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भाजपा का रिपोर्ट कार्ड बता देता है ‘संकल्प पत्र’ की हक़ीक़त

भाजपा का पिछला बर्ताव बताता है कि वह अपने घोषणा पत्र की कोई भी बात सही से पूरा नहीं कर पाएगी। और इसका जवाब वह खुद इस तरह से देगी कि राष्ट्रवाद और देश खतरे में हैं और हम उसको बचाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
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image courtesy- the hindu

भाजपा का चुनावी घोषणापपत्र भी संकल्प पत्र के तौर पर बाजार में आ गया है। भाजपा ने  अपना चुनावी घोषणापत्र जारी करने से पहले अपने कामों का लेखा-जोखा प्रस्तुत किया। और उसी अंदाज़ में प्रस्तुत कियाजिस अंदाज़ में वह अपने आपको सर्वश्रेष्ठ घोषित करने के चक्कर में देश की आम जनता की हकीकतों और ज़रूरतों से कोसों दूर चली जाती है।

भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के शुरूआती शब्द थे, हमने जिस तरह से इन पांच सालों में विकास किया है वह भारत की विकास यात्रा में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाएगा।  इस वाक्य की हकीकत है कि इन पांच सालों  में उन सारे सरकारी संस्थाओं का मुँह बंद कर दिया गया और विकास मापने के उन पैमानों को बदल दिया गया जिससे विकास की स्थिति पता चलती है। जैसे रोजागर के आंकड़ें नहीं जारी किये गएजीडीपी मापने का तरीका बदल दिया गया। लोगों के पास काम नहीं है और अर्थव्यवस्था की असल सच्चाई के बदले लोगों तक मनगढ़ंत तरीके से गढ़ी हुई अर्थव्यवस्था की तस्वीर प्रस्तुत की जा रही है। और अमित शाह कह रहे हैं कि यह सबसे सुनहरे विकास की कहानी है।

आने वाला समय शायद अमित शाह के शब्दों को पूरी तरह उलट दे और यह कहे कि इस दौरान विकास नहीं किया गया बल्कि विकास के नाम पर ऐसा माहौल रचा गया  जिसका खामियाज़ा बहुत लम्बे समय तक भुगतना पड़ेगा।  

अमित शाह ने रिपोर्ट कार्ड में कहा कि भ्र्ष्टाचार और काले धन को रोकने में यह सरकार सफल रही है। इस विषय पर तो मोदी सरकार की स्थिति ऐसी है कि इसपर पूरा का पूरा शोध किया जा सकता है। काले धन को खत्म करने  लिए साल 2016 में नोटबंदी लागू की गई थी। इस समय तक नोटबंदी से जुडी ऐसी बहुत सारी रिपोर्ट आ चुकी हैं जिससे पता चलता है कि नोटबंदी अपने किसी भी मकसद में सफल नहीं हुई। इसकी वजह से आर्थिक तौर पर सबसे कमजोर लोगों को बहुत अधिक धक्का पहुंचा। कई लोगों को तो अपनी जान तक गंवानी पड़ी। बहुत सारे आर्थिक जानकारों का इसका विरोध किया और कइयों ने तो यहाँ तक कह दिया कि यह भारतीय इतिहास में सरकार द्वारा किया गया आर्थिक नीति में अब तक सबसे बड़ा किया गया मजाक है।

अमित शाह डंके की चोट वाले अंदाज़  में यह कहते हैं कि इस दौरान एक भी भ्र्ष्टाचार का बड़ा मामला नहीं आया। जबकि नोटबंदी के तुरंत बाद गुजरात के 11 कोऑपरेटिव बैंकों में हजारों करोड़ से अधिक रूपये जमा कराने का मामला आयाजिसके निदेशक मंडल में अमित शाह खुद भी शामिल थे। अगर खंगालने की कोशिश की जाए तो भ्रष्टाचार से जुड़े ऐसे बहुत से मामले सामने  आ सकते हैं। 

अमित शाह के इस वक्तव्य को थोड़ा दूसरे तरह से देखते हैं।  अमित शाह अपने इस वक्तव्य में मौजूदा सरकार के उसी खतरनाक रवैये की तरफ इशारा कर रहे हैंजिसके विरोध में  आकर नागरिकों के कई प्रबुद्ध समूह ने इस सरकार को सत्ता से बाहर करने की अपील की है। नीरव मोदी से लेकर माल्या तक, अम्बानी से लेकर अडानी तकचिट फण्ड से लेकर रफ़ाल डील तक ऐसे कई मामले हैंजो भ्रष्टाचार के मुद्दे पर इस सरकार को कठघरे में खड़ा करते हैं।

