चुनाव 2019: मोदी सरकार की पसंदीदा योजनाओं की सच्चाई, भाग-2
[मोदी सरकार की योजनाओं पर जारी श्रृंखला के भाग 2 में, न्यूज़क्लिक ने रोज़गार से संबंधित कुछ योजनाओं की जाँच की: पीएम मुद्रा योजना, कौशल भारत, और पीएम रोज़गार सृजन कार्यक्रम। भाग 1 में उज्जवला, जन धन, फसल बीमा और स्वच्छ भारत योजनाएँ शामिल थीं।]
सभी प्रमुख योजनाओं के बीच, नौकरी से जुड़ी योजनाओं ने देश में बढ़ती भयंकर बेरोज़गारी की स्थिति के मद्देनज़र युवाओं में बहुत बड़ी उम्मीदें पैदा की थीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक करोड़ नौकरियों का वादा किया था। नौकरियों के संकट को हल करने के लिए मोदी सरकार का दृष्टिकोण: स्वरोज़गार के लिए ऋण देना और बेहतर रोज़गार के लिए कौशल प्रशिक्षण देना प्रमुख था। दोनों रणनीतियाँ नाटकीय रूप से विफ़ल रहीं जैसा कि नीचे दिखाया जा रहा है।
मुद्रा क़र्ज़
प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (पीएमएमवाई) मोदी द्वारा शुरू की गई थी, जिसमें दावा किया गया था कि बड़ी संख्या में लोगों को जल्द से जल्द क़र्ज़ा देकर स्वरोज़गार बनाया जाएगा और इससे अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा। बैंकों और अन्य वित्तीय उधार देने वाली एजेंसियों को कहा गया कि वे सामान्य पूर्व-शर्तों और जांचों के बिना आवेदकों को 10 लाख रुपये तक का क़र्ज़ दे दें। आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, 2015 और मार्च 2019 के बीच, 16.6 करोड़ लोगों को क़र्ज़ के तहत क़रीब 7.8 लाख करोड़ रुपया आईएएस योजना के तहत दिया गया।
इसका मतलब है कि प्रति व्यक्ति औसत क़र्ज़ 46,964 रुपये रहा। बहुत ही छोटे उद्यमों को छोड़कर, क्या कोई भी व्यवसाय या व्यापार इतने कम क़र्ज़ की राशि पर चल सकता है? हाल ही में, सरकार ने मुद्रा योजना के तहत रोज़गार सृजन की एक रिपोर्ट को दबा दिया है।
सरकार पर भ्रष्टाचार के भी गंभीर आरोप हैं। पिछले साल इस बात का खुलासा तब हुआ जब सीबीआई द्वारा एक बैंक अधिकारी को “धोखाधड़ी” के लिए पकड़ा गया जिसमें वे 62 लाख रुपये का क़र्ज़ 26 मुद्रा कर्ज़ के तहत बाँट रहे थे वह भी “व्यापार या निवास का मौक़े पर पूर्व निरीक्षण या भौतिक सत्यापन किए बिना। यह भी जानने की जुर्रत नहीं की गई की आख़िर इस पैसे से कोई परिसंपत्ति पैदा होगी या फिर कोई व्यापार होगा कि नहीं।"
राजनीतिक दबाव में, बैंक केवल क़र्ज़ के लिए दिए गए लक्ष्यों को पूरा करने और अपने वरिष्ठों अफ़सरों को ख़ुश करने के लिए क़र्ज़ बाँट रहे हैं। आरबीआई ने कथित तौर पर इस योजना के तहत बढ़ते ऋणों को चिह्नित किया है। स्वरोज़गार पैदा करने से दूर, इस योजना ने बैंकिंग प्रणाली में एक छेद कर दिया है जो पहले से ही नीरव मोदी और विजय माल्या जैसे भगोड़े व्यापारिक टायकून की धोखाधड़ी की वजह से तनाव में है। कुछ रिपोर्टों से पता चलता है कि स्थानीय भाजपा नेता और समर्थक लोगों को संरक्षण के रूप में ऋण दिलाने के लिए जुटा रहे हैं।
स्किल इंडिया (कुशल भारत)
प्रमुख योजना, प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (पीएमकेवाईवी) - कौशल भारत कार्यक्रम का हिस्सा - युवाओं को "उद्योग-संबंधित कौशल" प्रदान करने के उद्देश्य से बनाई गई थी। यह मोदी सरकार द्वारा किए गए झूठे और खोखले दावों का बहुत अच्छा उदाहरण है।
पहले से चल रहे कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रम के अनुकूल, कौशल भारत ने पहले दो वर्षों (2014-16) में ऐसी गड़बड़ी की कि शारदा प्रसाद समिति को 2016 में इसकी कार्यप्रणाली की जांच करने के लिए स्थापित किया गया और पाया गया कि, “हर कोई युवा रोज़गार प्रदान किए बिना या उद्योग की ज़रूरत को ध्यान रखे बिना संख्या को बढ़ाने का प्रयास कर रहा है।" समिति का निष्कर्ष था कि 2,500 करोड़ रुपये की सार्वजनिक राशि को निजी क्षेत्र को लाभ पहुँचाने के लिए ख़र्च किया गया लेकिन वह अपने दो उद्देश्यों को पुरा नहीं कर पाया जिसमें उद्योग के लिए सटीक कौशल ज़रूरतों को पूरा करना और युवाओं को उचित वेतन पर रोज़गार प्रदान करना शामिल था। इस चौंकाने वाली विफ़लता के परिणामस्वरूप हंगामा हुआ, तत्कालीन मंत्री राजीव प्रताप रूडी को बरख़ास्त कर दिया गया था और कार्यक्रम को फिर से शुरू किया गया था। हालांकि, नए कार्यक्रम के तहत, जिसे 2016-2017 में एक करोड़ युवाओं को कुशल बनाने के लक्ष्य के लिए 1,200 करोड़ रुपये मिले, लेकिन हालात बिलकुल नहीं सुधरे।
