चुनाव 2019 ; दिल्ली : बोलना ज़्यादा, करना कम!
दिल्ली बहुत ज़ोर से बोलती है और पूरे देश पर छाए रहना चाहती है। बौद्धिकों से लेकर राजनेताओं की यहां भरमार है। लेकिन आंदोलन से लेकर राजनीति तक का केंद्र देश की यह राजधानी वोट के मामले में अक्सर देश से पिछड़ जाती है। यही इस बार भी हुआ।
दिल्ली में रविवार को सभी सातों लोकसभा सीट के लिए मतदान हुआ। दिल्ली में अन्य राज्यों के मुकाबले मतदान का प्रतिशत काफी कम रहा। एक समय तो लग रहा था कि मतदान 50 फीसद तक पहुंच जाए तो गनीमत है, हालांकि शाम होते होते मतदान का प्रतिशत बढ़कर 60.21 हो गया, लेकिन यह भी वर्ष 2014 के हिसाब से 5 फीसदी कम ही है।
चुनाव अधिकारियों ने मतदान में कमी के लिए भीषण गर्मी को जिम्मेदार ठहराया लेकिन पिछले आम चुनाव में भी मतदान ऐसे ही मौसम में हुआ था लेकिन मतदन का प्रतिशत ज़्यादा था। और गर्मी लगभग पूरे देश में है। दरअसल मतदान प्रतिशत में कमी की वजह गर्मी के प्रकोप से ज्यादा उत्साह में कमी के रूप में दिखा।
अब सभी राजनीतिक पंडित इस बात को लेकर बहस कर रहे हैं कि कम मतदान का फायदा किसे होगा? और किसे नुकसान?क्योंकि इस चुनाव में किसी भी दल का के पक्ष में कोई लहर या माहौल नहीं दिखाई दिया। मुकाबला पूरी तरह से त्रिकोणीय था। बीजेपी जहाँ पूरी तरह से मोदी नाम और चेहरे के सहारे थी तो कांग्रेस को अपने बड़े और पुराने नेताओ से उम्मीद थी कि वो एक बार फिर अपनी खोई हुई ज़मीन को हासिल कर लेगी। हालांकि आम आदमी पार्टी को दिल्ली में किए अपने काम ख़ासकर शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में किए काम पर भरोसा था। भाजपा को लगता है उसे मोदी विरोधी वोटो के आप और कांग्रेस में बटवारे से फायदा होगा लेकिन इन वोटो का कितना बंटवारा हुआ है या नहीं, इसका अनुमान ही लगाया जा रहा है।
मतदान में कमी का कारण उम्मीदों का टूटना और निराश!
उत्तर पूर्वी दिल्ली के एक वोटर जिनकी उम्र तकरीबन 50 साल है उन्होंने मतदान में गिरावट का कारण मौसम नहीं बल्कि लोगों का राजनीतिक लोगों के प्रति हताशा को बताया। उन्होंने कहा कि मतदान में कमी का एक बड़ा कारण यह भी है कि पिछली बार एक बड़े तबके को मोदी से उम्मीद थी कि शायद उनके आने से राजनीति और व्यवस्था में कुछ सकारात्मक परिवर्तन आएंगे लेकिन उनके पांच साल के शासन के बाद भी कोई बदलाव नहीं आया। आम आदमी की आकांक्षाओं को पूरा करने में मोदी सरकार विफल रही है। इससे उस तबके को लग रहा है कि वोट करने या न करने से क्या ही बदलेगा? इसलिए जो लोग पिछले चुनाव में बड़े उत्साह से मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए घरों से निकले थे, वो इस बार नहीं दिखे।
उनकी बात कुछ हद तक सही भी दिखती है। अगर हम दिल्ली में इस बार मतदन प्रतिशत को देखे तो वो 60.21 प्रतिशत है। पिछली बार 2014 में यह 65.10 प्रतिशत था। वहीं, 2009 में केवल 51.84 प्रतिशत वोटिंग हुई थी।
दिल्ली की सभी सातों सीटों पर भी मतदान प्रतिशत देखें तो यही रुझान दिखता है-
लोकसभा क्षेत्र | 2009 | 2014 | 2019 |
---|---|---|---|
चांदनी चौक | 55.21% | 66.07% | 62.6% |
उत्तर पूर्व दिल्ली | 52.35% | 67.32% | 63.45% |
पूर्वी दिल्ली | 53.43% | 65.41% | 56.4% |
दक्षिण दिल्ली | 47.41% | 62.92% | 57.3% |
नई दिल्ली | 55.71% | 65.11% | 56.4% |
उत्तर पश्चिम | 47.69% | 61.81% | 58.9% |
पश्चिम दिल्ली | 52.34% | 66.13% | 60.6% |
मुस्लिम वोटर क्या वापस कांग्रेस की तरफ गए?
