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ताइवान पर दिया बाइडेन का बयान, एक चूक या कूटनीतिक चाल? 

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने पिछले गुरुवार को सीएनएन टाउन हॉल में यह कहा है कि अगर चीन ने ताइवान पर हमला किया तो वाशिंगटन उसकी रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध है।
Biden’s Taiwan Gaffe Meant no Harm
14 अक्टूबर को चीन-रूस नौसैनिक अभ्यास संयुक्त सागर-2021 रूस के पीटर द ग्रेट बे में शुरू हुआ। इस अभ्यास में माइन काउंटरमेस्चर्स पोत, वायु रक्षा, लाइव-फायर शूटिंग, पैंतरेबाज़ी और पनडुब्बीरोधी मिशन पर फोकस किया गया है।

संभावना यही जताई जा रही है अमेरिकी राष्ट्रपति जोए बाइडेन ने पिछले गुरुवार को सीएनएन टाउन हॉल में यह कह कर एक और कूटनीतिक भूल की है कि अगर चीन ने ताइवान पर हमला किया तो वाशिंगटन उसकी रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध है।

हालांकि, बाइडेन की आम तौर पर जानबूझ कर की जाने वाली चूक की तरह, यह भी सोच-विचार कर की गई एक गलती थी। बाइडेन अपने वक्तव्य में प्रतिबद्ध भी थे। दरअसल, इस विषय पर अमेरिका में बहस होती रही है और बाइडेन ने उसी विचार को अभिव्यक्त कर दिया। 

अगले ही दिन, व्हाइट हाउस ने अपने राष्ट्रपति जोए बाइडेन की ताइवान मसले पर की गई उस टिप्पणी को वापस लेते हुए यह स्पष्ट किया कि वे "नीति में बदलाव की घोषणा नहीं कर रहे थे और न ही हमने अपनी नीति बदली है। हम 1979 के ताइवान संबंध अधिनियम से निर्देशित होते हैं।" 

ताइवान संबंध अधिनियम-1979 के मुताबिक अमेरिका ताइवान की आत्मरक्षा के लिए हथियार उपलब्ध कराने के लिए वचनबद्ध-प्रतिबद्ध है, लेकिन वह अमेरिकी सैनिकों को भेजने के लिए प्रतिबद्ध नहीं है। 

इसके बाद, शुक्रवार को फिर से, रक्षा सचिव लॉयड ऑस्टिन और विदेश विभाग के प्रवक्ता नेड प्राइस ने पेइचिंग को संकेत दिया कि यथास्थिति नहीं बदली है-और ताइपे को स्वतंत्रता की घोषणा के खिलाफ उसे आगाह किया। 

दिलचस्प बात यह है कि शुक्रवार को ही, सीनेट की विदेश संबंध समिति की पूर्वी एशिया उपसमिति के अध्यक्ष सीनेटर एडवर्ड जे. मार्के और सीनेटर डैन सुलिवन ने ताइवान एक्शन सपोर्टिंग सिक्योरिटी बाय अंडरटेकिंग रेगुलर एंगेजमेंट (ताइवान एश्योर) अधिनियम नाम से एक द्विदलीय कानून पेश किया। इसके तहत “ताइवान जलडमरूमध्य में संघर्ष के जोखिम को कम करने के लिए कुछ ठोस उपायों पर जोर दिया गया है, जिनमें गलतफहमी को कम करने और पारदर्शिता को बढ़ावा देने के लिए संवादों को कायम करने की बात कही गई है।” 

इसी बीच, बाइडेन और पूर्व विदेश मंत्री जॉन केरी के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़े रहे मैसाचुसेट्स के अनुभवी सांसद सीनेटर मार्के ने इस मसले पर व्हाइट हाउस से राय-विचार कर क्षति की भरपाई करने की कोशिश की है। 

उन्होंने कहा, “हमें तनाव कम करने और ताइवान जलडमरूमध्य में गलत आकलन-अनुमान से बचने के तरीके खोजने चाहिए। यह कानून सशस्त्र संघर्ष से बचाव के लक्ष्य के साथ संयुक्त राज्य अमेरिका की क्षेत्रीय सुरक्षा रणनीति के एक अनिवार्य हिस्से के रूप में बने संकट का हल निकालने के उपायों में निवेश करेगा। ताइवान सम्बंध अधिनियम-1979 के तहत हमारी प्रतिबद्धताओं के अनुरूप, संयुक्त राज्य अमेरिका को अंतरराष्ट्रीय समुदाय में ताइवान की सार्थक भागीदारी का समर्थन करना जारी रखना चाहिए और क्षेत्र में संघर्ष से बचने के लिए स्पष्ट कार्रवाई करते हुए उस देश को जलडमरूमध्य बनने वाले दबाव का सामना करने में मदद करनी चाहिए।”

