्चर्यचकित नहीं होना चाहिए….!

 

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