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बिहार: महागठबंधन के सीएम बने नीतीश, तेजस्वी डिप्टी सीएम...

नीतीश कुमार ने आठवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली है, जबकि तेजस्वी यादव डिप्टी सीएम बने हैं। शपथ के बाद तेजस्वी ने नीतीश के पैर छूकर बड़ा सियासी संदेश दिया है।
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आने वाले सालों की सियासत के लिए बुधवार यानी 10 अगस्त का दिन बेहद ख़ास रहा। बिहार में सियासी मंच सजा तो ऐसी-ऐसी तस्वीरें सामने निकलकर आईं जिसमें 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों से लेकर भविष्य में बिहार की राजनीति क्या होने वाली है, ये सब कुछ दिखाई देने लगा।

सबसे पहले राज्यपाल फागू चौहान ने नीतीश कुमार को गोपनीयता और पद की शपथ दिलाकर आठवीं बार मुख्यमंत्री बना दिया, इसके तुरंत बाद तेजस्वी यादव ने उप मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। इसमें सबसे खास बात ये रही कि शपथ लेने के तुरंत बाद तेजस्वी ने नीतीश कुमार के पैर छूकर आशीर्वाद लिए। वैसे तो चाचा और भतीजे के रिश्ते में ये बड़ी आम बात है, लेकिन राजनीति में सबकुछ खास होता है।

शपथ लेने के तुरंत बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भाजपा पर हमलावर हो गए, और बिना नाम लिए बहुत कुछ गए। सिर्फ कह नहीं गए भविष्य की राजनीति की ओर इशारा भी कर गए। नीतीश कुमार ने कहा कि 2014 में आने वाले2024 में रहेंगे तब ना। हम रहें या न रहेंवे 2024 में नहीं रहेंगे। मैं विपक्ष को 2024 के लिए एकजुट होने की अपील करता हूं। प्रधानमंत्री पद के सवाल पर उन्होंने कहा कि मैं इस पद का उम्मीदवार नहीं हूं।

प्रधानमंत्री पद को लेकर नीतीश कुमार ने अपनी दावेदारी जिस तरह से नकारी है, साफ साबित होता है कि बिहार की सरकार बनाने में सोनिया गांधी का बड़ा हाथ है। यानी गठबंधन को एकजुट करने का काम तो नीतीश कुमार करेंगे लेकिन महागठबंधन की ओर से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार कांग्रेस ही देगी।

इसके अलावा भी नीतीश कुमार ने कई आरोप भाजपा पर लगाए, उन्होंने कहा कि 2020 के विधानसभा चुनावों में साज़िश के चलते जेडीयू को कम सीटें मिलीं। साज़िश में अपने लोग और सहयोगी भी शामिल थे। इस दौरान भाजपा के उन बयानों का भी नीतीश ने जवाब दिया जिसमें वो कहती है कि विपक्ष को पूरी तरह से खत्म कर दिया जाएगा। नीतीश कुमार ने साफ कहा कि देश में कभी भी विपक्ष खत्म नहीं हो सकता।

नीतीश का एक बयान जो सबसे महत्वपूर्ण था, वो ये कि उन्होंने बताया कि 2020 में वो मुख्यमंत्री नहीं बनना चाहते थे। अब नीतीश के इस बयान को आप तेजस्वी के पैर छूने से जोड़ सकते हैं। कहने का अर्थ ये है कि 10 अगस्त को बिहार में दिखी तस्वीरें और नीतीश के मुख्यमंत्री नहीं बनने वाला बयान, ये बताता है कि आने वाले चुनावों में तेजस्वी ही बिहार की मुख्य कुर्सी के हकदार होंगे। फिलहाल मौजूदा परिस्थिति तो यही कहती है। हालांकि राजनेताओं के बयान कब बदल जाए इसका अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता। वो भी नीतीश कुमार के बारे में क्या ही कहा जाए।

नीतीश का बयान और भविष्य के लिए तेजस्वी की नींव रखने वाली बात इस लिए भी पुख्ता होती है, क्योंकि शपथ ग्रहण समारोह में लालू का परिवार ही छाया रहा था। तेजस्वी की मां और पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ख़ुद राजभवन पहुंची थी और उनके साथ तेज प्रताप यादव भी मौजूद थे। हालांकि लालू प्रसाद यादव मौके पर मौजूद नहीं रहे। लेकिन सरकार बनवाने में और तेजस्वी किस तरह बिहार में अपनी राजनीतिक बिसात बिछाते रहें, लालू ने इसका सारा इंतज़ाम कर रखा था। रिपोर्ट्स के मुताबिक लालू यादव सांसद बेटी मीसा भारती के दिल्ली आवास पर पूरा वक्त टीवी के सामने बैठे रहे और बेटे को फोन पर ही रास्ता दिखाते रहे थे।