आयुष्मान बीमा योजना से लेकर फसल बीमा योजना जैसी सरकारी योजनाओं ने लूट का दरवाजा खोल दिया है।  इस सरकार के दौरान आयी इलेक्टोरल बॉन्ड की स्कीम तो लूट करने का क़ानूनी दरवाजा खोलती है। भ्रष्टाचार रोकने से जुडी सारी संस्थाएं जैसे कि सीबीआई से लेकर एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट तक सीवीसी से लेकर न्यायपालिका तक की संस्थाओं ने इस दौरान किस तरह से काम किया हैयह बात आम जनता से मीडिया ने जरूर छिपा दी है लेकिन भारत का हर जागरूक नागरिक इस बारे में जानता है। इस सरकार के शासन से उपजी सबसे बड़ी दिक्क्त यही है कि लूट और सामजिक भ्रष्टाचार की संरचना साफ़ साफ़ दीखती रही और इसे रोकने वाली संस्थाओं ने इसे उजागर करने के बदले इसे छिपाने का काम किया। जैसे कि रफ़ाल के मामले में कैग की भूमिका।  

रोजगार से जुड़े मसले पर इस सरकार के झूठ से आम जनता तक वाकिफ हो चुकी है। अभी हाल में आये तकीबन सारे सर्वे  में यह बात खुलकर सामने आयी कि रोजगार के आधार पर इस सरकार से सबसे अधिक जनता नाखुश है। शायद इसलिए मोदी जी ने रोजागर के मसले पर कुछ भी नहीं कहा। वैसे  उनका इस मुद्दों पर बोलना भी नहीं चाहिए था। क्योंकि संकल्प पत्र कह लें,घोषणापत्र कह लें या प्रतिबद्धता पत्रया कुछ भी कह लें पर भाजपा के पास अब रोज़गार पर बात करने का नैतिक अधिकार ही नहीं है। भाजपा ने साल 2014 में हर साल 1 करोड़ नौकरियों का वायदा किया था।  आज हालत यह है कि देश में 45 साल की सबसे बड़ी बेरोजगारी है। 

भाजपा राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर खुद को राष्ट्रवादी बताने की कोशिश करती है।  सर्जिकल स्ट्राइक से लेकर न जाने कितने तरह की स्ट्राइक की बात करती है।  स्थिति जबकि इसके बिल्कुल उलट है।  आज जम्मू कश्मीर की स्थिति सबसे अधिक गंभीर हो गयी है। पूरी शांति प्रक्रिया पटरी से उतर गई है। आतंकवाद अपने पुराने दौर में लौट आया है। अलगाववादी समूह और अधिक सक्रिय हो गए हैं। नागरिक परेशान हैं। इसका कारण क्या हैसरकार के शासन करने का तरीका ऐसा है कि आम जनता में नफरत और घृणा  की बयार बढ़ती जाती है और राष्ट्रीय सुरक्षा के स्तर पर देश कमजोर होता जाता है।

पुलवामा के ख़ौफ़नाक़ हमले के बाद युद्ध जैसी स्थितियां तभी पैदा हुई जब सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे को चुनावी वोट हासिल करने का हथियार बना लिया।  इस तरह से जम्मू कश्मीर शेष भारत से पूरी तरह से अलगाव महसूस करने के स्तर पर पहुँच चुका है। यहाँ पर सर्जिकल स्ट्राइक जैसी या कोई भी कार्रवाई तभी सफल है जब इसे चुपचाप करने की कोशिश की जाए बजाये कि भाजपा की तरह पूरी दुनिया में हल्ला मचाया जाए। इसलिए यह कहने में कोई हर्ज नहीं कि  भाजपा की वैचारिक स्थिति भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए  सबसे अधिक खतरनाक है। इस तरह से भाजपा के रिपोर्ट कार्ड  में ऐसा कुछ भी नहीं है कि अमित शाह के इस बयान पर भरोसा किया जाए कि भाजपा के पास क्रेडिबिलिटी है।  

