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बिहार चुनाव: आवाजाही के लिए नावों पर निर्भर खगड़िया की जनता

हालांकि सीएम नीतीश कुमार राज्य में सुशासन लाने के लिए अपनी पीठ थपथपाते नहीं थकते हैं, लेकिन खगड़िया में हर चुनाव रैली के बाद सिर्फ धूल उड़ती नज़र आती है, जो पक्की सड़कों और बुनियादी ढांचे के वादों की याद भर दिलाती है।
एनएच -31 से खगड़िया में प्रवेश
एनएच -31 से खगड़िया में प्रवेश

चुनाव आते हैं और चले जाते हैं, लेकिन खगड़िया की ग्रामीण जनता की मुश्किलें दिन-प्रतिदिन बढ़ती जाती हैं जिनका कहीं अंत नज़र नहीं आता हैं। 3 नवंबर को बिहार में दूसरे चरण के मतदान हैं, मतदाताओं को अभी उन सभी राजनेताओं से बहुत अधिक उम्मीद नहीं है जो किए गए वादों पर केवल बुदबुदाते हैं।

हालांकि सीएम नीतीश कुमार राज्य में सुशासन लाने के लिए अपनी पीठ थपथपाते नहीं थकते हैं, लेकिन खगड़िया में हर चुनाव रैली के बाद सिर्फ धूल उड़ती नज़र आती है, जो पक्की सड़कों और बुनियादी ढांचे के वादों की याद भर दिलाती है। खगड़िया की सीमा बेगूसराय से लगती है  वहां की जीर्ण-शीर्ण सड़कें, आधे-अधूरे पुल सरकार की उदासीनता की कहानी को बयान करते हैं। पटना से पूर्वी दिशा की तरफ लगभग 156 किलोमीटर दूर,राष्ट्रीय राजमार्ग 31 के साथ लगा दुर्गापुर गाँव गड्ढों से भरा हुआ है, और हर समय दुर्घटना की आशंका बनी रहती है।

प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई) की 2018 रिपोर्ट में दर्ज़ पाया गया कि बिहार की सड़के सबसे खराब स्थिति में हैं और इसलिए राज्य का दशा बहुत खराब है। यह सब सीएम के दावों के खिलाफ जाता है क्योंकि बिहार सरकार के ग्रामीण विकास विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि 2015-16 के बाद से (खासकर नीतीश कुमार के सीएम बनने के बाद) सड़कों के निर्माण की प्रगति राज्य में सबसे कम तथा धीमी रही है।

2011 की जनगणना के अनुसार मुंगेर डिवीजन के हिस्से के तौर पर खगड़िया जिला बिहार की सबसे कम आबादी वाले जिलों में से एक है। इस ज़िले से पाँच प्रमुख नदियां- गंगा, गंडक, बागमती, कमला बलान और कोसी गुजरती हैं और हर वर्ष बाढ़ आती है और तबाही का खतरा बना रहता है।

ऐसा माना जाता है कि सम्राट अकबर के समय में, तब के राजस्व मंत्री राजा टोडरमल को पूरे इलाके का सर्वेक्षण करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, लेकिन दुर्गम/कठिन इलाकों, नदियों और घने जंगलों के कारण वे ऐसा करने में असफल रहे। आज भी, लोग इस क्षेत्र में सरलता के साथ आना-जाना नहीं कर पाते हैं, क्योंकि अधिकतर आबादी नावों पर निर्भर हैं। प्लास्टिक की बोरियों में सब्जियां,जलाने वाली लकड़ियां, बाइक पर दूध के टैंकर लिए यात्री नाव के इंतज़ार में यहाँ खड़े देखे जा सकते हैं जो एक अकेली नाव के आने का इंतज़ार कर रहे होते हैं जो उन्हें मथार या आस-पास के इलाकों तक पहुंचाती हैं।

नावों का इंतज़ार करते यात्री

सोनबरसा गांव के अभिनव कुमार (26), जो नौकरी के लिए एक सरकारी इम्तिहान में बैठने के इच्छुक हैं, ने न्यूज़क्लिक को बताया कि स्थानीय प्रशासन से अनुरोध करने के बावजूद, समस्या ज्यों-की-त्यों बनी हुई है। उन्होंने कहा कि रहीमपुर मध्य पंचायत के बीच से और दुर्गापुर के पीछे से बहने वाली गंगा की छोटी सहायक नदी पर किसी भी तरह का पुल नहीं बनाया गया है।

गंगा की सहायक नदी पर बना एक अधूरा पुल

पेशे से टेम्पो चालक फिरोज यादव (44) अक्सर नदी तट के दूसरी ओर स्थित अपने पैतृक गांव जाते है। उन्होंने कहा कि पुल का निर्माण कई साल पहले शुरू हुआ था, लेकिन इसे आधे में ही  छोड़ दिया गया और अभी तक भी पूरा नहीं बनाया गया है।

मथार में रहने वाले उन लोगों के लिए सड़क/पुल संपर्क का न होना एक अभिशाप बन गया है जहाँ की आबादी करीब 30,000 है। यादव ने कहा कि आज भी, गंभीर बीमारियों से ग्रस्त रोगियों को नदी के इस किनारे लकड़ी के बिस्तर पर अस्पताल ले जाया जाता है।

बिहार में मुसहर समुदाय की बेहतरी के लिए काम कर रहे संजीव कुमार उर्फ संजीव डोम ने न्यूज़क्लिक को बताया कि अलौली विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले कोडरा गाँव ने 2019 में हुए लोकसभा चुनावों का बहिष्कार किया था, यह बहिष्कार अलौली विधानसभा क्षेत्र में सड़क, पुलों, स्कूलों और अस्पतालों का निर्माण न होने के खिलाफ किया गया था। गाँव वासियों के  नदी पार करने के लिए एक चचरी पुल (बांस-लकड़ी का पुल) भी नहीं बनाया गया है।

खगड़िया जिले में चार विधानसभा सीटें पड़ती हैं। इनमें से, खगड़िया, बेलदौर और परबत्ता में जनता दल (यूनाइटेड) के विधायक हैं, जबकि अलौली में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) का विधायक जीता था। यह इलाका अपनी बड़ी प्रवासी आबादी के लिए जाना जाता है और अति पिछड़े वर्गों (ईबीसी) के लिए भी जाना जाता है, नीतीश कुमार के सत्तारूढ़ जद (यू) क वोट का मूल आधार, यादव विरोधी वोटों का जमावड़ा है। विशेषज्ञों और जानकारों का कहना है कि इस बार लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) जद (यू) की संभावनाओं के लिए खतरा बन रही है।

सौरव कुमार बिहार के एक स्वतंत्र पत्रकार हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल रिपोर्ट पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें-

Bihar Polls: Years of Apathy Keep Khagaria Residents Dependent on Boats for Transport

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