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जाहिर है, अमेरिकी नेतृत्व के जिम्मेदार स्तर पर, अमेरिका-चीन संबंधों में साहसिकता के साथ एक से कई मोर्चों पर आजमाइश करने के युद्धोन्मादी एवं नवरूढ़िवादी विचारों के लगातार ढोल पीटने वालों का कोई पुछवैया नहीं है। बाइडेन प्रशासन और कांग्रेस, दोनों के भीतर, इस स्तर की स्पष्ट समझदारी है कि यहां अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा दांव पर नहीं लगी है और मानवता की नियति पर जुआ खेलना सरासर पागलपन है। आधुनिक इतिहास में अमेरिकी राष्ट्रपति आइजनहावर के बाद से वैदेशिक मामले में बाइडेन जैसा समृद्ध अनुभव शायद ही किसी भी अन्य राष्ट्रपति को रहा है।

पेइचिंग ने बाइडेन की गलतफहमी को दूर करने के लिए उनकी टिप्पणी पर जोरदार प्रतिक्रिया व्यक्त की। इन सब घटनाक्रमों के दौरान, अभी पिछले हफ्ते ही अमेरिकी निर्यातक वेंचर ग्लोबल एलएनजी और चीनी राज्य तेल दिग्गज सिनोपेक के बीच सालाना 4 मिलियन टन तरलीकृत प्राकृतिक गैस की साझा आपूर्ति पर एक समझौता, और सिनोपेक की एक व्यापारिक शाखा के साथ दूसरा समझौता 1 मिलियन टन एलएनजी अगले तीन साल की आपूर्ति के लिए किया गया है। यहां सवाल उठता है कि क्या बाइडेन इन सबसे अनजान थे?

पिछले हफ्ते इस तरह की रिपोर्टें भी सामने आईं हैं कि चीनी प्राकृतिक गैस वितरक ईएनएन नेचुरल गैस कंपनी ने अमेरिकी आपूर्तिकर्ता चेनियर एनर्जी इंक से 13 साल तक एलएनजी खरीदने के लिए एक समझौता पर हस्ताक्षर किया है, जिस पर जुलाई 2022 से अमल किया जाना है। यह 3 साल में पहली बार है, जब चीनी और अमेरिकी कंपनियों के बीच एलएनजी की कोई बड़ी डील हुई है। 

चीन के आधिकारिक समाचार पत्र ‘ग्लोबल टाइम्स’ ने लिखा है कि ये सौदे "चीन और अमेरिका को अपने सामान्य द्विपक्षीय संबंधों की बहाली पर मजबूर कर सकते हैं।" रसद की कमी और अन्य कारकों के कारण, अमेरिका वर्तमान समय में चीन की प्राकृतिक गैस की व्यापक मांग को पूरा करने में बहुत कम सक्षम है। वहीं, चीन इस साल एलएनजी के दुनिया के सबसे बड़े खरीदार के रूप में जापान से आगे निकलने की होड़ में है। ऐसे में, लंबे समय में प्राकृतिक गैस के अमेरिकी निर्यात के लिए चीन के साथ ऊर्जा सहयोग निश्चित रूप से महत्त्वपूर्ण है। यह जाना माना तथ्य है कि एशियाई बाजार में ऊर्जा की कीमतें आसमान छू रही हैं। 

वैसे भी, चीन-अमेरिका के बीच व्यापार की मात्रा पिछले साल से इस वर्ष जनवरी से सितंबर (इस अवधि में चीन को अमेरिकी निर्यात उछल कर 43.5% तक पहुंच गया है।) तक 35.4% डॉलर की वृद्धि हुई है और उम्मीद है कि यह 2018 में अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध छिड़ने के पहले की अवधि की राशि $630 अरब को पार कर $700 अरब तक पहुंच जाएगी। 

कारोबार के क्षेत्र में इस तरह की वृद्धि दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के अंर्तभुक्त चरित्र की गवाही देती है। यह इस तथ्य को भी रेखांकित करती है कि बाइडेन के राष्ट्रपति होने के बाद से चीन-अमेरिका के आर्थिक और व्यापारिक संबंध सामान्य ट्रैक पर वापस आने लगे हैं, वे और गहरे होते जा रहे हैं। चीनी उप विदेश मंत्री ले युचेंग ने मंगलवार को एक साक्षात्कार में सीजीटीएन को बताया कि चीन और अमेरिका "साझा हितों के एक अविभाज्य समुदाय" हैं।”  