पीएमकेवीवाई वेबसाइट के अनुसार, 3 अप्रैल, 2019 तक कुछ 29.86 लाख युवाओं को शॉर्ट टर्म ट्रेनिंग (एसटीटी) पाठ्यक्रमों में दाख़िला दिया गया था, जिनमें से केवल 34.5 प्रतिशत को ही नौकरी मिली थी। इसका भी कोई डेटा उपलब्ध नहीं है कि क्या ये युवा नई नौकरी तलाशने वाले थे, या क्या ये नौकरियाँ हासिल किए गए कौशल से संबंधित थीं या नहीं।
शिक्षण से पुर्व की मान्यता (आरपीएल) के अन्य घटक में, पहले से ही नौकरियों में काम कर रहे लगभग 18 लाख व्यक्तियों को प्रशिक्षण दिया गया था। हालांकि, इसके ज़रिये केवल 10 लाख ही पूर्णता प्रमाण पत्र प्राप्त कर सके। इसमें पेट्रोल पंप के कर्मचारी, घरेलू नौकरानियाँ और सभी तरह के कर्मचारी शामिल थे, कई लोग सिर्फ़ संख्या बढ़ाने के लिए कुछ दिनों के लिए कक्षाओं में जाने को मजबूर थे।
सरकारी एजेंसियों द्वारा चलाए जाने वाले विशेष प्रोजेक्ट नामक एक तीसरा घटक जिसमें 90,000 से अधिक व्यक्तियों को नामांकित किया गया था, लेकिन आधे से भी कम (42,000) ने प्रशिक्षण लिया, और मात्र 18,862 या लगभग 20 प्रतिशत कों काम मिला।
अगले साल तक एक करोड़ रोज़गार का लक्ष्य एक दूर का सपना है, और यह स्पष्ट है कि जब औद्योगिक या सेवा क्षेत्र में नौकरियाँ उपलब्ध नहीं हैं, और न ही स्वरोज़गार व्यवहार्य है, ऐसे में लोगों को प्रशिक्षित करना उन्हें बेवकूफ़ बनाने से कम नहीं है।
प्रधान मंत्री रोज़गार सृजन कार्यक्रम (PMEGP)
प्रधानमंत्री रोज़गार सृजन कार्यक्रम (PMEGP) मुद्रा ऋणों की तरह का ही एक कार्यक्रम है, सिवाय इसके कि इसके ज़रिये सरकार बैंक के मुख्य ऋण की मार्जिन धन को उप्लब्ध कराती है। तीन वर्षों में, 2016 में इसकी शुरुआत के बाद से, इस योजना को 12.3 लाख आवेदन मिले, जिनमें से केवल 1.33 लाख प्रस्तावों को स्वीकार किया गया। 2016-17 और 2018-19 के बीच मार्जिन राशि कुल 3,649 करोड़ थी, जो पीएमईजी डैशबोर्ड के अनुसार है।
इसका मतलब है कि औसतन प्रत्येक परियोजना के लिए लगभग 2.7 लाख रुपये ऋण के रूप में दिए गए थे, और प्रत्येक आवेदक ने बैंक से मूल ऋण के रूप में लगभग 8-10 लाख रुपये लिए होंगे।
इस कार्यक्रम के तहत सृजन की गई नौकरियों का अनुमान सरकार द्वारा ही दिया जाता है। पीएमईजीपी वेबसाइट कहती है कि दो साल 2017-18 और 2018-19 में 1.13 लाख परियोजनाओं को मंजूरी दी गई, जिसने 7.9 लाख नौकरियाँ पैदा कीं। यह प्रति प्रोजेक्ट लगभग सात बैठता है। लेकिन यहाँ ख़ास बात यह है: कि इसे मानने का कोई आधार नहीं है कि यह वास्तविक नौकरियों की संख्या है या नहीं। इन नंबरों का अनुमान ऋणों के लिए बैंक आवेदनों से लिया गया है। और, अन्य सभी योजनाओं की तरह, यह भी स्पष्ट नहीं है कि ये ऐसी नौकरियाँ हैं जिन्हें नई नौकरी कहा जाए जिन्हें तलाश करने वाले लोगों मिली या यह सिर्फ़ इतना है कि कहीं और काम करने वाले लोग इन नौकरियों में स्थानांतरित हो गए हैं।
रोज़गार से संबंधित कुछ अन्य योजनाएँ हैं जैसे दीन दयाल उपाध्याय - ग्रामीण कौशल योजना, दीनदयाल अंत्योदय योजना - राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन, और पीएम रोज़गार प्रोत्साहन योजना (पीएमआरपीवाई)। पहले दो कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रम हैं, जिन्होंने रोज़गार के संकट में कोई सुधार नहीं किया है। तीसरा - पीएमआरपीवाई - केवल उद्योगपतियों को नकद दे रही है ताकि वे अपने कर्मचारियों के भविष्य निधि योगदान के ख़र्चों को पूरा कर सकें।
वर्तमान मोदी सरकार द्वारा शुरू की गई या पुरानी शराब को नई बोतल में डाल कर पेश की गई योजनाएँ हारे-दिमाग़ की कहानी हैं, रोज़गार से जुड़ी योजनाओं का यह हश्र वाक़ई चिंताजनक है। कोई आश्चर्य नहीं कि आज नौकरियाँ सबसे बड़ा मुद्दा है जिस पर मोदी के ख़िलाफ़ सबसे ज़्यादा ग़ुस्सा उमड़ रहा है।
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