जहाँ तक भाजपा के चुनावी घोषणा पत्र यानी संकल्प पत्र की बात है, जिसे गृहमंत्री और भाजपा के पूर्व अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने पेश किया, तो इसमें ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे नया कहा जाए या यह कहा जाए कि संकल्प पत्र के माध्यम से जनता तक पहुंचने की कोशिश की गयी है। बल्कि इसकी शुरुआत राष्ट्रीय सुरक्षा के गुबार से होती है और अंत जिस तरह की बातों से होता है उसपर से जनता का भरोसा उठ चुका है। भाजपा के संकल्प पत्र की शुरुआत की मूल भावना ऐसे है कि भाजपा  की राष्ट्रवाद के प्रति पूरी प्रतिबद्धता है। आतंकवाद के प्रति जीरो टॉलरेंस की पॉलिसी थीहै और जब तक यह खत्म नहीं होगातब तक यह रहेगी। देश की सुरक्षा के साथ हमारी सरकार किसी भी सूरत में समझौता नहीं करेगी। सुरक्षा बलों को आतंकवादियों का सामना करने के लिए फ्री हैंड नीति जारी रहेगी। यह बात समझ से परे हैं कि भाजपा एक तरफ कहती है कि भारत विश्व की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवथा है और विश्व में बहुत अधिक मजबूत हैसियत हासिल कर रहा है और दूसरी तरफ राष्ट्रवाद के नाम पर ऐसे बयान  देती है जिससे ऐसा लगता है कि भारत बहुत अधिक कमजोर है और कोई भी देश इसपर हमला कर सकता है।  भाजपा के लिया राष्ट्रवाद केवल भावुक मुद्दा लगता है और पिछले पांच सालों के कामों से ऐसा लगता है भाजपा के शासन के दौरान भारत के राष्ट्रवाद पर ही सबसे अधिक हमला किया गया है और इस पर और अधिक हमला किया गया तो हिंदुस्तान की आत्मा टूट सकती है। यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर हमारी जो प्रतिबद्धता थीवही रहेगी। अगर यह प्रतिबद्धता  रहेगी तो भाजपा से पूछना चाहिए कि यूनिफार्म सिविल कोड का प्रारूप क्या होगाक्या प्रारूप  में सभी धर्मों और मान्यताओं से उपजी विविधताओं को शामिल किया जाएगाअगर नहीं किया जाएगा तो भारत का विविधताओं को सम्मान देने वाला राष्ट्रवाद कैसे बचेगा।  इसके साथ घोषणापत्र में यह बातें की गयी हैं कि अवैध घुसपैठ को रोकने के लिए जितनी सख्ती करनी होगी करेंगे। इस पर पूरी तरह से रोक लगाएंगे। नागरिकता संसोधन बिल को हम संसद के दोनों सदनों से पास कराएंगे और उसे लागू करवाएंगे। इसके साथ ही हम कहना चाहते है कि हम किसी भी राज्य की पहचान को आंच नहीं आने देंगे। राम मंदिर की बात करें तो पिछली बार की तरह इस बार भी राम मंदिर के प्रति हमारी प्रतिबद्धता है कि हम सभी संभावनाओं को तलाशेंगे। हमारी कोशिश होगी की सौहार्दपूर्ण वातावरण में जल्द से जल्द राम मंदिर का निर्माण किया जाए।  जम्मू  कश्मीर से जुड़े आर्टिकल 370 और 35 (A) के प्रावधनों को समाप्त किया जाएगा।  बड़े ध्यान से समझे तो यह सब वहीं  बातें हैं जिसे भाजपा दोहराती आ रही है। और यह सब बातें उन नागरिकों समूहों में भरोसा पैदा करने के लिए की गयी है जो भाजपा की सोच से खुद को जाड़ते हैं।  कहने का मतलब है यह सारी बातें भाजापा की वैचारिक स्थिति को साफ़-साफ़ दिखाती हैं कि चाहे लोग मरे या जियें या तकलीफ के समंदर में गोते लगाए भाजपा को कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।  

