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बेज़ोस और मस्क : शुरूआत अंतरिक्ष में एक नये युग की या उस पर अवैध कब्जों की?

अंतरिक्ष के एक नये युग के धुंआधार प्रचार के पीछे अंतरिक्ष को हड़पने की नयी कोशिशों की सच्चाई छुपी हुई है।
बेज़ोस और मस्क : शुरूआत अंतरिक्ष में एक नये युग की या उस पर अवैध कब्जों की?

एक जमाना था जब सोवियत संघ और अमरीका के बीच अंतरिक्ष को लेकर होड़ लगी रहती थी। लेकिन - कम से कम ऊपर-ऊपर से देखने में तो -यह होड़ तीन अरबपतियों के बीच नजर आ रही है-एलन मस्क, जेफ बेज़ोस और रिचर्ड ब्रान्सन। 

इनमें से दो तो अपनी सब-ऑर्बिटल अंतरिक्ष उड़ानों में चक्कर भी लगा आए हैं। सब-ऑर्बिटल अंतरिक्ष उड़ानों को ठीक-ठीक अंतरिक्ष की उड़ान के दर्जे में नहीं रखा जाता है क्योंकि ऐसी उड़ानें पृथ्वी के इर्द गिर्द किसी स्थिर कक्षा तक नहीं पहुंचती हैं।

ब्रान्सन की महत्वाकांक्षाएं सीमित ही हैं। उसकी दिलचस्पी मुख्यत: अंतरिक्ष पर्यटन के कौतुक को विकसित करने में ही है। लेकिन एलन मस्क और उनके स्पेसएक्स की तैयारियां लंबे खेेल की हैं। उनकी रॉकेटों तथा प्रक्षेपणों की पूरी शृंखला की तैयारी है और इनमें अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन भी शामिल है। ऐसा ही मामला बेज़ोस और उसकी कंपनी ब्लू ऑरीजिन का है।

बहरहाल पहली नजर में ये जो दौलतमंद  छोकरों के अपने महंगे अंतरिक्ष खिलौनों से खेलने का तमाशा लगता है उसके पीछे कहीं बड़ी ताकतें काम कर रही हैं। इसी तरह से बड़ी पूंजी अंतरिक्ष उड़ानों  के क्षेत्र में प्रवेश कर रही है, जो अब तक राष्ट्र-राज्यों का ही सुरक्षित क्षेत्र रहा था।

हालांकि आभास तो इसका ही होता है कि दौलतमंद छोकरे अपनी बेहिसाब दौलत में से अपने-अपने अंतरिक्ष उद्यमों पर खर्चा कर रहे हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि अमरीकी करदाताओं का पैसा ही इस सब को चला रहा है।

अमेरिका इस नये अंतरिक्ष युग में अंतरिक्ष वैश्विक समझौतों को धता बताकर बेढंगी चाल चलने का इरादा जता रहा है। अमेरिका तो यही पसंद करेगा कि अंतरिक्ष को अपने ‘आखिर मोर्चे’ में तब्दील कर दे और यह एलान कर दे कि यह क्षेत्र हर उस देश का है, जो इसकी संपदा का ‘खनन’ या दोहन करने में समर्थ हो।

बहरहाल अंतरिक्ष की मौजूदा होड़  की कहानी में हम अक्सर यह मान लेते हैं कि अमेरिका ने अंतरिक्ष की पिछली होड़ में सोवियत संघ को हरा दिया था, क्योंकि वह चांद पर मनुष्य को उतारने की होड़ में उससे आगे निकल गया था।

लेकिन, इस तरह की धारणा में यह भुला ही दिया जाता है कि अंतरिक्ष की होड़ सिर्फ इस तक सीमित नहीं थी कि चांद पर मनुष्य कौन पहले भेजता है बल्कि यह होड़ इस पर भी थी कि कौन बेहतर रॉकेट बनाता है।

यह विचित्र किंतु सत्य है कि सोवियत संघ के पराभव के बाद ही सोवियत प्रौद्योगिकी से निर्मित रॉकेट इंजन बाकी दुनिया के सामने आए, जिन्होंने हर बार अमेरिकी रॉकेट इंजनों से बेहतर प्रदर्शन किया था।

