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भारत में किसानों का जीवन: चुनिन्दा किसानों के बारे में एक जमीनी अध्ययन

श्रंखला की भूमिका
farmers distress

किसान संघर्ष समन्वय समीति (एआईकेएससीसी) के नाम से एक संयुक्त संगठन बनाया गया I एआईकेएससीसी पिछले तीन सालों से भारतीय कृषि क्षेत्र गहरे संकट से गुज़र रहा है I इस संकट के कई कारण हैं I कृषि की सभी आधारभूत वस्तुओं की कीमतों में लगातार वृद्धि हो रही है I दूसरी ओर, कृषि उत्पादों की कीमतें इतनी नहीं बढ़ीं कि इस भारी लागत की भरपाई हो सके I

कृषि की लागत में इतना उछाल आख़िरकार क्यों आया ? सरकारी एजेंसियों ने बीज बनाना और वितरित करना लगभग खत्म कर दिया है और बेहतर बीज अब निजी कंपनियों से आते हैं जो काफी महँगे होते हैं I 2010 में न्यूट्रीएंट आधारित इमदाद लागू होने के बाद से उर्वरकों की कीमत को आंशिक रूप से अनियमित कर दिया गया जिससे इनकी कीमतों में काफी उछाल आया I ऊर्जा क्षेत्र में हुए सुधार और डीज़ल पर भारी उत्पाद शुल्क की वजह से कृषि में ऊर्जा की लागत को काफी बढ़ा दिया है I फ़सल की सुरक्षा की लागत भी बहुत ज़्यादा बढ़ गयी है I

सरकार 25 फ़सलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करती है जिनमें पिछले तीन सालों से मामूली वृद्धि ही हुई है I कई फ़सलों के लिए घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य उनकी लागत से सिर्फ थोड़ा ही ज़्यादा है I हालांकि न्यूनतम समर्थन मूल्य सिर्फ फ़सल की सबसे कम कीमत के तौर पर ही देखा जाना चाहिए I कुछ राज्यों को छोड़कर धान, गेहूँ और गन्ने के आलावा बड़े स्तर पर किसी अन्य फ़सल की खरीद नहीं होती I सरकारी एजेंसियों द्वारा फ़सल न खरीदे जाने के कारण किसान अपनी फ़सल को न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दाम पर बेचने के लिए मजबूर होते हैं I

कृषि क्षेत्र में पसरे संकट की वजह से पिछले साल देश के कई हिस्सों में किसानों ने आन्दोलन किये I जून 2017 में इन विभिन्न किसान आंदोलनों को संयुक्त नेतृत्त्व देने के लिए अखिल भारतीय ने देश के विभिन्न किसान संगठनों को लामबंद करने के लिए तीन महीनों की किसान मुक्ति यात्रा शुरू की I इसमें वे देश के अलग-अलग भागों में गये और लगभग 10,000 किलोमीटर का सफर तय किया I इसके बाद के कुछ महीनों में महाराष्ट्र, तेलंगाना और राजस्थान राज्यों में किसानों के  बड़े-बड़े विरोध प्रदर्शन हुए I इन विरोध प्रदर्शनों के पीछे की 2 बड़ी वजहें थीं एक, किसानों से कर्ज़े का बोझ कम करने के लिए कृषि ऋण माफ़ किया जाये और दूसरी, किसानों के उत्पाद के लिए सही दाम (खेती की लागत से डेढ़ गुना) I

इन दो मुख्य माँगों के साथ एआईकेएससीसी ने 20 और 21 नवम्बर 2017 को दिल्ली में किसान मुक्ति संसद का आयोजन किया I दो दिन तक देश भर से आये लगभग 50,000 किसानों ने दिल्ली में संसद मार्ग को घेरे रखा I किसान संसद  ने यहाँ फार्मर्स फ्रीडम फ्रॉम डेब्ट बिल, 2017’ औरफार्मर्स राईट टू अश्यौर्ड रेम्यूनरेटिव प्राइसिस फॉर एग्रीकल्चरल प्रोड्यूस बिल, 2017’ नाम से  दो बिलों पर चर्चा कर उन्हें पारित किया I किसान संसद  ने माँग रखी कि इन विधेयकों को संसद में पारित किया जाए I

इस ऐतिहासिक मौके पर सोसाइटी फॉर सोशल एंड इकॉनोमिक रिसर्च के सहयोग से जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय के छात्रों ने विभिन्न राज्यों से आये 51 किसानों से विस्तृत बातचीत की I देश के अलग-अलग हिस्सों से आये किसानों से बात करना इसका मकसद था I हालांकि व्यवस्थित सैंपलिंग करना संभव नहीं था फिर भी छात्रों ने पूरी कोशिश की कि वे विभिन्न जगहों से आये किसानों, विभिन्न फ़सलें उगने वाले किसानों और विभिन्न सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि से आये किसानों से बात करें I इन साक्षात्कारों में पूछे गये सवाल किसानों के घर-बार, ज़मीन, उगाने वाली फ़सलों, खेती की लागत और आय तथा अन्य स्रोतों से होने वाली आय पर आधारित थे I इस श्रृंखला में हम कुछ ऐसे किसानों के रेखा-चित्र आपसे साझा करेंगें I   