आगे भाजपा का संकल्प पत्र कहता है, हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जैसे ही देश की बागड़ोर संभालते हुए कहा था कि 2022आते-आते किसानों की आय दोगुनी करेंगे। आज मैं फिर यह बात दोहरा रहा हूं। इसमें हमें कामयाबी भी हासिल हुई। यह भाजपा का सबसे बड़ा झूठ है।  कांग्रेस के न्याय स्कीम के इस  सवाल का सबसे खतरनाक जवाब है कि इसे कैसे लागू किया जाएगा। भाजपा ने अभी तक कैसे किसानों की आय दो गुना होगी इसपर कोई रूपरेखा अब तक नहीं दी है।  हर बार यह बयान किसी इवेंट मैनेजमेंट की तरह दिया जाता है। ताकि इवेंट के शुरुआत में  समां बांधा जा सके। जबकि हकीकत यह है कि मोदी जी ने किसानों की दोगुनी आय वाली बात साल 2016 में कही थी और तब सरकार के पास कामकाज के लिए काफी समय बाकी था। तब से लेकर अब तक सरकार ने इसे लागू करने के लिए एक योजना तक कागज पर प्रस्तुत नहीं की है। अगर 2022 तक भी किसान की आमदनी दोगुनी करनी है तो किसान की आय 10.4 फीसदी की सलाना रफ्तार से बढ़नी चाहिए। लेकिन पिछले चार साल में किसान की आमदनी सिर्फ 2.2 सलाना की दर से बढ़ी है। इस हिसाब से अगर किसान की आय दोगुनी करने में नहींकम से कम 25 साल लगेंगे। चुनाव जीतने के बाद लागत से 50 फीसदी अधिक समर्थन मूल्य से भाजपा साफ़ मुकर गयी।  मोदी सरकार ने फरवरी 2015 में सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दे दिया कि ऐसा करना मुश्किल है। इसलिए ऐसा लाभकारी मूल्य किसी भी फसल को नहीं मिला है। साथ में यह भी हकीकत है कि सरकार किसानी लागत स्वामीनाथन आयोग के द्वारा दिए गए अनुशंसाओं के तहत नहीं कर रही है। जिसकी मांग किसानी संघर्ष से जुड़े लोग कर रहे हैं। इसके साथ भाजपा ने कहा है कि वह कृषि क्षेत्र के इंफ्रास्ट्रक्चर विकास के लिए25 लाख करोड़ का इन्वेस्टमेंट करेगी। इस पर भाजपा से पूछना चाहिए कि साल 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने के लिए तकरीबन 6.4 लाख करोड़ इन्वेस्टमेंट करने की जरूरत है।  अभी तक इस पर क्या किया है 

भाजपा का चुनावी घोषणा अवसंरचना पर अगले पांच साल में तकरीबन 100 लाख  करोड़ खर्च करने की बात करते हैं।  यह तकरीबन मौजूदा कुल जीडीपी का तकरीबन 50 फीसदी है। और बहुत अधिक महत्वकांक्षी दिख रहा है। केवल अवसंरचना पर इतनी बड़ी राशि खर्च करने का नजरिया रखने का मतलब है घनघोर तरह से ट्रिकल डाउन इफ़ेक्ट वाली डेवलपमेंट पालिसी अपनाना। जिसका अब तक का नुकसान यह हुआ कि आर्थिक असमानता घनघोर तरह से बड़ी है। अमीर और अधिक अमीर होते चले गए हैं और गरीब और अधिक गरीब।  

कांग्रेस के मेनिफेस्टो में न्याय स्कीम अगर जनता तक पहुँचने की कोशिश के लिए बनाया गया था। भाजपा के मेनिफेस्टों में किसान सम्मान निधि से हेक्टेयर वाली शर्त हटाकर इसे सभी किसानों तक पहुंचाने का वादा किया गया है। साथ में यह भी कहा कि साठ साल से अधिक उम्र वाले किसानों को पेंशन दी जाएगी। कांग्रेस के न्याय स्कीम पर तो बातचीत हुई है।और स्कीम के बारे में यह राय बनी है कि राजनीतिक इच्छाशक्ति हो तो यह स्कीम लागू की जा सकती है।किसान सम्मान निधि योजना की सबसे बड़ी परेशानी इसके तहत मिलने वाली कम राशि है और यह है कि इस योजना के तहत उन किसानों को किसी तरह का फायदा नहीं पहुँचता है जो बिना  जमीन के  मालिकाना हक के काम करते हैं। जो बंटाईदार की तरह काम करते हैजो ठेके पर काम करते हैंउनके बारें में कुछ नहीं कहा गया है। किसानों को पेंशन देने वाली बात साल 2014 के मेनिफेस्टों में भी भाजपा ने की थी लेकिन यह नहीं बताया था कि वह पेंशन कैसे देगी। और कितनी देगी। पता है क्या होगा किसानों से कहा जाएगा कि वह साठ साल तक इंतज़ार करेंहर साल मजदूरों की तरह बीमा खातें में कुछ डालते रहेतब जाकर उसे साठ साल बाद पेंशन मिलेगी।  बाकी सारा सरकारी घोषणाओं का पुलिंदा है।

भाजपा का पिछला का बर्ताव बताता है कि वह अपने घोषणा पत्र की कोई भी बात सही से पूरा नहीं कर पाएगी।और इसका जवाब वह खुद इस तरह से देगी कि राष्ट्रवाद और देश खतरे में हैं और हम उसको बचाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। 

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