1990 के बाद से, सोवियत संघ में तैयार डिजाइन पर आधारित और रूस में निर्मित रॉकेट इंजन- आरडी 170 तथा आरडी 180- ही अमेरिका के एटलस रॉकेटों को चलाते आए हैं और अमेरिका के भारी प्रक्षेपण यानों का मुख्य आधार बने रहे हैं। एटलस की रॉकेट उत्पादन लाइन, यूनाइटेड लांच एलाइंस की मिल्कियत है, जोकि लॉकहीड मार्टिन तथा बोइंग का संयुक्त उद्यम है।

इससे भी ज्यादा हैरानी की बात यह है कि जब ऑर्बिटल साइंसेज (जो अब नॉर्थरूप ग्रूमान का हिस्सा है) अपने एंटारेस प्रोग्राम के लिए किसी प्रक्षेपण यान की तलाश में था, उसने सोवियत जमाने के चालीस साल पुराने उठाकर रख दिए गए रॉकेट इंजनों का ही इस्तेमाल करने का फैसला लिया था।

बेशक बाद में इनमें से इक इंजन में धमाका हो जाने के बाद पुराना होने पर इंजनों में दरारें पड़ जाती हैं। उन्हें अपने रॉकेट इंजन को बदलना पड़ा था। लेकिन उन्होंने पहले के इंजन को बदला भी तो रूस में डिजाइन हुए तथा वहीं के बने, आरडी 181 इंजनों से!

उसी समय जब रूसी रॉकेट इंजन अमेरिकी अंतरिक्ष कार्यक्रम का मुख्य आधार बन रहे थे, अमरीका ने इसरो और रूस के ग्लावकोस्मोस पर पाबंदियां लगा दीं। ग्लावकोस्मोस, रूस का अंतरिक्ष मार्केटिंंग बाजू था, जो क्रायोजैनिक रॉकेट इंजनों तथा प्रौद्योगिकी का व्यापार संभाले हुए था।

अमेरिका ने इन पाबंदियों को तभी वापस लिया जब इसरो ने अपनी ही क्रायोजैनिक इंजन प्रौद्योगिकी का विकास कर लिया। भारत के रॉकेट निर्माण कार्यक्रम में रूस का योगदान, उन सात क्रायोजैनिक  इंजनों का था जो उसने सोवियत संघ के चंद्र मिशन के एन1 अपर स्टेज के हिस्से के तौर पर इसरो को बेचे थे।

और सोवियत दौर के रॉकेटों का प्रदर्शन, अमरीकी रॉकेटों से बेहतर क्यों था? असल में रॉकेटों में ईंधन जलता है और वे बहुत तेज रफ्तार से छूटती गैसों की ऊर्जा से गतिशील होते हैं। सोवियतों ने अमेरिकियों से काफी पहले ही क्लोज्ड साइकिल रॉकेट इंजनों के निर्माण में महारत हासिल कर ली थी।

अंतरिक्ष में उड़ान में समर्थ होने के लिए, किसी भी रॉकेट को ईंधन की भी जरूरत होती है-कैरोसीन, हाइड्रोजन, मीथेन आदि-और उन्हें जलाने के माध्यम के तौर पर आक्सीजन की भी जरूरत होती है।

ओपन साइकिल रॉकेट इंजन में-जिनका इस्तेमाल काफी समय तक अमेरिकी करते थे-चूंकि ईंधन के एक हिस्से का इस्तेमाल, रॉकेट के इंजन में ईंधन व आक्सीजन पम्प करने वाले टर्बो कम्प्रेसर को चलाने में किया जाता है, यह ईंधन सीधे ही बाहर के वातावरण में निकल जाता है।

इससे इंजन की क्षमता में कमी आती है जिसकी भरपाई रॉकेट पर ज्यादा ईंधन लादने के जरिए करनी होती है। इससे भिन्न, क्लोज्ड साइकिल या ‘‘स्टेज्ड कंबश्चन’’ इंजन में टर्बो कम्प्रेशर को चलाने के लिए पहले चरण के कम्बश्चन से निकलने वाली गैस आदि को मुख्य कम्श्चन चैम्बर में ले जाया जाता है और इस तरह ईंधन के एक हिस्से की बर्बादी को बचा लिया जाता है।

पहले चरण के आक्सीजन समृद्घ गैस-र्ईधन मिश्रण को रॉकेट के मुख्य कम्बश्चन चैम्बर तक ले जाना बहुत ही खास तरह की सामग्रियों की मांग करता है, जो बहुत भारी गर्मी व दबाव को झेल सकें। अमेरिकी इंजीनियरों को लगता था कि ऐसा करना तो संभव ही नहीं है।

