चुनाव 2019; डेटा विश्लेषण : केरल में एलडीएफ को बढ़त

केरल, में आज, तीसरे चरण में वोट डाले जा रहे हैं। यहां 2016 में हुए विधानसभा चुनाव परिणामों की व्याख्या करने पर अनुमान लगाया जा सकता है कि लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण में लेफ्ट और डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) को 20 सीटों में से बहुमत पर जीत हासिल होगी।
न्यूजक्लिक की डेटा विश्लेषक टीम ने 2016 में हुए विधानसभा चुनाव के परिणामों का विश्लेषण किया और पाया कि एलडीएफ को सीधे ही 15 सीटों का फायदा है और कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) को पांच सीटों के मिलने का संकेत देता है।
एलडीएफ की तरफ 2 प्रतिशत का झुकाव (स्विंग) होने से इसके पक्ष में 17-3 स्कोर जा सकता है जबकि यूडीएफ की ओर 2 प्रतिशत झुकाव (स्विंग) इसे 14-6 की गिनती तक नीचे ला सकता है। यह याद रखना चाहिए कि 2014 में, यूडीएफ ने 12 संसदीय सीटें जीती थीं, जबकि एलडीएफ को कुल छह सीटें मिली थी।
एलडीएफ सरकार का काम
केरल में एलडीएफ के संभावित अच्छे प्रदर्शन का प्रमुख कारण 2016 के चुनाव के बाद से एलडीएफ सरकार द्वारा किए बेहतर प्रदर्शन का नतीज़ा हो सकता है। शिक्षा में सार्वजनिक निवेश बढ़ाना, बीमार सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों को पुनर्जीवित करना और अन्य कल्याणकारी उपायों को लागू करने के अलावा, 2018 में अभूतपूर्व बाढ़ के बाद की गई त्वरित और निर्णायक कार्रवाई से राज्य सरकार की व्यापक रूप से प्रशंसा और सराहना की गई है। बाढ़ के बाद राहत और पुनर्वास कार्य सामान्य भ्रष्टाचार और अक्षमता से मुक्त रहा है, जैसा कि अक्सर देश के अन्य जगहों पर देखा जाता है। तबाह हुए घरों और बुनियादी ढांचे के पुनर्निर्माण के विशाल कार्य से एलडीएफ को अधिक समर्थन को आकर्षित करने की संभावना बनी हुई है।
सबरीमाला और भाजपा
2014 में भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए को देश के अन्य हिस्सों में मोदी लहर के बावजूद, यहां लगभग 11 प्रतिशत वोटों से ही संतुष्ट होना पड़ा था, उन्हें कुछ खास वोट नहीं मिल पाए। तब से, भाजपा ने प्रतिगामी और जातिवादी रणनीति के आधार पर एक बुरी रणनीति अपनाते हुए एक चाल चली, ताकि किसी भी तरह इस दक्षिणी राज्य में सीट हासिल की जा सके। इसमें हाल ही में सबरीमाला मंदिर प्रवेश विवाद था जिसमें भाजपा और जातिवादी ताकतों के गठजोड़ ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का विरोध करने के लिए हिंसक आंदोलन किया और सभी उम्र की महिलाओं को धर्मस्थल में प्रवेश करने की अनुमति के खिलाफ हिंसा की। अपने हालिया जारी घोषणापत्र में, भाजपा ने सबरीमाला मुद्दे को यह कहते हुए शामिल किया है कि वह धार्मिक रीति-रिवाजों और परंपराओं के वर्चस्व को बनाए रखने के लिए पूरी कोशिश करेगी। इसका प्रभावी मतलब यह है कि भगवा ताकतों द्वारा संविधान और सर्वोच्च न्यायालय की सर्वोच्चता को चुनौती दी जा रही है।
वामपंथियों ने इस चुनौती को चौतरफा स्वीकार किया और साहसपूर्वक एलडीएफ सरकार ने पी. विजयन के नेतृत्व में अदालत के आदेश को लागू करने का फैसला लिया। वामपंथी दलों ने धर्मनिरपेक्ष मूल्यों को बनाए रखने और संविधान की रक्षा करने के लिए राज्य भर में बड़े पैमाने पर अभियान चलाया। पूरे राज्य में घूम 620 किलोमीटर लंबी महिला दीवार बनायी जिसे इस साल 1 जनवरी को आयोजित किया गया था, जिसमें लगभग पचास लाख महिलाओं ने भाग लिया था, और भाजपा के नेतृत्व में सबरीमाला प्रवेश का विरोध करने के खिलाफ मोर्चा संभाला था। उन्होंने कहा कि प्रगतिशील विचार और कार्य अतीत की भेदभावपूर्ण प्रथाओं से बेहतर हैं।
मतदान के दिन वोटिंग पैटर्न में सबरीमाला मुद्दे की भूमिका होने की संभावना है और एलडीएफ समर्थकों को भरोसा है कि बीजेपी की चाल को शिकस्त मिलेगी। कांग्रेस ने भी सबरीमाला संबंधित आंदोलन में एक विचित्र भूमिका निभाई, पहले आदेश का स्वागत किया और फिर उन्होंने अवसरवादी रूप से इसका विरोध किया।
कांग्रेस के लिए सुरक्षित सीट मानी जाने वाली वायनाड सीट से राहुल गांधी को मैदान में उतारा गया है। इसने देश भर में प्रगतिशील ताकतो को चौंका दिया है क्योंकि गांधी को एलडीएफ उम्मीदवार के खिलाफ खड़ा किया गया है, जबकि भाजपा समर्थित उम्मीदवार कहीं भी तस्वीर में नहीं है, इस तरह देश भर में कांग्रेस के सांप्रदायिक भाजपा से लड़ने के रुख पर दाग लग गया है। यह संभावना है कि वायनाड में मतदाता अपने बीच में एक उच्च प्रोफ़ाइल उम्मीदवार होने के बावजूद बह जाए, हालांकि एलडीएफ अपने सामान्य तरीके से जोरदार अभियान चलाने के लिए प्रतिबद्ध है।
[पीयूष शर्मा द्वारा डेटा विश्लेषण और मैपिंग ग्लेनिसा परेरा द्वारा की गई है]
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