भोपाल में अब जनता की आवाज़ उठाना पड़ेगा महंगा
मध्यप्रदेश में जब 15 सालों तक भाजपा की सरकार थी, तब धरना-प्रदर्शन पर अंकुश लगाने के कई प्रयास किए गए। उसके खिलाफ न केवल कांग्रेस बल्कि कई सामाजिक एवं जन संगठनों ने विरोध किया था। यहां तक कि जब-तब कैम्पस के भीतर होने वाले आयोजनों के लिए भी पुलिस-प्रशासन से अनुमति लेने के आदेश जारी होते रहे हैं। यहां तक कि प्रदर्शन के लिए कई स्थानों को प्रतिबंधित कर दिया गया था। प्रशासन को यदि यह आभास हो जाता था कि प्रदर्शन के कारण सरकार को असहज होना पड़ेगा, तो उसकी अनुमति तक नहीं मिलती थी।
ऐसे में सामाजिक एवं राजनीतिक कार्यकर्ताओं को उम्मीद थी कि कांग्रेस की सरकार बनने के बाद लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए विपक्ष की आवाज़ को दबाया नहीं जाएगा और आलोचना एवं अपनी आवाज़ रखने के लिए सरकार ज्यादा से ज्यादा पब्लिक स्पेस उपलब्ध कराएगी। लेकिन ठीक इसके उलट अनुभव होने लगा है और भोपाल में धरना-प्रदर्शन करना ज्यादा कठिन बना दिया गया है। इससे सामाजिक संगठनों सहित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) एवं भाजपा के साथ-साथ कांग्रेस के कई नेता भी नाखुश हैं। माकपा इसे जन आंदोलनों को कुचलने वाली हरकत मान रही है।
भोपाल संभाग के पुलिस महानिरीक्षक द्वारा जारी आदेश के अनुसार भोपाल में अब बिना अनुमति रैली एवं धरना-प्रदर्शन करने पर या उसमें तय संख्या से ज्यादा लोगों के शामिल होने पर आयोजकों को लाखों रुपए का जुर्माना देना पड़ेगा। इस आदेश को जारी करने के पीछे कारण बताया गया है कि रैली, धरना-प्रदर्शन के दरम्यान जाम लगने से आमजन, स्कूली बच्चों एवं आकस्मिक चिकित्सा सेवाओं को परेशानी होती है। ऐसे में बिना अनुमति इस तरह के आयोजनों में पुलिस-प्रशासन को अपना शासकीय काम छोड़कर इसमें लगना पड़ता है, जिससे शासकीय काम बाधित होता है। ऐसी स्थिति में शासकीय अमला मूल कर्तव्य का निर्वहन नहीं कर पाते, इसलिए आकस्मिक ड्यूटी पर होने वाले व्यय को रैली या धरना-प्रदर्शन करने वालों से वसूला जाएगा।
पुलिस के इस आदेश की पृष्ठभूमि में पिछले दिनों भाजपा के पूर्व विधायक सुरेंद्रनाथ सिंह द्वारा बिना अनुमति रैली निकालने का मामला है। बीते 20 अगस्त को स्थानीय लोगों की समस्याओं को लेकर पूर्व विधायक ने मुख्यमंत्री निवास का घेराव करने लिए भोपाल के अलग-अलग स्थानों से रैली निकालने का नेतृत्व किया। अलग-अलग जगहों से बढ़ रहे प्रदर्शनकारियों को पुलिस ने मुख्यमंत्री निवास पहुंचने से पहले ही तितर-बितर कर दिया। प्रशासन ने पुलिस को बताया था कि बिना अनुमति पूर्व विधायक रैली एवं प्रदर्शन कर रहे हैं। पुलिस ने तत्काल कार्रवाई के लिए फोर्स भेजा। इसके दो-तीन बाद भोपाल पुलिस ने पूर्व विधायक पर 23 लाख 76 हजार 280 रुपए का जुर्माना लगा दिया। इसके लिए पुलिस ने तर्क दिया कि घेराव के दरम्यान आकस्मिक ड्यूटी पर हुए खर्च को बिना अनुमति रैली व घेराव का नेतृत्व करने वाले व्यक्ति पर जुर्माना लगाया गया है।
