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बिहार : छोटी अवधि के सीज़न में धान की कम ख़रीद से दुखी किसान

बिहार के किसानों ने मांग की है कि सरकार ख़रीद की अवधि को फ़रवरी या मार्च तक बढ़ाए क्योंकि ऐसा पहले भी होता रहा है।
बिहार : संक्षिप्त मौसम में धान की धीमी ख़रीद से दुखी किसान
Image Courtesy: The Indian Express

पटना: ऐसे समय में जब किसान दिल्ली की सीमा के चारो ओर तीन कृषि-क़ानूनों के खिलाफ एकजुट होकर आंदोलन कर रहे हैं, तब बिहार में धान पैदा करने वाले किसान बहुत दुखी हैं क्योंकि सरकारी एजेंसियों ने अब तक 45 लाख टन धान खरीद के लक्ष्य का लगभग 40 प्रतिशत ही खरीदा है। इस साल 31 जनवरी तक इसकी खरीद की आधिकारिक तारीख है और धान की खरीद मीन बमुश्किल दस दिन बचे हैं, इससे छोटे, सीमांत और बड़े किसान सभी संकट में पड़ गए है।

सहकारिता विभाग के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, राज्य सरकार की एजेंसियों ने किसानों से 21 जनवरी तक कुल 17,20,380 लाख टन धान की खरीद की है। इस प्रक्रिया के लिए लगभग 2.5 लाख धान पैदा करने वाले किसानों का पंजीकरण किया गया था।

सरकारी एजेंसियों ने धान की खरीद को धीमाँ कर दिया है जिससे किसान काफी चिंतित हैं क्योंकि राज्य सरकार ने खरीद की अवधि/समय को कम कर दिया है। जबकि पहले, 31 मार्च तक खरीद होती थी, और इस बार इस साल के अंत तक खरीद की प्रक्रिया को खत्म कर दिया जाएगा। उन्होंने बताया कि, 'आमतौर पर धान की खरीद मार्च तक चलती है, लेकिन इस साल सरकार ने जनवरी के अंत तक ही खरीद करना तय किया है। इसका हमारे ऊपर भारी असर पड़ेगा, ”पटना जिले के बिहटा ब्लॉक के रहने वाले एक किसान कमलेश सिंह ने दुखी मन से बताया। 

अधिकांश किसान खरीद के समय को कम करने के सरकार के फैसले को समझने में पूरी तरह से विफल हैं। दिसंबर 2020 में सरकार ने घोषणा की थी कि वह हमेशा की तरह धान की खरीद करेगी, लेकिन बाद में एक नोटिस जारी कर कहा कि धान की खरीद अब 31 जनवरी तक ही की जाएगी। धान खरीद के मामले में इस तरह की यह पहली समय सीमा है। 

बिहार के कृषि मंत्री अमरेन्द्र प्रताप सिंह ने बताया कि फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) सुनिश्चित करने की प्रक्रिया में तेजी लाने का निर्णय लिया गया है। "सरकार का इरादा किसानों की मदद करना है," उन्होंने कहा। हालांकि, जब उनसे इस तथ्य पर टिप्पणी करने को कहा गया कि दो-तिहाई से अधिक धान की आधिकारिक खरीद जनवरी के बाद की जाती हैं- मुख्य रूप से फरवरी और मार्च में- तो वे चुप्पी साध गए। 

पटना के पालीगंज ब्लॉक के एक अन्य किसान बाल्मीकि शर्मा ने बताया कि सरकार ने पालीगंज के किसानों से 30 से 40 प्रतिशत धान की खरीद मुश्किल से की है। उन्होंने कहा कि बाकी की खरीद अगले दस दिनों में संभव नहीं है। उन्होंने आगे जोड़ते हुए बताया कि, "अब यह संभव नहीं है क्योंकि समय कम है और सरकार का अपने खरीद के लक्ष्य को हासिल करना एक बड़ी चुनौती होगी।"

किसानों के सामने अब 1,200 से 1,300 रुपये प्रति क्विंटल के बीच खुले बाजार में व्यापारियों को धान बेचने के अलावा कोई चारा नहीं बचा है। उन्होंने बताया, "यह इस तथ्य के बावजूद ये सब हो रहा है कि सरकार ने धान की एमएसपी 1,888 रुपए प्रति क्विंटल तय की है।"

शर्मा, एक किसान संगठन- पालीगंज बिटरानी कृषक समिति के सचिव भी हैं और उन्होने मांग की है कि सरकार धान की खरीद का समय फरवरी-मार्च के अंत तक बढ़ाए। उन्होंने उल्लेख किया कि कम से कम 15 प्रतिशत किसानों का धान कटाई के बाद अभी भी खेत में पड़ा है और बेचने के लिए तैयार नहीं है। 