वहीं सारा खेल हो जाने के बाद अब महागठबंध ने ने भाजपा के स्पीकर विजय कुमार सिन्हा के ख़िलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की बात कही है। बताया जा रहा है कि फ्लोर टेस्ट के वक्त ही नए स्पीकर का चुनाव होगा, जो आरजेडी के खाते में जा सकता है। हालांकि कांग्रेस ने भी स्पीकर की कुर्सी का दावा किया है। जबकि जीतन राम मांझी ने अपनी पार्टी हम के दो विधायकों को मंत्रिमंडल में शामिल होने की मांग की है।

फिलहाल महागठबंधन की तरफ से ये बात भी सामने आई है, कि मंत्रिमंडल का विस्तार फ्लोर टेस्ट के बाद ही होगा। जिसमें आरजेडी को 16 मंत्री पद मिल सकते हैं। जबकि जेडीयू के खाते में 13 और कांग्रेस के चार विधायक मंत्री बन सकते हैं। आपको बता दें कि 12 विधायकों वाली सीपीआई (एमएल) ने अभी सरकार में शामिल होने का कोई फैसला नहीं किया है।  

ख़ैर... मंत्रिमंडल विस्तार के वक्त ये तस्वीर तो साफ हो जाएगी कि किसको कितनी भागीदारी मिली है, लेकिन नीतीश कुमार कब तक महागठबंधन में रहेंगे, इसकी गारंटी कोई नहीं ले सकता। क्योंकि भाजपा से नाता तोड़ना हो या जोड़ना या फिर आरजेडी के साथ आना और उससे अलग होनानीतीश के लिए ये कोई नई बात नहीं है। पिछले करीब तीन दशक के दौरान भाजपा और आरजेडी के साथ नीतीश के रिश्ते कई बार बने और बिगड़े हैं। यूं कहें कि पिछले करीब तीन दशकों में कम से कम 4 बार नीतीश का हृदय परिवर्तन हो चुका है। इसे कुछ बिंदुओं में समझ लेते हैं:

1985 में नीतीश कुमार ने जनता दल से राजनीति में एंट्री मारी

1989 में लालू से दोस्ती और 5 साल बाद बगावत

1996 में भाजपा से पहली बार हाथ मिलाया और केंद्र में मंत्री बन गए

2000 से 2010 तक भाजपा के समर्थन से तीन बार मुख्यमंत्री बने

2013 में मोदी को सांप्रादायिक बताकर एनडीए से नाता तोड़ दिया

2014 आते-आते आरजेडी और कांग्रेस का दामन थाम लिया

अब आया 2017, इस दौरान नीतीश ने भ्रष्टाचार का हवाला देकर आरजेडी से किनारा कर लिया और फिर से भाजपा का दामन थाम लिया

अब 2022 में फिर से नीतीश कुमार का मोह एनडीए से भंग हो गया

हालांकि नीतीश कुमार और भाजपा के बीच 2020 विधानसभा चुनावों से पहले ही खटास आनी शुरु हो गई थीं, जेडीयू ने भाजपा पर ये कहकर निशाना साधना शुरू कर दिया था कि बिहार में भाजपा के पास कोई नेता नहीं है, ये बात शायद भाजपा को भी समझ आई और उसने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित कर दिया। और बराबर-बराबर सीट पर चुनाव लड़ने का फैसला किया। लेकिन भाजपा, नीतीश के वोटबेंक पर सेंध लगा चुकी थी, जिसका नतीजा ये रहा कि 2015 में 71 सीटें जीतने वाली जेडीयू 2020 के चुनावों में महज़ 43 सीटें रह गईं। जबकि भाजपा 21 सीटों की बढ़ते साथ 74 पर पहुंच गई।

ऐसे में लंबे वक्त के बाद जब नीतीश कुमार को लगा होगा कि भाजपा के साथ वो दबाव में तो काम कर ही रहे हैं, साथ ही उन की क्षेत्रीय राजनीति पर भी सेंधमारी हो रही है, तो उन्होंने अलग रास्ता अख्तियार करने का मन बनाया।

फिलहाल महागठबंधन के साथ आते ही नीतीश का भाजपा पर हमला और अलग-अलग राज्यों से विपक्षी नेताओं के बयान से तो यही मालूम पड़ता है, कि देशभर की विपक्षी पार्टियों की ओर से 2024 के लिए रणनीति के तहत ही सारी राजनीतिक बिसात बिछाई जा रही हैं।

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