जिन 51 किसानों का सर्वेक्षण किया गया वे 14 राज्यों के 38 जिलों और 49 गांवों से सम्बंधित थेI किसानों द्वारा उत्पादित प्रमुख फसलों में अनाज (धान, गेहूं, मक्का, रागी और बाजरा), दाल (चना,  लाल मटर, मसूर और मूंग), तिलहन (मूंगफली और सरसों), और गैर-अनाज की फसलों (गन्ना, कपास, जूट,मिर्च, सुगंध और चाय) शामिल हैंI फसलों और क्षेत्रों में भिन्नता के अलावा,  किसान अपनी जमीन की होल्डिंग्स के आकार और सिंचाई सुविधाओं के अलावा  परिवार के श्रम के उपयोग की सीमा और भाड़े पर श्रम पर निर्भरता के मामले में भी अलग-अलग हैंI सामाजिक समूहों के संदर्भ में साक्षात्कार में किसानों में दलित, आदिवासिस, मुस्लिम, अन्य पिछड़ा वर्ग और अन्य शामिल हैंI यद्दपि अधिकांश साक्षात्कार पुरुष किसानों का हुआ लेकिन  हम कुछ महिला किसानों को भी कवर करने में कामयाब रहेI

कई विद्वानों ने कृषि क्षेत्र को सांख्यिकीय विश्लेषण और बड़े पैमाने पर ग्रामीण स्तर के सर्वेक्षणों के आंकड़ों के आधार पर आजीविका के स्रोत के रूप में पेश किया हैI हमने किसानों के सर्वेक्षण के बारे में केवल सूखे आंकड़े देने के बजाय, हमने साक्षात्कारों के आधार पर चयनित किसानों और उनके परिवारों की प्रोफाइल बनाने का चयन किया हैI हमें उम्मीद है कि इन प्रोफाइल के माध्यम से हम भारत के विभिन्न हिस्सों के किसानों के जीवन की एक झलक प्रदान करने में सक्षम होंगेI ये प्रोफाइल इन किसानों के बारे में मात्रात्मक जो आंकड़े उपलब्ध कराते हैं, उनसे उम्मीद की जाती है कि पाठकों को विभिन्न फसलों की तुलनात्मक लाभप्रदता, सिंचाई और अनारिचित कृषि की स्थिति, और विभिन्न सामाजिक-आर्थिक स्थितियों के बारे में किसानों की परिस्थितियों के बारे में जानकारी मिलेगीI हमारे उत्तरदाताओं ने उन स्रोतों के बारे में भी बताया है जहां से वे उधार प्राप्त करते हैं और जिससे उनके स्तर सही जायजा मिलता हैंI हमने विशिष्ट समस्याओं जैसे कि कपास में सफ़ेद और गुलाबी बोल्मों की मार, और मिर्च और आलू की कीमतों में भारी गिरावट के बारे में भी पता चला हैI हमने उनसे यह भी जानकारी मिली कि कैसे भारत के विभिन्न हिस्सों में किसानों ने नोटबंदी का सामना कियाI इन सभी विषयों को श्रृंखला के हिस्सों में शामिल किया जाएगाI

हम जिन चयनित साक्षात्कारों को पेश करेंगे,  वे किसानों की फसलों, क्षेत्रों और सामाजिक-आर्थिक स्थिति की विविधता का प्रतिनिधित्व करते हैंI हम इसकी शुरवात इलाहाबाद जिले (उत्तर प्रदेश) से एक कोली आदिवासी किसान के साथ करेंगे, इसके बाद दुमका जिले (झारखंड) के माल पहाड़िया आदिवासी किसान कि कहानी पेश करेंगेI बाद के योगदानों कि  श्रृंखला में हरियाणा, विदर्भ, तेलंगाना और कर्नाटक के कुछ कपास किसानों के जीवन कि झलक है, और टुमकुर (कर्नाटक) से सुपारी और नारियल के उत्पादक किसान हैं, सिद्दीपेट (तेलंगाना) और धार (मध्य प्रदेश) से मिर्च के किसान हैंI कोल्हापुर (महाराष्ट्र) और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गन्ना किसान, सूखा प्रभावित एरियालुर (तमिलनाडु) से धान के किसान, और गंगा कि बेल्ट से कुछ धान-गेहूँ उत्पादक किसान हैंI

जेसिम पाइस  सोसायटी फ़ॉर सोशल एंड इकोनॉमिक रिसर्च (एसएसईआर), दिल्ली से सम्बंधित हैंI

इस श्रंखला का पहला भाग आप यहाँ पढ़ सकते हैं I

इस श्रंखला का दूसरा भाग आप यहाँ पढ़ सकते हैं I

इस श्रंखला का तीसरा भाग आप यहाँ पढ़ सकते हैं I

इस श्रंखला का चौथा भाग आप यहाँ पढ़ सकते हैं I

इस श्रंखला का पाँचवा भाग आप यहाँ पढ़ रहते हैं I

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