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बुलंदशहर मामला: गिरफ़्तार नसीर पूछ रहा है- "ये जूते मैंने बनाए हैं क्या?"

‘अंधेर नगरी’ की तर्ज पर बुलंदशहर में सड़क पर जूते बेचते हुए दुकानदार को गिरफ़्तार कर लिया गया। आरोप है कि जूतों के सोल पर 'ठाकुर' लिखा हुआ था। मामले की एफ़आईआर दक्षिणपंथी संगठन के एक शख़्स ने की थी।
बुलंदशहर

बुलंदशहर में सड़क पर जूते बेचने वाले एक दुकानदार को जनवरी मंगलवार को पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया। जूते बेचने वाले शख़्स नसीर पर आरोप है कि उनकी दुकान के जूतों की सोल पर ब्रांड का नाम 'ठाकुरलिखा हुआ है। एनडीटीवी की एक ख़बर के मुताबिक़ इस मामले की एफ़आईआर एक दक्षिणपंथी संगठन के विशाल चौहान ने की हैजिसके बाद पुलिस ने नसीर को गिरफ़्तार किया है। 

इस पूरे मामले का एक वीडियो सोशल मीडिया पर चल रहा हैजिसमें देखा जा सकता है कि दुकानदार नसीर कह रहे हैं कि, "ये जूते मैंने बनाए हैं क्या?" वीडियो में एक और शख़्स है जिसकी शक्ल दिखाई नहीं दे रही हैउसका कहना है, "तो तू ये बेच क्यों रहा है?"

 

शिकायतकर्ता विशाल चौहान इलाक़े के एक दक्षिणपंथी संगठन के नेता हैं। उनकी आपत्ति यह है जूतों के सोल के नीचे 'ठाकुरलिखा होनाजाति का अपमान है। पुलिस द्वारा दायर की गई एफ़आईआर में नसीर ने कथित तौर धार्मिक भावना आहत की है। एफ़आईआर में एक अज्ञात जूता बनाने वाली कंपनी को भी नामित किया गया है।

एफ़आईआर के अनुसार शिकायतकर्ता नसीर की दुकान पर पहुंचे और देखा कि जूतों के सोल के नीचे 'ठाकुरलिखा हुआ हैआपत्ति करने पर नसीर ने उन्हें गालियां देनी शुरू कर दीं। हालांकि वीडियो में देखा जा सकता है कि नसीर बात कर रहे हैंऔर गाली या मारपीट का सबूत नहीं मिला है।

"जूते मैंने बनाए हैं क्या?"

नसीर के सवाल 'ये जूते मैंने बनाए हैं क्यापर ग़ौर करने की ज़रूरत है। नसीर की जो दुकान हैवो दरअसल एक दुकान भी नहीं हैबल्कि सड़क पर रखे कुछ जूते हैं जिन्हें वह बेचते हैं। ऐसी दुकानों को 'फड़कहा जाता है। ऐसे 'फड़शहरों में आमतौर पर देखे जाते हैंजहाँ दुकानों के मुक़ाबले सस्ते दामों पर सामान मिलते हैं। यहाँ मिलने वाले जूते लोकल होते हैंऔर कोई प्रतिष्ठित ब्रांड के नहीं होते। मगर फिर भी यह फड़ लगाने वाले दुकानदार इन जूतों को बना ही नहीं सकतेवो इसे किसी बड़ी दुकान या किसी लोकल फ़ैक्टरी से ही लेकर आते हैं।

'ठाकुरब्रांड : जातीय गाली या जातीय उच्चता?

शिकायतकर्ता की आपत्ति है कि 'ठाकुरलिखे जूते बेचने से उनकी धार्मिक/ जातीय भावनाएँ आहत हुई हैं। मगर ग़ौर ध्यान देने वाली बात है कि किसी चीज़ पर जाति का नाम लिखा रहना जातीय हीनता का सवाल हैया फिर जातीय उच्चता का? 28 दिसम्बर को उत्तर प्रदेश के ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट ने एक नोटिस जारी कर कहा कि अब से प्रदेश में जाति का नाम लिखी गाड़ियाँ सीज़ कर ली जाएंगी। उत्तर प्रदेश परिवहन ने कहा कि लोग जातीय उच्चता दिखाने के लिए गाड़ियों पर इस तरह जाति के नाम लिख कर चलते हैं।

'ठाकुरलिखे जूतों के बारे में न्यूज़क्लिक ने जब पड़ताल की तो पता चला कि ठाकुर फ़ुटवेयर कंपनी के नाम से आगरा की एक कंपनी हैजिसके जूते अमेज़नफ्लिपकार्ट जैसी वेबसाइट पर भी बेचे जाते हैं। इन जूतों पर भी हर जगह ब्रांड का नाम लिखा हुआ हैसोल पर लिखा है या नहीं इसकी पुष्टि नहीं की जा सकती है। इसके आधार पर कहा जा सकता है कि जो जूते नसीर के फड़ पर बेचे जा रहे हैंएक- उनमें लिखा जाति का नाम 'घमंडऔर 'शानकी वजह से लिखा गया हैऔर दो- कि वह जूते ठाकुर फुटवेयर कंपनी की तर्ज पर बनाए गए डुप्लिकेट जूते हैं। ऐसे में नसीर की गिरफ़्तारी बेबुनियाद ही लगती है।

बुलंदशहर पुलिस ने ट्वीट कर कहा है, "इस प्रकरण में वर्तमान विधि व्यवस्था के अनुसार जो सुसंगत था वह कार्यवाही की हैयदि पुलिस कार्यवाही न करती तो बहुत से लोग उल्टी/भिन्न प्रतिक्रिया देते। अतः पुलिस ने नियम का पालन किया है। कृपया इसे इसी रूप में देखें।" पुलिस का 'उल्टी/भिन्नप्रतिक्रिया से क्या मतलब है यह भी एक सवाल है। एक सवाल यह भी उठता है कि क्या एक मुसलमान शख़्स के ख़िलाफ़ किसी की भी शिकायत की तर्ज पर पुलिस बिना किसी जांच-सबूत के उसे गिरफ़्तार कर सकती है?

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