लेकिन 1990 के दशक में जब सोवियत संघ की मनुष्य को चांद पर उतारने की कोशिश से संबंधित, एन1 प्रोजैक्ट के पुराने इंजन, रूस में आए अमेरिकी इंजीनियरों को देखने को मिले तो वे दंग ही रह गए। यही वे इंजन थे जिनका इस्तेमाल ऑर्बिटल साइंसेज ने अपने एंटारेस प्रोग्राम में करने की कोशिश की थी हालांकि बाद में उन्होंने और उन्नत रूसी आरडी 181 इंजनों को अपना लिया।

2014 के यूक्रेनियाई संकट के बाद अमेरिका ने रूस की अनेक कंपनियों पर पाबंदियां लगा दीं। बहरहाल वह अब भी रूस से आ रहे रॉकेट इंजनों का ही अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम में जिसमें सैन्य व  असैन्य दोनों ही तरह के अंतरिक्ष कार्यक्रम शामिल हैं, इस्तेमाल कर रहा है।

2011 में अमेरिका का अंतरिक्ष शटल कार्यक्रम बंद किया गया था और उसके बाद से अमेरिकी अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन पर छोडऩे और उन्हें वापस लाने का काम रूसी सोयुज रॉकेटों के ही भरोसे है।

स्पेसएक्स के स्पेस शटल के विकास के बाद ही एक बार फिर अमेरिका के पास अपना अंतरिक्ष यान आया है, जिससे वह अपने अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन पर छोडऩे तथा वहां से लाने का काम ले सकता है।

अमेरिकी कांग्रेस ने आदेश जारी किया है कि अमेरिकी कंपनियों को यह सुनिश्चित करना होगा कि 2022 तक उनके नये रॉकेट प्रक्षेपणों में रूसी इंजन नहीं रहें। ठीक यहीं बेज़ोस और मस्क की भूमिका आती है, जो दोनों ही नासा की योजना के अनुसार उसके भविष्य के प्रक्षेपणों के लिए होड़ कर रहे हैं। हालांकि, ऊपर-ऊपर से देखने में तो ऐसा ही लगता है कि मस्क और बेज़ोस, अपना ही पैसा लगाकर रॉकेटों का विकास कर रहे हैं, वास्तव में असली खर्चा नासा ही कर रही है। नासा सीधे-सीधे इन यानों के विकास की लागत भी उठा रही है और आगे चलकर, हरेक प्रक्षेपण का किराया भी दे रही होगी।

और चूंकि रॉकेट इंजन किसी भी गंभीर अंतरिक्ष कार्यक्रम की कुंजी हैं अमरीका फिलहाल किस स्थिति में है? बोइंग और लॉकहीड मार्टिन के संयुक्त उद्यम, यूएलए को नासा द्वारा लगायी गयी नयी शर्त के अनुसार, अमरीका में निर्मित इंजनों पर जाना होगा।

इसके लिए उसने बेज़ोस के नये अंतरिक्ष उद्यम ब्लू ऑरीजिन के बीई-4 रॉकेट के चुना है। दूसरे जो रॉकेट इंजन प्रतियोगिता में हैं, एलन मस्क के स्पेसएक्स से हैं। उधर स्पेस ऑर्बिटल, जो कि अब नॉथ्र्रोप ग्रूमान का हिस्सा है, स्पेस स्टेशन के लिए अपनी माल ढुलाई सेवाओं के लिए अब भी रूसी इंजनों के साथ बंधा लगता है।

इस तरह  अमेरिका का रॉकेट इंजनों का चुनाव बेज़ोस के ब्लू ऑरीजिन के बीई-4इंजन और स्पेसएक्स के फाल्कान/ रैप्टर इंजन के बीच चुनाव तक ही सीमित लगता है। इस तरहअमरीका की अंतरिक्ष होड़ सारत: दो अति-धनी अरबपतियों के बीच दो घोड़ों की ही दौड़ है।

बेज़ोस और मस्क अंतरिक्ष में अपने उद्यमों के लिए कहां से फंड ला रहे हैं? बहुतों को लगता है कि यह वही पैसा है - जो इन ‘स्वप्नदर्शी’ अरबपतियों ने पैसा कमाने की अपनी विशिष्टï प्रतिभा से बनाया है - किस्से-कहानियों के किसी ‘नायक’ की तरह।

लेकिन कड़वी सचाई यह है कि एक पूंजीपति के नाते बेज़ोस ने यह पैसा अपने कर्मचारियों को बुरी तरह से निचोडऩे के जरिए और उनका काम का बोझ इतना बढ़ाने के जरिए बटोरा है कि उन्हें शौचालय तक जाने का समय नहीं मिलता है।