मुस्लिम वोटर, दिल्ली की कम से कम 3 सीटों पर निर्णायक है। वह किसकी तरफ गया है। क्या वो एकमुश्त किसी एक पार्टी की तरफ गया है या फिर बंटा है इससे पर्दा तो 23 मई को ही उठेगा, लेकिन सुबह में वोट डालने वाले मुस्लिम मतदाताओं की तादाद कम रही, दिन में 11 बजे के बाद पोलिंग बूथों पर मुस्लिम मतदाता ज्यादा दिखना शुरू हुए।
अब अलग लोगों के अलग-अलग दावे हैं। कुछ जानकार कहते हैं कि
मुस्लिम वोटर मुख्य तौर पर कांग्रेस के साथ जाता दिखा है। इसके पीछे उनका मानना है कि कांग्रेस ही राष्ट्रीय स्तर पर सांप्रदायिकता के खिलाफ लड़ सकती है। कुछ का दावा है कि ‘आप’ को भी मुस्लिमों का अच्छा समर्थन मिला है।
उत्तर पूर्व दिल्ली में प्रियंका गांधी और शीला दीक्षित के रोड शो से भी मतदाताओं का कांग्रेस के पक्ष में झुकाव बढ़ा। वो लोग भी कांग्रेस के साथ दिखे जो आप के काम से खुश हैं। इन लोगों ने कहा कि वो दिल्ली के विधानसभा चुनाव में आप को वोट देंगे लेकिन ये राष्ट्रीय चुनाव है। ज़ाफरवाद के रहने वाले समीर कहते हैं, 'केजरीवाल ने दिल्ली में बहुत अच्छा काम किया हैं लेकिन यह लोकल चुनाव नहीं है। मैंने उस पार्टी को अपना वोट देना पसंद किया जो राष्ट्रीय स्तर पर हमरी लड़ाई लड़े।'
मध्यम वर्ग के मतदाता सबसे ज्याद भ्रमित रहे!
इस वर्ग के वोटरों में भी त्रिकोणीय विभाजन साफ नज़र आया। आकाश जिंदल जो गाँधी नगर में कपड़ों का करोबार करते हैं, उन्होंने कांग्रेस के चुनाव घोषणा पत्र से प्रभावित होकर, कांग्रेस पर भरोसा किया, क्योंकि कांग्रेस ने जीएसटी फाइलिंग सिस्टम में सुधार का वादा किया है और उन्होंने इसी मुद्दे पर वोट दिया है।
दिल्ली में आप की चमक कम हुई है लेकिन निम्न और मध्यम वर्ग में अभी भी उसकी पकड़ दिख रही है। इस वर्ग का मानना है कि आप बदलाव लाने की कोशिश कर रही है। इसलिए आप को उम्मीद है उसे इस तबके का समर्थन मिलेगा। बिजली और पानी के बिल कम करने से लोगों को फायदा हुआ है।
दिल्ली के चुनाव में जितनी बदजुबानी इस बार हुई शायद ही इससे पहले कभी हुई हो
दिल्ली को इन चुनावों में क्या मिला, हर पार्टी से पैराशूट उम्मीदवार। मुद्दों की भरमार के बावजूद उनपर बात न करने वाले नेता। बस निजी आक्षेप और तू-तू, मैं-मैं करते रहे। इस चुनाव प्रचार में एक्टरों और फिल्म स्टार का बोलबाला था। खासतौर पर भाजपा भोजपुरी एक्टर के भरोसे दिखी, साथ ही दिल्ली का दीवाला निकलने वाली सीलिंग और नोटबंदी जैसे मुद्दे गायब रहे, जिसने दिल्ली का व्यापार पूरी तरह से ठप कर दिया। एक बात तो साफ दिखी कि नतीजों में जो भी जीते लेकिन मुद्दों में दिल्ली हार गई।
कुमार कुणाल जो एक पत्रकर है उन्होंने इस चुनाव के दौरन एक बात कही कि दिल्ली की सियासत इतनी गंदी पहले नहीं थी। भाषाई और व्यवहारिक मर्यादा तो हमेशा दिखती थी। कुछ किरदार ही तो बदले हैं, उनसे दिल्ली के मिज़ाज को क्यों बदलने दिया जाए? कई बार किसी जगह के बाशिंदों पर भी निर्भर करता है कि माहौल कैसे बदला जाए, चुनाव उन्हें मौका देता है, गंदगी साफ करने का।
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