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उस इंटरव्यू में कहा गया है, यह बड़ा सवाल अभी भी हवा में है: बाइडेन ने आखिर स्वयं के युद्धरत होने का संकेत क्यों दिया? इसके तीन, संभवतः चार कारण हो सकते हैं। सबसे पहला, अफगानिस्तान के बाद, यूक्रेन और काला सागर हो या नाटो के विस्तार का मसला हो, बाइडेन प्रशासन अपनी ताकत का प्रदर्शन करता रहा है। दूसरा, अमेरिका इस बात से बहुत परेशान है कि पहले कभी नहीं हुआ कि उसका मार्ग दूसरे देश अवरुद्ध कर रहे हैं और इस तरह उसकी संकल्पशक्ति की थाह ले रहे हैं। जरा कोरिया को दुस्साहस तो देखिए। 

उदाहरण के लिए, ऐसा लगता है कि मानो जेसीपीओए धराशायी होने ही वाला है और इसमें जो कुछ बच गया है, वह "बातचीत में गति की एक अवधारणा" है, जैसा कि ईरान मामलों के प्रसिद्ध अमेरिकी विशेषज्ञ ट्रिटा पेरिस ने लिखा है, जबकि "एक अपरिभाषित योजना बी के तहत अधिक जबरदस्ती करने के लिए फेरबदल" की चेष्टा गंभीर खतरों से भरी है।

विडंबना यह है कि जब बाइडेन ने ताइवान पर अपनी बात कही थी, तभी ये खबरें भी सामने आईं थीं कि चीनी-रूसी संयुक्त नौसैना के छोटे जहाजों के बेड़े (फ्लोटिला) जापान के चारों ओर एक घेरा बनाते हुए और अमेरिकी सातवें बेड़े के मुख्यालय योकोसुका में उसके नौसेना बेस की ओर जा कर "आवाजाही की स्वतंत्रता" को प्रदर्शित कर रहे हैं। यहीं से अमेरिका ताइवान के जलडमरूमध्य और दक्षिण चीन सागर में भड़काऊ कदम उठाता रहा है। 

यहां अमेरिका और जापान के लिए एक ताना देने वाला संदेश है, क्योंकि उनके कई प्रमुख सैन्य प्रतिष्ठान जापान के पूर्वी हिस्से में ही स्थित हैं। रूसी रक्षा मंत्रालय के एक बयान में कहा गया है, "संयुक्त गश्त का कार्य रूस और चीन के झंडे को क्षेत्र में लहराना, एशिया-प्रशांत क्षेत्र में शांति और स्थिरता बनाए रखना और दोनों देशों की समुद्री आर्थिक गतिविधियों की सुविधाओं की रक्षा करना था। युद्धपोतों का समूह गश्त के दौरान पहली बार त्सुगारू जलडमरूमध्य (पश्चिमी प्रशांत महासागर क्षेत्र में) से गुजरा।” 

तीसरा, बाइडेन इस बात से अच्छी तरह वाकिफ हैं कि चीन का सैन्य साधनों के जरिए ताइवान पर कब्जा करने का कोई इरादा नहीं है और महज नुमाइश के लिए उसकी रणनीति नहीं बदलेगी। दूसरी ओर, ऐसे समय में जब देश में बाइडेन की राजनीतिक पूंजी घट रही है और सार्वजनिक रेटिंग गिर रही है, तो उन्हें स्वयं को (घर एवं बाहर) दृढ़ और मजबूत दिखाना अच्छा लगता है।

वास्तविकता यह है कि बाइडेन ने अमेरिकी अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण के लिए एक महत्त्वाकांक्षी एजेंडे के साथ अपने राष्ट्रपति पद की शुरुआत की थी, जिसकी तुलना एफडीआर की नई डील से की गई। लेकिन, वह बातचीत और सीनेट के नियमों में कहीं फंस गया, और बाइडेन को अपनी ही पार्टी के भीतर मतभेदों का सामना करते हुए अपनी नाव के पाल को मोड़ लेना पड़ा है। अपने सबसे महत्वाकांक्षी प्रस्तावों को रोक दिया गया है, उनमें से कुछेक तो अनिश्चित काल के लिए स्थगित हो गए हैं।

इस बीच, जैसा कि एक्सियोस (अमेरिकी समाचार वेबसाइट) का कहना है, "पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प हर किसी को भी बता रहे हैं कि वे फिर 2024 में अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव लड़ेंगे।…ट्रम्प रिपब्लिकन पार्टी के दिल, आत्मा हैं, और वे उसके एक निर्विवाद नेता हैं। अगर वे चुनाव लड़ना चाहते हैं तो आसानी से नामांकन प्रक्रिया में जीत हासिल कर लेंगे, चुनाव इसको स्पष्टता से स्पष्ट करते हैं।” 

अंग्रेजी में मूल रूप से प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:- 

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