एमेजॉन अपने मजदूरों को गुजारे के वेतन से भी कम पैसा देता है, जिसकी पूर्ति मजदूरों को समाज कल्याणकारी प्रावधानों से करनी पड़ती है। उसने खुदरा व्यापार के क्षेत्र को नष्टï ही कर दिया है और अपने एमेजॉन ब्रांड के उत्पादों के जरिए वह अपने आपूर्तिकर्ताओं के साथ भी होड़ कर रहा है।

मस्क का भी दावा ऐसा ही एक और स्वप्नदर्शी होने का है, जिसने आने वाले जमाने के लिए बिजली से चलने वाली कार, टेस्ला का विकास किया है। जहां पहले से इस उद्योग में बने हुए कार निर्माता, इलैक्ट्रिक कारों के विकास में एक हद तक सुस्त रहे, टेस्ला को इस क्षेत्र में दूसरों से पहले शुरूआत करने का फायदा मिला। उसे विभिन्न देशों के उन पर्यावरणीय तकाजों को भुनाने का मौका मिल गया, जो ऑटो निर्माताओं पर यह शर्त लगाते हैं कि अपने उत्पाद का एक निश्चित हिस्सा, इलैक्ट्रिक कारों के रूप में बेचकर, कार्बन क्रेडिट कमाएं।

मिसाल के तौर पर इस साल की पहली तिमाही में टेस्ला का करीब-करीब सारा का सारा मुनाफा अन्य कार निर्माताओं को उसने जो कार्बन क्रेडिट बेचे उनसे ही आया था। चूंकि टेस्ला सिर्फ इलेक्ट्रिक कार ही बनाती है, दूसरे कार निर्माताओं के मुकाबले में उसके पास काफी अतिरिक्त कार्बन क्रेडिट जमा हो जाते हैं, जिन्हें वह दूसरे कार निर्माताओं को बेच देती है।

टेस्ला की एक मुख्य बैटरी आपूर्तिकर्ता कंपनी है, कन्टेंपरेरी एम्पेरेक्स टैक्रोलॉजी कम्पनी लिमिटेड--सीएएलटी--जोकि दुनिया की सबसे बड़ी लिथियम बैटरी निर्माता कंपनी है। इस कंपनी के मालिक, झेंग युकुन की नैट वर्थ, अलीबाबा के मालिक जैक मा से भी ज्यादा होगी। मस्क का सोशल मीडिया में खूब दबदबा है और इसका लाभ लेकर उसने अपने कार कारोबार का और अब अपने अंतरिक्ष उद्यम का खूब ढोल पीटा है।

इन अंतरिक्ष अरबपतियों के आने से शुरू हुए इस नये अंतरिक्ष युग का एक और चिंताजनक पहलू है -अपनी निजी कंपनियों के लिए अंतरिक्ष पर कब्जा करने की अमेरिकी। यह नीति सुदूर अंतरिक्ष संबंधी संधि का उल्लंंघन करती है।

अमेरिका का रुख यह है कि सुदूर अंतरिक्ष बेशक वैश्विक शामलात है, पर उसका व्यावसायिक दोहन करने की सभी को छूट है। इसी तरह का रुख उसने, अंतरराष्ट्रीय समुद्रों में समुद्र तेल में खनन के मुद्दे पर भी अपनाया था। इस तरह की नीति तो, ताकतकर तथा प्रौद्योगिकी के मामले में दूसरों से आगे बढ़े हुए देशों को विशेषाधिकार देने का ही काम करती है और यह तो वैश्विक शामलातों को निजी कब्जों के लिए घेरे जाने का ही दूसरा नाम है।

अंतरिक्ष के एक नये युग के धुंआधार प्रचार के पीछे अंतरिक्ष को हड़पने की नयी कोशिशों की सच्चाई छुपी हुई है। बेज़ोस और मस्क ठीक इसी का प्रतिनिधित्व करते हैं। एक नया अंतरिक्ष युग लाया जा रहा है, जिसमें अरबपति, इस दुनिया से ऊपर उठ सकेंगे, जिसे वे इस उम्मीद में बर्बाद कर रहे हैं कि वे नयी जमीनें जीत सकेंगे ताकि उन्हें भी बर्बाद कर सकें।       

इस लेख को अंग्रेजी में इस लिंक के जरिए पढ़ा जा सकता है 

Bezos and Musk: New Space Age or Billionaire Space Grab?

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