दिसंबर में, जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राज्य में धान खरीद की सीमा को बढ़ाया और कुल खरीद लक्ष्य को 30 लाख टन से बढ़ाकर 45 लाख टन कर दिया था, तो किसान काफी आशान्वित हो गए थे। शर्मा ने बताया, "लेकिन बिचौलियों और अधिकारियों की मजबूत सांठगांठ के कारण यह घोषणा विफल हो गई।"

शर्मा की भावनाओं को बिहटा के किसान नेता आनंद कुमार ने भी साझा किया। उन्होंने कहा कि किसानों के लिए एमएसपी सुनिश्चित करने के लिए सरकार को धान खरीद की तारीख को मार्च तक बढ़ा देना चाहिए।

कृषि विभाग के अधिकारियों के अनुसार, किसानों से धान खरीदने और मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद यह सब सुनिश्चित करने के लिए दो "विशेष" अभियान चलाए गए थे। पहला अभियान 29 से 31 दिसंबर के बीच चलाया गया था, जबकि दूसरा अभियान 7 से 9 जनवरी के बीच चला।  हालांकि, खरीद अभी भी धीमी है।

बिहार की प्राथमिक कृषि सहकारी समितियां (PACS) और व्यापर मंडल प्रत्येक पंचायत में किसानों से सीधे धान खरीदने के काम में लगे हुए हैं। यह सब इस बात को सुनिश्चित करने के लिए किया गया है ताकि किसानों को उनकी फसलों का उचित दाम मिल सके। 

राज्य में 15 नवंबर से धान खरीद की प्रक्रिया शुरू होनी थी लेकिन राज्य विधानसभा चुनावों के कारण देरी हुई। वास्तव में औपचारिक खरीद दिसंबर के पहले सप्ताह में शुरू हुई थी। 

राज्य के सहकारी विभाग के एक अधिकारी ने स्वीकार किया है कि धान की खरीद काफी धीमी है। 

पिछले खरीफ के सीजन (2019-20) में, कोविड-19 महामारी के कारण खरीद की समय सीमा 31 मार्च से 30 अप्रैल तक बढ़ा दी गई थी और बिहार करीब 2.50 लाख किसानों से लगभग 20 लाख मीट्रिक टन धान खरीदने में कामयाब रहा था। हालांकि, उस वर्ष से पहले, सरकारी एजेंसियों ने 30 लाख मीट्रिक टन के लक्ष्य के मुकाबले 2.10 लाख किसानों से 14.16 लाख मीट्रिक टन धान की खरीद की थी।

किसानों को एमएसपी मिलने का सीएम का दावा भी झूठा है। विडंबना यह है कि केंद्र सरकार जिन तीन कृषि-क़ानूनों के माध्यम से जो करने का प्रयास कर रही है, वह बिहार सरकार 14 साल पहले ही कर चुकी है। उनके नेतृत्व वाली पहली एनडीए सरकार ने 2006 में बिहार की कृषि उपज विपणन समिति (एपीएमसी) अधिनियम को रद्द कर दिया था। 

इसके बाद, यह दावा किया गया था कि इससे किसानों को बड़ा लाभ होगा: उन्हें उपज के अच्छे दाम मिलेंगे और यह कृषि के बुनियादी ढांचे में भारी निजी निवेश को आकर्षित करेगा।

पिछले साल बिहार में सरकार ने एमएसपी पर गेहूं खरीद काफी कम दर्ज की है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, 2020-21 के रबी विपणन सीजन में बिहार में सात लाख टन के संशोधित लक्ष्य के मुकाबले, केवल 0.05 लाख टन गेहूं की खरीद की गई थी। जबकि 2019-20 में, राज्य सरकार की एजेंसियों ने मात्र 0.03 लाख टन गेहूं की खरीद की थी।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, बिहार की 12 करोड़ की कुल आबादी का लगभग दो-तिहाई हिस्सा अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर है। इनमें से ज्यादातर छोटे और सीमांत किसान हैं। इसके अलावा, राज्य में लगभग दो-तिहाई से अधिक कृषि का काम बारिश पर निर्भर हैं।

राज्य सरकार के आंकड़ों के अनुसार, कृषि बिहार की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, जो 81 प्रतिशत  कार्यबल को रोजगार देती है और राज्य के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 42 प्रतिशत पैदा  करती है।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Bihar: Slow Paddy Procurement in Truncated Season Leaves Farmers Unhappy

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