पुलिस के उक्त कार्रवाई का चौतरफा विरोध हो रहा है। माकपा के राज्य सचिव जसविंदर सिंह का कहना है, ‘‘जनतंत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता व्यक्ति के मौलिक अधिकारों में शामिल होता है। आजादी से लेकर आज तक सरकारों के जनविरोधी निर्णयों के विरोध में जनता जनतात्रिक तरीके से विरोध व्यक्त करती रही है। मगर यह पहली बार हुआ है कि किसी राजनीतिक प्रदर्शन के कारण किसी पर जुर्माना थोपा जाए। पुलिस का दावा इसलिए और हास्यास्पद हो जाता है, जब उसने इस प्रदर्शन में किसी प्रकार की क्षति का जिक्र नहीं किया है, वसूली की वजह सिर्फ प्रदर्शन के कारण पुलिस को अतिरिक्त बल जुटाना पड़ा बताया गया है, जबकि कानून व्यवस्था ही तो पुलिस का प्राथमिक कार्य है। भोपाल के पूर्व विधायक द्वारा गुमटी व्यावसायियों के प्रदर्शन में मुख्यमंत्री पर की गई हिंसक टिप्पणी निंदनीय है। कोई भी संवेदनशील व्यक्ति उसका समर्थन नहीं कर सकता है। मगर उस आंदोलन की आड़ में पुलिस द्वारा सुरेंद्रनाथ सिंह से पौने 24 लाख रुपए की वसूली की धमकी अलोकतांत्रिक है और तानाशाही पूर्ण कदम है।
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के अनुसार पूर्व की भाजपा सरकार ने जन आंदोलनों को कुचलने के लिए विरोध प्रदर्शनों के परंपरागत स्थानों को प्रतिबंधित कर दिया था। सभा स्थल के आयोजन पर हजारों रुपए का किराया निर्धारित कर जनता की अभिव्यक्ति का गला घोंटा था। इसके विरोध में ही जनता ने भाजपा को हराया था। मगर नई सरकार का भी तानाशाही कदमों पर चलना खतरनाक है और यदि यह निर्णय राजनीतिक स्तर पर लिया गया है तो और भी गंभीर है। माकपा ने सभी जनतंत्र पसंद नागरिकों को पुलिस प्रशासन के इस निर्णय का विरोध करने की अपील की है।
पुलिस के इस निर्णय का भाजपा एवं माकपा के साथ-साथ कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने भी विरोध किया है। प्रदेश के विधि मंत्री पीसी शर्मा का कहना है कि धरना-प्रदर्शन पर जुर्माना की कार्रवाई करना ठीक नहीं है। इस पर विचार किया जाना चाहिए। राजनीति में धरना-प्रदर्शन करना सामान्य प्रक्रिया है। कांग्रेस के विधायक कुणाल चौधरी का कहना है कि धरना-प्रदर्शन नहीं होंगे, तो लोग अपनी बात कैसे रखेंगे।
वरिष्ठ पत्रकार एवं राष्ट्रीय सेक्यूलर मंच के संयोजक लज्जा शंकर हरदेनिया कहते हैं, ‘‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एवं संगठित होने का अधिकार हमें संविधान देता है। पुलिस का यह आदेश बहुत ही गलत है। अगर अपनी मांगों के लिए लोगों को अनुमति लेकर प्रदर्शन करना पड़े, तो सरकार की जिसमें आलोचना हो या फिर अपने विरोधी को वह अनुमति क्यों देगी? धरना-प्रदर्शन एवं रैली की सूचना देने की अनिवायर्ता तक बात समझ में आती है, लेकिन अनुमति को अनिवार्य करने के आदेश का पूरी तरह विरोध करना चाहिए।
प्रदर्शन के लिए स्थानों को चिह्नित करने का मतलब यह नहीं होना चाहिए कि वह सत्ता या प्रशासन के प्रमुख केन्द्रों से दूर हो, ऐसा होने पर प्रदर्शन का कोई औचित्य नहीं होगा। कई बार तात्कालिक मुद्दों पर भी प्रदर्शन या धरने का आयोजन होता है, इसलिए सूचना देना भी संभव नहीं होता। प्रशासन एवं राजसत्ता का ध्यान आकर्षित करने के लिए लोकतंत्र में अहिंसक विरोध-प्रदर्शन एवं रैली का बड़ा महत्व है, इस पर अंकुश लगाने का विरोध हमने पिछली सरकार में भी किया था और यदि पुलिस के वर्तमान आदेश को निरस्त करने एवं जुर्माने के प्रावधान को हटाने का निर्णय सरकार नहीं लेती है, तो इसके खिलाफ भी प्रदर्शन किया जाएगा।’’
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